अहं का कठोर दण्ड - हिंदी कहानी

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अहं का कठोर दण्ड आज बह तीस साल की हो गयी हैं लेकिन देखने में चालीस की लगती हैं । चेहरा कुछ मुरझा सा गया हैं। आँखों के चारो तरफ कुछ काला काला सा दिखाई

अहं का कठोर दण्ड 

                                                                
ज बह तीस साल की हो गयी हैं लेकिन देखने में चालीस की लगती हैं । चेहरा कुछ मुरझा सा गया हैं। आँखों के चारो तरफ कुछ काला काला सा दिखाई देता हैं। सर के बालों में कुछ कुछ सफ़ेद दिखाई दे रहें हैं जो उस को  अधेड़ होने का अहसास करा रहें हैं। उसके हौट जो हमेशा मुस्कराते रहते थे मुरझा गए हैं |
       
कभी उसका भी ज़माना था। जब बह सड़क पर निकलती थी तो लड़के  उस को  देखने के चक्कर में  सब कुछ भूल जाते थे और चुटीला हो जाते थे। उसका शरीर बेहद स्लम , आँखें  भूरी और बाल बेहद काले तथा बहुत ही खूबसूरत थे। माँ उस को परियों के देश की राज कुमारी कहती थी। बह अपने कॉलेज की शान थी। स्पोर्ट्स तथा पड़ाई में अबल  थी। माँ से उस को संस्कार और पिता से उस को  आजादी मिली थी। भौतिक  विज्ञान में पी एच डी करने के उपरान्त बह एक कॉलेज में प्रोफेसर हो गयी।       
अहं का कठोर दण्ड - हिंदी कहानी

जब उसने जबानी की देहलीज पर कदम रखा।  औरों की तरह उसके माता पिता भी चिंतित हो गए।  उन्हों ने उस को  सलाह देते हुए कहा कि हमने अपनी बेटी को अच्छी तालीम दी हैं और साथ में आजादी भी। बह जिंदगी के फैसले स्वंय कर सकती हैं। लेकिन फैसले लेते समय इस बात का ध्यान रखे कि जो रिश्ते ईश्वर के द्वारा बनाये जाते हैं उसमे तो हम कुछ नहीं कर सकते , जैसे मां, बाप,भाई, बहिन हैं | लेकिन तुम अपने जीवन साथी का  चुनाव  अच्छी तरह सोच कर स्वंय  कर सकती हों। अपने जीवन साथी के परिवार का दिल अच्छे काम और मधुर स्वभाव  से जीता जा सकता हैं।
        
किन्तु जवानी अंधी होती हैं और उस समय का प्यार रूमानी और यथार्थ से बहुत दूर । जब हम प्यार करते हैं तो बह रूमानी होता हैं और असल जिंदगी से काफी दूर होता हैं उसमे प्रेमी और प्रेमिका सिर्फ रूमानी ख़्वाब में होते हैं ,सिर्फ दोनों अपने बारे में सोचते हैं।
       
उसके साथ ही ऐसा ही हुआ था उसने एक लड़के जो की उसके साथ ही प्रोफेसर था लव मैरिज की। किन्तु शादी के बाद दोनों में झगड़े होने लगे ।  जंहा शादी से पहले दोनों को एक दूसरे को देखे बिना चैन नहीं आता था | शादी के कुछ दिनों बाद ही एक दूसरे की सूरत के दुश्मन हो गए और एक दूसरे के रिश्तेदार  ने आग में घी का काम किया |
        
एक दूसरे को बुरा फील कराने के लिए कमेंट  मारने लगे और छोटी छोटी बातों पर झगड़ा करने लगे । बह एक दूसरे के घरबालो को नीचा दिखाने की कोशिश करने लगे। एक दूसरे से  बातें छुपा ने  लगे । झूठे वादे और चीट करने लगे । उनके रिश्ते में कोई गर्मजोशी नहीं रह गयी थी। उनके रिश्ते में दिल खोल कर अपनी बात रखने की आजादी नहीं रह गयी थी।
         
जब  चीजें ज्यादा खराब होने लगी तो उसने तलाक लेने का फैसला किया।  हाल कि  उसके पति ने इस फेसले का विरोध किया। उसका कहना था कि हमें तलाक लेने के फेसले पर पुनः विचार करना चाहिए |लेकिन उसका अहं सुलह करने के लिए तैयार  नहीं था। उसने कोर्ट में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया। आठ साल तक बह तलाक का मुकदमा लड़ती रही और पूरी जवानी उसने मुक़दमा  में लगा दी।
          
इसी उधेड़बुन  में बह  पारिवारिक  न्यायालय  के बहार एक बरगद के पेड़ के नीचे गुम सूम अवस्था  में बैठी थी। तभी उसके वकील  ने उससे कंधे पकड़ कर झकझोरा और कहा " मैडम ,मुबारक हो, आपका डाइवोर्स हो गया हैं । बह निढाल होकर वहाँ लेट जाती हैं। आज उसको अपनी जीत पर खुशी के स्थान दुःख हो रहा हैं। जिस अहं के लिए उसने यह सब किया था बह टूटा और नष्ट हुआ दिखाई दे रहा हैं |
          
इस पूरे घटना क्रम पर बह पुनः :  विचार करती हैं तो पाती हैं की उसकी गलती ज्यादा थी।  बास्तब में बह स्वार्थी हो गयी थी। बह चाहती थी की उसका पति उसका ही होकर रहे। बह अपने परिवार ,अपने मां बाप ,अपने भाई बहिन से कोई सम्बंद ना रखे और ना ही कोई आर्थिक सहायता दें। बह चाहती थी की पति के परिवार का कोई भी व्यक्ति उसके यहाँ ना आये ,इसलिए उनके साथ कठोर  ब्योहार करती थी और उनको  बेइज्जत  करती थी। बह पति का जान बूझ कर फजूल  खर्च करती थी , महंगी महंगी चीजें खरीदती  थी ताकि उसके पास पैसे ना रहे और अपने घरबालो की मदद ना कर सके। बह अपने पति से छोटी छोटी बातों पर लड़ती थी। यही उनदोनो के बीच वैमनस्य  का मूल कारण था और आज उसकी स्थिति ऐसी हो गयी हैं की बह पूरी तरह अकेली रह गयी हैं आज उसकी समझ में आ रहा हैं की प्यार का अर्थ छीनना नहीं देना हैं।
          
आज उसकी समझ में आ रहा हैं कि सच्चा प्यार केवल देने और देते रहने में ही विश्वास करता हैं |जहाँ प्यार हैं वहाँ समर्पण हैं| जहाँ समर्पण हैं वहाँ अपने पन की भावना हैं |और जहाँ यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन हैं वहीं प्रेम का बीज अंकुरित होने की संभावना हैं |जिस प्रकार सीने के लिए धड़कन जरूरी हैं उसी तरह जीवन के लिए प्रेम आवश्यक हैं । तभी तो प्रेम केवल जोड़ने में विश्वास रखता हैं न कि तोड़ने में। सही मायने में सच्चा एवं परिपक्व प्रेम वह होता हैं जो कि अपनों को खुश रख सके ,अपनों में खुश रह सके। सच्चा एवं परिपक्व प्रेम अपने प्रिय के साथ हर दुःख-सुख, धूप-छाँह, पीड़ा आदि में हर कदम सदैव साथ रहता हैं और अहसास कराता  हैं कि बह हर हाल में उसके साथ, उसके लिए हैं | उस को अहं की बहुत बड़ी कीमत चुका नी पड़ी हैं। उसका सब कुछ बर्बाद हो गया हैं। बह एक पति और बच्चो का सपना  देखती थी , बह सब समाप्त हो गया हैं। अब बह जिंदगी की पुनः : शरुआत कैसे करेगी। यही सोचते हुए बह कोर्ट से घर की ओर धीरे धीरे चलती हैं।



- अशोक कुमार भटनागर 
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी 
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार  

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