गगनयान - 10 विज्ञान कथा

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मित्रो , यह 2080 का वर्ष है । आज मुझे लाइब्रेरी में 2040 के एक अंतरिक्ष-यात्री की प्रकाशित डायरी मिली है । उसी का एक अंश मैं आप को सुनाता हूँ ।

गगनयान - 10 


मित्रो , यह 2080 का वर्ष है । आज मुझे लाइब्रेरी में 2040 के एक अंतरिक्ष-यात्री की प्रकाशित डायरी मिली है । उसी का एक अंश मैं आप को सुनाता हूँ ।

डायरी-अंश —
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“ हलो , हलो ! श्री हरिकोटा नियंत्रण-कक्ष । मैं गगनयान-10 से बोल रहा हूँ । क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं ... “
पिछले पंद्रह दिनों से मैं श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र के नियंत्रण-कक्ष से सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास कर रहा हूँ । पर कोई सम्पर्क नहीं हो रहा । उधर से रेडियो पर चुप्पी है , सन्नाटा है । पिछले पखवाड़े तक सब कुछ ठीक-ठाक था ।
गगनयान

दरअसल मैं गगनयान-10 अंतरिक्ष-यान का इकलौता अंतरिक्ष-यात्री किसलय पिछले नौ महीने से ऊपर अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में पृथ्वी के चक्कर काट रहा हूँ । यह वर्ष 2040 है । मुझे अंतरिक्ष- यान में सर्वाधिक दिनों तक पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाने का विश्व-कीर्तिमान बनाने के लिए भेजा गया है । हर तीन महीने पर श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र से भेजा गया एक रसद-यान मेरे लिए अगले तीन महीने का रसद ले कर आता है । खाने-पीने की सामग्री मेरे यान में पहुँचा कर उस यान के अंतरिक्ष-यात्री लौट जाते हैं । इस बार भी एक रसद-यान को मेरे यान में रसद की आपूर्ति के लिए आना था । किंतु पंद्रह दिनों से श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र से मेरा सम्पर्क टूटा हुआ है । भूखे मरने की नौबत आ गई है ।

“ बेटा , तुम्हें यह अवसर मिला है कि तुम देश का , अपना और हमारा नाम ऊँचा करो । जाओ , अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में सर्वाधिक दिनों तक रहने का विश्व-कीर्तिमान बना कर सफलतापूर्वक लौटो । “ माँ ने नौ महीने पहले श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र में उड़ान भरने के लिए जाते समय मुझसे कहा था । माँ-पापा और भाई-बहन , सब मुझे विदा करने दिल्ली से श्री हरिकोटा तक मेरे साथ आए थे ।
छह महीने के कठिन प्रशिक्षण के बाद मुझे अंतरिक्ष-यात्रा पर भेजने का फ़ैसला किया गया था । रॉकेट से जुड़े यान में जब मैंने उड़ान के लिए अपना स्थान ग्रहण कर लिया था तो स्वयं प्रधानमंत्री जी ने मुझे मेरी यात्रा के लिए शुभकामनाएँ दी थीं । 
लेकिन अब यदि अगले एक-दो दिनों में रसद-यान यहाँ नहीं पहुँचा तो मैं भूख-प्यास से दम तोड़ दूँगा । बिना श्री हरिकोटा के दिशा-निर्देश के गगनयान को नियंत्रित करना मुश्किल होता जा रहा है । सोलर पैनलों में ख़राबी आ चुकी है । बिजली के अभाव में पूरा यान अँधेरे में डूब गया है । मेरे पास उपलब्ध कुछ बैटरी से चलने वाली एमर्जेंसी-लाइटों का सहारा बचा है । रोज़ दिन गिन रहा हूँ । शायद आज । शायद आज श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र से सम्पर्क स्थापित हो जाए । किंतु उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आ रही
है ।
“ डार्लिंग , तुम्हारे लौट कर आते ही हम दोनों शादी कर
लेंगे । “ मेरी प्रेयसी लीना ने कहा था । “ मैं शिद्दत से तुम्हारा इंतज़ार करूँगी । “ लीना भी मुझे विदा करने दिल्ली से श्री हरिकोटा आई थी ।
तभी रेडियो पर फटी-सी आवाज़ आती है । मैं फटाफट नियंत्रण-पैनल तक पहुँचता हूँ ।
“ हलो , हलो ! मैं गगनयान-10 से अंतरिक्ष-यात्री किसलय बोल रहा हूँ । यहाँ हालत बहुत ख़राब है । मुझे जल्दी रसद-यान
भेजिए ... । “
“ ... हलो ! देखिए , यहाँ धरती तबाह होती जा रही है । कोरोना वायरस के नए ख़तरनाक वेरिएंट ने धरती के आधे लोगों को मार दिया है । शेष बचे हम लोग जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं । मैं एक प्राइवेट नागरिक हूँ । अपने घर के पिछवाड़े में मैंने एक प्रयोगशाला बना रखी है जहाँ मैं अंतरिक्ष-यात्रा पर शोध करता हूँ । यह मेरा शौक़ है । मैं अपने नियंत्रण-पैनल पर बैठा था । तभी अचानक आप से सम्पर्क स्थापित हो गया ...। “
मुझे काटो तो ख़ून नहीं । हे ईश्वर , पृथ्वी पर यह कैसी तबाही आ गई है ?
“ भाई , क्या आप श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र से सम्पर्क स्थापित कर पाएँगे ? पिछले पंद्रह दिनों से उनसे मेरा सम्पर्क टूटा हुआ है । “
“ कोशिश करता हूँ । कहीं वे लोग भी कोविड की चपेट में न आ गए हों । वैज्ञानिक इस वायरस के नए वेरिएंट की वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं । इसी पर दुनिया के बाक़ी बचे लोगों की उम्मीदें टिकी हुई हैं । “
“ आप कोशिश करके श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र से सम्पर्क कीजिए । मेरे यान में खाने-पीने की सारी सामग्री ख़त्म हो चुकी है । “
“ ठीक है , कोशिश करता हूँ । पर ... “ तभी दूसरी ओर से रेडियो-सम्पर्क टूट जाता है ।
“ हलो , हलो ... । “
हे भगवान् ! धरती के बाक़ी बचे लोगों को बचाओ । मेरा यान बिजली के अभाव में ठंडा होता जा रहा है । खाना-पानी पहले ही ख़त्म हो चुका है । मेरे बचने की सम्भावनाएँ क्षीण होती जा रही हैं ...
तभी रेडियो पर फिर से गड़गड़ाहट होती है ।
“ हलो , हलो ! कौन है ? “
“ नमस्ते , किसलय जी । मैं श्री हरिकोटा अंतरिक्ष-केंद्र के नियंत्रण-कक्ष से बोल रहा हूँ । हमारे सारे ऑपरेटर यहाँ नीचे कोरोना वायरस के एक ख़तरनाक वेरिएंट की वजह से मारे जा चुके हैं । हमारा रेडियो-सम्पर्क पैनल ख़राब हो गया था । बनाने वाला कोई नहीं था । आज यह बना है तो आप से दोबारा सम्पर्क कर रहा हूँ । “
“ भाई , मैं यहाँ भारी मुसीबत में हूँ । खाना-पानी सब ख़त्म हो चुका है । रसद-यान जल्दी भेजिए । मेरा सोलर-पैनल भी ख़राब हो चुका है । यान में बिजली नहीं है और ठंड बढ़ती जा रही है । “
“ घबराइए नहीं । हम अभी कुछ देर में रसद-यान प्रक्षेपित कर रहे हैं । आपको सोलर-पैनल ठीक करने के लिए स्पेस-वाक करना होगा । आप को यहाँ से दिशा-निर्देश दिए जाएँगे । “
“ शुक्र है , भगवान । मैं राहत की साँस लेता हूँ । जब तक साँस , तब तक आस । जल्दी ही रसद-यान यहाँ आ जाएगा । मैं स्पेस-वाक करने के लिए ख़ुद को तैयार करने में लग जाता हूँ ।
विशेषज्ञों ने मुझे स्पेस-वाक करने के लिए ज़रूरी दिशा-निर्देश दे दिए हैं ।
चलता हूँ । मैंने स्पेस-सूट पहन लिया है । आज दोनों स्पेस-पैनलों को ठीक करके ही लौटूँगा । रसद-यान भी जल्दी ही आ जाएगा । अभी उम्मीद बची हुई है ...

उस अंतरिक्ष-यात्री की डायरी यहीं ख़त्म हो जाती है । ज़ाहिर है , वह यात्री बच गया होगा । तभी तो यह डायरी धरती पर भारत वापस लौट आई और यहाँ प्रकाशित हो पाई ।
जैसा मैंने आप सब को शुरू में बताया था , यह साल 2080 चल रहा है । 2020-2021 में कोरोना वायरस ने धरती पर पहली बार क़हर ढाया था । पर स्थिति सँभल गई थी । पर 2040 में कोरोना वायरस के नए ख़तरनाक वेरिएंट ने दुनिया की आधी आबादी ख़त्म कर दी थी । किंतु मनुष्य की बुद्धि और जीवट को सलाम । हम 2040 की उस भयावह महामारी से भी उबर पाए । आज 2080 में भी धरती पर जीवन क़ायम है ।

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प्रेषक :
सुशांत सुप्रिय
A-50001 ,
गौड़ ग्रीन सिटी ,
वैभव खंड ,
इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद-201014
( उ. प्र. )

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