मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है

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मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा कहानी मुर्ख बन्दर ने राजा को मारा murkh mitra monkey and the king

मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है 

मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा Murkh Mitra Se Vidwan Shatru Accha Hota Hai मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा story मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा कहानी बन्दर ने राजा को मारा murkh mitra monkey and the king moorkhmitrorsamjhdarshatru - मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु अच्छा होता है। हमें शत्रु के मुकाबले मूर्ख मित्र से अधिक सावधान रहना चाहिए। समझदार शत्रु कभी भी धोखे से अहित नहीं करेगा। वह आमने - सामने ही लडेगा ,पीछे से या धोखे से हमला नहीं करेगा। यह उस शत्रु की बात हो रही है जो समझदार है। जो शत्रु समझदार नहीं है और अनीति पर चल रहा है ,वह तो कभी भी कुछ भी कर सकता है इसीलिए उससे तो विशेष सावधान रहना चाहिए। अब आती है बात मित्र की। मित्र को सहृदय भी कहते हैं। मित्र मुसीबात में सहायता करता है और सपने में भी अहित की बात नहीं सोच सकता है। मित्र पर बड़ा भरोसा होता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है - 

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।। 
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई।। 
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटे अवगुनन्हि दुरावा।।
देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई।। 
बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।।
आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई।। 
जा कर चित अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।।
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी।। 

मित्र के तो बड़े बड़े गुण है। यह बात सच्चे मित्र के हैं। मूर्ख मित्र के नहीं। मूर्ख मित्र से तो विशेष सावधानी की आवश्यकता है ,जिसमें समझ नहीं है ,वह न जाने कब अहित कर दे ,कुछ कह नहीं  सकते है। इस प्रकार एक कहानी है मूर्ख सेवक की। 

मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है

एक राज्य में बड़े प्रतापी राजा उदयभानु सिंह राज करते थे। वे बड़े दयावान ,न्यायी और प्रजा के हित रक्षक थे। उनकी प्रशंसा आसपास के राज्यों में फैली हुई थी। लोग उनके न्याय की मिसाल दिया करते थे। उनके राज्य की प्रजा सुखी थी। वे विद्वानों का आदर करते थे। एक दिन उनके दरबार में एक बंदर का तमाशा दिखाने वाला आया। उस बन्दर की मदारी ने काफी काम सिखा दिए थे। सिवाय बोलने के वह सब काम कर देता और आदमियों की बातें समझ लेता। राजा ने प्रसन्न होकर उस बन्दर को मदारी से अच्छा मूल्य देकर खरीद लिया और अपने महल में रख लिया। राजा को जो कार्य करने को कहता ,वह उस कार्य को कर देता। थोड़े ही दिनों में उसने राजा का दिल जीत लिया। अतः राजा ने उसे अपनी सेवा में रख लिया। जब राजा शयन करता वह बंदर उसकी पंखें से हवा करता। इस प्रकार उसने अपने काम को समझ लिया था। राजा शीतल हवा के स्पर्श से सुख का अनुभव करता था। हर दिन राजा उस बंदर की प्रशंसा करता था और उसे अपने साथ दरबार में भी ले जाता था। सभी लोग उसे देखकर अपना मनोरंजन करते थे। कभी वह दरबारियों से जाकर हाथ भी मिला लेता था। 

एक दिन राजा दरबार से आकर खाना खाकर अपने शयन कक्ष में चला गया। राजा विश्राम करने लगा और बंदर ने पंखा लेकर हवा करना शुरू कर दिया। थोड़ी देर में ही शीतल पवन के स्पर्श से राजा को गहरी नींद आ गयी। कुछ देर बाद एक मक्खी आकर राजा की नाक पर बैठ गयी। बंदर ने उसे पंखें से उड़ा दिया। वह मक्खी पुनः वहीँ पर आकर बैठ गयी। बंदर ने उसे फिर उड़ा दिया। इस तरह कई बार हुआ। वह ढीठ मक्खी अपनी हरकत से बाज नहीं आरही थी। बंदर राजा को बहुत चाहता था। मक्खी की हरकत से उसे बहुत क्रोध आया। उसने इधर - उधर देखा तो पाया कि एक कोने में राजा की खुली तलवार रखी थी। बंदर उठा और दोनों हाथों से तलवार को पकड़कर लाया और बड़े जोर से उसे राजा की नाक पर बैठी हुई मक्खी पर दे मारा। मक्खी तो उड़ गयी ,लेकिन तलवार के वार से राजा को बुरी तरह घायल कर कर दिया और राजा तड़पने लगा। वह मूर्ख बंदर भी आश्चर्य में राजा को देखकर दुखी हुआ ,लेकिन अब क्या हो सकता था। थोड़ी देर में राजा मृत्यु को प्राप्त हुआ। जब लोगों ने मरे हुए राजा को देखा तो बोले - मुर्ख मित्र से समझदार शत्रु अच्छा होता है। 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मूर्ख सेवक कभी भी हमारा अहित कर सकता है। अतः मूर्ख सेवक अपने पास नहीं रखना चाहिए। 


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