फिलिस्तीन और इजरायल संघर्ष

SHARE:

फिलिस्तीन और इजरायल संघर्ष : सदीयों से अनसुलझा सवाल इज़रायल और फिलिस्तीन में एक बार फिर से संघर्ष छिड़ गया है और दोनों दिन-रात एक दूसरे पर रॉकेट दाग रह

फिलिस्तीन और इजरायल संघर्ष : सदियों से अनसुलझा सवाल


ज़रायल और फिलिस्तीन में एक बार फिर से संघर्ष छिड़ गया है और दोनों दिन-रात एक दूसरे पर रॉकेट दाग रहे हैं। पिछले शुक्रवार को शुरू हुए इस संघर्ष में अब तक कई फिलिस्तीनियों और कई इज़रायली नागरिकों की मौत हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय दोनों पक्षों से हमले रोकने की अपील कर रहा है। चलिए आप को बताते हैं कि इज़रायल और फिलिस्तीन के सदियों पुराने विवाद की क्या वजह है और मौजूदा संघर्ष की शुरूआत कैसे हुई ?

इज़रायल और फिलिस्तीन के विवाद की जड़ें ईसा पूर्व से पहले तक जाती हैं। चूंकि यहुदी धर्म की धार्मीक पुस्तकों में दर्ज हैं कि ईश्वर ने इज़रायल के इलाके को यहूदियों के लिए चुना था, इसलिए वे इसे पूरी दुनिया के यहूदियों का घर मानते हैं। हालांकि उन्हें कई बार यहां से बेदखल होना पड़ा है और कई अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। वहीं फिलिस्तीनी लोगों का कहना है कि चूंकि वे हमेशा से यहां के मुख्य निवासी हैं, इसलिए इस जगह पर उन का अधिकार है। इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच आधुनिक संघर्ष की शुरूआत प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के बीच हुई। प्रथम विश्व युद्ध से पहले फिलिस्तीन पर ऑटोमन साम्राज्य का कब्जा था, लेकिन युद्ध में उस की हार के बाद यह क्षेत्र ब्रिटेन के कब्जे में आ गया। इस के बाद ब्रिटेन ने यहां यहूदी लोगों को बसाना शुरू कर दिया जो सदियों से अपने घर के लिए भटक रहे थे। उस ने यहूदियों को तमाम तरह की सहूलियतें भी प्रदान कीं।

बंटवारा 

फिलिस्तीन और इजरायल संघर्ष
1920 और 1945 के बीच यूरोप में उत्पीड़न और नाज़ीयों के हाथों नरसंहार से बचने के लिए लाखों यहूदी फिलिस्तीन पहुंचे, लेकिन उन की बढ़ती संख्या से फिलिस्तीनियों, उन में और अंग्रेजों में टकराव बढ़ने लगा। विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जब ब्रिटेन इस टकराव को संभालने में नाकाम रहा तो 1947 में वह इसे संयुक्त राष्ट्र (UN) ले गया। UN ने द्विराष्ट्र सिद्धांत के तहत इलाके को यहूदी और अरब देशों में बांट दिया। जेरूसलम को अंतरराष्ट्रीय शहर बनाया गया। 1948 में अंग्रेज़ इलाके को छोड़कर चले गए और 14 मई 1948 को यहूदियों का देश इज़रायल वजूद में आया। हालांकि पड़ोसी अरब देशों को यह नागवार गुज़रा और मिस्त्र, सीरिया और जॉर्डन ने मिल कर इज़रायल पर हमला कर दिया। इस युद्ध में इज़रायल की जीत हुई। 1967 में एक बार फिर इन देशों ने इज़रायल पर हमला किया। लेकिन इज़रायल ने छह दिन में ही उन्हें हरा दिया और वेस्ट बैंक, गाज़ा पट्टी और पूर्वी जेरूसलम पर कब्ज़ा कर लिया।

अभी किन इलाकों पर इज़रायल का कब्ज़ा ?

इस युद्ध के बाद से ही वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम पर इज़रायल का कब्ज़ा है, जबकि गाज़ा पट्टी के कुछ हिस्से को उस ने लौटा दिया है। ज्यादातर फिलिस्तीनी गाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में रहते हैं और उन्हें अक्सर इज़रायल की ज्यादतियों का सामना करना पड़ता है। 1993 में हुए ओस्लो सहमति के तहत इन दोनों इलाकों में फिलिस्तीनी खुद की सरकार चुन सकते हैं। 2014 से यहां हमास की सरकार है जिसे इज़रायल द्वारा एक कट्टर संगठन माना जाता है।

जेरूसलम को ले कर क्या हैं विवाद ?

जेरूसलम की इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्मों में बड़ी मान्यता है और यह इज़रायल और फिलिस्तीन के इस विवाद का केंद्र है। पूर्वी जेरूसलम में अल-अक्सा मस्जिद है जिसे इस्लाम में तीसरी सब से पवित्र जगह माना जाता है। वहीं मस्जिद के परिसर में टेंपल माउंट नामक एक दीवार है जो यहूदियों के लिए सब से पवित्र है। अभी यहूदियों को इलाके में घुसने की इजाज़त नहीं है जो उन में रोष का कारण बनता है। फिलिस्तीनी मस्जिद आ-जा सकते हैं। जिस पर आपत्ती जताते हुए आए दिन इज़रायल के सैनिक निहत्ते फिलस्तीनीयों पर हमले करते हैं l 

पूरे जेरूसलम को अपनी राजधानी बताता है इज़रायल 

इज़रायल पूरे जेरूसलम पर अपना दावा करता है और इसे अपनी राजधानी घोषित कर चुका है। अमेरिका 2018 में इसे इज़रायल की राजधानी स्वीकार करने वाला पहला और एकमात्र देश बना था। दूसरी तरफ फिलिस्तीन पूर्वी जेरूसलम को अपने आज़ाद मुल्क की राजधानी बताता है।

मौजूदा संघर्ष की क्या हैं वजह ?

पिछले कुछ समय से फिलिस्तीनियों में पूर्वी जेरूसलम से कुछ फिलिस्तीनी परिवारों को बेदखल किए जाने को ले कर रोष पनप रहा था। 07 मई 2021 बरोज़ शुक्रवार को अल-अक्सा मस्जिद पर उनका इज़रायली सुरक्षा बलों के साथ टकराव हो गया जिस में 300 से अधिक फिलिस्तीनी घायल हुए। इसके बाद से ही हमास गाज़ा पट्टी से और इज़रायल अपनी तरफ से एक-दूसरे पर रॉकेट दाग रहे हैं। दोनों पक्ष 1,000 से अधिक रॉकेट दाग चुके हैं और इस के युद्ध में तब्दील होने का खतरा है।

क्या है नकबा और इसे क्यों याद किया जाता है ?

नकबा यानी विनाश के दिन की शुरुआत 1998 में फ़लस्तीनी क्षेत्र के तब के राष्ट्रपति यासिर अराफ़ात ने की थी l इस दिन फ़लस्तीन में लोग 14 मई 1948 के दिन इज़राइल के गठन के बाद लाखों फलस्तीनियों के बेघर बार होने की घटना का दुख मनाते हैं l इतिहासकार बेनी मॉरिस अपनी किताब 'द बर्थ ऑफ़ द रिवाइज़्ड पैलेस्टीनियन रिफ़्यूजी प्रॉब्लम' में लिखते हैं, "14 मई 1948 के अगले दिन साढ़े सात लाख फ़लस्तीनी, इसराइली सेना के बढ़ते क़दमों की वजह से घरबार छोड़ कर भागे या भगाए गए थे l कइयों ने ख़ाली हाथ ही अपना घरबार छोड़ दिया था l कुछ घरों पर ताला लगा कर भाग निकलेl  यही चाबियां बाद में इस दिन के प्रतीक के रूप में सहेज कर रखी गईं l"

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष की पृष्ठभूमि 

  • इज़राइल और फिलिस्तीन के मध्य आधुनिक संघर्ष का इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1917 में उस समय हुई जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बल्फौर ने ‘बल्फौर घोषणा’ (Balfour Declaration) के तहत फिलिस्तीन में एक यहूदी ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) के निर्माण के लिये ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया।
  • अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष को समाप्त करने में असफल रहे ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपने सुरक्षा बलों को हटा लिया और अरब तथा यहूदियों के दावों का समाधान करने के लिये इस मुद्दे को नवनिर्मित संगठन संयुक्त राष्ट्र (UN) के विचारार्थ प्रस्तुत किया।
  • संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन में स्वतंत्र यहूदी और अरब राज्यों की स्थापना करने के लिये एक विभाजन योजना (Partition Plan) प्रस्तुत की जिसे फिलिस्तीन में रह रहे अधिकांश यहूदियों ने स्वीकार कर लिया किंतु अरबों ने इस पर अपनी सहमति प्रकट नहीं की।
  • वर्ष 1948 में यहूदियों ने स्वतंत्र इज़राइल की घोषणा कर दी और इज़राइल एक देश बन गया, इसके परिणाम स्वरूप आस-पास के अरब राज्यों (इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया) ने इज़राइल पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के अंत में इज़राइल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के आदेशानुसार प्राप्त भूमि से भी अधिक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।
  • इसके पश्चात् दोनों देशों के मध्य संघर्ष तेज़ होने लगा और वर्ष 1967 में प्रसिद्ध ‘सिक्स डे वॉर’ (Six-Day War) हुआ, जिस में इज़राइली सेना ने गोलन हाइट्स, वेस्ट बैंक तथा पूर्वी येरुशलम को भी अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया।
  • वर्ष 1987 में मुस्लिम भाईचारे की मांग हेतु फिलिस्तीन में ‘हमास’ नाम से एक हिंसक संगठन का गठन किया गया। इस का गठन फिलिस्तीन के प्रत्येक भाग पर मुस्लिम धर्म का विस्तार करने के उद्देश्य से किया गया था।
  • समय के साथ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के अधिगृहीत क्षेत्रों में तनाव व्याप्त हो गया जिस के परिणाम स्वरूप वर्ष 1987 में प्रथम इंतिफादा (Intifida) अथवा फिलिस्तीन विद्रोह हुआ, जो कि फिलिस्तीनी सैनिकों और इज़राइली सेना के मध्य एक छोटे युद्ध में परिवर्तित हो गया।

दोनों देशों के बीच विवाद के प्रमुख मुद्दे 

*वेस्ट बैंक :-

वेस्ट बैंक इज़राइल और जॉर्डन के मध्य अवस्थित है। इस का एक सब से बड़ा शहर ‘रामल्लाह’ (Ramallah) है, जो कि फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है। इज़राइल ने वर्ष 1967 के युद्ध में इस पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।

*गाजा पट्टी :-

गाजा पट्टी इज़राइल और मिस्र के मध्य स्थित है। इज़राइल ने वर्ष 1967 में गाजा पट्टी का अधिग्रहण किया था, किंतु गाजा शहर के अधिकांश क्षेत्रों के नियंत्रण तथा इन के प्रतिदिन के प्रशासन पर नियंत्रण का निर्णय ओस्लो समझौते के दौरान किया गया था। वर्ष 2005 में इज़राइल ने इस क्षेत्र से यहूदी बस्तियों को हटा दिया यद्यपि वह अभी भी इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पहुँच को नियंत्रित करता है।

*गोलन हाइट्स :-

गोलन हाइट्स एक सामरिक पठार है जिसे इज़राइल ने वर्ष 1967 के युद्ध में सीरिया से छीन लिया था। ज्ञात हो कि हाल ही में अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर येरुशलम और गोलान हाइट्स को इज़राइल का एक हिस्सा माना है।

*येरुशलम- विवादित अतीत पर बसा शहर :-

येरुशलम यहूदियों, मुस्लिमों और ईसाइयों की समान आस्था का केंद्र है। यहाँ ईसाईयों के लिये पवित्र सेपुलकर चर्च, मुस्लिमों की पवित्र मस्जिद और यहूदियों की पवित्र दीवार स्थित है।

*होली चर्च :-

येरुशलम में पवित्र सेपुलकर चर्च है, जो दुनिया भर के ईसाइयों के लिये विशिष्ट स्थान है। ईसाई मतावलंबी मानते हैं कि ईसा मसीह को यहीं सूली पर लटकाया गया था और यही वह स्थान भी है जहाँ ईसा फिर जीवित हुए थे। यह दुनिया भर के लाखों ईसाइयों का मुख्य तीर्थस्थल है, जो ईसा के खाली मकबरे की यात्रा करते हैं। इस चर्च का प्रबंध संयुक्त तौर पर ईसाइयों के अलग-अलग संप्रदाय करते हैं।

*पवित्र मस्जिद :-

येरुशलम में ही पवित्र गुंबदाकार 'डोम ऑफ रॉक' यानी गुम्बद-उल-सखरह और अल-अक्सा मस्जिद है। यह एक पठार पर स्थित है जिसे मुस्लिम पवित्र स्थान कहते हैं। यह मस्जिद इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह है, इसकी देखरेख और प्रशासन का ज़िम्मा एक इस्लामिक ट्रस्ट करता है, जिसे वक्फ भी कहा जाता है। मुसलमान मानते हैं कि पैगंबर अपनी मैराज की यात्रा में मक्का से यहीं आए थे और उन्होंने आत्मिक तौर पर सभी पैगंबरों नमाज़ पढ़ाई थी। गुम्बद-उल-सखरह से कुछ ही दूरी पर एक आधारशिला रखी गई है जिसके बारे में मुसलमान मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद यहीं से स्वर्ग की ओर गए थे।

*पवित्र दीवार :-

येरुशलम का कोटेल या पश्चिमी दीवार का हिस्सा यहूदी बहुल माना जाता है और यहूदियों के मतानुसार यहाँ कभी उन का पवित्र मंदिर था और यह दीवार उसी की बची हुई निशानी है। यहाँ मंदिर के अंदर यहूदियों की सब से पवित्रतम जगह 'होली ऑफ होलीज़' है। यहूदी मानते हैं यहीं पर सबसे पहले उस शिला की नींव रखी गई थी, जिस पर दुनिया का निर्माण हुआ और जहाँ अब्राहम ने अपने बेटे इसाक की कुरबानी दी थी। पश्चिमी दीवार, 'होली ऑफ होलीज़' की वह सबसे करीबी जगह है, जहाँ से यहूदी प्रार्थना कर सकते हैं। इसका प्रबंध पश्चिमी दीवार के रब्बी करते हैं।

फिलिस्तीन की मांग

फिलिस्तीन की मांग है कि इज़राइल वर्ष 1967 से पूर्व की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित हो जाए और वेस्ट बैंक तथा गाजा पट्टी में स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य की स्थापना करे। साथ ही इज़राइल को किसी भी प्रकार की शांति वार्ता में शामिल होने से पूर्व अपने अवैध विस्तार को रोकना होगा। फिलिस्तीन चाहता है कि वर्ष 1948 में अपना घर खो चुके फिलिस्तीन के शरणार्थी वापस फिलिस्तीन आ सकें। फिलिस्तीन पूर्वी येरुशलम को स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र की राजधानी बनाना चाहता है।

इज़राइल की मांग

इज़राइल येरुशलम को अपना अभिन्न अंग मानता है और इसीलिये येरुशलम पर अपनी संप्रभुता चाहता है। इज़राइल की मांग है कि संपूर्ण विश्व इज़राइल को एक यहूदी राष्ट्र के रूप में मान्यता दे। ज्ञात हो कि इज़राइल दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो धार्मिक समुदाय के लिये बनाया गया है।

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और अमेरिका

विदित है कि अमेरिका इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में मध्यस्थ के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हालाँकि एक मध्यस्थ के रूप में अमेरिका की भूमिका को फिलिस्तीन ने सदैव संदेह की दृष्टि से देखा है। इस संदर्भ में कई मौकों पर इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और अरब संगठनों द्वारा अमेरिका की आलोचना की गई है। अमेरिका में इज़राइल की तुलना में अधिक यहूदी रहते हैं, जिसके कारण अमेरिका की राजनीति पर उनका काफी प्रभाव है। ओबामा प्रशासन के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका-इज़राइल संबंधों में गिरावट देखी गई थी। वर्ष 2015 के परमाणु समझौते ने इज़राइल को खासा चिंतित किया था और इस के लिये इज़राइल ने अमेरिका की आलोचना भी की थी। हालाँकि अमेरिका के मौजूदा प्रशासन के तहत अमेरिका-इज़राइल संबंधों का काफी तेज़ी से विकास हुआ है। ज्ञात हो कि कुछ वर्षों पूर्व ही अमेरिका ने येरुशलम को इज़राइल की आधिकारिक राजधानी के तौर पर  मान्यता दे दी थी, जिस का अरब जगत के कई नेताओं ने विरोध किया था।

इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष और भारत 

भारत ने आज़ादी के पश्चात् लंबे समय तक इज़राइल के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं रखे, जिस से यह स्पष्ट था कि भारत फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन करता है, किंतु वर्ष 1992 में इज़राइल से भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध बने और अब यह रणनीतिक संबंध में परिवर्तित हो गए हैं तथा अपने उच्च स्तर पर हैं। दूसरी ओर, भारत-फिलिस्तीन संबंध प्रारंभ से ही काफी घनिष्ठ रहे हैं तथा भारत फिलिस्तीन की समस्याओं के प्रति काफी संवेदनशील रहा है। फिलिस्तीन मुद्दे के साथ भारत की सहानुभूति और फिलिस्तीनियों के साथ मित्रता बनी रहे, यह सदैव ही भारतीय विदेश नीति का अभिन्न अंग रहा है। ज्ञात हो कि वर्ष 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के विभाजन के विरुद्ध मतदान किया था। भारत पहला गैर-अरब देश था, जिसने वर्ष 1974 में फिलिस्तीनी जनता के एकमात्र और कानूनी प्रतिनिधि के रूप में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता प्रदान की थी। साथ ही भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में शामिल था। भारत ने फिलिस्तीन से संबंधित कई प्रस्तावों का समर्थन किया है, जिन में सितंबर 2015 में सदस्य राज्यों के ध्वज की तरह अन्य प्रेक्षक राज्यों के साथ संयुक्त राष्ट्र परिसर में फिलिस्तीनी ध्वज लगाने का भारत का समर्थन प्रमुख है। फिलिस्तीन का समर्थन करने के अलावा भारत ने इज़राइल का भी काफी समर्थन किया है और दोनों देशों के साथ अपनी संतुलित नीति बरकरार रखी है। आज मोदी सरकार के कार्यकाल में इज़रायल के साथ भारत के संबंध और गहरे हुए हैं l इस के पीछे कहीं ना कहीं समान विचारधारा की मुख्य भूमिका रही हैं l याद रहे नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इज़रायल का दौरा किया था l 

शांतिपूर्ण समाधान के लिये वैश्विक समाज को एक साथ आने की ज़रूरत है किंतु इस मुद्दे से संबंधित विभिन्न हितधारकों की अनिच्छा ने इसे और अधिक जटिल बना दिया है। आवश्यक है कि सभी हितधारक एक मंच पर उपस्थित हो कर समस्या का समाधान खोजने का प्रयास करें।


- शेख मोईन शेख नईम 

डॉ. उल्हास पाटील लॉ कॉलेज, जलगाँव 

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका