ईमानदारी का पुरस्कार कहानी

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ईमानदारी का पुरस्कार कहानी रमन बाबू ने चैक बुक लौटाते हुए कहा कि मित्र तुम तो मेरे लिए देवदूत बनकर उतरे हो नहीं तो इस जमाने में कौन किसकी सहायता करता

पुरस्कार


मन बाबू नगर निगम में बड़े बाबू थे। बड़े ही सहृदय और धर्म में आस्था रखने वाले थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी किसी से रिश्वत नहीं ली। उनके परिवार में धर्म पत्नी के अलावा उनका एक बेटा था जो अभी दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था। उनके रिटायरमेंट में केवल दो महीने ही शेष रह गए थे और उन पर अभी बेटे की जिम्मेदारी थी। उन्हें दिन रात यही चिंता थी कि उनकी सेवा निवृत्ति के बाद घर का खर्च और बेटे की जिम्मेदारी कैसे पूरी होगी।

आज वह दिन भी आ पहुंचा।उनकी सेवा निवृत्ति पर स्टाफ ने भावभीनी विदाई दी और इससे पहले उनके सम्मान में एक छोटी-सी विदाई पार्टी रखी थी। विभाग के अधिकारियों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों ने भी उनकी कर्तव्य निष्ठा की भूरि भूरि प्रशंसा में दो शब्द कहे।

रमन बाबू अब घर पर ही रहने लगे थे। एक दिन वह अपने कमरे में बैठ विचार कर रहे थे कि वह अपनी पेंशन की राशि से कैसे गुजारा करेंगे और कैसे अपनी जिम्मेदारी को पूरा कर पायेंगे। वह इन्हीं विचारों में तल्लीन थे कि अचानक मुख्य दरवाजे पर लगी घंटी घन घना उठी। रमन बाबू ने मुख्य दरवाजे पर आकर देखा कि उनके बालसखा आशुतोष खड़े हुए थे। उन्हें देखकर रमन बाबू की खुशी का कोई पारावार न रहा और वह अपने बालसखा के गलबहियां हो गये‌।

रमन बाबू अपने सखा को आदर सहित अंदर ले आये थे और उन्हें बैठक में बैठा दिया, इस के बाद अपनी धर्मपत्नी श्रीमती निर्मला को आवाज देते हुए कहा कि अजी सुनती हैं, देखो तो सही कौन आया है। निर्मला ने बैठक में आकर आशुतोष के चरणस्पर्श किये और उनके लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करने रसोईघर में चली गई।

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चाय के आने तक दोनों मित्र अपने बालपन की बातें करने लगे थे। आशुतोष ने बताया कि मुझे तुम्हारे दफ्तर से ही रिटायर होने के समाचार मिले थे, वहीं से तुम्हारा पता लेकर आया हूं। बातों के दौरान आशुतोष ने बताया कि शिक्षा पूर्ण करने के बाद उसने अपना स्वयं का रेडीमेड गारमेंट्स का व्यापार शुरू किया है और अब मैं ऐसे व्यक्ति की तलाश में हूं जो इस व्यापार का लेखा जोखा ईमानदारी से और सही रूप से रख सके क्योंकि इस से पहले जो भी आया वह बेईमान और धोखेबाज निकला।

मैं तुम्हें स्कूल से ही जानता हूं कि तुम सदा से ही ईमानदार रहे हो, इसलिए एक छोटी-सी प्रार्थना लेकर आया हूं, इसे अस्वीकार मत करना। यह कहते हुए आशुतोष ने एक खाली चैक बुक सामने रख कर कहा कि इसमें तुम अपनी इच्छा अनुसार राशि भर सकते हो। रही बात तुम्हारे बेटे की शिक्षा और शादी की, वह जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं। 

रमन बाबू ने चैक बुक लौटाते हुए कहा कि मित्र तुम तो मेरे लिए देवदूत बनकर उतरे हो नहीं तो इस जमाने में कौन किसकी सहायता करता है। मुझे तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है।

आज रमन बाबू को अपनी ईमानदारी का पुरस्कार मिल गया था।



- विनय मोहन शर्मा,
सेवा निवृत्त सहायक प्रशासनिक अधिकारी
2/124 A, विवेकानंद नगर, अलवर मोबाइल - 7737670738

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