अग्नि पथ कविता Agneepath Class 9 Hindi Sparsh

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हरिवंश राय बच्चन अग्निपथ



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अग्नि पथ कविता का भावार्थ व्याख्या


अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

भावार्थ - 
प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अग्नि पथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'हरिवंशराय बच्चन' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि , जीवन संघर्ष से भरा है, रास्तें अंगारों से बना है, लेकिन हमें इस कठिन राह पर निरन्तर आगे बढ़ते रहना है | पेड़ भले ही कितना भी मज़बूत बने खड़े हो, चाहे वह कितना भी घना हो, कितना भी विशाल हो, लेकिन उससे कभी एक पत्ते की भी छाया नहीं माँगना चाहिए। अर्थात्  मनुष्य को अपने कर्म के रास्ते पर किसी का भी सहारा नहीं लेना चाहिए, चाहे रास्ते पर आग ही क्यों न बिछा हो | मनुष्य को अपना मार्ग स्वयं सुनिश्चित कर निरन्तर आगे बढ़ना होगा, यही जीवन का सार है। जीवन के मार्ग बहुत कठिन है | 

(2) तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

भावार्थ - 
प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अग्नि पथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'हरिवंशराय बच्चन' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने कर्म के रास्ते पर कभी थकना नहीं चाहिए, चाहे जितनी भी कठिनाई क्यूँ न हो, डर कर कभी बीच में रुकना नहीं चाहिए, और ना ही अपने कर्म के मार्ग से कभी लौटना है, निरन्तर आगे बढ़ना है, यह प्रतिज्ञा कर लेना चाहिए। बेशक, जीवन संघर्ष से भरा हुआ है | जीवन के रास्ते अंगारों से भरें हैं। हमें हरदम निडर होकर जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए |  

(3) यह महान दृश्य है
चल रहा मनुष्य है
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अग्नि पथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'हरिवंशराय बच्चन' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि जब मनुष्य अपने कर्म के रास्ते पर कड़ी मेहनत या परिश्रम करके, बिना रुके, बिना थके आगे बढ़ता है, तो वह दृश्य अद्भुत होता है | वह मनुष्य महान होता है, जब अंगारों के रास्तों पर आँसु, पसीना, और रक्त से भीग कर सदैव मेहनत करके ऊँची शिखर तक पहुँचता है तथा जीवन के संघर्ष में हमेशा जीत हासिल करता है | 


अग्नि पथ कविता का सार Class 9 Hindi Sparsh

प्रस्तुत पाठ अग्नि पथ लेखक  हरिवंशराय बच्चन जी के द्वारा रचित है | इस पाठ में कवि ने जीवन को संघर्ष मय बताया है | जीवन के रास्तों में अंगारे भरे है, बहुत ही कठिन व दुर्गम रास्ता है | लेकिन मनुष्य को जीवन में अपने कर्म के रास्ते निरन्तर आगे बढ़ते जाना है, कभी भी किसी का सहारा लिए बगैर अपनी मंजिल तक पहुँचना है, इस बीच कोई भी कठिनाई सामने आ जाए तो थककर रुकना नहीं है | अपने कर्म के रास्ते से  वापस लौट कर नहीं आना है, यह प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए। जीवन के संघर्ष में मनुष्य को खून, पसीने तक बहाने पड़ते हैं, लेकिन मनुष्य को सारे सुख-सुविधाओं को त्याग कर अपनी मंजिल या लक्ष्य की ओर कर्मठता पूर्वक बढ़ते ही जाना चाहिए। कवि ने संघर्षमय जीवन को ही 'अग्नि पथ' कहकर मनुष्य को इस कठिन व दुर्गम रास्ते की पीड़ा को समझाने का प्रयत्न किया है...|| 



हरिवंश राय बच्चन का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के रचयिता हरिवंशराय बच्चन जी हैं। इनका जन्म उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद शहर में 27 नवम्बर सन् 1907 को हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता सरस्वती देवी थी। दरअसल, 'बच्चन' इनके बचपन का नाम था, जो इनके माता-पिता के द्वारा प्यार से कहकर पुकारा जाता था | बाद इन्होंने 'बच्चन' को अपना उपनाम रख लिया, जिससे ये पहचाने भी गए | 

अग्नि पथ कविता Agneepath Class 9 Hindi Sparsh

बच्चन जी इलाहाबाद हिन्दी विश्विद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे थे | बच्चन जी कुछ समय बाद भारतीय विदेश सेवा में हिन्दी विशेषज्ञ बन कर दिल्ली चले गए। इसके बाद इन्होंने कई प्राख्यात मंचो में काव्यपाठ किया और कई देशों का भ्रमण भी किया। श्री बच्चन जी की रचनाएँ सरल, सहज, और संवेदनशील है, जिसमें  व्यक्ति-वेदना, राष्ट्रचेतना, और जीवन दर्शन के स्वर नज़र आते हैं। बच्चन जी को उनकी रचना "दो चट्टानों" के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' दिया गया है, इनको सोवियत भूमि नेहरू पुरुस्कार सरस्वती सम्मान, और भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। 

वास्तव में बच्चन जी ने आत्म विश्लेषण वाली कविता लिखी है, इनकी रचनाएँ राजनैतिक जीवन के ढोंग, सामाजिक असमानता एवं कुरीतियों पर करारा प्रहार करती है। श्री बच्चन जी की प्रमुख कृतियाँ हैं --- मिलन-यामिनी, आरती और अंगारे, मधुशाला, निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, टुटती चट्टानें,  रूप तरंगिणी, आत्म कथा के चार खण्ड- क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक...|| 


अग्नि पथ कविता के प्रश्न उत्तर Class 9 Hindi Sparsh


निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए --- 

प्रश्न-1 कवि ने ‘अग्नि पथ’ किसके प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है ? 

उत्तर-
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कवि ने 'अग्नि पथ' मनुष्य के संघर्षमय जीवन के प्रतीक स्वरूप प्रयोग किया है | 

प्रश्न-2 ‘माँग मत', ‘कर शपथ', ‘लथपथ’ इन शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि क्या कहना चाहता है ? 

उत्तर-
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, 'माँग मत', 'कर शपथ', 'लथपथ', इन  शब्दों का बार-बार प्रयोग कर कवि  जीवन के उन कठिन घटनाओं के प्रति सचेत करना चाहता है कि जीवन में चाहे जितनी भी परेशानियाँ आए किन्तु दूसरों का सहारा नहीं लेना चाहिए और अपनी मंजिल तक बिना किसी रुकावट के पहुँचने के लिए प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए | चाहे मनुष्य को उसके लिए आँसु और खून-पसीने ही क्यों ना बहाना पड़े। लेकिन अपने कर्म पथ पर निरंतर आगे बढ़ते ही रहना चाहिए या लक्ष्य प्राप्ति को लेकर संकल्पित हो जाना चाहिए | 

प्रश्न-3 ‘एक पत्र-छाँह भी माँग मत’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, इस पँक्ति से आशय है कि यदि मनुष्य के जीवन में कोई भी परेशानी आए तब कोई भी अगर उसके मदद के लिए सामने आए तो उससे मदद नहीं लेनी चाहिए, अर्थात् पेड़ कितना भी मज़बूत, घना, और विशाल क्यों ना हो उससे एक पत्ते का भी छायाँ नही माँगना चाहिए | 

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निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए ---

प्रश्न-4 तू न थमेगा कभी
तू न मुड़ेगा कभी

उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अग्नि पथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'हरिवंशराय बच्चन' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कह रहे हैं कि जब मनुष्य को जीवन के कठिन रास्ते पर चलना पड़े तो एक प्रतिज्ञा कर लेनी चाहिए कि वह अपने कर्म से कभी नहीं थकेगा, कभी नहीं रुकेगा और कभी पीछे नहीं लौट के जाएगा | 

प्रश्न-5 चल रहा मनुष्य है, 
अश्रु-स्वेद-रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ

उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अग्नि पथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'हरिवंशराय बच्चन' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कह रहे हैं कि जब कोई  मनुष्य कठिन रास्ते से चलकर अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ता है तो उसका वह संघर्ष का दृश्य अद्भुत और  देखने योग्य होता है वह मनुष्य महान होता है और वही मनुष्य मंजिल पर पहुँच पाते हैं जो आँसू, पसीने और खून से सने हुए कड़ी मेहनत करके मंजिल की शिखर तक पहुंचते हैं | 

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प्रश्न-6 इस कविता का मूलभाव क्या है ? स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- 
इस कविता का मूलभाव यह है कि जीवन संघर्षों से भरा है और मंजिल बहुत कठिन है ऐसे में हमें बिना किसी सहारे के इस कठिन रास्ते को तय करना है |  मनुष्य को बिना रुके, बिना थके, आगे बढ़ते ही जाना है और पीछे मुड़ कर नहीं देखना है | हमें दृढ़ संकल्पित बनने की आवश्यकता है | अपनी मंजिल को पाने के लिए भले ही खून पसीना और आँसु बहाना पड़े लेकिन मंजिल तक हर हाल में पहुँचना है इन कठिन रास्तों को ही कवि ने अग्नि पथ कहा है। 

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अग्नि पथ कविता के पाठ से संबंधित शब्दार्थ



• पत्र - पत्ता
• अग्नि पथ - कठिनाइयों से भरा हुआ मार्ग  आगयुक्त मार्ग
• शपथ - कसम, सौगंध
• अश्रु - आँसू
• स्वेद - पसीना
• रक्त - खून, शोणित
• लथपथ - सना हुआ (भीगा हुआ)
• छाँह - छाया  | 



                                - लेखक 
                         मनव्वर अशरफ़ी 
                        जशपुर (छत्तीसगढ़) | 
         

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