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आत्मत्राण कविता रवीन्द्रनाथ टैगोर
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आत्मत्राण कविता की व्याख्या
केवल इतना हो (करुणामय)
कभी न विपदा में पाऊँ भय |
दुःख-ताप से व्यथित चित को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे (करुणामय)
दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय |
कोई कहीं सहायक न मिले,
तो अपना बल पौरुष न हिले ;
हानि उठानी पड़े जगत् में लाभ वंचना रही
तो भी मन में न मानूँ क्षय ||
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर जी की कविता आत्मत्राण से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कह रहे हैं कि मैं स्वयं को कष्टों से दूर रखने की विनती नहीं कर रहा हूँ | बल्कि आप मुझे उन तमाम कष्टों को सहने की शक्ति प्रदान करें | कवि ठाकुर जी अपने कष्ट भरे वक़्त में ईश्वर की सहायता नहीं चाहते, बल्कि वे कष्टों पर विजय हासिल करने के लिए आत्मविश्वास और हौसला की कामना करते हैं | कवि ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि चाहे जितना भी तकलीफ़ क्यूँ न आ जाए, मगर हमारा पुरुषार्थ डगमगा न सके | कवि कहते हैं कि यदि हमें नुकसान उठाना पड़े, तो भी मुझे इतनी शक्ति देना की हम उस चुनौती का सामना सरलतापूर्वक कर सकें |
रवीन्द्रनाथ टैगोर |
(2)- मेरा त्राण करो अनुदिन तुम यह मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे (करुणामय)
तरने की हो शक्ति अनामय |
मेरा भार अगर लघु करके न दो सांत्वना नहीं सही |
केवल इतना रखना अनुनय -
वहन कर सकूँ इसको निर्भय |
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छीन-छीन में |
दु:ख-रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय ||
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि रवींद्रनाथ ठाकुर जी की कविता आत्मत्राण से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! मेरी यह विनती नहीं है कि आप हर रोज मुझे डर से मुक्ति दिलाओ | मेरी रक्षा करो | बस आप मुझे रोग मुक्त और स्वस्थ रखें, ताकि मैं अपने बलबूते इस संसार के तमाम कष्टों को पार कर सकूँ | कवि ईश्वर को संबोधित करते हुए आगे कहते हैं कि आप मेरी तकलीफ़ों को कम करें और मेरा ढाढ़स बंधाएँ | आप मुझमें निडरता पैदा करें, ताकि मैं हर कष्टों से डटकर मुकाबला कर सकूँ | कवि कहते हैं कि दुःखों से भरी रात में जब पूरी दुनिया मुझे धोखा दे, मेरी सहायता करने से इनकार कर दे | फिर भी मेरे अंदर आपके (ईश्वर) प्रति संदेह न उत्पन्न हो | हे प्रभु ! कुछ ऐसी ही शक्ति मुझमें भरना |
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन परिचय
नोबेल पुरस्कार विजेता (प्रथम भारतीय) कवि रवींद्रनाथ ठाकुर जी का जन्म 6 मई 1861 को बंगाल के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था | इनकी शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई थी | वास्तव में कवि ठाकुर जी अल्प आयु में ही स्वाध्याय से अनेक विषयों का ज्ञान अर्जित कर लिया था | इन्होंने तकरीबन एक हजार कविताएँ और दो हजार गीत लिखे हैं | इन्होंने शांति निकेतन नाम की एक शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की | कवि रवींद्रनाथ ठाकुर जी की रचनाओं में लोक-संस्कृति का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित होता है तथा प्रकृति से इनका गहरा लगाव भी था | इनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं ---• काव्य कृति --- गीतांजलि (इस पर नोबेल पुरस्कार मिला)
• कृतियाँ --- पूरबी, चित्र और साध्यसंगीत, काबुलीवाला, बलाका, क्षणिका, नैवेद्य और सैकड़ों अन्य कहानियाँ
• उपन्यास --- रवींद्र के निबंध, गोरा, घरे बाइरे ...||
आत्मत्राण कविता का प्रतिपाद्य सारांश
प्रस्तुत पाठ या कविता आत्मत्राण , कवि रवींद्रनाथ ठाकुर जी के द्वारा रचित है | कवि ठाकुर जी की इस कविता का बंग्ला से हिन्दी में अनुवाद करने का श्रेय आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी को जाता है | इस कविता के माध्यम से कवि ईश्वर से विनती करते हुए कहते हैं कि वे उन्हें दुःखों को बर्दाश्त करने की शक्ति प्रदान करे | कवि अपने आराध्य ईश्वर को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु ! मुझमें इतना आत्मविश्वास भर दे कि मैं हर तरह की चुनौतियों पर विजय हासिल कर सकूँ | अपनी सारी तकलीफ़ों का डट कर व निर्भिकता से सामना कर सकूँ...
आत्मत्राण कविता का प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 कवि किससे और क्या प्रार्थना कर रहा है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं, जो बेहद करुणामय है | कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कह रहे हैं कि मैं स्वयं को कष्टों से दूर रखने की विनती नहीं कर रहा हूँ | बल्कि आप मुझे उन तमाम कष्टों को सहने की शक्ति प्रदान करें | कवि अपने कष्ट भरे वक़्त में ईश्वर की सहायता नहीं चाहते, बल्कि वे कष्टों पर विजय हासिल करने के लिए आत्मविश्वास और हौसला की कामना करते हैं |
प्रश्न-2 'विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं' --- कवि इस पंक्ति के द्वारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर- 'विपदाओं से मुझे बचाओ, यह मेरी प्रार्थना नहीं' --- कवि इस पंक्ति के द्वारा यह कहना चाहते हैं कि प्रभु ! मैं यह नहीं कहता कि मुझ पर कोई संकट न आए, मुझे कोई तकलीफ़ न हो | बल्कि मैं तो सिर्फ यह चाहता हूँ कि मुझे इन संकटों को सहने तथा दूर करने की शक्ति प्रदान कर |
प्रश्न-3 कवि सहायक के न मिलने पर क्या प्रार्थना करता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, कवि सहायक के न मिलने पर प्रार्थना करता है कि उसका बल पौरुष न हिले, वह हमेशा बना रहे और हर तरह का कष्ट वह धैर्यपूर्वक बर्दाश्त कर ले |
प्रश्न-4 अंत में कवि क्या अनुनय करता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, अंत में कवि अनुनय करते हैं कि आप मुझमें निडरता पैदा करें, ताकि मैं हर कष्टों से डटकर मुकाबला कर सकूँ | कवि कहते हैं कि दुःखों से भरी रात में जब पूरी दुनिया मुझे धोखा दे, मेरी सहायता करने से इनकार कर दे | फिर भी मेरे अंदर आपके (ईश्वर) प्रति संदेह न उत्पन्न हो | हे प्रभु ! कुछ ऐसी ही शक्ति मुझमें भरना |
प्रश्न-5 'आत्मत्राण' शीर्षक की सार्थकता कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- देखा जाए तो 'आत्मत्राण' का शाब्दिक अर्थ होता है 'आत्मा का त्राण' अर्थात् आत्मा के भय का निवारण | कवि कहते हैं कि हे प्रभु ! मेरी यह विनती नहीं है कि आप हर रोज मुझे डर से मुक्ति दिलाओ |
प्रश्न-6 क्या कवि की यह प्रार्थना आपको अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है ? यदि हाँ, तो कैसे ?
उत्तर- जी हाँ, कवि की यह प्रार्थना हमें अन्य प्रार्थना गीतों से अलग लगती है, क्योंकि दूसरे प्रार्थना गीतों में आत्म समर्पण, दुखों को हरने की विनती, स्वयं का कल्याण आदि प्रार्थनाएँ होती हैं | किन्तु, इस कविता में कष्टों से छुटकारा नहीं बल्कि कष्टों को सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना की गई है, जो अपने आप में अद्वितीय है |
आत्मत्राण कविता का शब्दार्थ
• चित्त - हृदय
• नत शिर - सिर झुकाकर
• छीन-छीन - क्षण-क्षण
• दुःख-रात्रि - कष्ट से भरी हुई रात
• वंचना - धोखा
• निखिल - सम्पूर्ण
• महि - धरती
• संशय - शक
• विपदा - कष्ट
• करुणामय - दूसरों पर दया करने वाला
• दुःख-ताप - कष्ट की पीड़ा
• व्यथित - दुखी
• सांत्वना - तसल्ली
• पौरुष - पराक्रम
• त्राण - भय से छुटकारा
• अनुदिन - प्रतिदिन
• तरने - पार लगने
• अनामय - स्वस्थ
• अनुनय - प्रार्थना
• वहन - भार उठाना |
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