कर चले हम फ़िदा कविता CBSE Class 10 Hindi

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कर चले हम फ़िदा कविता 


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कर चले हम फ़िदा कविता की व्याख्या


(1)- कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते क़दम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'कैफ़ी आज़मी' साहब के द्वारा रचित गीत 'कर चले हम फ़िदा' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि स्वयं को भारत माता के एक बलिदानी सिपाही के रूप में स्थापित करते हुए और देश के नौजवानों से उम्मीद भरा आह्वान करते हुए कहते हैं कि हमने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया है | दुश्मनों का बहादुरी से सामना करते हुए सीने पर गोलियां खाई है | अब हम जा रहे हैं, देश की रक्षा, आन-बान-शान अब तुम्हारे कंधों पर है | युद्ध में दुश्मनों का सामना करते हुए बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | हमारी साँसें थम रही थीं, अत्यधिक ठंड के कारण नसें जम रही थीं, फिर भी कभी हमने अपने कदम पीछे नहीं हटाया | आखिरी साँस तक चट्टान की तरह डटे रहे और अपने कदम आगे बढ़ाते रहे | आगे कवि कहते हैं कि यदि हमारे सर कट गए या फिर हम अपने वतन की ख़ातिर शहीद हो गए, तो हमें इसके लिए कोई गम नहीं है | बल्कि हमें गर्व और खुशी है कि हमने अपने जीते जी हिमालय का सर कभी झुकने न दिया | 

कवि वीरों की शहादत पर गर्वित होकर, उनके एहसास को बयाँ करते हुए तथा देश के नौजवानों से उम्मीद भरा आह्वान करते हुए कहते हैं कि मरते दम तक हमने कभी हार नहीं मानी | अंतिम साँस तक दुश्मनों से लोहा लिया है | अंतिम क्षणों तक बलिदान देने का जज्बा ज़िंदा रहा हमारे अंदर | लेकिन अब हम अपना बलिदान देकर जाकर रहे हैं | इस उम्मीद से कि तुम अब देश के कर्णधार बनोगे | अब देश की रक्षा तुम्हारे कंधों पर है | 

(2)- ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने के रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वह जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'कैफ़ी आज़मी' साहब के द्वारा रचित गीत 'कर चले हम फ़िदा' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि स्वयं को भारत माता के एक बलिदानी सिपाही के रूप में स्थापित करते हुए और देश
कर चले हम फ़िदा कविता CBSE Class 10 Hindi
कैफ़ी आज़मी

के नौजवानों से उम्मीद भरा आह्वान करते हुए कहते हैं कि हमें जिन्दा रहने के लिए बहुत वक़्त और मौके मिलते रहते हैं | परन्तु, मातृभूमि के लिए अपना बलिदान देने का अवसर कभी-कभी ही मिलता है | कवि के अनुसार, जो जवानी लहू से नहाती नहीं, वही हुस्न और इश्क़ को रुसवा करती है | आगे कवि कैफ़ी आज़मी साहब कहते हैं कि 
आज धरती बिल्कुल दुल्हन की तरह सजी-धजी है | यह हमारे शौर्य की गाथा गा रही है | इसकी रक्षा के लिए हमें तत्पर रहना चाहिए | यह हमारा कर्तव्य है | कवि हम सबसे आह्वान करते हुए कहते हैं कि अब हम अपना बलिदान देकर जाकर रहे हैं | इस उम्मीद से कि तुम अब देश के कर्णधार बनोगे | अब देश की रक्षा तुम्हारे कंधों पर है | 

(3)- राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न‍ के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
बांध लो अपने सर पे कफ़न साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'कैफ़ी आज़मी' साहब के द्वारा रचित गीत 'कर चले हम फ़िदा' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि स्वयं को भारत माता के एक बलिदानी सिपाही के रूप में स्थापित करते हुए और देश के नौजवानों से उम्मीद भरा आह्वान करते हुए कहते हैं कि ये जो शहादत का क्रम है, यह कभी थम न पाए | अर्थात् आगे बढ़ते हुए दुश्मनों का बेख़ौफ सामना करो, सीने पर गोलियां खाना मंजूर हो, पर रणभूमि में पीठ दिखाना कायरता है | कवि कहते हैं कि इन शहादतों के बाद ही हमें जीत का जश्न मनाने के अवसर मिलता है | कवि के अनुसार, हम शहीद हो रहे हैं, मगर हमारी ज़िंदगी मौत से गले मिल रही है, हमें इस भाव को समझना होगा | 

कवि वीरों की शहादत पर गर्वित होकर, उनके एहसास को बयाँ करते हुए तथा देश के नौजवानों से उम्मीद भरा आह्वान करते हुए कहते हैं कि अब तुम भी अपने सर पर कफ़न बाँध लो | शहादत के जश्न में सराबोर होने के लिए तैयार हो जाओ | कवि हम सबसे आह्वान करते हुए कहते हैं कि अब हम अपना बलिदान देकर जाकर रहे हैं | इस उम्मीद से कि तुम अब देश के कर्णधार बनोगे | अब देश की रक्षा तुम्हारे कंधों पर है | 

(4)- खींच दो अपने खूँ से ज़मी पर लकीर
इस तरफ़ आने पाए न रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों  | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'कैफ़ी आज़मी' साहब के द्वारा रचित गीत 'कर चले हम फ़िदा' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि स्वयं को भारत माता के एक बलिदानी सिपाही के रूप में स्थापित करते हुए और देश के नौजवानों से उम्मीद भरा आह्वान करते हुए कहते हैं कि अपने खून से ज़मीन पर लकीर खींच दो अर्थात् एक ऐसा सरहद बना दो कि उस पार से नापाक इरादा रखने वाला कोई रावण इस पार न आ सके | कवि कैफ़ी साहब भारत माता को सीता समान बताते हुए कहते हैं कि यदि कोई भी हाथ भारत माँ की आँचल छूने की हिम्मत करे तो उसे तोड़ दो | आगे कवि कैफ़ी साहब भारत के वीर सपूतों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि भारत माँ के लिए राम और लक्ष्मण दोनों तुम ही हो | भारत माँ का लाज की रक्षा अब तुम्हारे हाथ में है | कवि हम सबसे आह्वान करते हुए कहते हैं कि अब हम अपना बलिदान देकर जाकर रहे हैं | इस उम्मीद से कि तुम अब देश के कर्णधार बनोगे | अब देश की रक्षा तुम्हारे कंधों पर है | 


कैफ़ी आज़मी का जीवन परिचय

कवि कैफ़ी आज़मी साहब का वास्तविक नाम 'अतहर हुसैन रिज़वी' था | इनका जन्म 19 जनवरी 1919 को आज़मगढ़ जिले में मजमां गाँव में हुआ था | इनके अहमियत की बात करें तो कैफ़ी आज़मी की गिनती प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है | इनकी कविताओं में सामाजिक और राजनैतिक जागरुकता का समावेश के साथ-साथ हृदय की कोमलता भी है | इन्होंने मुशायरों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के साथ-साथ फ़िल्मों के लिए अनेक सुपरहिट गीत भी लिखे हैं | 

कैफ़ी आज़मी साहब 10 मई 2002 को इस दुनिया से हमेशा के लिए रुख़सत हो गए | इनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्य हैं --- 

कविता संग्रह ---  झंकार, आखिर-ए-शब, आवारा सज़दे, सरमाया इत्यादि | 
गीत संग्रह --- मेरी आवाज़ सुनो | 
पुरस्कार --- साहित्य अकादमी सहित अनेक पुरस्कार के हक़दार बने...|| 


कर चले हम फिदा कविता का प्रतिपाद्य सारांश 

प्रस्तुत पाठ या गीत कर चले हम फ़िदा , कवि कैफ़ी आज़मी जी के द्वारा रचित है |वास्तव में यह गीत कैफ़ी आजमी साहब के द्वारा भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म हकीकत के लिए लिखा गया था|इस गीत के माध्यम से कवि कैफ़ी साहब उन सैनिकों या फौजियों के जीवन का मार्मिक चित्रण किए हैं, जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर देशवासियों की रक्षा में दिन-रात तैनात रहते हैं | उन फौजियों का त्याग, समर्पण, बलिदान अद्भुत है | साथ ही साथ कवि को अपने देशवासियों से कुछ अपेक्षाएँ भी हैं...|| 



कर चले हम फिदा कविता के प्रश्न उत्तर


(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए --- 

प्रश्न-1 क्या इस गीत की कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है ? 

उत्तर- जी हाँ, इस गीत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है | यह गीत 1962 के भारत-चीन युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है | तिब्बत की ओर से चीन ने भारत पर आक्रमण किया था और भारत के वीर सपूतों ने इस आक्रमण का जवाब दिलेरी से दिया था | भारतीय सिपाही अपने शौर्य का खूब प्रदर्शन किया था | 

प्रश्न-2 'सर हिमालय का हमने न झुकने दिया', इस पंक्ति में हिमालय किस बात का प्रतीक है ? 

उत्तर- हिमालय हमारे अभिमान का प्रतीक है | हिमालय की बुलंदी पर भारत का मान-सम्मान निहित है | हमारे वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति देकर भारत की अस्मिता की हिफाजत की है | 

प्रश्न-3 इस गीत में धरती को दुल्हन क्यों कहा गया है ? 

उत्तर- प्रस्तुत गीत के अनुसार, जिस प्रकार एक दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया जाता है, ठीक उसी प्रकार भारत के वीरों ने भी अपना बलिदान देकर अपने लाल रक्त से धरती को रंग दिया है | परिणामस्वरूप, इस गीत में धरती को दुल्हन की संज्ञा दी गई है | 

प्रश्न-4 गीत में ऐसी क्या खास बात होती है कि वे जीवन भर याद रह जाते हैं ? 

उत्तर- देखा जाए तो गीत हमारे दिलो-दिमाग में लयबद्धता और सुर-ताल की ख़ूबसूरती के कारण रच-बस जाता है | गीत भावनात्मक रूप से भी हमारे हृदय में घर कर जाता है | गीत मार्मिकता, संगीतात्मकता आदि गुणों से भी सुसज्जित होते हैं,  जिससे गीत लम्बे समय तक हमें याद रह जाते हैं |

प्रश्न-5 कवि ने 'साथियों' संबोधन का प्रयोग किसके लिए किया है ? 

उत्तर- कवि ने 'साथियों' संबोधन का प्रयोग सैनिक साथियों और देशवासियों के लिए किया है | 

प्रश्न-6 कवि ने इस कविता में किस काफ़िले को आगे बढ़ाते रहने की बात कही है ? 

उत्तर- प्रस्तुत गीत या कविता में कवि ने सिपाहियों के समूह के लिए 'काफ़िले' शब्द का प्रयोग किया है | कवि चाहते हैं कि शहादत को प्राप्त सैनिकों के बाद और भी नौजवान मातृभूमि की रक्षा के लिए सामने आएँ और अपनी जान की परवाह किए बगैर सरहद पर डटे रहें | 

प्रश्न-7 इस गीत में 'सर पर कफ़न बाँधना' किस ओर संकेत करता है ? 

उत्तर- प्रस्तुत गीत में 'सर पर कफ़न बाँधना' से तात्पर्य है मौत की परवाह किए बगैर जान की बाजी लगाना | जब योद्धा रणभूमि में उतरते हैं, तब अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण तक न्यौछावर कर देते हैं | 

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भाषा अध्ययन 
प्रश्न-8 इस गीत में कुछ विशिष्ट प्रयोग हुए हैं | गीत के संदर्भ में उनका आशय स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए | कट गए सर, नब्ज़ जमती गई, जान देने की रुत, हाथ उठने लगे

उत्तर-  वाक्यों में प्रयोग - 
• रणभूमि में सर कट गए | 
• नब्ज जम सी गई | 
• युद्ध का यलगार सुनते ही जवानों ने समझ लिया कि यह जान देने की रुत है | 
• अभिनंदन के लिए सबके हाथ उठने लगे | 



कर चले हम फिदा जाने तन साथियों कविता का  शब्दार्थ 


• खूँ - खून
• रुत - मौसम
• हुस्न - सौंदर्य
• इश्क़ - प्यार
• रुस्वा - बदनाम
• वीरान - सुनसान
• काफिले - यात्रियों का समूह
• फतह - जीत
• जश्न - ख़ुशी
• दामन - आँचल
• फ़िदा - न्योछावर
• हवाले - सौंपना
• जानो-तन - जान और शरीर
• वतन - देश
• नब्ज़ - नाड़ी  | 


 

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