पेन से लिखा भाग्य घर में चारों और मस्ती हो रही थी, शोभित को कमरे में जाने की जल्दी थी किंतु आज ही सारे दोस्त किसी न किसी बहाने से उसे रोक ही लेते थे, वह मन ही झल्ला रहा था। तभी उसकी बड़ी बहिन सुषमा वहां आ गयी और उसे कमरे में भिजवाया।
पेन से लिखा भाग्य
घर में चारों और मस्ती हो रही थी, शोभित को कमरे में जाने की जल्दी थी किंतु आज ही सारे दोस्त किसी न किसी बहाने से उसे रोक ही लेते थे, वह मन ही झल्ला रहा था। तभी उसकी बड़ी बहिन सुषमा वहां आ गयी और उसे कमरे में भिजवाया।
रागिनी दुल्हन के रूप में सजी पलंग पर बैठी हुई थी। रागिनी जिसे वह बहुत प्यार करता था शायद अपने आप से भी अधिक, कितनी मिन्नतें करने के बाद रागिनी शादि के लिए तैयार हुई थी। सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी और आज दुल्हन के जोड़े में तो - - उसने मुस्कराते हुए रागिनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया-
--सच, रागिनी मैं आज सोचता हूं कि यदि तुम शादि के लिए हां नहीं कहती तो--तो शायद मैं जिंदगी भर शादि नहीं करता।
रागिनी ने धीरे से अपना हाथ उसके हाथों से खींच लिया और बोली--
--शोभित , मैं बहुत थक गयी हूं, आज मैं सोऊंगीऔर तुम भी सो जाओ--हमारी मिलन रात कल होगी।
उसने आहिस्ता से शोभित के सिर पर उंगलियों को घुमाते हुए कहा और कपड़े बदलने बाथरूम में चली गयी।
पेन से लिखा भाग्य |
- रागिनी बेटा, मैने तुम्हे पहले भी कहीं देखा है या लगता है कहीं मुलाकात हुई है।
रागिनी ने मुस्कराते हुए कहा--
--आप की याद्दाश्त बहुत अच्छी है पापा जी
सभी चाय नास्ते में लग गये थे, अचानक रागिनी ने डाक्टर साहब से कहा--
--मैं आपको पापा तो कह सकती हूं न?
इस अजीब से प्रश्न से सभी चौक कर उसे दैखने लगे, शौभित ने धीरे से उसका हाथ दबाते हुए कहा--
--क्या हो गया रागिनी, मेरे पापा हैं तो आफकोर्स तुम्हारे पापा भी हैं, इसमें इस तरह पूछने की क्या बात है-
रागिनी एक मिनट चुप रही और बोली--
--सच शोभित, ये रिस्ते भी शादि के संबधों को बदल कर रख देते हैं।
सब ने यही सोचा कि अपने घर से आने के बाद शायद रागिनी कुछ डिस्टर्ब हो गयी है। उसे आराम की सलाह देकर सभी लोग अपने काम पर निकल गये।
शोभित ने देखा, रागिनी चुपचाप बाल्कनी में खड़ी बाहर गार्डन को देख रही थी, हल्की हल्की बारिश होने लगी थी। शोभित ने धीरे से उसे पीछे से पकड़ लिया लेकिन कसमसा कर वह अलग हो गयी।
--क्या बात है रागिनी, तुम कुछ परेशान नजर आ रही हो? शोभित ने उससे पूंछा
--शोभित, शायद मैं भी तुमसे प्यार करने लगी हूं, बस यही सोच कर कुछ घबराहट हो रही है कि कहीं तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे? - - रागिनी की आंखो में आसूं छलक उठे।
शोभित ने उसे बाहों मे भर लिया और पेशानी पर प्यार अंकित करते हुए कहा--
--तुम्हें छोड़ना मेरी जिन्दगी का आखिरी लम्हा होगा।
--सच!
--हां रागिनी, मैने जब से तुम्हें देखा था तब से बस यही तमन्ना थी कि काश तुम मेरे प्यार को स्वीकार कर लो और भगवान ने मेरी सुन ली, तुम ने हां कर दी।
रात में तेज बारिश होने लगी, सभी घर के सदस्य डायनिंग टेबल पर बैठे हुए थे, रागिनी की बनाई स्वीट डिस को खाते हुए डाक्टर साहब ने कहा--
--रियली, रागिनी इतनी स्वादिष्ट डिस हमने नहीं खायी और एक चेक निकाल कर अपने पार्कर काले पेन से एक लाख का एमांट भर कर और हस्ताक्षर करके उसे दिया - -
--लो रागिनी, यह हमारे यहां का दस्तूर होता है कि पहले बार जब बहू कुछ बनाती है तो हम कुछ देते हैं।
रागिनी चुपचाप पार्कर पेन को देख रही थी।
--क्या! हुआ बेटी, पेन को क्या देख रही हो?
--मुझे गिफ्ट में यह पेन चाहिए, पापा
डाक्टर साहब ने मुस्कराते हुए कहा कि -
--यह बहुत पेन है बेटा,अच्छा तुम रख लो
रागिनी पेन लेकर कहा--
--इसी पेन ने न जाने कितने पेशेंट का भाग्य लिखा होगा, जैसा मेरा लिखा था, एक मिनट खामोश हो कर पेन को देख रही थी और सब उसे आश्चर्य से देख रहे थे।
--पापा जी, आपको शायद याद न होगा कि पांच साल पहले उस रात भी ऐसी ही तूफानी बारिश हो रही थी, मेरी मां को ब्लड कैंसर था, आपका इलाज चल रहा था, मां के इलाज में हमारा सब कुछ समाप्त हो गया था--हास्पिटल का बिल बढ गया था तो रूपये जमा कराने के लिए कहा था--मैने कुछ दिनों की मोहलत मांगी थी ताकि मकान बेचं कर इलाज करवा सकूं लेकिन हास्पिटल ने बिना राशि जमा किये इलाज करने से मना कर दिया, जब में काउंटर पर रोयी तो नर्स ने नोट शीट पर आपके हस्ताक्षर करवाने के लिए आपके पास भेजा था। आप अपने रूम में शराब पी रहे थे और मेरी प्रार्थना को स्वीकार कर इसी पेन से बिल माफ कर दिया था लेकिन कीमत थी मेरा जिस्म और जब कीमत चुका कर लौटी तो मां हमें छोड़कर जा चुकी थी। तब मैने बदला लेने की कसम खायी और मकान को बेचकर अपना मेकओवर किया। पांच साल इंतजार किया और शोभित को प्रेमजाल में फंसाया। और धीरे-धीरे प्यार भी करने लगी लेकिन - -
सभी स्तब्ध थे, डाक्टर सिर झुकाये बैठे थे। - - - - - आज के बाद यह पेन किसी मरीज का भाग्य नहीं लिख पायेगा, अब मुझे कौन से रिस्ते से आप लोग अपनायेंगे?
वह उठ खड़ी हुई और पेन को तोड़ कर बाहर फेंक दिया। बाहर अंधकार में बरसते पानी में भींगती हुई वह चल दी--सभी स्तब्ध थे, किसी के पास कोई जबाव नहीं था--शोभित एकाएक उठा और तेजी से रागिनी के पीछे भागा--पानी भींगतीं दो परछाईं जा रहीं है--
- राजीव रावत
सी2/11,सागर प्रीमियम टावर
भोपाल (म0प्र0)
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