विवेक प्रपोजल पढ़ने लगा । कम्पनी का प्रोफ़ाइल देखने के बाद उसे ज्ञात हुआ कि यह एक नया international मार्केटिंग कम्पनी थी जो स्वास्थ्य एवं विटामिन्स का प्रोडक्ट लेकर ग्लोबल मार्केट में उतरी थी । ग्लोबल विश्व मे स्वास्थ्य संबंधी समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी ।
असफलता एक चुनौती है
विवेक को अपने रिजल्ट का बेसब्री से प्रतीक्षा था, और उसे ही क्यों विश्वविद्यालय के जितने भी स्टुडेंट स्तानक द्वितीय वर्ष की परीक्षा में बैठे थे, लगभग सभी को परीक्षा फल की प्रतीक्षा थी । इंटरनेट के माध्यम से परीक्षाफल का परिणाम घोषित करने का निश्चित तारीख निकाल दिया था । सभी छात्र उस दिन का इंतजार कर रहे थे । विवेक भी अपने परीक्षा परिणाम के लिए काफी सावधान था । वह उत्साहित भी था क्योंकि परीक्षा देने के बाद वह अपने आप से, अपने दोस्तों से, अपने रिश्तेदारों से open चैलेंज कर चुका था कि मुझे पास मार्क नहीं बल्कि टॉप नम्बरों से प्रथम आना है । वह अपने भावी future के बारे में वह बहुत तरह के सपने संजोए था ।
आखिर वह दिन भी आया जब परीक्षा का परिणाम निकला । इन्टरनेट पर परिणाम घोषित हो चुका था । विवेक को पक्का यकीन था कि वह सर्वश्रेष्ठ नम्बरों से पास होकर अपने आप को श्रेष्ठ साबित करेगा । वह काफी उत्साहित था । वह सुबह ही अपने घरेलु कामो को निपटाकर अपने दोस्त के लैपटॉप के सामने बैठ गया । लैपटॉप पर साइट खोला, अपना क्रमांक नम्बर डाला । कुछ समय तक सर्च होता रहा और सर्च होने के बाद जो परिणाम लैपटॉप के स्क्रीन पर दिखा, विवेक को स्वयं अपने आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । वह हताश परेशान बार-बार अपना क्रमांक डालकर एक एक अंक को चेक करता, सबमिट करता और.....उसका सिर चकराने लगा । यह क्या, वर्षों की तपस्या, सालों का मेहनत पल भर में बिखर कैसे गया । कहाँ तो वह परीक्षा में टॉप पर प्रथम श्रेणी में रिजल्ट लाने के Goal बनाया था लेकिन पास भी नहीं हो सका । उसे लगा जैसे मेरा अब कोई वजूद नहीं है । इस दुनियां में मेरा अब कोई अस्तित्व ही नहीं है । उसे अब खुद से नफरत होने लगा । क्यों जिएगा, कैसे जिएगा अपने दोस्तों को कौन से मुँह दिखलाएगा ।
विवेक को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे । अपने रिश्तेदारों को, अपने दोस्तों को क्या जवाब दे । कहां तो वह अपने मन में क्या नहीं साध बसाया था , कैसे-कैसे सपने सजाया था , उसे हमेशा से अपने ऊपर विश्वास था कि एक दिन उसके माता पिता, बड़ी बहन उस पर गर्व करेगा और दुनियां वालों के सामने सीना ठोक कर अपने विवेक के योग्यता का बखान करेगा । लेकिन आज वह सारी आशाएं, सारी आकांक्षाए जैसे पानी के बुलबुले के समान विलुप्त हो गया । उसे अहसास होने लगा कि मानों उसके शरीर में अब तनिक भी प्राण नहीं है । शरीर का एक-एक स्पंदन जैसे शिथिल पड़ गया है । आँखों के सामने वे सारे दृश्य विलुप्त हो गए, जिसमें कोई आकर्षण नहीं था । जीवन के वे सारे रंग बदरंग हो गए हैं । वह हताश , निराश , परेशान सा बैठा था । उसका प्रिय सहचर सौरभ भी चकित और अचंभित था, उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विवेक miss कैसे कर गया जबकि परिस्थितियां उसके अनुकूल था । भाग्य विवेक के साथ धोखा कैसे दिया ।
विवेक हताश परेशान सा अपने कमरे में बैठा था । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपने नाकामयाबी पर शोक करूँ, संताप करूँ या अपने आपको जिम्मेवार मानूँ । मैंने तो कोई कोर कसर नहीं छोड़ा था ।
अचानक विवेक के कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श हुआ । वह पलटकर देखने लगा । उसकी बड़ी बहन रमा मुस्कुरा रही थी । विवेक को लगा जैसे उसका हृदय बैठा जा रहा है, मुँह से बोल नहीं फूटे, वह चुपचाप अपनी बहन को ताकने लगा । रमा उसके सिर पर हाथ रखते हुए बड़े ही स्नेह के साथ बोली---"विवेक इतना परेशान क्यों हो , मैं जानती हूं तुम्हारा रिजल्ट नहीं आया लेकिन इससे निराश होने की जरूरत नहीं है, सिर्फ एक असफलता से हमारी जिंदगी का अंत नहीं होता । जीवन के मार्ग में आने वाला हर असफलता एक चुनौती है, इसे हमें उत्साह के साथ स्वीकार करना पड़ता है । घोर अंधकार के बाद दिन का सुरज निकलता है, उजाला आता है, बस फिर से चलना शुरू करो । क्या पता ईश्वर ने तुम्हे इससे भी बड़े उदेश्य के लिए जन्म दिया है " ।
विवेक चुपचाप सुनता रहा ।
"चलो अब जरा मुस्कुराओ भी । सुवह से खाना नहीं खाया है , चलो उठो और चलकर खाना खा लो "। विवेक चुपचाप उठा और रमा के साथ खाने के लिए चल पड़ा ।
विवेक घर से निकला ही था कि उसका मोबाइल बज उठा, वह मोबाइल को जेब से निकाला और स्क्रीन पर उभरे नम्बर को देखने लगा-मोनालिसा का फोन था । एक पल के लिए वह विचलित हुआ, मोनालिसा उसका क्लासमेट थी । चंचल, हसीन, सरल स्वभाव की लड़की थी । अब वह उससे क्या कहेगा, लेकिन रिंग बजते-बजते कट गया । वह सोचने लगा क्या मोनालिसा को मेरे रिजल्ट के बारे में पता हो गया होगा, अगर नही तो वह अवश्य पुझेगी । फिर मैं क्या जबाब दूँगा । अभी विवेक इसी उधेड़बुन में पड़ा था कि पुनः मोबाइल बजने लगे । वह मोबाइल को ऑन किया और धीरे से बोला..."हैलो..हां मोनालिसा बोलो...कैसी हो "।
"हैलो, विवेक कैसे हो ? सब ठीक ठाक तो है न ? ये तुम्हारे आवाज को क्या हो गया है, ऐसे हताश आवाज में क्यों बोल रहे हो , जैसे कोई मातम छाया हुआ है ? तुम्हारे रिजल्ट का क्या हुआ" ? मोनालिसा एक साथ कई प्रश्न कर पुछती चली गई ।
"(........)" विवेक चुपचाप सुनता रहा । अधर कांप कर रह गए ।
"Come on dear. तुम परेशान से क्यो लग रहे हो । अच्छा कहाँ हो ? रोज गार्डन में पहुंचो । हम वहीं बैठकर बातें करेंगे । भुलना नहीं, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी" ।
विवेक को लगा फोन पर तो बोल न फूटे फिर उसका सामना कैसे कर पाऊंगा । खैर वह रोज गार्डन पैदल ही निकल पड़ा । पन्द्रह मिनट बाद वह रोज गार्डन पहुँच गया ।
दिन के बारह बज रहे थे , और मार्च का आखिरी सप्ताह । धुप में तीखापन आ गया था और गर्मी अपना दस्तक दे चुका था । विवेक एक बेंच पर बैठा मोनालिसा का इंतजार करने लगा । दस मिनट बाद मोनालिसा वहां पहुंची ।
"हैलो विवेक कैसे हो" ।
"हैलो मोनालिसा तुम कैसी हो"।
"पहले तुम बतलाओ , तुम फोन पर बात करते समय विचलित सा लग रहा था । बताओ तो क्या परेशानी है " ।
"कुछ नहीं बस...." कहते कहते विवेक बीच में ही रुक गया । उसके चेहरे पर बदहवास कर देने वाली बेचारगी और स्तब्ध कर देनेवाला आत्मिक पीड़ा, अपने प्रिय वस्तु खो जाने का गम, और स्वयं को प्रमाणित न करने की शर्मिंदगी की जड़ता के भाव थे । उसके हृदयाकाश में निशब्द आवारापन की व्याकुलता भी था, आत्मसुधार न कर पाने की व्यथा भी था, और अनुशासन हीनता का व्यथित शोर भी । जिसे मोनालिसा आसानी से पढ़ सकती थी । उसे अफसोस हुआ उसके रागात्मक जीवन को पूर्ण कर देने वाला विवेक आज इतना असहाय क्यों । वह समझ गई कि विवेक परीक्षा में असफल हुआ है ।
वह विवेक के हाथ को अपने हाथ मे लेते हुए बोली....."मैं जानती हूं विवेक लेकिन इसमें परेशान होने की क्या जरूरत है । दुनियाँ में बहुत सारे लोग असफल हुए लेकिन वे निराश नहीं हुए बल्कि हौसले के साथ उस परिस्थिति का सामना करते हुए इतिहास की गाथा बन गए । सिर्फ परीक्षा में फ्लॉप हो जाने से इंसान का काबिलियत, सामर्थ्य खत्म तो नहीं हो जाता, तुम अपने भावी जिंदगी में तो कभी फ्लॉप नहीं हो । जरा मुस्कुराओ यार, मुस्कुराना ही तो असल जिंदगी का नाम है" ।
विवेक के चेहरे पर संतोष और खुशी की लकीरें खींच आई । फिर भी उदास और उखड़े स्वर में बोला..."क्या करूँ मोनालिसा, कुछ समझ में नहीं आ रहा है" ।
"करना क्या है, खुश रहो, उत्साहित रहो और आगे की तैयारी शुरू कर दो" । मोनालिसा जैसे दर्शन सीखा रही थी ।
"क्या तैयारी करूँ । इक्जाम दिया, आशा के विपरीत रिजल्ट आया, सारे सपने एक ही झटके में बिखर गए "। विवेक बुझे स्वर में बोला ।
"तो फिर आत्महत्या कर लो । बोलो कर सकते हो, अखबार के पृष्टों को पढ़ो , रिजल्ट निकलते ही बहुत सारे विद्यार्थी, कुछ फांसी लगाकर, कुछ जहर खाकर, कुछ ट्रेन से कट कर तो किसी ने अपने इमारत से छलांग लगाकर आत्महत्या कर लिया । अखबार के पन्ने भरे पड़े हैं । क्या असफलता से बचने का यही विकल्प है "। मोनालिसा तेज आवाज में बोलती चली गई ।
विवेक चुपचाप सुनता रहा । आत्महत्या का जिक्र सुनते ही उसका हृदय कांप गया ।
"विवेक..." मोनालिसा ध्यान से उसके चेहरे को देखती रही फिर बोली..."क्या परीक्षा पास करना ही तुम्हारा लक्ष्य है ? अगर मान भी लो परीक्षा में पास हो भी जाते तो अगले लक्ष्य था एक अच्छा सा जॉब लेना और उच्च सैलरी वाली नौकरी मिलती भी या नहीं, इसकी तो कोई गारंटी नहीं थी । आज हमारे देश में ऐसे बहुत से शिक्षित बेरोजगार पड़े हैं जी बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेकर सड़कों पर खाक छान रहे हैं या राजधानी के विकसित रेलवे प्लेटफार्म पर भीख मांग रहे हैं । नहीं विवेक, तुम अपने जिंदगी का स्वयं रचनाकार हो, अपनी किस्मत खुद से लिख सकते हो । भगवान हर इंसान के अंदर वे सारे गुण दिए है जिसे जगाकर एक नई कृतियाँ गढ़ सकता है । तुम निर्माता बनो विवेक, निर्मित मकान का निवासी नहीं । स्वयं जागो, औरों को भी जगाओ " ।
विवेक चुपचाप सुनता रहा फिर धीरे से बोला..."तुम इतनी बड़ी बड़ी बात कर लेती हो आश्चर्य है । लेकिन बताओ तो सही अब आगे मुझे क्या करना चाहिए । दीदी भी कह रही थी तुम एक बड़े उधेश्य के लिए पैदा हुए हो ,But मुझे खुद नहीं मालुम की मेरा उधेश्य क्या है" ।
"मालूम नहीं" मोनालिसा खिलखिलाकर हंसी..."वाह ! परीक्षा में पास करना तुम्हारा उधेश्य था और एक सफल इंसान बनकर समाज के लिए एक आदर्श बनना तुम्हारा उद्देश्य नहीं है" ।
"हां है तो, लेकिन वो होगा कैसे " विवेक प्रश्न किया ।
"तुम कोई नया काम शुरू करो । मतलब आगामी समय में मार्केटिंग का future है और स्कोप भी । तुम मार्केटिंग शुरू करो"।
"लेकिन मैं तो कुछ जानता नहीं हुं मार्केटिंग के बारे में"।
"वो मुझ पर छोड़ दो । जो मैं बताती हूं बस उसका फॉलो करते जाओ" । कहते हुए मोनालिसा अपने बैग से कुछ प्रपोजल निकाली और विवेक के तरफ बढ़ाते हुए बोली... "इसपर अपना हस्त्ताक्षर कर दो और मेरा बिजनेश पार्टनर बन जाओ, लेकिन घबराओ नहीं, इसे अच्छे तरीके से पढ़ लो, फिर साइन करना । ये उभरते हुए ने जमाने का बिजनेश opportunity है ।
विवेक प्रपोजल पढ़ने लगा । कम्पनी का प्रोफ़ाइल देखने के बाद उसे ज्ञात हुआ कि यह एक नया international मार्केटिंग कम्पनी थी जो स्वास्थ्य एवं विटामिन्स का प्रोडक्ट लेकर ग्लोबल मार्केट में उतरी थी । ग्लोबल विश्व मे स्वास्थ्य संबंधी समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी । उससे बचाव के लिए पुरा विश्व चिंतित था । नए नए प्रयोग हो रहे थे । उसने वेलनेश इंडस्ट्री को कुलांचे भरता देख रहा था । विवेक चकित था और उत्साहित भी । वह फौरन फॉर्म पर अपना हस्ताक्षर कर दिया और आगे की योजना के लिए मोनालिसा से पूछ बैठा..."अब क्या करना है" ।
"होगा क्या ! अगले रविवार को टाउनहॉल में एक बड़ा ट्रेनिंग प्रोग्राम है । मैं चाहती हूँ
तुम वहां पहुंचकर उस ट्रेनिंग का हिस्सा बनो और इसमें एक बात हमेशा याद रखना, यहाँ हमेशा उत्साहित रहकर ही अपने लक्ष्य तक पहुंच पाओगे" । विवेक को मानो मुराद पूरा हो गया । वह उत्साहित था । आंखों में आशा की किरण मन मे उमंग और हृदय में आत्मविश्वास था । वह एक प्यार भरा चुम्बन मोनालिसा के ललाट पर जड़ा और वहाँ से ऐसे चला जैसे कोई बहुत बड़ा बाजी जीत लिया हो ।
मोनालिसा आधुनिक लड़की थी । खुबसूरत प्यारा सा चेहरा , प्रेमसिक्त आँखे, गोरी छरहरी, होंठो पर किसी को भी आकर्षित कर देने वाला सदैव मुस्कान की गर्माहट । बचपन से ही विवेक के साथ पढ़ाई की और बी.ए. फाइनल ईयर का इक्जाम देकर आगे की पढ़ाई की योजना यहीं स्थगित कर ब्यूटीशियन का काम करने लगी थी । लेकिन पिछले वर्ष ब्यूटीशियन का काम जो अच्छा खासा आमदनी दे रहा था अचानक से बंद करके मार्केटिंग का रास्ता अपना ली थी । विवेक का हमेशा से मिलना जुलना रहता था । दोनों एक दुसरे के विचारों का कद्र किया करते थे । जहाँ विवेक बचपन से ही पढ़ाई पुरा कर कोई अच्छा पद और ऊंचे ओहदे वाला नौकरी का सपना देख रहा था वहीं मोनालिसा अपने स्वतंत्र विचारों के कारण अपना स्वयं का कैरियर बनाने को उत्सुक रहती । जाने अनजाने दोनों अपने अपने विचारों को साझा करते लेकिन दोनों के बीच कभी भी किसी विषय पर विवादात्मक संवाद नहीं हुआ । विवेक कभी भी मोनालिसा के मार्केटिंग के विषय में ज्यादा जानने का प्रयत्न ही नहीं किया था । उसे तो अपने पढ़ाई के साथ साथ एक अच्छी सैलरी वाली नैकरी का सपना था । लेकिन आज जब विवेक, मोनालिसा के कहने पर उसके मार्केटिंग के सिद्धांत और विस्तार को समझा तो वह अवाक रह गया । क्या ऐसा भी हो सकता है । लेकिन आज जब वह मोनालिसा के साथ मीटिंग में पहुंच तो हैरत में पड़ गया । उसने देखा...वहां सामान्य से सामान्य स्त्री-पुरुष , और बड़े बड़े लोगों का जमावड़ा, सभी काफी सजे धजे, और उनसब के बीच एक अनुशासनात्मक सामंजस्य । कोई किसी से बात करने में न संकोच न भय, जैसे सभी एक ही परिवार के लोग हों । लीडर्स आए , मंच पर बहुत सारे एचीवर्स का स्वागत हुआ । लोग तालियां बजाकर उन सबका स्वागत किए । उस समय तो विवेक और हैरान रह गया जब स्टेज पर मोनालिसा को बुलाया गया और सारे लीडर्स मिलकर उसे एक शानदार ट्रॉफी देकर सम्मानित किए । आज पहली बार विवेक को ज्ञात हुआ कि मोनालिसा इस नेटवर्क मार्केटिंग में डायमंड है और उसका बोनस महीने में लाखों का है । विवेक सोचने लगा, पढ़े लिखे लोग बीस पच्चीस हजार की नौकरी के लिए पता नहीं सालों तक न जाने कितने दफ्तरों का चक्कर काटते रहते हैं । और यहां इतनी आसानी से सब कुछ हो सकता है । इंसान जो सोच सकता है उसे यहां हासिल भी कर सकता है । विवेक को स्वयं पर पछतावा होने लगा जब वह मोनालिसा के नेटवर्क के सिद्धांतों को जानने का कभी जिज्ञासा ही नहीं किया । कभी मोनालिसा उसे अपने नेटवर्क के बारे में बतलाने की कोशिश भी की तो वह टालमटोल कर दिया करता था । पता नहीं उसके दिलो दिमाग मे ये ख्याल कहाँ से आ गया था कि ये सब थके हारे और बेचारगी किस्मत वालों का एक उबा और थका देनेवाला काम है । फिर उसे इस बात पर संतोष भी हुआ कि चलो देर से ही सही इसी बहाने मोनालिसा के साथ नजदीकियां तो बढ़ी , जिसे वह प्राणपण से चाहता था, पसंद करता था और नित्य अपने होंठों पर जिसके नाम की माला जपता था । उसे अपने हृदय में एक कोमल राग की तरह छेड़ा करता था । मोनालिसा भी उसे काफी पसंद करती थी । वह खुले विचारों की थी , छेड़ती भी थी, समझती भी थी और कभी संकट की स्थिति में उसे हमेशा संभालती भी थी ।
उसे कालेज के दिनों की एक घटना याद आया । एक दिन किसी विवाद पर जब कुछ बदमाश टाइप लड़के विवेक को घेर लिया था और वह अपनी सहायता के लिये एक उम्मीद के साथ अपने प्रिय सहपाठियों को देख रहा था तो किसी में वो हिम्मत नहीं हुआ था कि आगे बढ़कर विवेक को उन बदमाशों के चंगुल से छुड़ा सके तब ऐन वक्त पर मोनालिसा ही थी जो उन बदमाशों के सामने दिलेरी से साथ आकर किसी शेरनी की तरह दहाड़ी थी । उस वक्त चुटकी लेते हुए उनलोगों ने पूछा था... "ये उड़नपरी , ये क्या तेरा यार है"
"हां हां मेरा यार है, और मेरे होते हुए तुमलोग इसे कुछ नहीं कर सकते"। मोनालिसा विरोध करते हुए फटकारी थी ।
और तब से विवेक के हृदय में मोनालिसा और भी बस चुकी थी । वह नित्य अपने दिलों में उसे पूजा करता ।
मीटिंग खत्म हुआ । पूरा मीटिंग विवेक धैर्य के साथ सुना । मोनालिसा आकर उसे साथ लिए हुए बाहर निकली और चलते हुए पूछ ली.."बताओ तो सही, मीटिंग कैसा लगा"
विवेक उत्साह के साथ बोला..."मोनालिसा आज पहली बार तो मैं अपने इंसान होने के मकसद को समझ पाया हूँ । काश ! यह ज्ञान मुझे पहले क्यों नहीं मिला । मैं स्वयं शर्मिंदा हूँ कि तुम्हारी बात को मैं पहले तवज्जो क्यों नहीं दिया" ।
"ऐसा मत कहो । जैसे तड़प उठी मोनालिसा, विवेक के होंठों पर अपना हाथ रखकर बोली..."मुझे खुशी है कि तुम्हारा साथ मिल गया, अब क्या चाहिए मुझे । चलो, आज कम्पनी का कुछ प्रोफ़ाइल दे देती हूं । कल से फील्ड में तुम्हारा असली ट्रेनिंग होगा और वहां के लीडर स्वयं तुम रहोगे ।
विवेक घर आया तो काफी खुश था । उसके चेहरे पर खुशी और संतोष के लालित्य को देखकर रमा खुश भी थी और चकित भी । उसके पुछने पर विवेक बैठकर सविस्तार एक एक बातों को बताया जो उसने सीखा था ।
- सुरेन्द्र प्रजापति
ग्राम-असनी , पोस्ट-बलिया,
थाना-गुरारू, जिला-गया(बिहार)
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