प्रेमचंद के फटे जूते हरिशंकर परसाई

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प्रेमचंद के फटे जूते हरिशंकर परसाई 


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प्रेमचंद के फटे जूते का सारांश  

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ या निबंध लेखक 'हरिशंकर परसाई' जी के द्वारा लिखा गया है | इस निबंध में हरिशंकर परसाई जी के द्वारा प्रेमचंद के व्यक्तित्व का सादापन और एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की आडम्बरयुक्त प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया गया है | प्रेमचंद की एक तस्वीर देखकर, इस निबंध के माध्यम से लेखक कह रहे हैं कि प्रेमचंद का एक छायाचित्र मेरे पास है, जिसमें वो अपनी पत्नी के साथ दिखाई दे रहे हैं | सिर पर टोपी है, तन पर कुर्ता और धोती है | कनपटी चिपकी हुई दिखाई दे रही है, गाल धंस गए हैं और हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछ के कारण चेहरा भरा-भरा दिखाई दे रहा है | 

आगे लेखक आश्चर्य से कहते हैं कि फोटो खिंचाने की यदि यह पहनावा है, तो न जाने पहनने की कैसी होगी ? तत्पश्चात्, लेखक अनुमानतः कहते हैं कि इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी, इसमें तो अलग-अलग कपड़े बदलने का कोई गुण ही नहीं है | यह जैसा है, वैसा ही फोटो में भी आ जाता है | 

प्रेमचंद की फोटो की ओर देखते हुए जब लेखक की दृष्टि उनके चेहरे पर पड़ी तो वे कहते हैं कि तुम्हारा जूता
प्रेमचंद के फटे जूते
प्रेमचंद के फटे जूते 
फट गया है और अँगुलियाँ बाहर की ओर स्पष्ट दिख रही हैं | क्या तुम्हें थोड़ा भी इसका एहसास नहीं ? क्या तुम्हें जरा भी संकोच नहीं ? क्या तुम इतना भी नहीं समझते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली को ढका जा सकता है |किन्तु, फिर भी तुम्हारा चेहरा विश्वास से भरा है | आगे लेखक कहते हैं कि लगता है फोटोग्राफर ने जब 'रेडी प्लीज़' कहा होगा, तब तुमने परम्परा के अनुसार मुस्कुराने की कोशिश की होगी | दर्द के गहरे कुएँ के तल में पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होगे, तभी बीच में ही फोटोग्राफर ने तुम्हारा फोटो खींचकर 'थैंक्यू' कह दिया होगा | पर सच कहूँ, तो यह मुस्कान नहीं, इसमें उपहास है, व्यंग्य है !

तत्पश्चात्, प्रेमचंद के फोटो को संबोधित करते हुए लेखक कहते हैं कि शायद तुम्हें फोटो का महत्व ही नहीं पता | यदि पता होता, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते उधार माँग लेते | लोग तो फोटो खिंचाने के लिए बीवी तक उधार माँग लेते हैं और तुम जूते भी नहीं माँग सके | तुम तो महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग-प्रवर्तक और न जाने क्या-क्या कहलाते थे, लेकिन फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ दिखाई दे रहा है | 

तत्पश्चात्, लेखक स्वयं के बारे में भी बात करने लगते हैं कि मेरा जूता भी बहुत अच्छा नहीं है, बस ऊपर से अच्छा दिखता है | यों तो अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठे के नीचे तला फट सा गया है | मेरा अँगूठा कभी ज़मीन से घिसकर लहुलूहान भी हो जाता है | मेरा पूरा पंजा छिल जाएगा, पर अंगुली बाहर नहीं दिखेगी | लेखक आगे भावात्मक रूप में कहते हैं कि सच तो यह है कि तुम्हारी अँगुली दिखती जरूर है, पर पाँव सुरक्षित है | मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है | तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते और हम हैं कि पर्दे पर कुर्बान हुए जा रहे हैं | आगे लेखक कहते हैं कि क्या तुम बहुत चक्कर काटते रहे ? इसलिए तुम्हारा जूता फट गया | क्या तुम बनिए के तगादे से बचने के प्रयास में मीलों चक्कर लगाकर घर लौटते रहे ? तत्पश्चात्, लेखक एक दृष्टांत प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने में घिस गया था | उसे बहुत अफ़सोस हुआ, तो उसने कहा --- " आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम...|" 

प्रेमचंद को संबोधित करते हुए लेखक कहते हैं कि लगता है तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो | तुम उसे बचाकर, उसके बगल से निकलने का प्रयास भी तो कर सकते थे | सभी नदियाँ पहाड़ों को नहीं काटती, कोई रास्ता बदल लेती हैं या घूमकर निकल जाती हैं | मैं अच्छे से समझता हूँ तुम्हारा ये व्यंग्य मुस्कान | तुम हम पर हँस रहे हो कि हम अँगुली छिपाकर और तलवा घिसाकर चल रहे हैं | मानो निश्चित ही तुम ऐसा कहकर हमें चिढ़ा रहे हो कि हमने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली भले ही बाहर निकल आई, पर पाँव सुरक्षित है | लेकिन तुम अँगुली को ढाँकने के चक्कर में अपने तलुवे का नुकसान कर रहे हो, उसे लहुलूहान कर रहे हो | तुम चलोगे कैसे ? मैं अच्छे से समझता हूँ तुम्हारा ये व्यंग्य मुस्कान...|| 


प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं ?

उत्तर- हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर आती हैं --- 

• प्रेमचंद हर विपरीत परिस्थितियों का दृढ़तापूर्वक  सामना करते थे | 
• प्रेमचंद को आडम्बरयुक्त जीवन जीना पसंद नहीं  था | 
• प्रेमचंद का व्यक्तित्व सादगीयुक्त था | 
• प्रेमचंद महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग - प्रवर्तक आदि उपनामों से जाने-पहचाने जाते थे | 

प्रश्न-2 पाठ में 'टीले' शब्द का प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा ?

उत्तर- प्रस्तुत पाठ में 'टीले' शब्द से तात्पर्य रास्ते में उत्पन्न हुए रुकावट से है | अर्थात् टीला रूपी रुकावट की तुलना समाज में व्याप्त बुराईयों से की गई है, जो मानव विकास में बाधाएँ उत्पन्न करता रहता है | 

प्रश्न-3 आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है ?

उत्तर - वर्तमान में लोग आडम्बरयुक्त जीवन का हिस्सा बन गए हैं | आज सम्मान व प्रतिष्ठा उन्हीं के पास है, जो कीमती वेश-भूषा से सुसज्जित हैं | यहाँ तक की उन्हें ही चरित्रवान समझा जाता है | जबकि साधारण लोग भले ही उच्च विचार के मालिक हों, उनका चरित्र अच्छा हो, पर उन्हें ओछी नजरों से देखा जाता है | 

प्रश्न-4 पाठ में एक जगह लेखक सोचता है कि 'फोटो खिंचाने कि अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ?' लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि 'नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी |' आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं ?

उत्तर- ये मानव प्रवृत्ति है कि आम दिनों में साधारण कपड़ों का उपयोग किया जाता है, जबकि किसी खास मौके पर अच्छे कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है | 

आरम्भ में लेखक ने सोचा कि जब फोटो खिंचाने जैसे विशेष अवसर पर प्रेमचंद साधारण कपड़े पहने हुए हैं, तो आम दिनों में इससे भी साधारण रहते होंगे | फिर अचानक लेखक अपने विचार में बदलाव करते हैं | वे कहते हैं कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व दिखावे की दुनिया से एकदम परे है | उनके लिए साधारण और विशेष अवसर का कोई महत्व नहीं | वे जैसे बाहर से दिखते हैं, बिल्कुल वैसे ही अंदर से भी हैं | इसलिए लेखक अपने बदले हुए विचार में कहते हैं कि --- 'नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी |' 


प्र.५. नीचे दी गई प्रश्नों या पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए -

क. जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है | अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं | पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए .

उत्तर- प्रस्तुत व्यंग्य में जूते की तुलना समृद्धता या सम्पन्नता से की गई है, जबकि टोपी की तुलना मान-सम्मान या प्रतिष्ठा से की गई है | अर्थात् मान-सम्मान या प्रतिष्ठा का महत्व हमेशा दौलत से कम ही रहा है | सम्पन्न लोगों की पूछ-परख ज्यादा होती रही है | अत: वर्तमान समाज की सोच या झुकाव पैसे की तरफ है |

ख.  तुम परदे का महत्व नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं | 

उत्तर- प्रस्तुत व्यंग्य में परदे की तुलना सम्मान व इज्ज़त से की गई है | कुछ लोगों को इज्ज़त बहुत प्यारी होती है, जो अपना सर्वस्व गंवा कर भी उसे पाने की चेष्टा करते हैं | जबकि समाज में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो सम्मान व इज्ज़त को अनदेखा करके किसी भी हद तक जाने की चेष्टा करते रहते हैं | 

ग. जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो ?

उत्तर- प्रस्तुत व्यंग्य के अनुसार, पाँव की अँगुली की अपेक्षा हाथ की अँगुली ज्यादा बेहतर व महत्वपूर्ण है | अर्थात् प्रेमचंद जिसे घृणित समझते थे, उसकी ओर पाँव की अँगुली से इशारा करते थे तथा वे जिनको सम्मानित दृष्टि से देखते थे, उन्हें हाथ की अँगुली से इशारा करते थे | 


प्रश्न-६ पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए | 

उत्तर-  मुहावरों का प्रयोग निम्नलिखित है - 

• अँगुली का इशारा - (कुछ बताना या इंगित करना) तुम अपने अँगुली के इशारे से बताओ की राधा कहाँ छिपी है ? 

• व्यंग्य-मुस्कान - (उपहास करना) तुम्हारी ये व्यंग्य मुस्कान का मतलब यहाँ सभी समझते हैं | 

• बाजू से निकलना - (चुनौतियों से मुँह चुराकर भाग जाना) उसके भय से कबतक यूँ बाजू से निकलते रहोगे ? 

• रास्ते पर खड़ा होना - (बाधा या रुकावट उत्पन्न करना) वह मेरे रास्ते पर आकर खड़ा हो गया, वरना मैं चोर को पकड़ लेता | 


प्रेमचंद के फटे जूते पाठ का शब्दार्थ 


• पोशाक -           परिधान, पहनने का कपड़ा 
• लहुलूहान -        खून से लथपथ 
• उपहास -          खिल्ली उड़ाना, मजाक करना 
• क्लेश -             दुख, पीड़ा, संताप 
• तगादा -            तकाज़ा
• पन्हैया -            देशी जूतियाँ
• बिसरना -          भूल जाना
• इशारा -            संकेत करना 
• आग्रह -            निवेदन या विनती करना 
• नेम -                नियम 
• बंद -                फीता 
• बेतरतीब -          अव्यवस्थित 
• बरकाकर -         बचाकर 
• विचित्र -            अजीब 
• न्योछावर -         समर्पित करना, कुर्बान करना | 


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