राखी बनी अनमोल उपहार

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राखी का त्यौहार आने वाला था। मिष्ठी की मम्मी ने सोचा राखी खरीदकर ले आती हूं। भाई के पास पहुंचने में समय लगता था। उनका भाई दूर रहता था। उन्होंने मिष्ठी को एक सुंदर सा फ्रॉक पहनाकर तैयार किया। उसकी पसंद के सैंडल पहना दिए। अपना पर्स उठाया और मिष्ठी को दरवाजे के बाहर खड़े रहने को कहा।

राखी बनी अनमोल उपहार


गोविन्दजी की बेटी का जैसा नाम था भगवान ने उसे सूरत भी वैसी ही दी थी। समस्या बस एक ही थी। तीन साल की मिष्ठी थी बहुत शैतान। गोविन्दजी अपने काम पर चले जाते तो उनकी पत्नी दिन भर मिष्ठी के पीछे पीछे रहती। पता नहीं शैतान कब क्या कर बैठे ? पानी की भरी बाल्टी में खड़ी हो जाए। रसोई के बर्तन गिरा दे। धुले कपड़े बाथरूम में डाल दे या गंदे कपड़े अलमारी में ठूंस दे। उसके सिर पर कब क्या धुन सवार हो जाए कोई नहीं जानता था। घर में जहां तक उसका हाथ जाता था, सामान नहीं रुक सकता था। हर समय उसके साथ पकड़म पकड़ाई  चलती रहती। गोविन्दजी की पत्नी दिन भर उसके बिखेरे सामान को समेटती रहती या उसके पीछे दौड़ लगाती रहती। कहीं जाती तो मिष्ठी को साथ लेकर ही जाती। जरा सी नज़र चूकते ही मिष्ठी उड़नछू हो जाती।

राखी का त्यौहार आने वाला था। मिष्ठी की मम्मी ने सोचा राखी खरीदकर ले आती हूं। भाई के पास पहुंचने में समय लगता था। उनका भाई दूर रहता था। उन्होंने मिष्ठी को एक सुंदर सा फ्रॉक पहनाकर तैयार किया। उसकी
राखी का त्यौहार
राखी का त्यौहार
पसंद के सैंडल पहना दिए। अपना पर्स उठाया और मिष्ठी को दरवाजे के बाहर खड़े रहने को कहा। मिष्ठी घूम घूम कर नाच रही थी। उसे बाहर जो जाना था। मिसेज गोविंद काफी देर तक कोशिश करती रही परन्तु चाबी ताले में नहीं लग रही थी। मिष्ठी का गाना और घूमना चल रहा था। उन्होंने मिष्ठी को थोड़ा डांटा। "मिष्ठी शांत रहो जब तक ताला बंद नहीं होता।" मिष्ठी चुप होकर पीछे हट गई। उन्होंने पर्स से दूसरी चाबी निकाली। प्रयत्न करने पर वह ताले में ठीक बैठ गई। ताला बंद करके उन्होंने पीछे देखा। मिष्ठी नज़र नहीं आई। मेन गेट के बाहर भी कहीं नहीं थी। मिसेज गोविंद के होश उड़ गए। वो तेजी से गली के बाहर मेन रोड की तरफ भागी। वहां छोटे बच्चे खेल रहे थे। उन्होंने बच्चों से पूछा।  एक बच्चे ने बताया कि मिष्ठी उनकी गेंद लेकर भाग गई है। अब तो मिसेज गोविंद काफी परेशान हो गई। उस पल को कोस रही थी जब उस शैतान को चुप होकर पीछे हटने के लिए बोल दिया था।

बच्चे भी उनके साथ चल दिए। सड़क पर सब तरफ नज़र दौड़ाई परन्तु मिष्ठी कहीं नज़र नहीं आई। बच्चों को सड़क के इस पार छोड़कर मिसेज गोविंद सड़क पार करके दूसरी ओर अा गई। रास्ते में जो भी मिलता पूछती जाती। तभी एक बच्चा चाय की केतली और गिलास हाथ में पकड़े आता दिखाई दिया। उनके पूछने पर उसने कहा " एक छोटी बच्ची हाथ में गेंद लेकर भाग रही थी। मुझे लगा सड़क पर उसे चोट लगेगी तो मैंने अपनी दुकान पर बाबा के पास बिठा दिया था। चलिए आपको ले चलता हूं उसके पास।" कहकर वो आगे आगे चल पड़ा।  मिसेज गोविंद उसके पीछे पीछे। उन्होंने दूर से बच्चों को वापस लौट जाने का इशारा किया।

मिष्ठी दुकान में मेज पर बैठकर टॉफी खा रही थी।मिसेज गोविंद ने उसे गोद में उठा लिया। अब जाकर उनकी जान में जान आई।

उन्होंने राखी खरीदी और मिष्ठी को लेकर घर वापस आ गई। अपने भाई को राखी भेजकर उसे फोन पर सूचित कर दिया। गोविन्दजी शाम को घर आए तो उन्हें पूरी घटना बताई। उन्होंने हिदायत दी कि मिष्ठी का ध्यान रखना ज्यादा जरूरी है।

राखी के दिन गोविन्दजी और उनकी पत्नी मिष्ठी को लेकर उस चाय की दुकान पर आए। लड़का उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ। "बैठिए साहब, मैडम आप भी बैठिए अभी मसाले वाली चाय बनाता हूं।"  उसने खुश होकर कहा। " नहीं बेटा चाय पीने नहीं हम किसी और काम से तुम्हारी दुकान पर आए हैं।" गोविन्दजी ने बताया। उसने बाबा को बुलाया। "क्या मिष्ठी आपके बेटे को राखी बांध सकती है ?" मिसेज गोविंद ने विनम्रता पूर्वक पूछा। बच्चा आश्चर्यचकित था। बाबा ने इशारा किया तो उसने अपना हाथ मिष्ठी की ओर बढ़ा दिया। मिसेज गोविंद ने मिष्ठी के हाथ से उसके हाथ पर राखी बंधवा दी। मिष्ठी ने वैसी ही दूसरी राखी अपने हाथ में बंधवा ली। लड़के के बाबा ने हाथ जोड़कर कहा " मेरे बेटे की बहुत अच्छी किस्मत है जो आपने  उसे गुड़िया का भाई माना।" उसने भाई होने का फर्ज निभाया था उस दिन मिष्ठी की रक्षा करके नहीं तो पता नहीं चलती सड़क पर क्या होता।" मिसेज गोविंद ने जवाब दिया। "हां एक और बात अब आपका बेटा स्कूल जाएगा। उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च हम उठाएंगे।" गोविन्दजी ने लड़के की ओर देखते हुए कहा। उसके बाबा की आंखें नम हो गई। बस इतना ही बोल पाए " हमारा सौभाग्य है जो मिष्ठी बिटिया को उस दिन सड़क पर जाने से रोक लिया। भगवान उसे लंबी उम्र दे।" सारी बातों से बेखबर मिष्ठी टॉफी की ज़िद कर रही थी। उसे याद अा गया था कि मेज पर बैठकर उसने टॉफी खाई थी।


- अर्चना त्यागी
व्याख्याता रसायन विज्ञान
एवम् कैरियर परामर्शदाता
जोधपुर ( राज.)

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