Chotti Si Hamari Nadi छोटी सी हमारी नदी

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Chotti Si Hamari Nadi छोटी सी हमारी नदी


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छोटी सी हमारी नदी कविता का अर्थ


1. छोटी-सी हमारी नदी टेढ़ी-मेढ़ी धार,
गर्मियों में घुटने भर भिगो कर जाते पार |
पार जाते ढोर-डंगर, बैलगाड़ी चालू,
ऊँचे हैं किनारे इसके, पाट इसका ढालू |
पेटे में झकाझक बालू कीचड़ का न नाम,
काँस फूले एक पार उजले जैसे घाम |
दिन भर किचपिच-किचपिच करती मैना डार-डार,
रातों को हुआँ-हुआँ कर उठते सियार |

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ  कवि 'रवींद्रनाथ ठाकुर' के द्वारा रचित कविता 'छोटी सी हमारी नदी' से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि हमारी नदी छोटी है और इसकी धार टेढ़ी-मेढ़ी है |  गर्मी के मौसम में इसमें घुटने भर तक पानी होता है | इसे पार करना सबके लिए आसान होता है | फिर चाहे वह आदमी, जानवर या बैलगाड़ी हो | नदी के किनारे ऊँचे हैं और इसके पाट ढालू हैं | पर इसके तल में बालू या कीचड़ कुछ भी नहीं है | काँस के फूल खिलने पर धूप जैसे चमकदार उजला दिखते हैं | इसकी डालियों पर मैना दिनभर किचपिच-किचपिच करती रहती है और रात्रि के वक़्त सियार हुआँ-हुआँ करता रहता है | 

2. अमराई दूजे किनारे और ताड़-वन,
Chotti Si Hamari Nadi
Chotti Si Hamari Nadi
छाँहों-छाँहों बाम्हन टोला बसा है सघन | 
कच्चे-बच्चे धार-कछारों पर उछल नहा लें,
गमछों-गमछों पानी भर-भर अंग-अंग पर ढालें | 
कभी-कभी वे साँझ-सकारे निबटा कर नहाना
छोटी-छोटी मछली मारें आँचल का कर छाना | 
बहुएँ लोटे-थाल माँजती रगड़-रगड़ कर रेती,
कपड़े धोतीं, घर के कामों के लिए चल देतीं | 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ  कवि 'रवींद्रनाथ ठाकुर' के द्वारा रचित कविता 'छोटी सी हमारी नदी' से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि दूसरे किनारे पर आम और ताड़ के पेड़ लगे हुए हैं | पेड़ों की छाँहों में ब्राह्मण टोला बसा है | उनके छोटे  बच्चे किनारों पर उछल-उछल कर नहाते हैं | वे गमछों में पानी भरकर अपने बदन पर डालते हैं | 

कभी-कभी वे नहाने के पश्चात् नदी में मछलियाँ पकड़ते हैं | उनके घर की औरतें नदी से बालू लेकर लोटा-थाली माँजती हैं, कपड़े धोती हैं और उसके बाद दूसरे काम करने के लिए घर को चल देती हैं | 

3. जैसे ही आषाढ़ बरसता, भर नदिया उतराती,
मतवाली-सी छूटी चलती तेज़ धार दन्नाती |
वेग और कलकल के मारे उठता है कोलाहल,
गँदले जल में घिरनी-भंवरी भंवराती है चंचल |
दोनों पारों के वन-वन में मच जाता है रोला,
वर्षा के उत्सव में सारा जग उठता है टोला |

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ  कवि 'रवींद्रनाथ ठाकुर' के द्वारा रचित कविता 'छोटी सी हमारी नदी' से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि जैसे ही आषाढ़ के महीने में जब वर्षा होती है, तब नदी पानी से भर जाती है | इसकी धार बहुत तेज हो जाती है | इसकी तेज चाल से कलकल की आवाज़ आती है, जिसके कारण चारों तरफ़ शोर मच जाता है | जब पानी गंदा हो जाता है, तब गंदे पानी में इसकी घिरनी भंवरी की तरह चलती है | नदी के दोनों तरफ़ के वनों में खूब कोलाहल मच जाता है | टोला के लोगों में ख़ुशियों की लहर दौड़ जाती है | लोग वर्षा के उत्सव में सराबोर हो जाते हैं | 


छोटी सी हमारी नदी कविता का सारांश summary 

छोटी सी हमारी नदी पाठ या कविता में कवि 'रवींद्रनाथ ठाकुर' ने एक नदी और उससे सम्बन्धित गतिविधियों को बेहद ख़ूबसूरत ढंग से चित्रित किया है | वे कविता में नदी का चित्रण करते हुए कहते हैं कि हमारी एक छोटी सी नदी है | उसके धार टेढ़ी-मेढ़ी है | गर्मी के मौसम में इसमें कम पानी होता है | इसलिए उसे पार करना आसान होता है | पानी बस घुटने तक ही होता है | बैलगाड़ी इसमें आराम से पार हो जाता है | 

कवि के अनुसार, इस नदी के किनारे ऊँचे हैं और पाट ढालू है | इसके तल में बालू कीचड़ भी नहीं है | इसके दूसरे किनारे पर ताड़ के वन हैं, जिसकी छाँहों में ब्राह्मण टोला बसा है | टोला के लोग नदी में नहाते हैं | कभी समय मिला तो मछली भी मारते हैं | उस टोला की स्त्रियाँ बालू से बर्तन साफ करती हैं, कपड़े धोती हैं और उसके बाद घर चली जाती हैं | 

छोटी सी हमारी नदी कविता के मुताबिक, जैसे ही आषाढ़ का महीना आता है, खूब पानी बरसने लगता है | नदी पानी से लबालब हो जाती है | तब इसकी धार बहुत तेज हो जाती है | इसकी कलकल की आवाज़ से चारों तरफ़ कोलाहल मचने लगता है | टोला के लोगों में ख़ुशियों की लहर दौड़ जाती है | लोग वर्षा के उत्सव में सराबोर हो जाते हैं...|| 


छोटी सी हमारी नदी कविता का उद्देश्य 

छोटी सी हमारी नदी कविता में रवींद्रनाथ ठाकुर जी ने बताया है कि नदियों को साफ रखना अर्थात् उसे किसी भी प्रकार के प्रदूषण से बचाना हम सबका कर्तव्य है | उनमें रहने वाले जीव-जन्तुओं की रक्षा करना, पर्यावरण को सुन्दर बनाने जैसा है | 



छोटी सी हमारी नदी के प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1 तुम्हारी परिचित नदी के किनारे क्या-क्या होता है | 

उत्तर-  (नोट :-  विद्यार्थियों का अपना व्यक्तिगत उत्तर हो सकता है |)

हमारी परिचित नदी के किनारे लोग विभिन्न प्रकार के कामों में व्यस्त नज़र आते हैं | जैसे -- कोई नहाता है, कोई कपड़ा धो रहा होता है, कोई मछलियाँ पकड़ रहा होता है, या कई लोग पूजा-पाठ कर रहे होते हैं इत्यादि | 

(बाकी प्रश्नों का जवाब छात्र स्वयं दें, क्योंकि सबकी पृष्ठभूमि और राय पृथक-पृथक हो सकता है |) 



छोटी सी हमारी नदी कविता का शब्दार्थ 


• अमराई -                 आम का बाग 
• ढोर-डंगर -               जानवर, मवेशी 
• घाम -                        धूप
• डार-डार -                डाल-डाल 
• किचपिच-किचपिच -  मैना की आवाज़
• दूजे -                       दूसरा 
• छाँहों -                     छाया में
• सघन -                     घना
• साँझ -                     शाम, संध्या 
• सकारे -                   सवेरे 
• रेती -                       बालू 
• गमछा -                   पतला तौलिया
• आषाढ़ -                  बरसात का एक महीना
• दन्नाती -                   तेजी से
• कोलाहल -               शोरगुल 
• गैंदले -                    गंदा
• जग -                      संसार, जगत 


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