तूफान से पहले

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तूफान से पहले उपेन्द्रनाथ अश्क तूफान से पहले उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित तूफ़ान से पहले शीर्षक एकांकी एक बहुतचर्चित एकांकी है .यहाँ एकांकीकार ने साम्प्रदायिक सद्भावना ,सहयोग तथा प्रेम के महत्व का विश्लेषण किया है .

तूफान से पहले उपेन्द्रनाथ अश्क


तूफान से पहले उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित तूफ़ान से पहले शीर्षक एकांकी एक बहुतचर्चित एकांकी है .यहाँ एकांकीकार ने साम्प्रदायिक सद्भावना ,सहयोग तथा प्रेम के महत्व का विश्लेषण किया है .वे साम्प्रदायिक घटना और दंगा को खुरापाती और आवारागर्दी प्रवृत्ति के कुछ लोगों के दिमागी खुराफात का परिणाम मानते हैं . 

तूफ़ान से पहले एकांकी की कथावस्तु /सारांश - 

तूफ़ान से पहले एकांकी नाटक की कथावस्तु सन १९४६ ई. के आसपास के साम्प्रदायिक दंगों से सम्बन्धित है
सांप्रदायिक दंगे
सांप्रदायिक दंगे
.इसका आरम्भ बम्बई शहर की एक बस्ती से होता है .इस बस्ती में घीसू नामक एक व्यक्ति अपने परिवार के साथ रहता है जो सिलाई और पान की दूकान से अपनी जीविका चलाता है .इस बस्ती में दूध के तबेलों में काम करने वाले भैया लोग भी हैं .इस बस्ती के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति गिरधारी लाल हैं .

इस बस्ती में पहले हिन्दुओं और मुसलामानों में परस्पर प्रेमभाव था .परन्तु अब परिश्तितियाँ बदल गयी हैं .दोनों सम्प्रदाय वाले अब एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं .घीसू के मशीन की सुई टूट गयी हैं ,लेकिन दंगे के डर के कारण वह बाहर बाज़ार में नहीं जा पा रहा था .दूसरी बस्ती में मुसलामानों ने हिन्दू भैय्यों को मार डाला है .इससे इस बस्ती में भी दंगे की आग फ़ैल गयी है .हिन्दुओं के घरों में फहराते हुए झंडों को देखकर मुसलमान आग बबूला हो जाते हैं .हयातुल्लाह कहता है - हिन्दू झंडा लगाकर हमें चिड़ाते हैं .मैं भी मोमिन का बीटा नहीं जो दरगाह पर काला झंडा न लगाऊं .: हिन्दू कहते हैं - यदि एक हिन्दू को छुरा लगा तो दस मुसलामानों को छुरे भोंकें जायेंगे .घीसू इन तर्कों को बेकार मानता है .वह कहता है - मुसलमान बच्चे की हत्या क्या हिन्दू बच्चे की हत्या नहीं है ? परन्तु कोई किसी की बात नहीं सुनता है .सभी अंधे और पागल हो रहे थे .

बस्ती के लोग गिरधारी दादा के आदेश की प्रतीक्षा  कर रहे हैं .देखते ही देखते आग सारे बस्ती में फ़ैल जाती है .हिन्दू भैयों ने मुसलामानों को मारना काटना शुरू कर दिया .नियाज मियाँ भागकर घीसू की झोपड़ी में शरण लेना चाहते हैं .उनके साथ उनका बच्चा बख्सू भी है .घीसू के दरवाजे पर भीड़ एकत्रित हो जाती है .वह नियाज मियाँ और भीड़ के बीच में पड़ जाता है .उग्र भीड़ नियाज मियाँ के साथ घीसू को भी मार डालती है .मरने के पूर्व घीसू अपनी पत्नी मुलिया को बख्सू को सौंपते हुए कहता है कि अपने बच्चों की तरह इसका पालन पोषण करना और वह पति की अंतिम इच्छा को पालन करने का संकल्प लेती है . 

तूफान से पहले  शीर्षक की सार्थकता - 

इस एकांकी का शीर्षक तूफान से पहले एक सार्थक ,सटीक और सफल शीर्षक है .एकांकी की मुख्य घटना और एकांकी के मुख्य पात्र का शीर्षक के साथ गहरा सम्बन्ध और लगाव है .इस एकांकी का शीर्षक कौतुहलपूर्ण है क्योंकि यह पाठकों और दर्शकों के मन में कौतूहल और जिज्ञासा की वृद्धि उत्पन्न करता है .पाठक शीर्षक देखते ही यह जानने और देखने के लिए उत्सुक हो रहता है कि तूफ़ान से पहले क्या हुआ और कौन की घटना घटी .यहाँ तूफ़ान शब्द दंगे की घटना से जुड़ी घटना और घीसू के मौत की घटना से जुड़ा शब्द है .एकांकीकार द्वारा इस शीर्षक के माध्यम से एकांकी में संकेतित घटना की तीव्रता तथा गंभीरता पर सबका ध्यान केन्द्रित किया गया है . 

तूफान से पहले एकांकी का उद्देश्य - 

तूफान से पहले एकांकी उपेन्द्रनाथ अश्क जी द्वारा लिखी गयी एक महत्वपूर्ण एकांकी है .आपने इस एकांकी में भारत में फैले साम्प्रदायिक दंगों का चित्रण किया है .हिन्दू और मुसलमान दोनों ही वर्ग छोटी छोटी बातों में एक दूसरे के जानी दुश्मन हो जाते हैं .नेताओं द्वारा विष वमन के द्वारा दोनों ही संप्रदाय भड़क जाते हैं ,भले ही वह सिर्फ झंडे लगाने जैसा छोटा ही काम हो .अगर हम घीसू के चरित्र से सीख लें ,तो ऐसे दंगों से बच सकते हैं .आज के समय में घीसू जैसा चरित्र प्रासंगिक है ,जब चारों ओर से साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिस की जा रही है .


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