सूखी डाली Sukhi Dali

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सूखी डाली Sukhi Dali सूखी डाली का सारांश - सूखी डाली ,उपेन्द्रनाथ अश्क जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध एकांकी है . सूखी डाली एकांकी में आपने संयुक्त परिवार प्रणाली का चित्रण किया है .

सूखी डाली Sukhi Dali

सूखी डाली ,उपेन्द्रनाथ अश्क जी द्वारा लिखित प्रसिद्ध एकांकी है । सूखी डाली एकांकी में आपने संयुक्त परिवार प्रणाली का चित्रण किया है .सूखी डाली एकांकी नाटक में उपेन्द्र नाथ अश्क ने पारिवारिक जीवन के महत्व को दर्शाया है। नाटक में दादाजी का चरित्र एक आदर्श मुखिया का है जो अपने परिवार को एक साथ रखने का प्रयास करते हैं।

इंदू का चरित्र एक ऐसी महिला का है जो अपने पति और परिवार के बीच फंसी हुई है। नाटक में मोहन का चरित्र एक ईर्ष्यालु और नकारात्मक व्यक्ति का है जो परिवार में कलह पैदा करता है।

"सूखी डाली" एकांकी नाटक एक मार्मिक कहानी है जो हमें परिवार के महत्व और रिश्तों की मजबूती के बारे में सोचने पर मजबूर करती है।

सूखी डाली एकांकी का सारांश 

'सूखी डाली' हिन्दी के सुप्रसिद्ध एकांकीकार उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा रचित एक सामाजिक एकांकी है जिसमें यह बताया गया है कि संयुक्त परिवार को बनाए रखने के लिए घर के मुखिया को समझदारी से काम लेना पड़ता है। यद्यपि इस एकांकी में एक परिवार की कथा है किन्तु इस संयुक्त परिवार के माध्यम से अश्क जी ने देश की अखण्डता का संदेश प्रतीकात्मक शैली में दिया है।
 
दादा मूलराज का परिवार बहुत बड़ा है पर वे समस्त परिवार को एक इकाई के रूप में उसी प्रकार बाँधे हुए हैं जैसे आँगन में खड़ा यह 'वट वृक्ष' अपनी लम्बी-लम्बी डालियों और घने पत्तों से छाते की भाँति धरती को आच्छादित किए हुए है। वे 72 वर्ष के बुजुर्ग हैं। सन् 1914 में उनका बड़ा बेटा प्रथम विश्व युद्ध में सरकार की ओर से लड़ते हुए शहीद हुआ था। अतः सरकार की ओर से दादा मूलराज को एक मुरब्बा जमीन दी गई थी। अपने साहस, परिश्रम एवं दूरदर्शिता से उन्होंने एक मुरब्बे से दस मुरब्बे जमीन कर ली। यही नहीं अपितु उन्होंने डेयरी फार्म एवं चीनी कारखाना भी खोला हुआ है जिसे उनके बेटे और पोते संभालते हैं। उनका सबसे छोटा पोता परेश अभी-अभी नायब तहसीलदार होकर इसी कस्बे में नियुक्त हुआ है जिससे उनके परिवार का सम्मान बढ़ा है। उसका विवाह लाहौर के प्रतिष्ठित कुल की सुशिक्षित ग्रेजुएट कन्या बेला से हुआ है।
 
दादा मूलराज के दो बेटे और तीन बहुएँ हैं। बहुओं को बड़ी भाभी, मँझली भाभी एवं छोटी भाभी कहा जाता है। परिवार में तीन पौत्र वधुएँ हैं जिन्हें क्रमश: बड़ी बहू, मँझली बहू और छोटी बहू कहा गया है। छोटी बहू का नाम बेला है, वह परेश की पत्नी है । । इन्दु बेला की ननद है। एकांकी में नाम न देकर छोटी, मँझली, बड़ी का सहारा लिया गया है । 

बेला पढ़ी लिखी सुशिक्षित बहू है। उसे इस परिवार में आए अधिक दिन नहीं हुए यह अच्छा नहीं लगता कि उसकी भाभी हर बात में अपने मायके का बखान करे । इन्दु को बेला ने जब नौकरानी रजवा को बुरा भला कहा तो इन्दु ने ताना मारा कि नौकर से भी काम लेने की तमीज होनी चाहिए। बेला को यह बात बुरी लगी। इन्दु ने अपनी माँ से भी अपनी भाभी की बुराई की।
 
एकांकी के दूसरे दृश्य में कर्मचन्द दादा मूलराज से कहते हैं कि अब हमारा परिवार एक नहीं रह पाएगा क्योंकि परेश की बहू को साथ रहने में कष्ट है। दादा जी ने बात समझ ली और कहा कि यदि हल्की-सी खरोंच पर दवाई न लगाई जाए तो वह घाव बन जाती है। फिर वह मरहम से भी ठीक नहीं होता। यदि कोई शिकायत थी तो उसे मिटा देना चाहिए था ।

दादाजी ने घर के सभी सदस्यों को बुलाया और कहा कि बेला का मन यहाँ नहीं लग रहा तो उसके दोषी हम सब हैं। वह पढ़ी-लिखी है, हमें चाहिए कि उसकी योग्यता का लाभ उठावें । उसे वही आदर-सत्कार मिले जो उसे अपने घर में प्राप्त था। सब लोग उसका कहना मानें। उसका काम तुम लोग बाँट लो, उसे पढ़ने का अवसर दो। उसे अनुभव ही न हो कि वह दूसरे वातावरण में आई है।
 
परिवार के सभी लोगों ने दादाजी की बात मानकर बेला को आदर देना प्रारम्भ कर दिया, उसे कोई भी काम नहीं करने देता। यह स्थिति भी बेला के लिए असह्य हो गयी। इन्दु ने भी अपनी भाभी बेला को यह बताया कि ऐसा दादा जी की आज्ञा से हो रहा है। बेला ने इन्दु से कहा उसे भाभी जी न कहकर केवल भाभी कहा करे और दादा जी से कहा कि आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते पर क्या आप यह चाहेंगे कि डाली पेड़ से लगी-लगी सूख जाए। मुझे मान-सम्मान, आदर नहीं चाहिए बस बराबरी का बर्ताव चाहिए। कोई पराएपन का व्यवहार न करे तभी मैं इस घर में रच-बस पाऊँगी।
 
समस्या दूर हो चुकी थी। परिवार ने बेला को भली-भांति एक नए सदस्य के रूप में अपना लिया था और वह भी इस वट वृक्ष की एक शाखा बन गई थी। 

सूखी डाली एकांकी की समीक्षा

एकांकी 'सूखी डाली' में संयुक्त परिवार की विशेषताओं को दर्शाया गया है। एकांकीकार ने यह स्पष्ट किया है कि संयुक्त परिवार तभी चल सकता है जब इसके मुखिया के निर्णय विवेकपूर्ण होते हैं। इस एकांकी का कथानक रोचक एवं उद्देश्यपूर्ण है। बेला परिवार की सबसे छोटी बहू है। वह संयुक्त परिवार में सामंजस्य नहीं बैठा पा रही है। परिवार के सदस्यों और उसके मध्य खिंचाव है। बेला का पति परेश दादा जी से इस खिंचाव की बात करता है। वह दादाजी को अपनी परेशानी भी बताता है। दादा मूलराज परिवार के सभी सदस्यों को बेला का सम्मान करने की बात कहते हैं। दादा जी द्वारा समझाने पर सभी लोग बेला को अतिरिक्त सम्मान देने लगते हैं। बेला परिवार के लोगों के इस बदले व्यवहार से आश्चर्य में पड़ जाती है। वह अपने को अलग-थलग महसूस करती है। वह दादा मूलराज से कहती है कि वट वृक्ष की सूखी डाली बनी रहना नहीं चाहती है। वह अपने विचारों के लिए दादाजी से क्षमा माँगती है और दादाजी का संयुक्त परिवार टूटने से बच जाता है। एकांकी सार्थक कथानक से युक्त है ।
 
प्रस्तुत एकांकी में पात्रों की संख्या अधिक है किन्तु प्रमुख पात्र सीमित हैं। दादा मूलराज, परेश, कर्मचंद, बड़ी भाभी, मँझली भाभी, छोटी भाभी, बड़ी बहू, मँझली बहू, छोटी बहू, इन्दु, रजवा, भाषी, जगदीश, मल्लू इसके पात्र हैं। चरित्र-चित्रण भलीभाँति हुआ है। दादा मूलराज परिवार के मुखिया हैं। वह विवेकशील एवं परिवार को एकजुट रखने वाले हैं। बेला परिवार की सबसे छोटी बहू है वह प्रारम्भ में परिवार के साथ तालमेल नहीं रख पाती है। बाद में उसे अपनी भूल का अनुभव होता है। परेश एक समझदार, संकोची व्यक्ति है। वह इतना सभ्य है कि न तो अपने परिवार से कुछ कहता है और न ही वह बेला से ही कुछ कह पाता है । इन्दु परिवार की छोटी बेटी है वह अपनी छोटी भाभी से खुश नहीं रहती है। दादा जी के समझाने पर वह समझ जाती है। बेला की सास, छोटी भाभी समझदार महिला हैं। पात्रों का चरित्र-चित्रण एकांकी में सफलतापूर्वक हुआ है। 
 
एकांकी के संवाद संक्षिप्त, रोचक एवं कथानक को आगे बढ़ाने वाले हैं। सूखी डाली एकांकी में अभिनेयता के तत्त्व विद्यमान हैं। इस एकांकी का मंचन कुशलतापूर्वक किया जा सकता है। एकांकी का उद्देश्य संयुक्त परिवार के महत्व को रेखांकित करने के साथ-साथ संयुक्त परिवार में आने वाली समस्याओं की ओर संकेत करना भी है। एकांकी का शीर्षक प्रतीकात्मक होने के साथ-साथ पूर्णतः सार्थक है। एकांकी में संयुक्त परिवार के परिवेश को जीवंत किया गया है। भाषा की दृष्टि से भी एकांकी 'सूखी डाली' पूर्णतः सफल एकांकी है। इसमें पात्रों की मनोदशाओं एवं परिस्थितियों के अनुकूल भाषा का प्रयोग हुआ है। एकांकी की भाषा सरल एवं प्रवाहपूर्ण है।

एकांकी कला के तत्वों के आधार पर एकांकी पूर्णतः सफल एकांकी है। 

सूखी डाली एकांकी का उद्देश्य 

सूखी डाली सुप्रसिद्ध एकांकीकार उपेन्द्रनाथ अश्क जी द्वारा लिखी एक पारिवारिक पृष्ठभूमि भूमि पर आधारित प्रसिद्ध एकांकी है . इस एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने संयुक्त परिवार की समस्याओं पर प्रकाश डाला है . दादा मूलराज के संयुक्त परिवार में छोटी बहु बेला के आ जाने से एक हलचल मच जाती है .छोटी बहु अपने आधुनिक एवं नव्वें विचारों के साथ परिवार में नयी व्यवस्था प्रस्तुत करती है . वह पूरी तरह से अपने मायके से प्रभावित है . बेला के लिया नए मुहल में सामंजस्य बैठना कठिन हो रहा है . अतः यही पर परिवार में झगड़ा शुरू होता है . दादा जी यह किसी भी हालत में नहीं होने देना चाहते हैं .वह नहीं चाहते है कि घर का कोई भी हालत में नहीं होने देना चाहते . वह नहीं चाहते है कि घर का कोई भी सदस्य अलग होकर रहे .अतः दादा जी घर के सभी सदस्यों को समझाते हैं की वह बेला का आदर -सम्मान करे .

प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट है। अश्क जी संयुक्त परिवार प्रथा के समर्थक हैं और परिवार की तुलना एक विशाल वट वृक्ष से करते हैं जिसकी प्रत्येक डाली उसे मजबूती प्रदान करती है। आवश्यकता इस बात की है कि कोई डाली उस वृक्ष से टूटने न पाए और न उससे लगी-लगी सूख ही जाए। दादा मूलराज की तुलना इस वट वृक्ष से की गई है। वे अत्यन्त बुद्धिमानी से अपने परिवार को एकता के सूत्र में बाँधे हुए हैं और जब बेला जैसी पढ़ी-लिखी बहू के घर आने में विघटन की भूमिका बनती है तो वे कारण को खोजकर तुरन्त उसका समाधान करते हैं। एकांकीकार ने कुटुम्ब की एकता के माध्यम से समाज और देश की एकता एवं अखण्डता को बनाए रखने का संदेश भी दिया है। एकांकी उद्देश्य की दृष्टि से सार्थक है। 

प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से एकांकीकार ने यह दिखाना चाह है कि आपसी समझदारी तथा सहनशीलता से बड़ी -बड़ी समस्याओं का सामना किया जा सकता है .दादा जी की परिपक्व बुद्धि के परिणामस्वरूप एक घर के कार्य में सहयोग न देने वाली स्त्री भी सहयोग देने लगती है .यहाँ गांधी जी के दर्शन का प्रभाव लेखक पर दिखाई देता है कि कठोरता पर कोमलता से विजय प्राप्त की जा सकती है और लेखक अपने उद्देश्य में सफल हुआ है . 


सूखी डाली शीर्षक की सार्थकता 

सूखी डाली सुप्रसिद्ध एकांकीकार उपेन्द्रनाथ अश्क जी द्वारा लिखी एक पारिवारिक पृष्ठभूमि भूमि पर आधारित प्रसिद्ध एकांकी है .परिवार में सभी लोग मिल -जुल कर रह रहे हैं . परिवार में नए सदस्य के आ जाने के कारण से परिवार में हलचल मच जाती है . परिवार के मुखिया दादा जी ने परिवार को एकसूत्र में बाँध रखा है .'सूखी डाली' शीर्षक इस कसौटी पर खरा उतरता है। यह संक्षिप्त है तथा कथानक से पूरी तरह जुड़ा हुआ भी है। इसे पढ़कर उत्सुकता भी होती है कि कौन-सी डाली सूख गयी और क्यों ? एकांकी को पढ़ने पर पता चलता है कि परिवार की तुलना एक वट वृक्ष से की गई है तथा परिवार के सदस्य ही इस विशाल वट वृक्ष की डालियाँ हैं। 

दादा मूलराज संयुक्त परिवार के समर्थक हैं। वे परिवार की एकता को बनाए रखना चाहते हैं क्योंकि इसी से परिवार को शक्ति मिलती है। जैसे वट वृक्ष की शाखाएँ (डालियाँ) उसे मजबूती देती हैं, वैसे ही परिवार में एक साथ रहने वाले सदस्य परिवार को मजबूती प्रदान करते हैं। प्रत्येक डाली हरी-भरी रहे तथा कोई भी डाली इससे टूटकर अलग न हो जाए ऐसा प्रयत्न दादा मूलराज का है। जब उनके पोते परेश की बहू बेला परिवार में असहज महसूस करती है तो वे अपनी बुद्धिमत्ता से उसकी शिकायतें दूर कर देते हैं और इस डाली को परिवार रूपी वट वृक्ष से अलग नहीं होने देते किन्तु परिवार के लोग जिस प्रकार बेला के साथ घुल-मिल नहीं पाते उससे बेला को दुःख होता है और तब वह दादा जी से कहती है कि दादा जी आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते, पर क्या आप यह चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाल सूखकर मुरझा जाए। बेला की यह बात सूखी डाली प्रतीकात्मक शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करती है। यह शीर्षक सर्वथा उपयुक्त है। 

सूखी डाली एकांकी के पात्रों का चरित्र चित्रण

सूखी डाली एक उत्कृष्ट एकांकी नाटक है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा। यह नाटक आपको परिवार के महत्व, रिश्तों की मजबूती और जीवन में समझौता करने के महत्व का एहसास दिलाएगा। एकांकी के प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है - 

दादा मूलराज का चरित्र चित्रण 

दादा मूलराज सूखी डाली एकांकी के प्रमुख पात्र है . दादा मूलराज ७२ वर्ष के एक प्रभावशाली वृद्ध है . वह अपने संयुक्त परिवार के मुखिया हैं . वृद्ध होने पर भी वह एक मज़बूत कद -काठी के स्वस्थ व्यक्ति है . उनकी सफ़ेद दाढ़ी वट वृक्ष की लम्बी जटाओं के समान मानो धरती को छूना चाहती है . उन्होंने अपने छोटे पोते को पढ़ाया ,उसे तहसीलदार बनाया ,और एक प्रतिष्ठित और संपन्न परिवार की लड़की के साथ उसका विवाह कर दिया . उन्हें जैसे ही पता चला की उनके घर का एक सदस्य अलग होने की सोच रहा है ,वे तत्काल उस विषय पर घर के लोगों से बात करते हैं .वे छोटी बहू की आलोचना बंद करवाने की बात करते हैं . छोटी बहु बी यह सम्मान पाकर धान्य हो जाती है . वह सबसे मिलकर रहना चाहती है .दादा के प्रयास से ही उनका परिवार बिखरने से बच जाता है .वे सबके लिए प्रेरणादायक है .परिवार के सभी सदस्य दादाजी की इज्जत करते हैं तथा उनकी आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर रहते हैं। उन्होंने अपने परिवार को अच्छे संस्कार दिए हैं। वे संयुक्त परिवार प्रथा के समर्थक हैं और इस तथ्य से भली-भाँति अवगत हैं कि परिवार के सदस्य  ही परिवार की ताकत हैं। वे बच्चों को यही सिखाते हैं कि एकता में ही शक्ति है। इसी से परिवार, समाज और राष्ट्र को शक्ति मिलती है। दादा मूलराज एकांकी के केन्द्रबिन्दु हैं। उन्हीं को केन्द्र में रखकर एकांकी का विकास हुआ है। 

सूखी डाली एकांकी में बेला का चरित्र चित्रण

बेला परिवार की सबसे छोटी बहू है तथा परेश की पत्नी है। बेला एक सुशिक्षित, समझदार तथा योग्य बहू है। वह सुरुचि सम्पन्न है, मायके का दर्द उसे अवश्य है किन्तु उसे अहंकार नहीं है। वह परिवार के सभी सदस्यों की इज्जत करती है। अपनी ननद इन्दु से वह स्नेह करती है तथा बड़ों की आज्ञा का पालन करती है। दूसरे घर से आई युवती को नए परिवार में आकर सामंजस्य बिठाने में कुछ समय तो लगता ही है, इसलिए बेला को कोई दोष देना उचित नहीं है। समग्रतः बेला अपने व्यक्तित्व से सभी को प्रभावित करती है। 


सूखी डाली एकांकी के प्रश्न उत्तर


अवतरणों पर आधारित प्रश्नोत्तर
१. काम लेने का ढंग उसे आता है ,जिसे काम की परख हो। "

क.  उपयुक्त वाक्य किसने किससे कहें हैं ? सन्दर्भ सहित लिखिए ?

उ. इन पंक्तियों  में उपयुक्त वाक्य बेला ने इंदु को कहा।जब नौकरानी सही ढंग से बेला के घर की साफ़ सफाई अच्छे ढंग से नहीं कर पाती जो रजवा फूहड़ कहते हुए बेला बोलती हैं और अपने मायके की प्रशंशा करती हैं।

ख.  वक्ता कौन है ? श्रोता पर इस कथन की क्या प्रतिक्रिया हुई ?

उ. वक्ता बेला है।  श्रोता यह कथन सुनकर क्रोधित हो उठती है।वह कहती है कि उसके मायके में खाना कपड़ा, नौकर सभी अच्छे बाकी यहाँ की साड़ी चीज़ें  ख़राब ही कहती रहती हैं।

ग. इससे वक्ता के किस स्वभाव का पता चलता है ? वक्ता के बारे में कुछ बातें  लिखिए ?

उ. इससे वक्ता का अहंकारी स्वभाव का पता चलता है।वह तुनकमिजाज है ,उसे कोई भी बात बोल देता तो वह तुरंत जबाब देती है ,उसमें बचपना है क्योंकि वह मायके में बड़े लाड़ प्यार से पली बढ़ी है।  वह एक भावुक स्त्री भी है और उसे अपनी गलती स्वीकारना आता है।

२. "इस फर्नीचर पर हमारे दादा बैठते थे ,पिता बैठते थे, चाहा बैठते हैं।  उन लोगों को कभी शर्म नहीं आई। "

क. उपयुक्त वाक्य का प्रसंग लिखिए। यह किस परिस्थिति में कहा गया है ?

उ . उपयुक्त वाक्य परेश से जब बेला ने घर के पुराने फर्नीचर उठाकर फैंकने लगी उस समय परेश ने यह प्रसंग कहा कि इस पर हमारे दादा जी , पिता जी सभी लोग बैठते थे किसी ने इन फर्नीचर की अवहेलना नहीं की परन्तु बेला ने पुस्तों से चले आ रहे चीजों को निकाल फेंकती हैं।

ख.  प्रस्तुत कथन कौन किससे कह रहा है ?

उ. प्रस्तुत कथन परेश बेला से कह रहा है।

ग. उन लोगों को कभी शर्म नहीं आयी ,यह क्यों कहा गया है ? इसका क्या आशय है ?

उ.उन लोगों को कभी शर्म नहीं आई यह वाक्य परेश ने बेला से कहा ,जब बेला घर के सारे फर्नीचरों को बाहर फेंक रही थी औइर वह यह सब कह रही थी यह टूटे फूटे फर्नीचर उसके कमरे ने नहीं रहेंगे ,यह सादे गले फर्नीचर वह अपने कमरे में नहीं रखेगी।

घ.  वक्ता का परिचय दीजिये ?

उ. परेश एक नायब तहसीलदार है ।वह दादा मूलराज सबसे बड़ा पोता है और बेला का पति है ।  इसके शादी एक अच्छे घर की लड़की से हुआ था।  वह सरल और सुखी स्वभाव का व्यक्ति है ।



विडियो के रूप में देखें :-




COMMENTS

Leave a Reply: 15
  1. क्या आप मोहन राकेश लेखक द्वारा लिखा 'शायद' एकांकी से संबंधित study material provide करा सकते है? Exam preparation के लिए बहुत जरूरी है.....

    जवाब देंहटाएं
  2. कृपया,मुझे सूखी डाली का पाठ पीडीएफ भेज सकते हैं ,👍

    जवाब देंहटाएं
  3. full lesson ke questions ke answers bhej sakte hai please

    जवाब देंहटाएं
  4. बेनामीजून 17, 2024 7:14 pm

    can u give me characterization of every character ?

    जवाब देंहटाएं
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