मौन का अनुवाद हाइकु संग्रह

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मौन का अनुवाद – पुष्पा सिंघी अनेक सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों का बखूबी दायित्व निभाते हुए अपनी रूचि के अनुरूप कई पुस्तकों का प्रकाशित कर हिंदी साहित्य जगत में स्थापित लेखिका – पुष्प सिंघी का प्रथम हाइकु संग्रह – मौन का अनुवाद मुझे पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |

मौन का अनुवाद  – पुष्पा सिंघी 


अनेक सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों का बखूबी दायित्व निभाते हुए अपनी रूचि के अनुरूप कई पुस्तकों का प्रकाशित कर हिंदी साहित्य जगत में स्थापित लेखिका – पुष्प सिंघी का प्रथम हाइकु संग्रह – मौन का अनुवाद मुझे पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | यहाँ यह कहना उचित ही होगा कि आपकी इतनी ब्यस्तताओं के बावजूद आपके हाइकु में मौन पसरा बैठा है , जो पाठकों के समक्ष अपनी गठरी खोल बाँचने लगते हैं | हाइकु अब अपने क्षितिज के विस्तृत गगन में कुलांचे भरते हुए अपने होने का अर्थ सीखा रहा है ; जापान की जेन परंपरा से इसका उद्भव हुआ जो अब हिंदी की थाती बन चुका है | इसकी भूमिका वरिष्ठ हाइकुकार डॉक्टर मिथिलेश दीक्षित जी ने बड़ी संजीदगी से लिखी है | इस संग्रह के केन्द्रीय भाव में आध्यात्म के दर्शन होते हैं –
# बड़े घनेरे /लहरों के थपेड़े / मनवा मेरे || 
                   सुख व दुःख / करते हैं बसेरा / जीवन गाँव ||
      भेड़ों का झुण्ड / गड़ेरिया हाँकता / बच्चे उद्दंड ||
वास्तव में सृजन ,मौन की गहरी अवस्था है और हाइकु भी मौन से मौन तक की एक निर्बाध यात्रा पर सदैव रहता है | इसके कई पड़ाव हैं , जिंदगी की सभी पहलुओं पर आपकी संवेदना के शब्द सजीव बन पड़े हैं |अनेक सम्मानों से सुशोभित आपके मन का मौन कचोटता है; वर्तमानी रिश्तों की दुनिया से और बिखरते संबंधों की बानगी लिए ये हाइकु बैठे निहार रहे हैं – 
# अखबार में / जली – कटी ख़बरें / मन झुलसे ||
                    बालक मन / रिवाजों की जंजीर / उम्र हवन ||
       हाट में बैठे / नमक के ब्यापारी / ज़ख्म छिपा लें ||
बिखरते रिश्तों को बचाने का गुहार लगाती , सन्देश पट्टिका लिए खड़ी इन हाइकु बालाओं का सोंदर्य देखते ही बनता है – 
# संदेह नाग / बिल में फूंफकारे / विषैले रिश्ते || 
                     भोली पतंगे / बेमतलब लड़ीं / तमाशा बनीं ||
         पाकशाला में / जलने की दुर्गन्ध / बहू ना रही ||
                    भौंकते रहे / जच्चा घर के पीछे / बेदम कली ||
भोर – साँझ , मौसम की चुहल , प्रकृति परी को करीब से देखने – समझने की अनुभूतियों का हमें भी आपके हाइकु के माध्यम से मिलने का मौका मिल रहा है –
# अलाव जले / यादों की ठिठुरन / कहाँ मिटती ? 
                    क्रोधित मेघ / फूस की झोंपड़ी से / झाँके कृषक || 
        प्रसन्न इंद्र / खेले गली के बच्चे / बर्फ के कंचे || 
                   अम्मा ने बुना / सतरंगा स्वेटर / जाड़े को धुना ||
किसी साहित्य में यदि श्रृंगार का भाव ना आये तो वह मुझे बेरंग सी  लगती है परन्तु आपके हाइकु चिरयौवना बने यहाँ महक उठे हैं - 
# पाँव घुंघरू / महावर श्रृंगार / हँसी बंदिनी ||
               
मौन का अनुवाद 
    फूलों से सजी / कच्चे सूत की साड़ी / इश्क का रंग ||
         मुंडेर काग / अनचीन्ही आहट / हिला घूँघट ||
                    पुराने ख़त / पढ़कर हो गयी / मैं नयी – नयी || 
प्रकृति को बचाने का सन्देश लिए ये हाइकु पुकार उठे हैं - 
# धरा के आंसू / कब ,किसी को दिखे / फूल ही खिले || 
                   जिद्दी बच्चे सा / छिप गया बसंत / ब्यथा अनंत || 
        आसमान में / छोड़ विषैला धुआँ / खोदते कुआँ ||
                   काट जंगल / ढूंढ रहा मंगल / भोला मानव || 
अहिन्दी भाषी क्षेत्र में हिंदी की सेवा करते हुए जिंदगी को करीब से आपने देखा है जो आपके हाइकु में वर्णित हैं – 
# साँप रो रहे / आदमी ले गए हैं / ज़हर सारा || 
                   अनाथ बच्ची / डाकखाने में पड़ी / बैरंग चिट्ठी ||
       मुनिया भूखी / अखबार लपेटी / रोटी क्यों लाल ||
आध्यात्म की समझ से परिपूर्ण , अब्यक्त को ब्यक्त करनी कोशिश करते ये हाइकु किराये के मकान में अपना कब्जा जमाने की कोशिशों को ख़ारिज करते हुए , ईश्वर नाम स्मरण करते हुए अपनी यात्रा पर निकल पड़े हैं – 
# उम्र जुलाहा / कातती सुख – दुःख / वस्त्र अद्भुत ||
                   ढाई अक्षर / सम्पूर्ण बन गए / तुम्हें पाकर || 
      साँसों की भट्टी / धधकती जिंदगी / ढेरी राख की ||
                  उम्र के सिक्के / जिंदगी की गुल्लक / भरती जाती || 
दुनियावी विद्रूपताओं से क्षुब्ध आपके हाइकु ने चेताने की कोशिश की है कि – सपने , वक्त , रिश्ते और .... कभी किसी की संपत्ति का हिस्सा नहीं रहे हैं -    
# रिश्तों की गाड़ी / पटरी से उतरी / फैला पठार ||
                  शाश्वत सत्य / कोई अपना नहीं / अपने सिवा ||                 
       चूहों ने काटी / सपनों की पोशाक / दर्जी लाचार ||
                लाठी खाती माँ / बुढापे की लाठी से / रोया आसमां || 
हाइकु की सम्पूर्ण नियमों का पूर्णतः पालन करते हुए , इसकी सभी सीमाओं से बंधे  इस संग्रह के हाइकु हिंदी साहित्य के लिए एक मील का पत्थर बन चुके हैं ; आशा है कि ये संग्रह पाठको को अवश्य पसंद आएगा | पुष्पा जी को मेरी अशेष शुभकामनाएं .... 

मौन का अनुवाद [ हाइकु संग्रह ] – पुष्पा सिंघी 
हर्षित प्रकाशन – दिल्ली , मूल्य – ३००=०० रु. , पृष्ठ – १०४ , वर्ष २०१७ 

                            


-समीक्षक - रमेश कुमार सोनी
राज्यपाल पुरस्कृत ब्याख्याता एवं साहित्यकार 
संपर्क –७०४९३५५४७६ /९४२४२२०२०९                      
जे.पी.रोड-बसना,जिला – महासमुंद [छत्तीसगढ़]४९३५५४ / 

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