जीवन की धड़कन

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जीवन की धड़कन कथाएँ, ओ कथाओं, विश्वास की सुनहरी परछाईं, गाँव की चौपाल से उठकर दिलों के आँगन में उतरती हैं। कभी वे युद्ध के नगाड़े बनती, कभी लोरी-सी

जीवन की धड़कन


थाएँ, ओ कथाओं,
विश्वास की सुनहरी परछाईं,
गाँव की चौपाल से उठकर
दिलों के आँगन में उतरती हैं।
कभी वे युद्ध के नगाड़े बनती,
कभी लोरी-सी धीमी,
कभी दरवाज़ा खटखटाती,
कभी खिड़की से भीतर झाँकती।

इतिहास के माथे पर
उनका हल्का-सा हाथ,
और बच्चे की आँखों में
उनका चमकता चाँद।
विजयों की ऊँची मीनारें
हँसी से भर जाती हैं,
हार की धूल भी
उनसे नया अर्थ पाती है।

जीवन की धड़कन
यात्राएँ, संघर्ष, सपने,
सब उनके भीतर सोते,
रात के तम्बू में
धीरे-धीरे जागते।
पौराणिक उजाले,
सांस्कृतिक परेड,
किंवदंतियों के पंख
रोज़ नया रास्ता ढूँढें।

हर पीढ़ी अपनी थाली में
एक कहानी परोसती,
आँधी का स्वाद देती,
बारिश का गीत सुनाती।

कहीं देवताओं के पाँव
किसी नदी में धुलते,
कहीं साधारण आदमी
अपना साहस बदलते।

वे नदियों की तरह
किनारों को छूतीं,
खेतों, शहरों, पहाड़ों को
अलग-अलग नाम देतीं।

कभी दुख का शंख,
कभी आनंद का दीप,
कभी विद्रोही-सी तीखी,
कभी ममता की नीरद्वीप।

युद्धभूमि के बीचोंबीच
वे चुपचाप उगतीं,
घायल घोड़ों की आँखों में
एक छोटा-सा आकाश रखतीं।

मंदिर और बाज़ार,
कुटिया और महल,
सबके दरम्यान
उनका अटूट संबल।

ऊँचे-ऊँचे उपदेश
कभी उन्हें बाँध न पाते,
वे बच्चों की हँसी में
खुद को फिर गुनगुनाते।

साधु की यात्राएँ,
राजा के सपने,
स्त्री का धैर्य,
मज़दूर के दिन।
हर जगह कहानी
अपना घर बनाती,
राख में अंगारा,
बर्फ में धूप जगाती।

विज्ञान के कक्ष में
वे प्रश्न बन जातीं,
दर्शन के गलियारों में
धीरे-धीरे चलतीं।
भूख की थाली पर
रोटी का स्वाद,
प्रेम के होंठों पर
पहला संवाद।

खेतों की लकीरों में
श्रम की कविता,
शहर की दीवारों में
विरोध की रेखा।
जब जीवन टूटने लगता,
वे चुपचाप जोड़तीं,
जब डर बहुत बढ़ जाता,
वे साहस बोतीं।

कभी झूठ से भिड़तीं,
कभी सत्य को सँवारतीं,
मन के अँधेरे कमरों में
खिड़की खोल जातीं।
मृत्यु के किनारे भी
वे हाथ थाम लेतीं,
पल भर की रोशनी से
गहरा सन्नाटा मोड़ देतीं।

और जब सब थक जाते,
रास्ते सूने पड़ते,
कहानी फिर उठ खड़ी,
नई सुबह गढ़ते।
समय के साथ-साथ
उनका पाँव चलता,
स्मृति की सीढ़ियों पर
उनका दीप जलता।

समाज अगर कठोर हो,
वे दिल को नरम करतीं,
अन्याय की दीवारों में
दरारें भर देतीं।
जीवन के मैदान में
वे साथ-साथ दौड़तीं,
मनुष्य को मनुष्य से
फिर से जोड़ देतीं।

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 ‌‌‌        

- विजी.एम.बि,
कलरिक्कल घर, अम्बलपुरम, पेरिंगण्डूर डाकघर,
त्रिश्शूर जिला,पिनकोड-680581,केरल

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