एस्केप और कुछ अधूरे सपने उस रात शहर के तीन कोनों में तीन ज़िंदगियाँ, बिल्कुल अलग दिशाओं में साँस ले रही थीं—तीनों भागना चाहते थे— राज अपनी लापरवाह अम
एस्केप और कुछ अधूरे सपने
उस रात शहर के तीन कोनों में तीन ज़िंदगियाँ, बिल्कुल अलग दिशाओं में साँस ले रही थीं—तीनों भागना चाहते थे— राज अपनी लापरवाह अमीरी से, अंजलि अपने घर और समाज के बंधनों से, और मुन्ना अपनी बेरंग गरीबी से. लेकिन नियति ने उन तीनों के रास्तों को एक ही रात में—एक ही क्षण में— एक ही दुर्घटना की टकराहट में बाँध दिया.
राज मल्होत्रा
राज मल्होत्रा, एक अमीर उद्योगपति का बेटा— एक ऐसा लड़का जिसकी ज़िंदगी में कभी किसी इच्छा ने ‘ना’ का स्वाद चखा ही नहीं था, दुनिया की नज़रों में भाग्यशाली, परंतु वही जीवन उसे भीतर ही भीतर खोखला कर रहा था. एक विशाल, चमकदार घर था… पर दीवारों के बीच सन्नाटा गूंजता था. माता-पिता कही दूर रहते थे, बाकी रिश्ते कुछ औपचारिक से हो गए थे, और दोस्त लगभग न के बराबर.
बचपन सुरक्षा के खोल में ऐसा कैद रहा कि उसे दुनिया की धूप और धूल का असल ताप महसूस ही नहीं हुआ था. दोस्त नाम की चीज़ उसके आसपास होती तो थी, पर रिश्तों की गर्माहट से कोसों दूर. जैसे किसी ने उसे चांदी की थाली में एक जीवन दिया हो, लेकिन उससे आवाज़, समझ और अपनापन छीन लिया हो।
धीरे-धीरे यह खालीपन उसकी साँसों, व्यवहार और आत्मा में घर कर गया. मानसिक बीमारी, नशे की लत, रिश्तों से उदासीनता, और सबसे बड़ा सच— राज के जीवन में एक ऐसा अंधेरा था. जिसे वह किसी भी रोशनी से भर नहीं पाता था. उसकी आत्मा किसी काँच के कमरे में अकेली ही सिसकती रहती थी.
रातें उसकी साथी थीं—उजले हाई-एंड नाइट क्लब, चमकती बत्तियाँ, तेज़ संगीत…वह उनमें खो कर अपने भीतर के खालीपन को दबाने की कोशिश करता था. इस रात, फिर वही हुआ था. अपनी शानदार लाल रंग की लैंड रोवर में बैठकर राज अकेलेपन से भागने निकला था.— पर इस बार वह हाई-एंड क्लबों की चकाचौंध से ऊब गया था. शहर की सड़कों पर भटकते हुए वह एक मध्यमवर्गीय मोहल्ले में पहुँचा, जहाँ एक साधारण-सा क्लब हल्की रोशनी में धड़क रहा था.
राज अंदर गया—रात के लगभग एक बज चुके थे. डांस फ्लोर पर लोग अब भी थिरक रहे थे.वह बार के एक कोने जाकर बैठ गया और उसने बारटेंडर को आर्डर दी एक नीट व्हिस्की के पैग की, उसके बाद पैगो का सिलसिला लगातार चलता रहा. मानो हर घूँट उसके भीतर बैठे खालीपन का इलाज हो।
तभी उसने उसे देखा— डांस फ्लोर पर एक अत्यंत आकर्षक, आत्मविश्वासी युवती, जो अपनी सहेलियों संग डांस कर रही थी. उस पूरे क्लब को वो जैसे अपनी ऊर्जा से भर रही थी. उसे देख कर राज अपने आप को रोक नहीं सका उसने उस युवती की और कदम बढ़ा दिए. वह उससे कुछ कहना चाहता था—पर वह युवती उसके नशे की हालत देखकर उसे शालीनता से “अवॉइड” करने की कोशिश कर रही थी. उस युवती के इस व्यवहार से राज के भीतर का दबा गुस्सा, असुरक्षा हताशा की आग में धधक उठा. उसने अचानक युवती, को अपनी बाहो में कसकर पकड़ लिया, और जबरदस्ती उस युवती के साथ अपनी एक स्लेफ़ी ले ली. डांस कर रहे कुछ लोगो ने इस घटना को देखकर राज को समझाने की कोशिश की.
वह युवती अंदर से सिहर उठी, उसे समझ में नहीं आ रहा था, की क्या कर। युवती ने जैसे तैसे अपने आप को राज की चंगुल से छुड़ाया. उसकी सहेलिया ये सब देख रही थी और इस हादसे से थोड़ी विचलित भी हो गयी थी, तभी एक सहेली ने जोर से उस युवती को अपनी और घसीटा और कहा "अंजलि" चलो, और वो सारी लड़किया जल्दी से उस क्लब से निकल गयी. अब राज के भीतर का तूफ़ान उमड़ने लगा था. गुस्सा, अपमान, शराब, अकेलापन—सब एक साथ उसके दिमाग पर हमला कर रहे थे. ना जाने क्यों, राज को उस युवती पर अब बहोत गुस्सा आने लगा था, जैसे उस लड़की ने उसकी मर्दानगी को ललकारा हो. राज ने अपना फ़ोन निकाला और फिर अपनी और उस युवती की सेल्फी को अपने इंस्टाग्राम पेज पर पोस्ट कर दिया और नीचे कैप्शन लिखा - “हैविंग ग्रेट टाइम विथ माय बीच” राज का गुस्सा अब उबलने लगा था, वो क्लब से निकलकर गाड़ी में बैठा और तेज़ी से वहा से निकल पड़ा.
उसे यह भी पता नहीं चला कि उसकी कार स्पीड लिमिट से तीन गुना ज्यादा रफ़्तार से भाग रही थी और वह शहर के उस नये नवेले फ्लाई ओवर की और तेज रफ्तार से बढ़ रही थी. अचानक स्टीयरिंग राज के हाथ से छूट गया—
और गाड़ी फ़ुटपाथ पर बने बेंच से जा टकराई. राज का सिर स्टीयरिंग व्हील से टकराया, और वह लहूलुहान होकर बेहोश हो गया. लोग दौड़कर आए. किसी ने एम्बुलेंस बुलायी, तो, तो किसी ने पुलिस।
लेकिन फ़ुटपाथ के उस पार—एक दस ग्यारह साल का लड़का खून में लथपथ पड़ा था. उसकी साँसें धीमी हो रही थीं…और एम्बुलेंस आने से पहले ही, वह दुनिया छोड़ गया. अगली सुबह जब राज की चेतना लौटी तो वह अस्पताल में था. उसके कमरे के टीवी स्क्रीन पर एक हैडलाइन गूंज रही थी.
“मुन्ना — सड़क किनारे खेलता मासूम बच्चा, नशे में धुत ड्राइवर अमीरजादे राज मल्होत्रा की लैंड रोवर से कुचला.” सारे शहर में अब राज मल्होत्रा के खिलाफ बहोत गुस्सा फुट पड़ा था.
राज के लिए यह सिर्फ़ एक हादसा नहीं था— यह उसके जीवन का वह मोड़ था, जहाँ उसकी सारी भागदौड़, सारे बहाने, सारे बचाव, सारी दौलत, एक पल में अर्थहीन हो चुकी थी.
सड़क पर पड़ा वह छोटा-सा निर्जीव शरीर. राज के जीवन का स्थायी सच बन गया— वह सच जिसे कोई धन, कोई शक्ति मिटा नहीं सकती थी. अब उसका अस्थायी अकेलापन, जेल की सलाखों के पीछे अब स्थायी बनने वाला था.
अंजलि
अंजलि… एक २४ वर्षीय साधारण-सी लड़की थी. एक मध्यमवर्गीय, रूढ़िवादी परिवार में पली-बढ़ी, वह सरकारी कॉलेज में BSc की पढ़ाई कर रही थी. उसकी जिंदगी सपनों से भरी हुई थी, जहाँ हर दिन वह दुनिया को अपने से कहीं ज़्यादा बड़ा और चमकदार महसूस करती थी.
पापा सरकारी नौकरी में, माँ गृहिणी। बचपन से ही अंजलि खेल-कूद और नृत्य की दीवानी थी—बैडमिंटन, टेनिस, फ्री-स्टाइल डांस… पर उसके पापा की सोच उसकी उड़ानों से कहीं छोटी थी.
बैडमिंटन और टेनिस इसलिए नहीं, क्योंकि इन खेलो में पहने जाने वाली छोटी स्कर्ट उन्हें पसंद नहीं थी.डांस करना है तो सिर्फ़ भरतनाट्यम— क्योंकि बस, इस डांस से कोई डांस "सभ्य" नहीं हो सकता था.अंजलि ने कभी हिम्मत नहीं जुटाई कि अपने माता-पिता की इच्छाओं के ख़िलाफ़ जाए. लेकिन मन तो मन है…
कॉलेज पहुँचकर अंजलि अब थोड़ी-सी आज़ादी महसूस कर रही थी, चोरे छिपे ही सही — जब कभी समय मिलता, तो वो उन खेलों को दूर से ही देखती, तो कभी कॉलेज फंक्शन में मन खोलकर नाच लेती, और कभी कभी अपनी सहेलियों के साथ किसी नाइट क्लब में हो आती … बस उस दुनिया को महसूस करने के लिए, जिसे जीने की उसमे में बचपन से ही तड़प थी।
अंजलि, क्लासिक सुंदरता के किसी पैमाने में नहीं बैठती थी, पर उसमे एक आकर्षण तो जरूर था. जिसे लोग देखते तो नज़र नहीं हटा पाते थे. अंजलि के आँखों में एक तेज़ था— वह किसी महफ़िल की रानी नहीं थी, पर उसकी मौजूदगी किसी भी जगह को रोशन कर देती थी.
उस रात…… एक मध्यमवर्गीय इलाके केछोटे से नाइट क्लब में धड़कते संगीत के बीच अंजलि अपने सहेलियों के साथ नाच रही थी. अपने ही बनाये हुए छोटे से आज़ादी के दायरे में. एक ऐसी युवती की तरह जो दिन भर की थकान, जिम्मेदारियाँ और दुनिया की कठोरता, एक पल के लिए भूलना चाहती हो.
तब उसे कहा पता था की उसकी ज़िंदगी का सबसे दर्दनाक मोड़ उसका इसी क्लब में इंतज़ार कर रहा था. तभी अचानक उसने पाया, एक लड़का उसके सामने खड़ा था, शराब के नशे में धुत. वह उससे बात करना चाहता था, पर अंजलि उसकी ये हालत देखकर, उसे शालीनता से मना कर रही थी. लेकिन शायद उस लडके को “ना” सुनने की आदत नहीं थी. उसने जबरदस्ती से अंजलि को अपनी ओर खींच लिया और उसके प्रतिरोध के बावजूद अपनी और अंजलि की एक सेल्फ़ी ले ली.
अंजलि की देह सहम गई, आंखें डर से भर गईं. उस पल उसे लगा जैसे किसी ने उसके मन की सारी पवित्रता पर धूल डाल दी हो. उसकी ये हालत देखकर सहेलीयो ने जब उसे पुकारा तो किसी तरह उस लडके के चंगुल से निकलकर वह तुरंत अपने सहेलीयो के साथ उस क्लब से निकल गई — काँपती हुई, टूटी हुई, अपमानित.
अगली सुबह… टीवी स्क्रीन पर एक सनसनीखेज़ खबर चमक रही थी. “बिज़नेसमैन का बेटा राज मल्होत्रा दुर्घटना में घायल” और उसके ठीक नीचे— वही सेल्फ़ी, वही तस्वीर थी, जो कल नाइटक्लब मे उस लडके ने उसके साथ जबरदस्ती से खींची थी, और कैप्शन था — “हैविंग ग्रेट टाइम विथ माय बीच”
अंजलि स्तब्ध थी। उसकी साँस रुक गई. उसे लगा जैसे किसी ने उसकी ज़िन्दगी उसके हाथों से छीनकर, पूरे शहर की भूखी नज़रों में फेंक दी हो. जिस छवि से वह हमेशा डरती थी, वही छवि अब उसकी पहचान बनने वाली थी. समाज, रिश्तेदार, पड़ोसी—सब उसकी तस्वीर पर अपनी कहानी लिखने को तैयार बैठे थे. उस पल अंजलि को लगा जैसे उसके चारों ओर की हवा भारी हो गई हो… जैसे उसकी ज़िंदगी का दरवाज़ा अचानक बंद हो गया हो… जैसे किसी ने उसकी मासूमियत को उसके ही सामने मार दिया हो.
अब वह सिर्फ़ एक लड़की नहीं थी— अब वह राज मल्होत्रा की “बीच” नामक एक कहानी बन गई थी…
एक ऐसी कहानी जिसे उसने कभी जिया भी नहीं था. और अब अंजलि समझ गई थी —अभी-अभी, उसकी ज़िन्दगी ने एक ऐसा मोड़ ले लिया है… जिससे वह जितना भी भागना चाहे, “एस्केप” करना चाहे, उतना ही वह उसका पीछा करने वाला था.
मुन्ना
मुन्ना… बस चौदह साल का एक दुबला-पतला लड़का, जिसकी आँखों में सपनों का समंदर था। वह अपने परिवार के साथ उस विशाल फ्लाईओवर लगकर बने हुए एक गंदे झुग्गी झोपड़ियों वाले मोहल्ले मे रहता था.—वही फ्लाईओवर जो इस चमकदार शहर की शान था, जहाँ से गुजरते हुए अमीर लोग अपनी चमचमाती गाड़ियों में खुद को भगवान समझते थे।
मुन्ना के पिता एक ड्राइवर थे—दिन-रात टैक्सी चलाकर घर चलाते थे। कारों से ही घर का चूल्हा जलता था, और शायद इसी वजह से मुन्ना के दिल में भी कारों के लिए एक अजीब-सी मोहब्बत थी। बचपन से उसने अपने पिता से सुना था—"बेटा, असली दौलतमंद वो होता है, जो पोर्श, बेंटली, बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज चलाता है।"बस उसी दिन से, कारें मुन्ना का सपना बन गईं. हर शाम, पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह फ्लाईओवर से सटे फुटपाथ पर लगी पुरानी-सी लकड़ी की बेंच पर चढ़कर बैठ जाता और फ्लाईओवर से गुजरने वाली इन महंगी कारों को घंटों-घंटों तक निहारा करता। कभी-कभी उसकी मां या नन्ही बहन उसे लेने आ जातीं, और वह मजबूरी में उठता—पर उसका दिल वहीं, फ्लाईओवर के किनारे अटका रह जाता.
मुन्ना नौवीं कक्षा में पढ़ता था—नगरपालिका स्कूल में। गरीबी ने उसे कभी छोटा नहीं किया; वह समझदार था, पढ़ाई में तेज था, और सबसे बढ़कर—उसका दिल सोने का था। उसके मोहल्ले का हर इंसान उससे प्यार करता था, क्योंकि मुन्ना हर समय किसी-न-किसी की मदद करने के लिए तैयार रहता था। लोग मजाक-मजाक में कहते—"अरे मुन्ना, एक दिन तू बड़ा आदमी बनेगा।"
और मुन्ना हँसकर कहता—"हाँ, और मेरी गाड़ी सबसे पहले इसी फ्लाईओवर से गुज़रेगी!"
उसका सपना था—वो एक दिन बड़ा बिज़नेसमैन बनेगा, और इसी फ्लाईओवर पर अपनी खुद की महंगी कार चलाएगा … लेकिन उस रात… मुन्ना की किस्मत मे कुछ और ही लिख रखा था. वह हमेशा की तरह आज भी उस बेंच पर बैठा था। हवा ठंडी थी, और सड़क पर गाड़ियों की रोशनी सितारों की तरह चमक रही थी। मुन्ना को पता ही नहीं चला कि समय कैसे बीत गया—आज कोई उसे बुलाने भी नहीं आया था. शायद मां किसी काम में लगी थी, और शायद बहन सो गई थी…मुन्ना सोच भी नहीं सकता था कि आज की यह रात—उसकी जिंदगी का सबसे खतरनाक मोड़ बनने वाली है. दूर से एक तेज़ चमकती कार फ्लाईओवर की और बढ़ रही थी—लाल रंग की, महंगी, और बेहद तेज़. मुन्ना ने मुस्कुराकर कहा—"वाह… ये तो किसी रईस की गाड़ी लगती है."
उसे क्या पता था… यह कार सिर्फ एक कार नहीं थी—यह उसकी मौत थी, जो उसकी ओर बढ़ती आ रही थी. मुन्ना को नहीं पता था कि उसकी बेंच, उसका सपना देखने की एक छोटी-सी जगह… बस कुछ ही सेकंड में हादसे मे बदलने वाली थी. कि उसी पल वह गाड़ी पागल रफ़्तार में उसकी दुनिया पर टूट पड़ी. लोग चीखने लगे, भीड़ जमा हो गई, पर उसके छोटे-से सीने ने, एम्बुलेंस के आने से पहले ही अपनी अंतिम साँस छोड़ दी. मुन्ना की दुनिया बुझ चुकी थी, पर उसी पल, राज की दुनिया भी हमेशा के बदल गयी थी.
कुछ ही पलों में, टीवी के सभी चैनलों पर एक नाम गूंज रहा था —राज मल्होत्रा….
वही राज मल्होत्रा—जिसकी दुर्घटना की खबर अगली सुबह हर स्क्रीन पर थी.
वही राज मल्होत्रा—जिसके साथ एक रात किसी क्लब में एक लड़की की तस्वीर वायरल हुई थी.
वही राज मल्होत्रा—जिसकी बेकाबू कार उस रात फ्लाईओवर पर किसीकी मौत बनकर आयी थी.
राज, अंजली और मुन्ना, तीनों की ज़िंदगी अलग थी—उनकी दुनिया, उनकी हैसियत, उनके सपने। लेकिन एक चीज़ सबमें समान थी: वे सभी अपनी ज़िंदगी से “एस्केप” चाहते थे।
अंजलि अपनी रूढ़िवादी परिवार और समाज से भागना चाहती थी—जहाँ उसके कपड़ों, सपनों, और आज़ादी पर पहरा था. वह नाचना चाहती थी… उड़ना चाहती थी… जीना चाहती थी. लेकिन उस रात क्लब में—जहाँ उसने पहली बार खुद को “मुक्त” महसूस किया था — राज मल्होत्रा ने उसकी उस छोटी-सी आज़ादी को भी छीन लिया था. एक जबरन ली गई सेल्फी…एक झूठा कैप्शन… और उसकी पूरी ज़िंदगी उन लोगों के हाथों में पहुँच गई जो सिर्फ तमाशा देखना जानते थे.
राज भी भागना चाहता था—अपनी अमीरी, अपने अकेलेपन, अपनी लापरवाही से. वह पार्टी-दर-पार्टी भागते हुए शायद अपने अंदर की खालीपन से लड़ रहा था. उसका आखिरी सफर भी उसी तेज़ रफ़्तार में खत्म हुआ था —एक ऐसी सड़क पर जहाँ से हजार बार गुज़रा था.
मुन्ना भागना चाहता था—गरीबी से, झुग्गियों से, उस किस्मत से जिसने उसका नाम तक नहीं लिखा था. उसके सपनों का आसमान फ्लाईओवर था… वही फ्लाईओवर जो राज मल्होत्रा जैसे अमीरों के लिए था, और मुन्ना जैसे गरीबों के लिए सिर्फ एक सपना।
तीनों “एस्केप” चाहते थे अपनी अपनी जिन्दगियो से —पर ज़िंदगी को तो कुछ और ही मंजूर था.
- डॉ प्रशांत साखरकर
मायामी, फ्लोरिडा, अमेरिका
psakharkar@gmail.com
डॉ. प्रशांत साखरकर, अमेरिका में स्थित “लार्किन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ फ़ार्मेसी” में असिस्टेंट डीन हैं. उन्हें मराठी और हिंदी साहित्य का गहरा शौक है और वे इन दोनों भाषाओं में लेखन भी करते हैं. उनकी रचनाएँ सामाजिक व्यवस्था, मानवीय संवेदनाओं और जीवन की जटिलताओं को नए दृष्टिकोण से उजागर करती हैं. उनके लेख और कहानियाँ क्षेत्रीय मराठी और हिंदी समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.


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