पश्चिमबंग हिन्दी अकादमी का द्विदिवसीय राष्ट्रीय लघुकथा उत्सव सम्पन्न हिंदीतर भाषाओं में लघुकथाओं की स्थिति पर चर्चा हुई, जिसमें बुंदेलखण्डी लघुकथाओं
पश्चिमबंग हिन्दी अकादमी का द्विदिवसीय राष्ट्रीय लघुकथा उत्सव सम्पन्न
कोलकाता। पश्चिम बंगाल सरकार के सूचना एवं संस्कृति विभाग के अन्तर्गत पश्चिमबंग हिन्दी अकादमी ने अपना तीसरा राष्ट्रीय लघुकथा उत्सव आयोजित किया।इस उत्सव के रूपाकार अकादमी के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार श्री रावेल पुष्प के संयोजन तथा रचना सरन के संचालन में हुए इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पटना से पधारे डॉ अनिल सुलभ जी, डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर एजूकेशन यूनिवर्सिटी की कुलपति डॉ सोमा बंदोपाध्याय तथा साहित्य अकादमी, पश्चिम बंगाल के क्षेत्रीय सचिव श्री देवेन्द्र कुमार देवेश।
अपने वक्तव्य में डाॅ अनिल सुलभ जी ने जहां कहा कि देश में स्वतंत्रता के पश्चात क्षुद्र राजनैतिक कारणों से अनावश्यक रूप से भाषाई विवाद खड़े किए जाते हैं,जो देश के एकत्व में अत्यंत बाधक हैं वहीं डॉ सोमा बंदोपाध्याय ने स्पष्ट कहा कि इस तरह के उत्सवों से भाषाई एकता को बढ़ावा मिलता है।आमंत्रित विशिष्ट लघुकथाकारों श्री गोकुल सोनी (भोपाल)और डॉ शुभ्रा उपाध्याय (कोलकाता )ने लघुकथा के विभिन्न आयामों पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
इस अवसर पर वरिष्ठ रचनाकार विद्या भण्डारी जी के नवीनतम लघुकथा संग्रह "सीप में मोती" तथा विशिष्ट लघुकथाकार अशोक भाटिया के दो लघुकथा संग्रहों तथा गोकुल सोनी के एक लघु कथा संग्रह की बांग्ला में अनुवादित पुस्तकों को भी लोकार्पित किया गया।द्वितीय सत्र में लघुकथाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया, जिनमें शामिल थे - सर्वश्री गोकुल सोनी, विद्या भण्डारी , सूर्या सिन्हा, शकुन त्रिवेदी, रंजना झा, प्रणति ठाकुर, सुरेश शॉ, डॉ पूनम आनंद, विजय शंकर विकुज, रावेल पुष्प तथा रचना सरन और डॉ रेशमी पांडा मुखर्जी जी ने उनकी समीक्षा कर सबको प्रभावित किया।
द्वितीय दिवस में हिंदीतर भाषाओं में लघुकथाओं की स्थिति पर चर्चा हुई, जिसमें बुंदेलखण्डी लघुकथाओं पर बोलते हुए भोपाल से पधारे गोकुल सोनी जी ने बताया कि हिन्दी किसी नदी की भाँति होती है जिसकी सहायक नदियों की तरह अन्य भाषाएँ उसका प्रवाह बढ़ाती हैं। उन्होंने आल्हा खण्ड के बारे में भी चर्चा की,जो उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में आते हैं, वहाँ बुंदेली बोली जाती है।यह लोकभाषा वाचिक परंपरा में अधिक चली है। बुंदेली लघुकथाएं गत पाँच वर्षो से ही अधिक प्रचलित हैं। ये आम जीवन के सुख-दुख, विसंगति और बुराइयों के विरुद्ध शंखनाद हैं। अपनी बुंदेली लघुकथाओं का पाठ भी उन्होंने किया।संथाली लघुकथाओं के बारे में बताते हुए श्री सुखचांद सोरेन ने अपनी चंद रचनाओं का पाठ किया।
तेलुगु लघुकथा के बारे में बताते हुए वी अरुणा ने बताया कि तेलुगु लघुकथा ने मात्र मनोरंजन ही नहीं किया बल्कि समाज में परिवर्तन का काम भी किया है। डॉ सौम्यजीत आचार्य ने लघुकथाओं का महाविश्व विषय पर और श्री असित बरन बेरा ने बांग्ला लघुकथाओं पर अपने विचार रखे और कुछ लघुकथाओं का पाठ भी किया।इस सत्र के अंत में डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की। द्वितीय सत्र में लिटिल थेस्पियन के कलाकारों द्वारा लघुकथाकारों की कुछ लघुकथाओं का अभिनयात्मक पाठ किया फिर डॉ. अनिल सुलभ ने विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की।
राष्ट्रीय लघुकथा उत्सव- 2025 को समग्र रूप से श्रोताओं की भरपूर प्रशंसा मिली।हिन्दी अकादमी के सदस्य सचिव श्री गिरिधारी साहा ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।
- रावेल पुष्प, वरिष्ठ पत्रकार, कोलकाता/ 9434198898.


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