बच्चों का साहित्य Children's Literature नैतिकता का निर्माण और कल्पना का विकास बचपन वह स्वर्णिम काल है जब मनुष्य का व्यक्तित्व सबसे अधिक कोमल, सबसे
बच्चों का साहित्य Children's Literature नैतिकता का निर्माण और कल्पना का विकास
बचपन वह स्वर्णिम काल है जब मनुष्य का व्यक्तित्व सबसे अधिक कोमल, सबसे अधिक ग्रहणशील और सबसे अधिक सृजनशील होता है। इस आयु में जो बीज बोए जाते हैं, वे जीवन भर फलते-फूलते हैं। बच्चों के साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह बिना किसी दबाव या उपदेश के, खेल-खेल में, हँसी-मजाक में, कहानी के रस में डुबोकर बच्चे के मन में नैतिक मूल्यों की गहरी जड़ें जमा देता है और साथ ही उसकी कल्पना शक्ति को ऐसे विशाल पंख देता है कि वह आकाश की किसी भी ऊँचाई को छू सकता है। बच्चों का साहित्य न तो कठोर नीति-शास्त्र है, न कोई भारी-भरकम दर्शन; वह जीवन का मीठा रस है जो बच्चे के अंतर्मन को पोषित करता है।
नैतिकता का निर्माण
नैतिकता का निर्माण बच्चों के साहित्य का प्रथम और सर्वोच्च कार्य है। बच्चा जन्म से न अच्छा होता है, न बुरा। उसका मन खाली कागज की तरह होता है, पर वह कागज इतना संवेदनशील होता है कि उस पर लिखी हर रेखा गहरी छाप छोड़ जाती है। यदि हम उस पर सीधे-सीधे उपदेश लिखें—“सच बोलो, झूठ मत बोलो, बड़ों का आदर करो”—तो बच्चा ऊब जाता है, विद्रोह करता है या भूल जाता है। पर यदि हम उसे पंचतंत्र की वह कहानी सुनाएँ जिसमें एक चतुर खरगोश ने अपनी बुद्धि से हिंसक शेर को परास्त कर दिया, तो बच्चा बिना कुछ कहे-सुने यह सीख लेता है कि बुद्धि बल से बड़ी होती है, हिंसा से बड़ा विवेक होता है। वह खरगोश के साथ दौड़ता है, डरता है, चाल चलता है और अंत में जीत का आनंद लेता है। इस आनंद के भीतर नैतिकता अपने आप समा जाती है।इसी प्रकार प्रेमचंद की अमर कहानी “ईदगाह” में छोटा-सा हामिद अपनी सारी पूँजी से खिलौने नहीं खरीदता, बल्कि अपनी बूढ़ी दादी के लिए लोहे का चिमटा खरीद लाता है। बच्चा इस कहानी को पढ़ते या सुनते समय अपने आप ही समझ जाता है कि स्वार्थ से बड़ा त्याग होता है, धन से बड़ा प्रेम होता है। उसे कोई कहने की जरूरत नहीं पड़ती कि “बड़ों की सेवा करो”। हामिद का छोटा-सा हृदय उसकी समझ को इतना बड़ा बना देता है कि वह जीवन भर उस चिमटे की गर्मी को अपने भीतर महसूस करता रहता है। यही बच्चों के साहित्य की शक्ति है कि वह नैतिकता को उपदेश नहीं, अनुभव बनाकर बच्चे के भीतर उतार देता है।कल्पना का विकास
कल्पना का विकास बच्चों के साहित्य का दूसरा महत्त्वपूर्ण आयाम है। बच्चे का मन स्वभाव से ही कल्पनाशील होता है। वह साधारण कागज की नाव को समुद्र पार करने वाला जहाज समझ लेता है, लकड़ी की तलवार को जादू की तलवार। अच्छा बाल-साहित्य इसी प्राकृतिक कल्पना को कुंद नहीं करता, बल्कि उसे और निखारता है, उसे दिशा देता है, उसे इतना विस्तार देता है कि बच्चा न केवल सपने देखना सीखता है, बल्कि उन सपनों को साकार करने की हिम्मत भी रखता है।जे.के. रोलिंग की हैरी पॉटर शृंखला इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। एक साधारण-सा अनाथ लड़का जब पता चलता है कि वह जादूगर है और उसके लिए एक पूरी की पूरी जादुई दुनिया मौजूद है, तो पाठक बच्चा भी अपने भीतर वही जादू महसूस करने लगता है। वह समझ जाता है कि साधारण दिखने वाली जिंदगी के पीछे भी असाधारण संभावनाएँ छिपी हो सकती हैं। हॉगवर्ट्स का विशाल महल, उड़ते झाड़ू, बात करने वाली टोपी—ये सब उसके दिमाग में इतनी सजीवता से बस जाते हैं कि वह अपनी साधारण स्कूल की घंटी को भी हॉगवर्ट्स की घंटी समझने लगता है। यह कल्पना उसे केवल मनोरंजन नहीं देती, उसे साहस, मित्रता और प्रेम का मूल्य भी सिखाती है।लुईस कैरोल की “ऐलिस इन वंडरलैंड” तो कल्पना की सीमाओं को ही तोड़ देती है। वहाँ कोई नियम नहीं, कोई तर्क नहीं—बस एक के बाद एक आश्चर्य। ऐलिस हर बार सवाल करती है, हैरान होती है, पर डरती नहीं। बच्चा उसके साथ बिल में गिरता है, विशाल होता है, बौना होता है, पागल चाय-पार्टी में फँसता है और अंत में समझ जाता है कि दुनिया के नियम हमेशा एक से नहीं होते, उन्हें चुनौती दी जा सकती है, सवाल पूछना सबसे बड़ी बहादुरी है। यह कल्पना की सबसे बड़ी शिक्षा है—नियम तोड़ने की आजादी, नए सिरे से सोचने की हिम्मत।
भारतीय संदर्भ में बाल साहित्य
भारतीय संदर्भ में भी हमारा लोक-साहित्य और दादी-नानी की कहानियाँ यही काम सदियों से करती आ रही हैं। विक्रम-बैताल की कहानियाँ, तेनालीराम की चतुराई, गोपाल भाँड़ के मजाक—ये सब बच्चे को सिखाते हैं कि हर समस्या का एक से ज्यादा हल हो सकता है, हँसी और बुद्धि से सबसे बड़ी मुश्किल सुलझाई जा सकती है। ये कहानियाँ न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि बच्चे के दिमाग को इतना लचीला बना देती हैं कि वह बड़ा होकर नई समस्याओं का नया समाधान खोज सके।आधुनिक युग में जब बच्चे स्क्रीनों के चमकते जाल में फँसते जा रहे हैं, तब बच्चों के साहित्य की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो गई है। टेलीविजन और मोबाइल सब कुछ तैयार परोस देते हैं—रंग, ध्वनि, गति, चित्र। बच्चे को कुछ सोचना नहीं पड़ता। पर किताब कुछ नहीं देती—सिर्फ शब्द। बाकी सब बच्चा खुद बनाता है। वह गुलिवर को अपने मन में जितना बड़ा चाहे उतना बड़ा बना लेता है, रम्पलस्टिल्टस्किन का नाम अपने मन में बदल लेता है। यही प्रक्रिया उसकी कल्पना को स्वतंत्र और शक्तिशाली बनाती है। वह सीखता है कि दुनिया उसके दिमाग में जितनी बड़ी हो सकती है, उससे बड़ी कोई स्क्रीन नहीं बना सकती।
बाल साहित्य मानव सभ्यता का मजबूत आधार
अंत में यही कहा जा सकता है कि बच्चों का साहित्य कोई छोटा साहित्य नहीं है। वह मानव सभ्यता का सबसे मजबूत आधार है। जो समाज अपने बच्चों को अच्छी कहानियाँ नहीं सुना पाता, वह नैतिकता भी नहीं सिखा पाता और न ही कल्पना शक्ति दे पाता है। जो बच्चा कहानियों के साथ बड़ा होता है, वह न केवल अच्छा इंसान बनता है, बल्कि सपने देखना और उन्हें साकार करना भी सीखता है। इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने बच्चों को सबसे पहले किताबें थमाएँ, उन्हें कहानियाँ सुनाएँ, उन्हें खुद कहानियाँ गढ़ने दें। क्योंकि एक अच्छी कहानी न केवल एक बच्चे का बचपन बचाती है, बल्कि आने वाली पूरी पीढ़ी का भविष्य संवारती है।बच्चों का साहित्य वह जादुई कुँजी है जो नन्हे दिलों के ताले खोलती है—नैतिकता का ताला भी और कल्पना का ताला भी। और जब ये दोनों ताले खुल जाते हैं, तो बच्चा न केवल अच्छा इंसान बनता है, बल्कि एक पूरा इंसान बनता है—जो न केवल जीता है, बल्कि सपनों से जीता है।


COMMENTS