चाँदी के दस सिक्के | हिन्दी कहानी

SHARE:

चाँदी के दस सिक्के मई की चिलचिलाती हुई तपती धूप में मृदुता भी धरा का दामन छोड़ चुकी थी,नदिया जल रहित होने को थी ,अनिल से भी शीतलता विरक्त हो चुकी थी।

चाँदी के दस सिक्के


ई की चिलचिलाती हुई तपती धूप में मृदुता भी धरा का दामन छोड़ चुकी थी,नदिया जल रहित होने को थी ,अनिल से भी शीतलता विरक्त हो चुकी थी।
 
उष्णता के इस विशाल साम्राज्य में खंडहरों सा प्रतीत होता पृथ्वी का आंचल, उसी भग्नावशेष में प्राचीर की भांति खड़े हुए बाग बगीचो के संकुल में कोमल तरु के साथ ही वृहद वृक्ष के शाखाओं में संलग्न पल्लव की कोमलता भी शुष्क हो चुकी थी, और उसी कि अर्द्ध छाया में खग समुदाय का बसेरा भी व्यथित प्रतीत होता दिखाई दे रहा था।

मानो सूर्य देव भी धरा को इस माह में प्रसन्नचित नहीं देखना चाहते है, सूर्य देव की तपन से तो आदमी को राहत मिल भी जाती लेकिन पवन देव अपनी तीव्रगामी चाल से भारत के लगभग संपूर्ण भाग में त्राहिमाम मचा रहे थे।पछुआ हवाएं मनुष्य शरीर के चर्म भाग में विद्यमान तरल पदार्थों को शोषित कर त्वचा की कोमलता को छीन रही थी।गर्मी के इस भीषण आपदा से पृथ्वी पर विद्यमान समस्त सजीव प्राणियों के साथ ही निर्जीव भी त्रस्त थे।

इसी महीने में दुधारू मवेशियों की उचित देखभाल न करने पर मवेशी दूध देना भी बंद कर देते थे।हमारा समाज कृषक था , तो यह बात जायज है कि पशुपालन हमारे भी यहां भी होता था , बड़ी मात्रा में तो नहीं लेकिन एक भैंस हमारी माता जी के सानिध्य में पाली जाती है।

मुझे मेरी जननी की एक मीठी उक्ति याद आ रही है जिसे मैं व्यक्त कार रहा हु - इसी माह (अर्थात मई,जून) में मेरी माता जी हमेशा एक बात कहती थी की- "जेष्ठ, वैशाख के महीना में तो मदार में दूध नाय रहत तो बतावा बिना नहवाए गोरु के थने में कहा से दूध मिले "

इसी उक्ति को सहारा बना कर मेरी माता जी दस से पंद्रह बाल्टी पानी के साथ उस भैंस को खूब जतन से नहलाती और अपने दैनिक कार्यों का वर्णन अपने ही मुखारबिंदु से करती रहती।

उनकी इस कार्य में घर की केवल एक सदस्या मेरी अग्रजा ही उनकी सहचरी थी। उनका यह कार्य प्रतिदिन का था। मै कभी भी इस कार्य का भागीदार नहीं बनना चाहता था और संयोगवश बनता भी नहीं था। 
 
अभी अभी तो कृषक समाज अपने खेतों खलिहानों से नए फसल के रूप में गेहूं,जौं, चना, मटर, सरसों,अरहर आदि रवि की फसलों को काटकर मानव अपनी गोदाम में भंडारित करके कृषि कार्यों से निवृत हो चुका था साल भर के फसलों को संचित कर शेष को धनार्जन के लिए बेचने की योजना बना रहे थे या कुछ लोग बेच चुके थे।

यही चर्चा परिचर्चा का विषय हमारे चाचा जी की एक बैठका में चल रहा था अधिकांश बच्चे हमारे खानदान के गर्मियों के दिनों में ग्यारह बजते ही वहां अपनी उपस्थिति लगा देते थे।

चाँदी के दस सिक्के
इस बात को मै जोर देकर कह सकता हु कि ग्रामीण अंचल में विद्युतीकरण तो हुआ है, लेकिन विद्युत यंत्र चलने के लिए तैयार ही नहीं होते है, इस कारण कि वजह से ईट के मकान में फिर राहत ही कहां रहती है जिस कारण मेरे यहां के अधिकांश बच्चे दोपहर के ग्यारह बजते ही विद्युत का गमन हुआ तो सभी लोग चाचा जी की चौपाल में उपस्थित हो जाते थे।

वहां गर्मी का प्रभाव नाम मात्र का होता था क्योंकि वह बैठक छप्पर का बना था चारों तरफ जालीनुमा ईंटों की घेराबंदी की गई थी और इसी कारण हवाएं रिस रिस कर प्रवेश करती थी, जिससे शरीरवारि शीतल होते रहते थे, और तन मन प्रफुल्लित हो उठते थे।

विद्यालयो में गर्मी की छुट्टियां चल रही थी और मैं भी ग्यारह बजाने से पंद्रह मिनट पहले ही चाचा की चौपाल पहुंच गया मेरे वहां पहुंचने से पहले ही ,वहां कुछ अनुज और पितृव्य तथा चचेरे पितामह विराजमान थे चौपाल यानी बैठका में एक लंबा चौड़ा तखत, एक चारपाई, तीन कुर्सियां, एक बाल्टी पानी, लोटा और कुछ मादक पदार्थ खैनी और एक कोने में एक सुपर स्प्लेंडर बाइक गर्मी से त्रस्त होकर आराम कर रही थी।

मैं भी वहां पहुंचा और उचित स्थान लेकर बैठ गया गर्मी का दिन था और ऊपर से मई का महीना और यह महीना तो परिणय महोत्सव का होता है अर्थात गांव में इस माह में अधिकाधिक वैवाहिक कार्यक्रम देखने को मिलते हैं।

विवाह की बात चल रही थी, किसका विवाह कैसे संपन्न हुआ और किसके विवाह में क्या-क्या मिले ,कहां की खान-पान का प्रबंध सर्वोच्च था । इसी बीच हमारे चचेरे दादा अर्थात (मानिकचंद पाण्डेय जी) जो पेसे से एक स्वपोषित इंटर कॉलेज के बड़े बाबू और भूगोल तथा अंग्रेजी ग्रामर के अध्यापक भी है। 

उन्होंने एक बहुत पुरानी बात बताने की अपनी इच्छा प्रकट की उनका मानना है कि यह बात उस समय की है जब वह छोटे थे । वह कहते हैं कि एक गजब विवाह हमारे गांव का था, मैं तुम लोगों को बताता हु हंस कर उन्होंने कहना प्रारंभ किया।

एक बार शरद ऋतु के मौसम में एक पाहुन (रिश्तेदार) हमारे ही गांव की एक ब्राह्मण टोली में देखुवरी के लिए पधारे वे मंगरू पांडे की यहां ठहरे उनका खूब आवाभगत हुआ, यथोचित साधन संपन्न सेवा सत्कार किया गया। 

वे सुबह के दस से ग्यारह बजे के बीच में अपना पदागमन पांडे जी के यहां किए थे,शरद ऋतु में दस,ग्यारह बजे का समय ग्रीष्म ऋतु के भोर के बराबर प्रतीत होता है।जिस समय पाहुन पधारे थे तो वह समय सुबह के भोजन का था, पाहुन को भोजन के लिए आमंत्रित किया गया पाहुन हाथ पैर धोकर, मुख का प्रक्छालन करने के बाद आसन पर बैठ गए।
 
भोजन के लिए पीतल की चमचमाती हुई दो थाली और सामान आकार के दो कटोरी और दो नक्काशीदार चम्मच उन्हीं में से एक कटोरी में बघारी हुई अरहर की दाल और दूसरी कटोरी में गाय की क्षीर से पंचमेवा युक्त बना खीर और नए चावल के बने हुए भात पर देशी घी में नहाई हुई रोटियो को बड़ी ही शालीनता के साथ शोभायमान ढंग से थाली के एक भाग में रखी गई और थाली के बीचों बीच हरि धनिया की पत्ती का आंचल ओढ़े सुंदर फूलगोभी की बनी हुई खुशबूदार सब्जी परोसी गई साथ में आम के अचार से भरी हुई थाली को पाड़े और पाहुन के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।

पांडे जी भगत आदमी थे तो उन्होंने पहला ग्रास निकालकर जल से आचमनी करने के लिए हाथ में जल लिए और भोजन मंत्र का पाठ करने लगे - 

ॐ सह नाववतु।           
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यंकरवावहै।    
तेजस्विनावधीतमस्तु।                
मा विद्‌विषावहै॥              
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:
                                                                  
तदोपरांत दोनों लोगों ने उदर की तृप्ति कर मुख का प्रक्छालन किया और मुख की दुर्गंध को दूर करने के लिए दोनों लोगों ने पान का सेवन किया और फिर मंगरू पांडे जी ने पाहुन के पधारने का प्रयोजन पूछा तो पाहुन ने पान को निमित्त बनाते हुए हंसकर बोले- "अरे उहै बड़की लड़कियां के देखुवरी करय आय रहे" 

तो पांडे जी भी मुस्कुराए और बोले देखा दुबे जी लड़का तो है लेकिन........, लेकिन काउ पाड़े, पाहुन जी बोले ,अरे उहै दान दक्षिणा अउर काउ पाड़े जी कहे।

इतना ही सुनते पाहुन जी तुरंत पलंग से नीचे उतर गए और बोले देखा पाड़े महराज हम लड़की के शादी करें आय अही जेतना रुपिया पैसा मगिहै वोतना देब लेकिन लड़ीका में कौनो कमी ना होय कि चाही।

"पाड़े जी बोले- दुबे महाराज बैइठा लड़ीका तो देखावा जाबै करे।पहिले गांव समाज के हाल बतावा खेती बारी कइसन ब धान के फसल ठीक ठाक भ रहा न"।

"दूबे जी बोलें सब ईश्वर के हाथे में बा उ जवन चहिहै उतनै होय क बा ईश्वर के कृपा से खाय से कम नाय होयके ब "

इसी प्रकार हंसी मजाक में दिन बीत गया शाम का समय आया तो पाड़े और पाहुन बाजार की तरफ चल दिए।

पाड़े के पड़ोस में रहने वाली एक बूढी मां की निगाह पाहुन के ऊपर चली गई उन्हें शंका हुआ कि कोई देखुवार आया है।बस क्या था वे फुली न समायी इसकी सत्यता की जांच करने के लिए वह पड़ोस की औरतों से पूछताछ करने लगी, तो उन्हीं नारी समुदाय में से किसी ने कहा कि शायद कोई देखुवार आया है।

बस क्या था बूढी मां की शंका सत्य ठहरी वे तुरंत नारी के पंचायत समूह से नौ दो ग्यारह हो गई,वे इतना उत्साहित थी कि उन्हें लगा उनके पुत्र डूबरी की शादी हो ही जाएगी क्योंकि उनका जेष्ठ पुत्र अभी कुंवारा था।उन्हें लगा कि शायद पांडे से बात करें तो उनके लाल की शादी हो जाए इसी विषय में बूढी मां चिंता कर ही रही थी कि पाड़े और पाहुन बाजार से लौट आए।अब बूढी मां से रहा ना गया वे रात में ही पाड़े के घर गई और पांडे से आप बीती सुनाई।

पाड़े जी भी पाहुन से बात किए की बगल में ही एक लड़का है उसी को देख लो पाहुन भी राजी हो गए।पर बात आकर रकम पर रुक गई पाहुन का कहना था कि अभी तो उनके पास रुपए नहीं है यदि होते तो लगे हाथ वरिक्षा भी कर देते।

बूढी मां को पाहुन की बात नहले पर दहले के समान लगी और वे सोचने लगी यह मौका हाथ से गवाना नहीं चाहिए, उन्होंने मौका देखकर पाहुन को एकांत में ले जाकर उनसे बोली दुबे जी यदि आप बरीक्षा करना चाहते हैं तो कोई बात नहीं है।

मेरे पास चांदी के दस सिक्के हैं वह मैं आपको दे दूंगी आप उन चांदी के सिक्कों को वरीक्षा महोत्सव में चढ़ा देना इससे मेरी बात बन जाएगी और आपका सम्मान भी रह जाएगा और हम दोनों की इज्जत भी समाज में बनी रह जाएगी।

दुबे जी को यह मौका मानो "अंधे के हाथ बटेर लगने" के समान था, वे बिना समय गवाये झट से तैयार हो गए और दबे मन से बोले यदि आपकी यही इच्छा है तो मैं यही करूंगा लेकिन मेरी प्रबल इच्छा थी कि मैं अपने पैसे से बरीक्षा करता परंतु आप इसकी चिंता ना करें मैं यह कर्ज अपने सिर पर ज्यादा दिन नहीं रखूंगा द्वारपूजा पर कर सहित वापस कर दूंगा।

बूढी मां उनकी बातों को सुनकर बड़ी प्रसन्नचित हुई और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद देने लगी की, हे विधाता आप बड़े शालीन और उच्च विचारवान पुरुष को मेरे घर में भेजे हैं ।

बूढी मां घर में गई और कुछ धुंधले हुए चांदी के दस सिक्के लेकर आई और दूबे जी के हाथ में सौंप दिया ,इतनी गुप्तावस्था में ये कार्य हुआ कि - ये सभी बातें पांडे जी को भनक भी ना लगी ।

सुबह होते ही नाउन घर-घर कहावत देने लगी की बूढी माई के यहां बरीक्षा है सबका निमंत्रण है घर पीछे एक-एक जन को आने के लिए कहां गया है।फिर क्या था लोग भी धोती में नील डालकर सूखाने लगे और कुछ लोग जूते पॉलिश करने लगे तो कुछ लोग सफेद बालों को रंगने में जुट गए तो कुछ लोग दाढ़ी के बालों को साफ करने में जुट गए की बरीक्षा महोत्सव में जाना है ।

उधर बूढी मां के घर पर दो चमार चार कहार मिलकर द्वारा की सफाई करने लगे और जाज़िम डालकर बीचों बीच चार-पांच तखथ मिलकर एक मंच बनाया गया और बिरादराना के बंधु बांधवो को बैठाने के लिए पूरे विरादराना से पलंग (चारपाई )को मंगवाया गया ।

और उस पर रंग-बिरंगे चादर डालकर टूटी खाट की भी शोभा बढ़ा दी गई।आज की सुबह मानो चहल-पहल से भरी हुई थी सूर्य देव भी ठंडी के कारण उठने से अलसा रहे थे लेकिन गांव के गायक मंडली के लोग निज साजो सामान के साथ बूढी मां के द्वार पर जा धामके गायक मंडली का उनके द्वारा पर आना स्वाभाविक था।क्योंकि बूढी मां का लड़का उसी गायन मंडली का प्रमुख गायक था अर्थात बूढी मां का पुत्र एक प्रखर आल्हा गायक था दूर-दूर तक उनकी ख्याति भी थी।

तो उनकी मंडली भला उनके बरीक्षा महोत्सव में धूम क्यों न मचाएं ऐसा हो ही नहीं सकता था ,चारों तरफ चहल-पहल मची हुई थी बिरादरी के बंधु बांधवो का जुटना अब धीरे-धीरे चालू हो गया था ।

एक तरफ आल्हा गायक मंडली सुर भर रही थी ,तो दूसरी तरफ मातृ शक्ति के रूप में विराजमान माताये भी देवस्तुति में मंगलाचार गा रही थी।

आल्हा मंडली में पहले मां सरस्वती की वंदना की गई फिर ढोल पर ताल दिया गया तो हारमोनिया गुनगुनाने लगा और मजीरा ने अपनी सुरम्य ध्वनि को चारों तरफ बिखेरने लगी

 " होउ सहाय देवी शारदा भवानी 
          कण्ठे विराजौ माई अखिल कल्यानी                  
 अखिल कल्याणी माई अखिल कल्यानी 
                शारदा भवानी माई शारदा भवानी 
विनती करौ माई मुरख अग्यानी
                  होउ सहाय देवी शारदा भवानी"

सरस्वती जी की स्तुति समाप्त होते ही करतल ध्वनि के साथ एक स्वरों में जय जय कार से सारा नभ गूंज उठा कुछ प्रतिष्ठित महापुरुष निज शान के लिए गायकों को कुछ मुद्राएं भी पारितोषिक के रूप में भेट किए।बरीक्षा महोत्सव प्रारंभ हुआ पूज्य पुरोहित जी अपने आसन पर विराजमान थे और दुबे जी भी एक बड़ी सी थाल लिए और उस पर कुछ फल फूल और अंग वस्त्र डालकर बैठे थे वैदिक मंत्रों से पहले दोनों को अर्थात वर और पाहुन को शुद्ध किया गया ।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। 
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।

सभी वैदिक विधियो से बरीक्षा का कार्य सम्पन्न हुआ तो एक समय ऐसा भी आया जब पाहुन जी बड़ी सी पीतल की थाल में रखे फल फूल वस्त्र के साथ उसे पर चांदी के चार सिक्के रखकर वर के हाथ में थाल को वे समर्पित कर दिए
"गौर करने की बात है थाल में केवल चार चांदी के सिक्के थे"

नाऊ तुरंत थाल को संभाल लिया अब पुरोहित जी वर और पाहुन को गले मिलने के लिए कहते हैं तो पाहुन जी एक पुष्पों की माला लेकर वर के गले में डालकर गले मिलते समय वर के कान में पाहुन जी कहते है कि "तोहार शादियां न करब". भोला भाला वर सोचता है कि यह कोई रीति या मंत्र है जो कान में कहा जाता है और वह हंस पड़ा इतने में सभी लोग एक साथ एक स्वर में बोले , बोला बोला शंकर भगवान की जय, बरीक्षा महोत्सव समाप्त होता है।

खान पान की यथासंभव साधन संपन्न जो भी व्यवस्थाएं हो सकती थी उसी का आनंद सभी लोग ले रहे थे और इसी बीच पाहुन सभी की नजरों से बचते हुए कब गायब हो गए किसी को पता ही नहीं चला।सभी लोग छक कर भोजन किए और अपने-अपने निवास की तरफ प्रस्थान कर गए, लेकिन जब बूढी मां गोतिन पड़ोसीन को विदा करके घर में गई

और सामने पड़ी थाल देखी तो उनका सिर चकरा गया चार चांदी के सिक्के वे बड़ी ही हैरानी से मन में सोचती और कहती है - बाकी छः चांदी के के सिक्के कहा गए।

वे थाल में रखी सभी वस्तुओ को आकाश में फैले मोती की तरह बिखेर दी और कई बार थाल को निहारती रही जैसे गजमुक्ता की खोज में हुनरमंद लोग जंगल जंगल हाथियों के सरदार की खोज करते है ताकि उन्हें गज मुक्त प्राप्त हो जाए परन्तु वे अथक प्रयासों के बाद भी असफल रह जाते है।

बस वही दशा बूढी मां की आज थी वे अधीर होकर अपने भाग्य को कोसने लगी थी, कि तभी बाहर से पांडे जी की आवाज आती है भक्तिन... अरे वो... भक्तिन पाहुन कहां गए दिखाई नहीं दे रहे है।
घर में हैं क्या, तभी अंदर से बूढी मां की बड़े करुण स्वर में आवाज आती है कि नहीं वह घर में तो नहीं है ,क्या आपके यहां भी पाहुन नहीं है ? मुझे लगा आपके घर होंगे इसलिए ध्यान नहीं दिया तभी पांडे जी का लड़का आता है। 

और कहता है कि जब भोजन परोसा जा रहा था ,तभी पाहुन जी चले गए ,मैंने भोजन करने के लिए उनसे कहा पर वो बिना कुछ बोले ही चल दिए। पाड़े जी बड़े सोच में पड़ गए कि दुबे जी बिना बताए ही चले गए क्या कारण हो सकता है और भोजन भी नहीं किए न ही भेट किए वे यही विचार करते हुए अपने सदन की ओर बढ़ चले। 

उधर बूढी मां की चिंताएं शुक्ल पक्ष के चांद की तरह बढ़ रही थी,और मन में ही विचार करती हुई कहती है कि मैने पाहुन को दस चांदी के सिक्के दिए थे और पाहुन जी ने तो केवल चार चांदी के सिक्के ही क्यों चढ़ाए?, 

यही चिंताएं बूढी मां की मस्तिष्क में अनेक प्रकार के चित्र बना रही थी और वे चित्र बूढी मां को ग्लानि, चिंता में बांधती चली जा रही थी ठंडी की समय में भी उनके शरीर में पसीने की बूंदे दिखाई देने लगी। बूढी मां सोच में पड़ गई पुरखों की कमाई हमने क्षण भर में लुटा दिया लेकिन ;वृद्ध, विवस ,असहाय, अबला स्त्री कहे तो कहे किससे कौन था उनका सुनने वाला और यह समाज जो आज तक उनकी खोज खबर ना ले सका जब वह इस बात को सुनता तो उनके ऊपर ब्यंग्य के बाण चलता और प्रमोदित होता।

उस समाज से क्या आशा करना जिस समाज में विवशता की परिभाषा हास्यात्मक, व्यंग्यात्मक तथ्यों के आधार पर की जाती है वो समाज किसकी समस्याओं को सुलझाने में दिलचस्पी रखेगा जो किसी भी मुद्दे पर गंभीर होने की बजाय प्रमोदित हो उठता है।

समाज में व्याप्त बुराइयों को सोचकर बूढी मां सिहर जाती है और अपनी व्यथित हृदय को धीरज देती है और मन में सोचती है कि छः चांदी के सिक्कों को गवांकर यदि मेरे लाल की शादी हो जाती है तो मैं ईश्वर का धन्यवाद करती हु।

परंतु अनजान बूढी मां को कौन बताएं की वह धूर्त है जिसे बूढी मां ने ईश्वर का दूत समझी थी वह जालसाज था उसका यही पेसा था तभी तो वह वर के कान में कहा था कि "तोहर शदियां न करब"

यूं ही महीने दो महीने बीत गए लेकिन दुबे जी की कोई खोज खबर न थी ना ही कोई संदेश मिला कुछ दिन ऐसे और बीत गए लगन का दिन सामने आने लगा तो बूढी मां की चिंताएं बढ़ने लगी वे सोचती हैं पाड़े के घर जाकर पूछे की दुबे जी की कोई खोज खबर मिली कि नहीं।

एक दिन पाड़े तड़के सबेरे नित्यक्रिया से लौटे और कुएं पर मुख प्रक्छालन करने के लिए ज्यों ही बाल्टी कुएं में डालकर पानी निकालने का प्रयास कर ही रहे थे कि तभी पीछे से, बूढी मां की मंद आवाज उन्हें सुनाई देती है कि बड़कऊ ए बड़कऊ पाहुन की कुछ खोज खबर मिली का तोहका ? 

पाड़े जी ज्यों ही पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें धुंधली छाया में बूढी मां दीन हीन अवस्था में पाषाण की प्रतिमा की भांति खड़ी हुई नजर आई ,अबला की ऐसी दारुण स्थिति को देखकर स्वयं अनंत प्राणियों के भार को वहन करने वाली मां वसुंधरा भी मानो कंपित हो उठी हो। 

पाड़े जी भी उसी भाव में उत्तर देते हुए कहते हैं कि नहीं, उसका क्या खोज खबर जो बरिक्षा के दिन बिना बताए दुम दबाकर भाग निकला था आज तक कभी वह सुदेवस भी नहीं भेजा न ही सुख दुख की खबर ली न दी।

बूढी मां, पाड़े जी की बात सुनकर उनका हृदय वेदना से भर गया वे मूर्धन्य अवस्था में उसी कुएं के पास खड़ी थी और एक प्रबल विचारक की भांति उनकी व्यथित भाव की भंगिमाएं अग्रमस्तिष्क पर रेखाचित्र की तरह अंकित हो रही थी।

जब मनुष्य का मन व्यथित हो जाता है तो वह केवल उस समय चीर सनातन के संरक्षक, परम पुरोधा , वेद पुरुष अनन्य कलानिधि अखिलेश्वर की शरण में जाने के लिए विवश हो उठता है जिसे हम लोग अनेकानेक नामों से जानते है लेकिन फिर भी उसकी पहचान इस चेतनामयी संसार में ईश्वर के नाम से की जाती है ।

बूढी मां भी उसी अजन्मे परम पुरुष , करुणा, कष्टों चिंताओं के समनकर्ता विश्वाधिपति की चौखट पर अंतःमन के माध्यम से पहुंच कर अनुनय विनय करने लगी,एकाएक उनके मन में एक भाव उठा और वे विद्युत गामिनी की भांति अपने निकेतन की ओर बढ़ चली।
और घर पहुंच कर वे अपने पुत्र को बुलाती है और उससे पूछती है कि पाहुन ने उस दिन तुम्हारे कान क्या कहा था?

उनका पुत्र बिना हिचकिचाए उत्तर देने का प्रयास करते हुए कहता है कि पाहुन जी उस दिन गले मिलते समय मेरे कान में कह रहे थे कि "तोहार शादियां न करब" तो मैने सोचा कि यह कोई रीति या मंत्र है जो शायद कान में कहा जाता है और मैं मुस्कुरा दिया था।
 
बूढी मां अपने पुत्र के वक्तव्यों को पूरी तरह से सुनी भी नहीं थी कि वह इस तरह जमीन पर गिरी जैसे कि उनके पैर तले की जमीन ही खिसक गई हो और उनके मुख से एक भी शब्द बाहर न निकले।

उनका पुत्र डर गया और माई माई कहके उन्हें उठाने का प्रयास करने लगा परन्तु मां मूर्धन्य अवस्था में थी तो उनके पुत्र के मुख से करुणा की ध्वनियां बाहर आई और उसके नयन से जल की एक बूंद मां के ललाट पर गिरी ,तो बूढी मां के निर्जीव शरीर में चेतना जागृत हो गई।

तुरंत उठ कर बैठ गई, और धुंधले नेत्र तंत्रिकाओं से अपने पुत्र के मुख को देखकर वे रुदन करने लगी और अपनी आपबीती कहके रोने लगी उनके अंतर मन की वेदना को करुणा को माध्यम बना कर ज्वालामुखी के मैग्मा के समान चहु ओर विस्फोटित हो लगा।

उस करूणा की तपन से चारों तरफ खलबली मच गई और आस पड़ोस के नर नारी समेत छोटे छोटे बच्चे भी बूढी मां के द्वार पर पहुंच गए और उनके पुत्र से इस प्रकार रुदन करने का कारण पूछने लगे तो उनका पुत्र रौधे हुए गले से उत्तर देते हुए कहता है कि न जाने माई को क्या हो गया वे अचेत होकर जमीन पर गिर पड़ी और जब उठी तो रोने लगी।

इस करुणा के रहस्य को केवल करुणा निधान ही जान सकते हैं क्योंकि वे इस चराचर जगत में सर्वत्र विद्यमान रहते हैं जिनके भाव भंगिमाओं से ही सुख दुख,जीवन मरण, लाभ ,यश अपयश, हानि सत्य असत्य, पाप पुण्य, कर्म अकर्म , अनेक प्रकार की लीलाओं के साथ ही कालक्रमिक परिवर्तन होते रहते हैं।

मातृशक्ति के रूप में औरतों की एक छोटी टुकड़ी बूढी मां को समझाने का प्रयास करने लगी और कुछ समय बाद वे सफल भी हो जाती हैं वहीं नारी समुदाय बूढी मां के करुण विलाप का कारण पूछने लगी।

तो बूढी मां चित्कार लगाती हुई बड़े ही करुणारूपी उच्च स्वर में अपनी आप बीती वेदनरूपी प्रत्येक बात को बताने लगी और उस जगत नियामक जगतपति से हाथ जोड़कर निवेदन करती हैं -
कि हे दीनानाथ आप मुझ दुखियारिन को अपने दरबार मे बुला लो मैं तेरे इस माया जाल में उलझ गई हु मुझे केवल तेरा ही सहारा चाहिए तू ही इस जग जंजाल से मुझे दूर कर दे ईश्वर।

जब सभी लोगों ने "चांदी के दस सिक्कों" के साथ ही साथ पाहुन के कुकृत्यो (अर्थात उसका वर के कान में कहना कि "तोहार शादियां न करब") को सुना तो कुछ लोग बूढी मां को ही दोषी ठहराते हुए कहते है कि-

जस करनी तस भोगहु ताता।
नरक जात पुनि क्या पछताता।।

और कुछ भलमानुष लोग बूढी मां को समझाने लगे और बोले अरे माई जो हुआ सो अच्छा हुआ क्योंकि विधिनियामक जगपालन कर्ता जो करते हैं उसमें मनुष्य की  भलाई ही होती हैं
जरा मगज पर जोर डालो और कल्पना करो यदि उस धूर्त की पुत्री से तुम्हारे पुत्र की शादी हो ही जाती और कही वह इससे अधिक की हानि तुम्हे पहुंचा देती तो उस समय आप "न घर की होती न ही घाट की"

बूढी मां को उस भले व्यक्ति की बात मानो भगवान श्री कृष्ण के गीता के उपदेशों के समान प्रतीत हों रहे थे
जिस प्रकार विराट पुरूष ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में गीता के उपदेशों से अकर्मण्य शरीर में ऊर्जा का संचार किया था और उत्तेजित होकर अर्जुन युद्ध भूमि में अपने प्रतिद्वंदियों को मिट्टी में मिलते हुए धर्म और अधर्म के इस भीषण महाभारत के युद्ध में धर्म की जय कराई थी।

आज उसी प्रकार उस व्यक्ति की बातों को सुन बूढी मां के वृद्ध शरीर में भी चेतना का संचार विद्युत गामिनी की भांति हुआ और वे रोना धोना छोड़कर अपने अतीत की बातों का दमन करते हुए एक नए शिरे से नए जीवन को जीने का संकल्प लेती है

घर समाज के सभी लोग बूढी मां को सांत्वना देकर दो चार बात बतलाते हुए निज निकेतन की ओर चले गए ।

यही तक दादा जी कहानी सुनाए और सभी लोग हंसने लगे और इस कहानी का समापन भी यही होता है ।
इसके बाद मुझे यह कहानी अति दारुणमई लगी तो जिसे मैं इस रूप प्रस्तुत किया हूं

अंत में सकल कल्याणी मां वाग्वादिनी के चरणों में यह काब्य  समर्पित करता हूं -

जय भवानी जय
जय सरस्वती महारानी
जय हो विद्या वरदानी।
जय जग वरदानी
जय मां कल्याणी
जय हो सरस्वती भवानी।।


- सौरभ पाण्डेय,
MA हिन्दी साहित्य
ग्राम गुलामीपुर , पोस्ट पटैला, जिला जौनपुर उत्तर प्रदेश भारत
शिक्षा क्षेत्र - बारवीं तक विज्ञान वर्ग गणित से , स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा हिन्दी साहित्य से गांधी स्मारक पी०जी० कालेज समोधपुर जौनपुर जो कि वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर से सहबद्ध हैं।

COMMENTS

Leave a Reply: 2
  1. बहुत सुंदर
    ग्रामीण परिवेश की अद्भुत झांकी इस कहानी में परिवध्द किया गया है

    जवाब देंहटाएं
  2. अति उत्तम सराहनीय कथा

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका