शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत

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शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत एक ऐसा ढांचा है जो प्रशासन को एक व्यवस्थित, संगठित

शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत


शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत एक ऐसा ढांचा है जो प्रशासन को एक व्यवस्थित, संगठित और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया के रूप में देखता है। इस सिद्धांत का आधार फ्रांसीसी प्रबंधन विचारक हेनरी फेयोल के कार्यों पर टिका है, जिन्होंने प्रशासन को पांच मूलभूत कार्यों—नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय और नियंत्रण—के रूप में परिभाषित किया। शैक्षिक प्रशासन के संदर्भ में यह सिद्धांत स्कूलों, कॉलेजों और अन्य शैक्षिक संस्थानों के प्रबंधन को प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह न केवल संस्थानों के दैनिक कार्यों को सुचारु बनाता है, बल्कि दीर्घकालिक शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायता करता है।

प्रशासनिक प्रक्रिया की अवधारणा के विकास में प्रथम प्रणेता होने के कारण सर्वाधिक श्रेय फेयोल (Fayol) को दिया जाता है। फेयोल के इस सिद्धान्त को गुलिक तथा जे. बी. सीयर्स ओर्डवे. टीड, रसेल ग्रेग हेगमेन व स्वार्टज, केम्पबेल कार्वेली तथा रामसायर आदि ने बढ़ाया तथा विकसित किया।यों इस अवधारणा का प्रभाव 1960 तक विशेष रूप से रहा, परन्तु आज भी इसका प्रभाव नजर आता है। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में प्रशासन के क्षेत्र में होने वाले शोध-ग्रन्थों में प्रशासनिक प्रक्रिया को ही आधार माना है।
 
प्रशासनिक प्रक्रिया के अंगों के बारे में विभिन्न लेखकों के दृष्टिकोणों का विश्लेषण करने के बाद रसेल टी. ग्रेग का दृष्टिकोण समीचीन प्रतीत होता है, अतः इस परिच्छेद में ग्रेग द्वारा अपनाये गये 7 प्रशासनिक अंगों की व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। ये प्रशासनिक अंग हैं-

1. निर्णय लेना (Decision making) 
2. आयोजन करना (Planning) 
3. संगठन करना (Organising) 
4. समन्वय करना (Coordinating) 
5. संप्रेषण करना (Communicating) 
6. प्रभावित करना (Influencing) 
7. मूल्यांकन करना (Evaluating ) । 

निर्णय लेना / नीति निर्धारण (Decision Making)

शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत
आधुनिक विचारक रसेल टी ग्रेग के समान अन्य भी निर्णय प्रक्रिया को प्रशासनिक प्रक्रिया का केन्द्र-बिन्दु मानते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि यह संगठन के समग्र कार्यकलापों को नियन्त्रित करता है। लिचफील्ड यहाँ तक कहते हैं कि प्रशासन उन कार्यकलापों का चक्र (Cycle) है, जिसमें आदि और अन्त नीति निर्धारण से होता है। जो कुछ इसकी केन्द्रीय स्थिति स्वीकार नहीं करते, वे भी शायद इसे किसी भी प्रशासनिक अंग से कम महत्त्व का स्वीकार करते हैं।

नीति निर्धारण की प्रक्रिया के अन्तर्गत किसी समस्या के समाधान के लिए उपलब्ध विकल्पों में से किसी एक या अनेक विकल्पों को चुनना होता है। कोई भी प्रशासक जिस विकल्प को उचित समझता है, उसे या तो स्वयं के विवेक से अथवा अपने सहयोगियों की सलाह से चुनता है। यह भी सम्भव है कि समस्या की गुरुता अधिक नहीं है, तो कुछ समय के लिए कोई भी निर्णय ले। नीति निर्धारण के लिए समय का चुनाव अत्यन्त महत्त्व रखता है। समय के चुनाव में भी कारण मूल्य, पर्यावरण आदि कारक महत्त्वपूर्ण होते हैं।

आयोजन करना

प्रशासनिक प्रक्रिया का यह अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण चरण माना जाता है। चाहे संगठन कितना भी बड़ा अथवा छोटा क्यों न हो, संगठन के लक्ष्यों को बिना समुचित योजना बनाये पूरा नहीं किया जा सकता। वस्तुत: चाहे प्रशासन की कोई भी समस्या क्यों न हो, उसके समाधान के लिए क्रमबद्ध योजना बनानी ही होगी।
 
जे. बी. सीयर्स ने योजना की आवश्यकता को अग्रलिखित रूप में व्यक्त किया है- " प्रशासन में आयोजन का सीधा-सादा अर्थ है किसी काम को करने के लिए या किसी समस्या का हल करने के लिए निर्णय लेने हेतु तैयार हो जाओ।"

जॉन मिलेट ने योजना की परिभाषा करते हुए लिखा है कि- “आयोजना यानि किसी काम को करने के लिए बुद्धिपूर्वक तैयारी" आयोजना का अर्थ समझने में कोई कठिनाई नहीं है। कठिनाई इस बात में है कि कार्य को कब और कैसे सम्पादित किया जाय। वस्तुतः योजना, कार्य की लक्ष्य-पूर्ति तक उसकी प्राप्ति का एक साधन मात्र है। यह साधन जितना सुविचारित एवं स्पष्ट होगा, लक्ष्य तक उतना ही शीघ्र तथा बिना विशेष असुविधा के पहुँचा जा सकता है ।"
 

संगठन करना (Organizing)

प्रशासक का एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण दायित्व यह है कि वह संगठन के उद्देश्यों के अनुरूप संगठन में कार्य करने वाले सभी व्यक्तियों की शक्ति को इस प्रकार संयोजित करे कि प्रभावपूर्ण तरीके से उद्देश्य प्राप्त किये जा सकें।
 
ग्रेग के अनुसार - "संगठन का अभिप्रेत है समान लक्ष्य की पूर्ति हेतु संलग्न व्यक्तियों के समूह की समन्वित क्रियाएँ।" लगभग इसी प्रकार का आशय जान वाल्टन ने भी प्रस्तुत किया है। वे मानते हैं कि संगठन कार्यरत व्यक्तियों का एक समूह है, जो समान उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साथ-साथ मिलकर कार्य करते हैं। मुकर्जी के अनुसार संगठन में कार्य करने वाले सभी व्यक्ति आम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे से सहयोग करते हैं। अस्तु, एक प्रशासक के लिए प्रभावी परिणामों एवं निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों को संगठन में समुचित रूप से आवश्यक प्रवृत्तियों के माध्यम से लगाये रखना आवश्यक है। कार्यरत व्यक्तियों की शक्ति को समन्वित तरीके से उद्देश्य प्राप्ति के लिए जितनी अच्छी तरह लगाया जायेगा, संगठन के परिणाम उतने ही प्रभावशाली होंगे।
 
प्रभावी संगठन एवं समन्वय के लिए आवश्यक दशाएँ कुछ होती हैं, जो किसी संगठन में निर्माण करनी पड़ती हैं। इनमें से सर्वाधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण कार्य एवं औपचारिक स्तर का निर्माण है। औपचारिक स्तर का निर्माण इसलिए भी आवश्यक है जिससे कि विभिन्न क्षमता वाले व्यक्तियों को संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति में नियोजित किया जा सके।
 

समन्वय करना (Coordinating)

किसी भी संगठन में अनेक व्यक्ति निश्चित उद्देश्य के लिए संलग्न होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे का सहयोग करता है, परन्तु यह सहयोग तभी सम्भव है, जब कोई व्यक्ति संगठन के उद्देश्य पूर्ति के लिए उन्हें विविध कार्यकलापों में एक साथ मिलाकर लगाता है, कर्त्तव्य निश्चित करता है और निर्देशन देता है, ताकि वे संगठन को अपनी अधिकाधिक देन दे सकें। इस प्रकार वह संगठन के मानवीय और भौतिक साधनों को संगठन के लक्ष्य की प्राप्ति में लगाता है। यही व्यक्ति एक समन्वयकर्त्ता (Coordinator) या प्रशासक कहलाता है। इस प्रकार प्रशासनिक प्रक्रिया में समन्वयकारी भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
 
अच्छे समन्वय के लिए विविध प्रशासनिक स्तरों का भी निर्माण आवश्यक है। वे स्तर, संगठन के विस्तार के साथ-साथ बढ़ते जाते हैं। संगठन और स्तरों के विस्तार से बढ़ने वाले विभागों की प्रशासनिक समस्याएँ भी बढ़ती जाती हैं। इनका समाधान तभी सम्भव है, जबकि विविध स्तरों के बीच ठीक से समन्वय हो ।
 

सम्प्रेषण (Communication)

प्रशासन प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण अंग संचार सम्प्रेषण (Communication) है। इसके अन्तर्गत परस्पर समूहों में सूचनाएँ, विकार, स्पष्टीकरण, प्रश्नोत्तर आदि का संचार किया जाता है। यह व्यक्तियों के मध्य पारस्परिक सम्पर्क का साधन है। इसके द्वारा ऊपरी एवं निम्न स्तर के कार्यकर्त्ता एवं समान स्तर पर कार्य करने वाले कार्यकर्त्ता परस्पर सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। यह ऐसा साधन है, जिसके द्वारा सम्बन्ध बनते और बिगड़ते हैं।
 
सम्प्रेषण प्रक्रिया में निम्नलिखित तत्त्वों का समावेश होता है - 
 
(1) सम्प्रेषण के उद्देश्य (Objectives of Communication
(2) सन्देश भेजने वाला (Communicator
(3) सन्देश का माध्यम (Medium of Communication
(4) सन्देश की श्रृंखलाएँ (Channels of Communication
(5) सन्देश का विषय (Content of Communication
(6) सन्देश पाने वाला (Receiver of Communication)।
 

प्रभावित करना

प्रायः यह कहा जाता है कि बिना अधिकार के जिम्मेदारी कभी पूरी नहीं होती। इसका आशय है कि संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रत्येक स्तर पर अधिकार और कर्त्तव्य का निर्धारण अत्यन्त आवश्यक है, ताकि जहाँ आवश्यक हो वहाँ अधिकारों का विकेन्द्रीकरण किया जा सके। पुनः अधिकार के साथ किसी भी संगठन के विकास के लिए प्रेरक तत्त्व भी हों, जिनकी प्रेरणा से लोग अधिकाधिक कार्य करें। एक अच्छा प्रशासक अनेक प्रकार से अपने अधीनस्थ लोगों को प्रभावित करता है, जिसमें उसकी संगठन के प्रति निष्ठा, उसका चरित्र, समय की पाबन्दी, संगठन के लिए समर्पण की भावना, नेतृत्व की क्षमता आदि बातें आती हैं।
 

मूल्यांकन (Evaluations)

किसी भी संगठन के समुचित विकास के लिए नियमित मूल्यांकन (Continuous Evaluation) आवश्यक है। वस्तुत: मूल्यांकन समग्र प्रशासनिक प्रक्रिया का अविभाज्य अंग है। समुचित, वैध एवं विश्वसनीय मूल्यांकन विधि किसी भी संगठन का सुदृढ़ आधार है, जिस पर किसी भी संगठन का भावी विकास निर्भर करता है।

भारत के सन्दर्भ में शैक्षिक विकास के साथ विद्यालय प्रणाली की आलोचना भी बढ़ी है। आज एक आम आदमी भी विद्यालय में शिक्षा पाठ्य-पुस्तकों, विधियों आदि की आलोचना करता है। यह बात अलग है कि आम आदमी कहाँ तक ठीक है या गलत, पर इसको प्रभाव शिक्षा विभाग में कार्य-कलापों पर पड़ता है।


इस प्रकार शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत का महत्व इसकी सार्वभौमिकता और लचीलापन में निहित है। यह सिद्धांत किसी भी शैक्षिक संस्थान, चाहे वह छोटा स्कूल हो या बड़ा विश्वविद्यालय, पर लागू हो सकता है। यह न केवल प्रशासनिक कार्यों को सुव्यवस्थित करता है, बल्कि शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने में भी मदद करता है। इसके माध्यम से संसाधनों का इष्टतम उपयोग होता है और शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति आसान हो जाती है। साथ ही, यह सिद्धांत प्रशासकों को बेहतर निर्णय लेने में सक्षम बनाता है, क्योंकि यह एक स्पष्ट और संरचित दृष्टिकोण प्रदान करता है।हालांकि, इस सिद्धांत की कुछ सीमाएँ भी हैं। यह सिद्धांत औपचारिक और यांत्रिक दृष्टिकोण पर आधारित है, जो मानवीय भावनाओं और व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरी तरह से संबोधित नहीं करता। 

शैक्षिक प्रशासन में शिक्षक और विद्यार्थी केवल संसाधन नहीं हैं, बल्कि उनकी भावनाएँ, प्रेरणाएँ और व्यक्तिगत परिस्थितियाँ भी महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, यह सिद्धांत जटिल और गतिशील शैक्षिक परिवेश में पूरी तरह से लचीला नहीं हो सकता, जहाँ अप्रत्याशित परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। फिर भी, इन सीमाओं के बावजूद, प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत शैक्षिक प्रशासन का एक मजबूत आधार प्रदान करता है, जो व्यवस्थित और प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करता है।

निष्कर्षतः, शैक्षिक प्रशासन में प्रशासनिक प्रक्रिया सिद्धांत एक ऐसा मार्गदर्शक सिद्धांत है जो संस्थानों को उनके शैक्षिक और प्रशासनिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करता है। यह नियोजन, संगठन, निर्देशन, समन्वय और नियंत्रण के माध्यम से एक संरचित और व्यवस्थित दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह सिद्धांत शैक्षिक संस्थानों को न केवल उनके दैनिक कार्यों को सुचारु बनाने में मदद करता है, बल्कि दीर्घकालिक विकास और उत्कृष्टता की दिशा में भी प्रेरित करता है।

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