इतिहासनामा भारतीय इतिहास लेखन की परंपरा तथा समकालीन विमर्शों पर केंद्रित एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कृति है। यह ग्रंथ इतिहास, साहित्य और संस्कृति के पारस्
इतिहासनामा: हिंदुस्तान के पवित्र भूगोल का सांस्कृतिक-ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इतिहासनामा भारतीय इतिहास लेखन की परंपरा तथा समकालीन विमर्शों पर केंद्रित एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कृति है। यह ग्रंथ इतिहास, साहित्य और संस्कृति के पारस्परिक संबंधों की गहन पड़ताल करता है। प्रख्यात इतिहासकार रज़ीउद्दीन अक़ील ने भारतीय इतिहास लेखन की चुनौतियों, स्रोतों तथा नवोन्मेषी शोध प्रवृत्तियों पर संतुलित और गंभीर विमर्श प्रस्तुत किया है।
पुस्तक में प्राचीन भारत के इतिहास लेखन के स्रोतों का विश्लेषण करते हुए विशेष रूप से कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ का उल्लेख किया गया है। लेखक का यह मत उल्लेखनीय है कि केवल एक संवेदनशील एवं निपुण इतिहासकार ही अतीत के यथार्थ का सटीक चित्रण कर सकता है। साथ ही यह भी प्रतिपादित किया गया है कि साहित्य, विशेषकर काव्य, इतिहास लेखन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हो सकता है, जिसकी ऐतिहासिक समझ आवश्यक है।
मध्यकालीन भारत के संदर्भ में लेखक ने सूफ़ी और भक्ति आंदोलनों के माध्यम से यह स्थापित किया है कि उस काल में भाषा संवाद की बाधा न होकर धार्मिक और मानवीय मूल्यों के प्रसार का सशक्त माध्यम थी। अमीर खुसरो के उदाहरण से स्पष्ट होता है कि उनकी रचनाएँ — पहेलियाँ, कहावतें और गीत — आज भी लोकजीवन में जीवंत हैं।
मुग़ल काल के अध्ययन में लेखक ने बाबर, अकबर और औरंगज़ेब के शासनकाल का राजनीतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विश्लेषण करते हुए यह दर्शाया है कि इतिहास केवल सत्ता का आख्यान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अंतःसंवाद का भी साक्ष्य है। विशेष रूप से औरंगज़ेब को समर्पित एक ‘रामकथा’ का उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि भारतीय परंपरा में धार्मिक समन्वय की रेखाएँ सदैव सुदृढ़ रही हैं।
लेखक ने जाफर जटाली जैसे शायरों की आलोचनात्मक दृष्टि को उद्धृत करते हुए यह प्रतिपादित किया है कि साहित्य अपने समय का सच्चा दर्पण होता है। दीपावली जैसे त्योहारों पर उर्दू शायरों की अभिव्यक्तियाँ भारतीय संस्कृति में निहित सामूहिकता और समन्वय को रेखांकित करती हैं।
पुस्तक में आर्थिक, भाषिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक इतिहास के साथ-साथ सामाजिक दृष्टिकोणों का समावेश इसे और अधिक व्यापक बनाता है। लेखक का यह निष्कर्ष उल्लेखनीय है कि कवियों और शायरों ने भेदभाव से ऊपर उठकर प्रेम, सहिष्णुता और मानवीय मूल्यों को जनमानस में जीवित बनाए रखा।
मिर्ज़ा ग़ालिब के जीवन और काव्य का विश्लेषण, महात्मा गांधी के स्मारकों तथा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के भाषणों तक यह कृति आधुनिक भारत की सांस्कृतिक चेतना का सजीव चित्र प्रस्तुत करती है। मौलाना आज़ाद का यह उद्धरण — “महान धर्मों का उद्भव सुधार और मानवता की भलाई के लिए हुआ है, परंतु वे प्रायः मानव संकट का कारण बन जाते हैं” — लेखक के विमर्श को एक दार्शनिक गहराई प्रदान करता है।
सूफ़ी कव्वाली और भक्ति आंदोलन के आलोक में प्रेम, करुणा और मानवता के संदेश को भारतीय इतिहास की मूल आत्मा के रूप में प्रस्तुत करते हुए यह ग्रंथ निष्कर्ष देता है कि प्राचीन से आधुनिक काल तक भारतीय सभ्यता की नींव सदा प्रेम, सहिष्णुता और एकता पर आधारित रही है।
यह पुस्तक इतिहास और साहित्य के अंतर्संबंधों को समझने का एक सम्यक अवसर प्रदान करती है। यह इतिहास लेखन को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देती है तथा भारतीय समाज की बहुलतावादी परंपरा का एक सजीव दस्तावेज़ प्रस्तुत करती है। निःसंदेह, यह कृति इतिहास के विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं भारतीय संस्कृति के अध्येताओं के लिए एक मूल्यवान संदर्भ ग्रंथ सिद्ध होगी।
पुस्तक का नाम: इतिहासनामा: हिंदुस्तान के पवित्र भूगोल का सांस्कृतिक-ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
लेखक: रज़ीउद्दीन अक़ील
प्रकाशक: मनोहर प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रकाशन वर्ष: 2025
पृष्ठ संख्या: 162
मूल्य: ₹245
समीक्षक:
रतन कुमार
शोधार्थी, इतिहास अध्ययन केंद्र
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
(वर्तमान में: अभिलेखाधिकारी, राष्ट्रीय अभिलेखागार, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली)


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