भारत में विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख दोष समस्याएं और समाधान वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति, बढ़ती हुई जनसंख्या एवं उसके अनुरूप शिक्षा की माँग को देख
भारत में विश्वविद्यालय शिक्षा के प्रमुख दोष समस्याएं और समाधान
वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति, बढ़ती हुई जनसंख्या एवं उसके अनुरूप शिक्षा की माँग को देखते हुए भारत में उच्च शिक्षा के संख्यात्मक प्रसार पर तो ध्यान दिया गया, किन्तु शिक्षा के स्तर तथा गुणवत्ता में ह्रास हुआ। उच्च शिक्षा उद्देश्यविहीन हो गयी है। पाठ्यक्रम अधिक उपयोगी नहीं है। प्रवेश की समस्या व राजनीतिकरण आदि के कारण अशान्ति को जन्म मिला है।
भारत में विश्वविद्यालय शिक्षा की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
उद्देश्यहीनता की समस्या
वर्तमान में डिग्री प्राप्त करना ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य है। उच्च कक्षाओं में प्रवेश लेने वाले छात्रों को यह पता नहीं होता कि वे अमुक विषय क्यों पढ़ रहे हैं? उस विषय तथा उपाधि की उपयोगिता क्या है? पढ़े-लिखे बेरोजगार हताश और विध्वंशक प्रवृत्तियों के शिकार हो रहे हैं। यह सब उच्च शिक्षा की उद्देश्यहीनता के कारण ही हो रहा है।
समाधान- आधुनिक भारत की आवश्यकता है कि शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट हों । वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान का प्रसार विभिन्न क्षेत्रों में हो तथा व्यवसायपरक शिक्षा, उत्तम अनुसंधान, नूतन ज्ञान की खोज, उत्पादन में वृद्धि एवं राष्ट्रीय एकीकरण की भावना का विकास हो। कोठारी आयोग तथा राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी सुझाव दिये गए हैं।
प्रवेश की समस्या
वर्तमान समय में उच्च शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश पाने की समस्या बहुत जटिल है। महाविद्यालय खुलते ही प्रवेश की बड़ी स्पर्द्धा रहती हैं। सीमित स्थान होने और प्रवेशार्थियों की भीड़ के कारण अराजकता की स्थिति आ जाती है। राजनीतिक पार्टियों द्वारा वोट बैंक बढ़ाने के लिए आरक्षण नीति को प्रत्येक क्षेत्र में लागू किया जाता है, जिससे सामान्य वर्ग के प्रतिभाशाली छात्रों को प्रवेश नहीं मिल पाता है।
समाधान- माध्यमिक शिक्षा को और अधिक रोजगारपरक बनाया जाए, जिससे उच्च शिक्षा में प्रवेश की समस्या न हो। साथ ही उच्च शिक्षा में केवल प्रतिभाशाली छात्रों को ही प्रवेश मिले। चयन के आधार पर प्रवेश मिले। उच्च शिक्षा में किसी प्रकार का आरक्षण नहीं होना चाहिए।
पाठ्यक्रम की समस्या
उच्च शिक्षा संस्थाओं में प्रचलित पाठ्यक्रम आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। पाठ्यक्रम जीवन से कटा हुआ, नितान्त औपचारिक, सैद्धान्तिक और परम्परागत है। यह मात्र सूचना देने वाला है। पाठ्यक्रम नीरस तथा संकीर्ण है, छात्रों की रुचि के अनुकूल नहीं है। इसमें कार्यानुभव को कोई स्थान नहीं दिया गया है।
समाधान- उच्च शिक्षा का पाठ्यक्रम राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप बनाया जाए। पाठ्यक्रम विकासशील भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप हो, कार्यानुभव पर आधारित हो। पाठ्यक्रम निर्मित करते समय छात्रों की रुचि, योग्यता तथा उनके सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखा जाए।
अनुशासन की समस्या
उच्च शिक्षा में अनुशासनहीनता भी एक समस्या है। आये दिन छात्र, शिक्षक, कर्मचारी हड़ताल करते रहते हैं। पढ़ने-पढ़ाने का वातावरण नहीं बन पाता है, जिससे देश के विकास की गति बाधक होती है। राजनीतिक दलों का विश्वविद्यालयों के कार्यों में हस्तक्षेप रहता है। छात्रों की विध्वंशक गतिविधियाँ होती हैं।
समाधान- उच्च शिक्षा में अनुशासन स्थापना का उत्तरदायित्व पूरे समाज का है और इसलिए छात्र, शिक्षक, अभिभावक, राजनेता और शिक्षा व्यवस्था सभी में सुधार की अपेक्षा की जानी चाहिए। माता-पिता अभिभावक संघ, पाठ्य सहगामी क्रियाओं, उत्तम सुविधायुक्त पुस्तकालय, शैक्षिक आयोजनों की व्यवस्था, नैतिक शिक्षा की व्यवस्था आदि के द्वारा छात्र व छात्राओं को सृजनात्मक बनाना चाहिए। व्यस्तता में अराजकता की सम्भावना कम रहती है।
दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली
उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा दोष प्रचलित परीक्षा प्रणाली का है। विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अनुसार- "यदि हम विश्वविद्यालय शिक्षा के केवल एक विषय में सुधार का सुझाव दें तो वह परीक्षाओं के सन्दर्भ में होना चाहिए।"
उच्च शिक्षा में सम्पूर्ण शिक्षण परीक्षाओं के अधीन है। परीक्षाएँ सर्वोपरि हैं और वर्तमान परीक्षा पद्धति इतनी दोषपूर्ण है कि उसमें सही मूल्यांकन की आशा नहीं की जा सकती है।
माध्यम की समस्या
उच्च शिक्षा में भाषा के माध्यम की समस्या से भी शिक्षा के स्तर में गिरावट आती है। राष्ट्र की शक्ति क्षीण होती है, शिक्षा महँगी हो जाती है। छात्रों की क्षमता का सही उपयोग नहीं हो पाता।
समाधान- उच्च स्तर पर शिक्षा के माध्यम के रूप में राष्ट्रभाषा हिन्दी व क्षेत्रीय भाषा को अपनाना चाहिए। कम से कम साहित्य के उन्नयन में यही सर्वोपरि विचार होना चाहिए।
शैक्षिक स्तर की समस्या
उच्च शिक्षा में गुणवत्ता के आधार पर गिरावट हुई है। संख्यात्मक प्रसार अधिक हुआ है, किन्तु स्तर ऊँचा नहीं उठा है। आरक्षण के कारण निम्न योग्यता वाले छात्र को प्रवेश मिलता है और श्रेष्ठ योग्यता वाले छात्र प्रवेश से वंचित रह जाते हैं। इसी प्रकार निम्न योग्यता वाले शिक्षकों की नियुक्ति हो जाती है, परन्तु उत्तम योग्यता वाले शिक्षक बेरोजगार बने रहते हैं। छात्र संघों का चुनाव तथा राजनीतिक हस्तक्षेप भी शैक्षिक स्तर को गिराने में उत्तरदायी हैं।
समाधान - कक्षाओं में 75 प्रतिशत उपस्थिति अनिवार्यतः हो, शिक्षक कर्त्तव्य का पालन करें, छात्रों का राजनीतिकरण न हो, मूल्यांकन में पारदर्शिता हो, शैक्षिक सत्र नियमित हो, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में शैक्षिक उपकरण तथा संसाधनों की उपलब्धता निश्चित हो, प्रचलित पाठ्यक्रम में सुधार हो, योग्य विद्यार्थियों को प्रवेश मिले, साथ ही अच्छे शिक्षकों की नियुक्ति हो, तभी शैक्षिक स्तर की गुणवत्ता बढ़ायी जा सकती है।
निर्देशन सेवाओं का अभाव
उच्च शिक्षा में परामर्श व निर्देशन का अभाव है इसलिए अधिकांश छात्र दिशाहीन शिक्षा पाकर समय व धन दोनों का अपव्यय करते हैं।
समाधान-छात्र स्तर पर जिसमें जैसी योग्यता हो और जिसकी जैसी आवश्यकता हो शिक्षा देनी चाहिए।
निष्कर्षत: भारत में विश्वविद्यालयीय शिक्षा में उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त अनुसंधान कार्यों में शिथिलता पायी जाती है। मौलिक शोधों का अभाव रहता है, वित्तीय संकट भी कभी-कभी इसके लिए उत्तरदायी रहता है।


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