आए जोग सिखावन पाँड़े पद का अर्थ व्याख्या गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य करती हुई उनके ज्ञान एवं योग की खिल्ली उड़ाती हैं। वे कहती हैं योग-साधना का विधान विध
आए जोग सिखावन पाँड़े पद का अर्थ व्याख्या
आए जोग सिखावन पाँड़े।
परमारथी पुराननि लादे, ज्यों बनजारे टाँड़े।
हमरे गति पति कमल नैन की जोग सिखैते राड़े।
कहो मधुप कैसे समाहिगे, एक म्यान दो खाँड़े।
कह षटपद कैसे खैयतु है, हाथिन के सँग गाँड़ै ।
काकी भूख गयी बयारि भखि, बिना दूध घृत माँड़ै ।
काहे कौ झाला लै मिलवत, कौन चोर तुम डाँड़ै ।
सूरदास तीनौ नहिं उपजत धनियाँ धान कुम्हाड़ै ।।
प्रसंग - गोपियाँ उद्धव पर व्यंग्य करती हुई उनके ज्ञान एवं योग की खिल्ली उड़ाती हैं। वे कहती हैं योग-साधना का विधान विधवाओं के लिए होता है, हम तो कृष्ण के प्रेम में दीवानी हैं।
व्याख्या- गोपियाँ आपस में उद्धव का उपहास करती हुई कहती हैं- हे सखी! उद्धव जी ज्ञानी पण्डित हैं और हमें योग सिखाने मथुरा से आये हैं। ये तो बड़े परमार्थी हैं जो बिना बुलाये हमारा कल्याण करने के लिए दौड़े चले आये और अपनी योग साधना यहाँ उसी प्रकार हम लोगों को दे रहे हैं जैसे कोई बंजारा सामान लादकर गाँव-गाँव में बेंचता फिरता है। ये भी पुराणों के उस ज्ञान को लादकर यहाँ लाये हैं देखो तो सही इन बेचारों ने हमारे लिए कितने कष्ट सहे हैं।
हे उद्भव ! सम्भवतः तुम यह भूल गये कि हम गोपियाँ तो कमल जैसे नेत्रों वाले कृष्ण की प्रेमिकाएँ हैं, वे हमारे पति हैं। हम कोई रांड-विधवा नहीं हैं जो हमें योग-साधना की आवश्यकता है? हे उद्धव (रूपी भ्रमर) ! तुम्हीं बताओ एक म्यान में दो तलवारें कैसे समा सकती हैं? भाव यह है कि हमारे हृदय में तो कृष्ण के प्रति प्रेम समाया हुआ है और तुम उसमें ज्ञान योग भर देना चाहते हो। यह उसी प्रकार असम्भव है जैसे एक म्यान में दो तलवारों का समा जाना असम्भव होता है। हे उद्धव! तुम्हीं बताओ क्या कोई मनुष्य हाथियों के साथ गन्ना खाने की प्रतियोगिता कर सकता है? हाथी तो एक ही बार में अनेक गन्नों को खा जाता है और मनुष्य एक ही गन्ने को खाने में काफी समय लगा देता है। इसलिए हाथी के साथ मनुष्य की प्रतिस्पर्धा असम्भव है। उसी प्रकार यह भी असम्भव है कि हम अबला नारियाँ योग-मार्ग की दुरूह साधना करने में समर्थ हो सकें।
यह बताओ कि बिना, दूध, घी और रोटी खाए केवल वायु-भक्षण करने से (प्राणायाम करने से) किसी की भूख दूर हो सकती है ? जैसे यह असम्भव है वैसे ही हमारे लिए योग-साधना करना भी असम्भव है। पता नहीं तुम किसलिए बातें गढ़-गढ़ कर व्यर्थ की बकवास कर रहे हो। हमने ऐसी क्या चोरी की है जिसे तुम चोर की तरह दण्ड देने यहाँ आये हो अथवा तुम ऐसे कहाँ के साहूकार हो जो हमें चोर समझकर दण्ड देना चाहते हो। तुम तो स्वयं चोर हो जो हमारे सर्वस्व कृष्ण को हमसे चुरा ले जाने के लिए यहाँ आये हो। तुम्हें यह बात मालुम है कि जिस प्रकार धनिया, धान, कुम्हड़ा की खेती एक साथ नहीं हो सकती, ऐसा होना असम्भव है, उसी प्रकार यह भी असम्भव है कि हम कृष्ण को त्यागकर तुम्हारे ब्रह्म को स्वीकार कर लें।
विशेष- उपरोक्त पद में निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
- सूरदास जी ने इस पद में विभिन्न उदाहरण देकर यह सिद्ध किया है कि असम्भव को सम्भव नहीं किया जा सकता। गोपियाँ इन उदाहरणों के माध्यम से यह व्यक्त करना चाहती हैं कि हमारे लिए कृष्ण प्रेम का त्यागना नितान्त असम्भव है।
- एक म्यान में दो खांड़े में लोकोक्ति अलंकार ।
- ब्रज क्षेत्र में धनिये की खेती जाड़ो में, धान की खेती वर्षा ऋतु में और कुम्हड़े की खेती ग्रीष्म ऋतु में होती है। यदि कोई व्यक्ति इन तीनों को एक ऋतु में पाना चाहे तो असम्भव है।
- परमारथी पुराननि लादे में व्यंग्य भाव है।
- वियोग श्रृंगार, ब्रजभाषा, गेय पद।

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