मेरा प्यार शालीमार

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प्यार शब्द सुनते ही दिमाग में गुलाब की पंखुड़ियाँ, शायराना आवाज़ें, और 'फिल्मी बैकग्राउंड म्यूज़िक' बजने लगता है। लेकिन आज के ज़माने में प्यार भी मॉल

मेरा प्यार शालीमार

       
प्यार शब्द सुनते ही दिमाग में गुलाब की पंखुड़ियाँ, शायराना आवाज़ें, और 'फिल्मी बैकग्राउंड म्यूज़िक' बजने लगता है। लेकिन आज के ज़माने में प्यार भी मॉल में मिलने वाली डिस्काउंट सेल की तरह हो गया है – “लो जी, आज दो खरीदो तो एक दिल मुफ्त।” मैं भी इसी बाज़ारू प्रेम का ग्राहक निकला। और मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती  या यूं कहिए सबसे बड़ा कॉमेडी शो था मेरा "प्यार" यानी शालीमार।
          
मेरी शालीमार से मुलाक़ात बिल्कुल फिल्मी अंदाज़ में नहीं हुई। न तो कोई गुलाब का फूल गिरा, न हवा में दुपट्टा लहराया। बल्कि हुआ यूं कि मैं बस में चढ़ रहा था और पीछे से किसी ने इतनी ताक़त से धक्का दिया कि मैं सीधे एक सीट पर जा गिरा। और उस सीट पर बैठी थी -शालीमार।
         
उसने मेरी ओर देखा, आँखें घुमाईं और बोली ,“अंधा है क्या ? देख के नहीं चल सकता ? मुफ्त का माल समझ रखा है क्या इस सीट को?”
मैंने सोचा, वाह! क्या एंट्री है।
पहली बार किसी लड़की ने मुझसे इस प्रकार से बातें की है ।वह चाहती तो मेरे मुंह पर थप्पड़ भी जड़ सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया ।उसकी बातों से भी नहीं लगा कि मेरा उसके ऊपर गिरना उसे बुरा लगा हो।उसके पास वाली सीट खाली थी। वह थोड़ी खिसक गई ।मैं उसके पास बैठ गया ।मैंने उससे कहा ,"मैं जानबूझकर तुम्हारे ऊपर नहीं गिरा था ,  बल्कि मुझे पीछे से किसी ने धक्का  दिया था।"

उसने मेरी बातों में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं लिया। लेकिन फिर भी मैं उससे बात करने की कोशिश करता रहा।वह कहां पढ़ती है? कहां जा रही है?.. आदि बातें मैं उससे पूछता रहा और वे मेरे पूछे गए प्रश्नों का जवाब देती रही।
उसने अपनी ओर से मुझसे कोई प्रश्न नहीं किया।
      
मेरा प्यार शालीमार
उस लड़की का असली नाम था शालिनी मल्होत्रा। जिस कॉलेज में मैं पढ़ता हूं उसी कॉलेज में उसने नया-नया दाखिला लिया था। शालिनी बड़ी बिंदास लड़की थी ।हमेशा हंसी मजाक, चुटकुले बाजी करती रहती थी। कभी किसी से नाराज होना तो जानती ही नहीं थी। बहुत कम दिनों में ही वह सभी की चहेती बन बन गई। वह जहां भी  उठती -बैठती , महफिल जम जाती। उसके होने से महफिल में रौनक बिखर जाती।इसलिए  कॉलेज में सब उसे  “शालीमार”  कहने लगे थे ।
         
उसे शालीमार नाम सुनना बड़ा अच्छा लगता था। वह बड़े गर्व से, शोख अंदाज में कहती, “ मेरा नाम शालीमार।शालीमार नाम की  एक ब्रांड वैल्यू है। मेरे नाम लेने मात्र से ही नाम लेने वाला परफ्यूम की तरह महक उठता है। इसलिए जब भी किसी को महकना हो तो वह शालीमार ही कहेगा।"

आगे वह बड़े शोख अंदाज से कहती," मैं सबको यह वरदान देती हूं, जो भी मेरा नाम  शालीमार लेगा तो वह महक उठेगा।”
             
सचमुच उसका नाम और स्वभाव बिल्कुल शालीमार परफ्यूम के मानिन्द था।धीरे-धीरे मेरी और शालीमार की बातचीत होने लगी। बातचीत में वह हमेशा कहती ,“मुझे ऐसा बॉयफ्रेंड चाहिए जो मुझे रोज़ सुबह-शाम गुड मॉर्निंग और गुड नाइट के साथ-साथ कविता भी भेजे।”
मैं उसकी चाहत के अनुरूप उसका बॉयफ्रेंड बनना चाहता था। मैंने  अपने मोबाइल को शायर बना दिया।
सुबह 7 बजे, गुड मॉर्निंग के साथ-साथ– “तेरी आँखों में है ताजमहल की चमक।”
रात 10 बजे , गुड नाइट के साथ-साथ– “तेरे होंठों पे खिलते हैं गुलाब।”
लिखकर भेजने लगा।

अब जैसे ही मैं गुड मॉर्निंग लिखकर कविता भेजता।कविता भेजते ही उसका रिप्लाई आता –“ठीक है, लेकिन मेरे लिए नया ड्रेस कब ला रहे हो?”
मुझे तब समझ आया कि उसे शायरी की नहीं, बल्कि उसकी पूर्ति के लिए  उसके मोबाइल में बैंक बैलेंस ट्रांसफर करने की थी। अब  मेरे अकाउंट से उसका बैंक अकाउंट  रीचार्ज होने लगा था। 
खाने पीने का भी उसे बड़ा शौक था। खाने पीने की क्वालिटी और उसकी कीमत के हिसाब से ही वह प्यार का इजहार करती थी उसका प्यार बड़ा हिसाब किताब वाला था।
अगर मैं उसे पिज्ज़ा खिलाऊँ तो “आई लव यू टू द मून।”
अगर बर्गर खिलाऊँ, “ओके, थोड़ा सा लव।”
अगर सिर्फ चाय पिलाऊँ , “यू आर जस्ट फ्रेंड।”
...और अगर कुछ न खिलाऊँ, “ब्लॉक।”
     
उसका रोमांस भी खाने-पीने के मेन्यू कार्ड जैसा था। मैंने सोचा, इस हिसाब से तो एक दिन उसका दहेज पैकेज भी मेक्डोनाल्ड्स की थाली में मिलेगा।शालीमार का असली मंदिर था इंस्टाग्राम।
वह कहती ,“अगर तू सच में मुझसे प्यार करता है तो मेरी हर फोटो पर ‘हार्ट-हार्ट-हार्ट’ अर्थात तीन बार हार्ट की इमोजी डालनी पड़ेगी।”
मैंने कहा ,“मैं अब तक  तुम्हारी एक फोटो पर दो सौ से ज्यादा हार्ट की इमोजी डाल चुका हूँ। क्या इससे नहीं लगा ,मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं”
वह बोली ,“तो क्या हुआ? बाकी दो सौ लोगों ने भी तो हार्ट डाले हैं, उनमें तुम्हारा प्यार कहाँ से अलग दिखा?”
मेरे समझ नहीं आ रहा था कि वास्तव में वह मुझसे प्यार करती भी है या नहीं?
.. और मैं उससे प्यार करता हूं यह उसे जताने के लिए मुझे कितनी बार उसके फोटो पर लाइक ,कॉमेंट्स, इमोजी डालनी पड़ेगी।मुझे अब धीरे-धीरे समझ आ रहा था  कि अब प्यार का पैमाना ‘दिल की धड़कन’ नहीं, बल्कि लाइक और कमेंट की गिनती है।
    घर से आए पैसों से पहले मैं पूरे महीने का खर्चा चला लिया करता था अब मेरी जेब महीने की 10 तारीख तक ही चलती थी। लेकिन शालीमार का प्यार महीने की पहली तारीख से ही शुरू हो जाता था।उसका पहला डायलॉग -“बेबी, प्लीज़ मुझे नया मोबाइल चाहिए।”
दूसरा डायलॉग –
“बेबी, इस वीकेंड मूवी चलते हैं।”
तीसरा डायलॉग –
“बेबी, मेरा बर्थडे आने वाला है, गिफ्ट बड़ा चाहिए।”
मैंने एक दिन कहा –
“तुम्हारा प्यार इतना महंगा क्यों है?”
वो बोली –
“अरे, प्यार सस्ता होता तो सब्ज़ी मंडी में बिक जाता।”
मेरे दोस्त मुझसे पूछते –
“यार, तुझे उसमें क्या दिखा?”
मैं कहता –
“प्यार।”
और वे सब हंस पड़ते।
उसकी सहेलियाँ उससे पूछतीं –
“तू इससे क्यों चिपट रही है?”
वो कहती –
“अरे, टाइम पास है। पर्स में हमेशा कैश रहता है।
..और इंस्टा पर फोटो खिंचवाने वाला बॉय चाहिए ही होता है।”
यानी मैं उसके लिए मोबाइल स्टैंड और एटीएम मशीन का मिला-जुला संस्करण था।
 धीरे-धीरे मुझे समझ आने लगा कि मैं जिस प्यार को “ताजमहल” समझ रहा था, असल में वो “मॉल” है।
जहाँ हर चीज़ का प्राइस टैग लगा हुआ है।
एक दिन मैंने उससे पूछा –
“क्या तुम सच में मुझसे प्यार करती हो?”
वो हँसकर बोली ,“प्यार? अरे पागल, ये 90s की फिल्में नहीं हैं। यहाँ तो बस कनेक्शन होता है। तू मेरे लिए रीचार्ज है, मैं तेरे लिए अट्रैक्शन हूँ। प्यार तो सिर्फ बुक्स में होता है।”
अब मेरे समझ में आया कि वह आज तक मेरा इस्तेमाल कर रही थी। उसके लिए मैं सिर्फ और सिर्फ रिचार्ज था । जिसे मैं अब तक अपना प्यार समझ रहा था ,उसकी निगाह में वह केवल मेरा अट्रैक्शन था। 
उस दिन मेरा दिल टूटकर भी हँस पड़ा। मैंने धीरे-धीरे उससे दूरी बनाना शुरू कर दिया।
     
कुछ महीनों बाद शालीमार की शादी हो गई। शादी भी किसी ‘राजकुमार’ से नहीं बल्कि एक बिज़नेसमैन से, जिसके पास चार गाड़ियाँ और पाँच क्रेडिट कार्ड थे।
वो मुझे शादी में बुलाकर बोली –
“देख, तू टेंशन मत लेना। तू मेरा पहला ट्रायल वर्ज़न था। असली वर्ज़न तो अब शुरू हुआ है।” मैंने सोचा, वाह! मैं तो इसके लिए डेमो पीस निकला।
आज भी जब मैं किसी परफ्यूम की खुशबू सूँघता हूँ और उस पर नाम लिखा देखता हूँ – “शालीमार” तो मेरी आँखों के सामने वो पूरा कॉमेडी शो घूम जाता है।

मुझे लगता है, अगर प्रेम का नया परिभाषा-कोष छपना हो तो उसमें लिखा होगा “प्यार: एक महँगा अनुभव, जो जेब खाली और दिमाग हिला देने की गारंटी देता है।”
प्यार अब वह नहीं रहा जो मीरा ने किया, न वह रहा जो साहिर ने लिखा।
अब प्यार ऑनलाइन शॉपिंग जैसा है –
“डिलीवरी चार दिन की, एक्सचेंज सात दिन में, और रिफंड कभी नहीं।”

मेरे लिए तो “मेरा प्यार शालीमार” अब एक याद है ।एक ऐसी याद, जिसे सोचकर हँसी भी आती है और जेब पर पड़े गड्ढे भी।
  


- हनुमान मुक्त ,"मुक्तायन" ,93, कान्ति नगर,
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