दूरदर्शन की विकास यात्रा और इसकी विशेषताएँ दूरदर्शन या टेलीविजन प्रसारण की दिशा में इंगलैण्ड के जान बेयर्ड नामक वैज्ञानिक ने प्रकाश-यांत्रिक फोटो-मैक
दूरदर्शन की विकास यात्रा और इसकी विशेषताएँ
दूरदर्शन या टेलीविजन प्रसारण की दिशा में इंगलैण्ड के जान बेयर्ड नामक वैज्ञानिक ने प्रकाश-यांत्रिक फोटो-मैकेनिकल विधि विकसित की। इससे जनता और वैज्ञानिकों को इस दिशा में अधिक कार्य करने की प्रेरणा मिली। जून 1946 में ब्रिटेन में सार्वजनिक टेलीविजन प्रसारण आरम्भ हुआ। 1953 में कोलम्बिया ब्राडकास्टिंग सिस्टम ने पूर्ण इलैक्ट्रानिक बहुरंगी प्रसारण आरम्भ किया और 1970 तक आते-आते उन्नत देशों में श्वेत श्याम सेट पुराने फैशन के हो गये। जापान की सोनी कम्पनी ने टी. वी. सेटों में थर्मायोनिक वाल्वों के स्थान पर ट्रांजिस्टर लगाने शुरू किये जिससे टी. वी. सेटों को छोटे आकार का बनाना यहाँ तक सम्भव हुआ कि आज जेबी साइज के टी. वी. भी उपलब्ध हैं।
Lorence Witty के अनुसार- "Television brings entertainment, information and education to millions at a very nominal cost. It has changed buying habits personal habits and tastes. It has educated youngsters faster than any teacher could have taught then in so short span of time."
श्रीमती इन्दिरा गाँधी के अनुसार- "हम दूरदर्शन का विस्तार न केवल मनोरंजन के साधन के रूप में वरन् विकास के लिए शिक्षा के साधन के रूप में चाहते हैं।......... इसमें कोई सन्देह नहीं यह पद्धति लोकतंत्र के लिए बहुत सहायक होगी। ग्रामों के आधुनिकीकरण में इसका योग निर्णायक हो सकता है। कृषकों के लिए देखना ही विश्वास करना है।"
भारत में टेलीविजन की विकास यात्रा
यूरेस्को की अनुदान सहायता से दिल्ली में 15 दिसम्बर, 1959 को एक प्रायोगिक टी. वी. सेवा प्रारम्भ की गयी। दिल्ली के विभिन्न भागों में 21 कम्युनिटी सेट लगाये गये। सामाजिक शिक्षा में इनकी उपयोगिता परखने के लिए यह कार्यक्रम सप्ताह में दो बार और वह भी एक घण्टे का होता था। इस प्रयोग की उपयोगिता संतोषजनक पाये जाने पर 1964 में टेलीक्लबों की संख्या बढ़ाकर 182 कर दी गयी। बीच में फोर्डफाउंडेशन की सहायता से 1961 में दिल्ली के स्कूली बच्चों तथा अध्यापकों को प्रशिक्षण देने के लिए कुछ कार्यक्रम भी चलाये गये। 1965 तक दिल्ली दूरदर्शन केवल सामुदायिक प्रेक्षणों तक सीमित रहा। यह केन्द्र दिल्ली के देहातों तथा स्कूली बच्चों के लिए ही कार्यक्रम प्रसारित करता रहा।
अगस्त 1965 में दिल्ली में प्रथम नियमित सामान्य सेवा प्रारम्भ की गयी। पश्चिम जर्मनी की सरकार के सहयोग से एक आधुनिक स्टूडियो स्थापित हुआ और प्रथम स्थापना के 13 वर्षों बाद यह दिल्ली से बाहर निकला, जबकि बम्बई में अक्टूबर 1972 में टी. वी. केन्द्र बना। 1973 में श्रीनगर व अमृतसर में और 1975 में कलकत्ता, मद्रास और लखनऊ में भी टी. वी. केन्द्र खुले। आज अहमदाबाद, जालंधर, जयपुर, रायपुर, गुलबर्गा, मुजफ्फरनगर, संभलपुर और हैदराबाद इत्यादि में दूरदर्शन केन्द्र हैं।
1982 के एशियाई खेलों के समय भारत में रंगीन टेलीविजन का आरम्भ हुआ। इस समय दूरदर्शन का एक केन्द्रीय निर्माण केन्द्र, 20 अन्य निर्माण केन्द्र तथा 534 ट्रांसमीटर हैं, जिनसे देश के 78.7 प्रतिशत लोगों तक टी. वी. की पहुँच हो गयी है। राष्ट्रीय कार्यक्रम 15 अगस्त, 1982 से प्रारम्भ किये गये। इस समय 14 दूरदर्शन केन्द्रों में अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में कार्यक्रम-निर्माण तथा समाचार बुलेटिनों के प्रसारण की सुविधा सुलभ है।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई ने सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट 'साइट' आरम्भ किया, जिसके अन्तर्गत सीधे उपग्रह प्रसारण द्वारा ग्रामवासियों को शिक्षा सम्बन्धी जानकारियाँ देनी शुरू कीं। 1975-76 में एक वर्ष तक यह कार्यक्रम चला। ग्रामों को सीधा उपग्रह प्रसारण करने वाला भारत विश्व का पहला देश था। भारत का अपना उपग्रह इन्सेट 1-बी जुलाई 1990 से कार्य कर रहा है। जुलाई 1992 में भारत का उपग्रह इन्सेट 2-A कक्षा में स्थापित किया गया, जिसके माध्यम से टी. वी. कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं। अक्टूबर 1994 से उपग्रह इन्सेट 2-बी भी काम कर रहा है। उपग्रहों के माध्यम से अब टी.वी. 15 चैनल चला पा रहा है, जिनसे विभिन्न भारतीय भाषाओं के कार्यक्रम देखे जा सकते हैं। आकाशवाणी की भाँति दूरदर्शन भी सरकारी विभाग है, इसलिए इन माध्यमों से सरकारी कार्यों एवं विचारधारा का प्रचार-प्रसार तो होता ही है, बहुत से मनोरंजक, ज्ञानवर्द्धक तथा . उत्तेजक सीरियल तथा अन्य कार्यक्रम भी दिखाये जाते हैं। इसने 'रामायण', 'महाभारत', 'चाणक्य', सरीखे श्रेष्ठ सीरियल प्रस्तुत किये हैं। मनोरंजन के अलावा टी. वी. का वैज्ञानिक एवं वाणिज्यिक उपयोग भी उल्लेखनीय है।
दूरदर्शन की विशेषताएँ
दूरदर्शन एक ऐसा माध्यम है, जिसमें शब्द सुने जा सकते हैं और आँखों से चित्र देखे जा सकते हैं। जहाँ तक समाचार प्रसारित करने का प्रश्न है, इसके समाचारों एवं आकाशवाणी के समाचार- प्रसारण में यही अन्तर है कि दूरदर्शन मैं समाचार पढ़ने वाले का चेहरा दिखता रहता है और आकाशवाणी से केवल आवाज सुनायी पड़ती है। दूरदर्शन के समाचारों में एक प्रमुख अन्तर इस बात से भी पड़ता है कि समाचारों से सम्बन्धित घटना का चित्र दिखाया जा सकता है। इससे समाचार की प्रभावोत्पादकता बढ़ जाती है।
दूरदर्शन के लिए समाचार तैयार करते समय पत्रकार को आकाशवाणी की ही भाँति सीमित समय के अन्दर प्रमुख खबरें देनी होती हैं। इसलिए उसे खबर इस प्रकार लिखनी होती है कि कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक कहा जाय और यदि सम्बन्धित चित्र दिखाने हैं, तो उनके समय का भी हिसाब रखा जाय। समाचार चयन में सरकारी नीति-निर्देशों, का ध्यान रखना तो विभागीय अनुशासन की आवश्यकता होती है। समाचारों के अतिरिक्त अन्य कार्यक्रमों में मनोरंजन के कार्यक्रमों (यथा संगीत, फिल्म, चित्रहार आदि) को छोड़कर अन्य कार्यक्रम भी ज्ञानवर्द्धक बनाये जा सकते हैं। इन कार्यक्रमों के लिए स्क्रिप्ट बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है क्योंकि कहाँ, किस पात्र के मुख से क्या शब्द बुलवाने हैं और कहाँ वह भाव मुखमुद्रा से दिखाना है, यह तो आना ही चाहिए, साथ ही कैमरे का प्रयोग, उसकी प्रभावोत्पादकता, शब्दों का चयन आदि अनेक बातें हैं, जिनका समुचित ज्ञान हुए बिना दूरदर्शन का कार्यक्रम प्रभावपूर्ण नहीं बन पाता।
संक्षिप्तता दूरदर्शन समाचार का महत्त्वपूर्ण अंग है। मुद्रित माध्यमों में व्याप्त शैली वरेण्य हो सकती है, परन्तु दूरदर्शन तो अतिसंक्षिप्तता पर ध्यान देता है।संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट रूप से विश्व की गतिविधि को जन-जन तक पहुँचाना ही दूरदर्शन की विशेषता।देश-विदेश में घटित घटनाओं की जानकारी समाचार-पत्र तो अगले दिन प्रातः ही दे पाते हैं। इसलिए रातभर की प्रतीक्षा किये बिना हम दूरदर्शन-समाचार देख-सुन लेते हैं। इसमें विजुअल का अधिक महत्त्व होता है। दिखाने में जरा भी चूक होती है, तो दर्शकों के सैकड़ों सवालों से दूरदर्शन की स्थिति दयनीय हो जाती है। दूरदर्शन-पत्रकार, शिक्षक और विकास-अभिकर्त्ता होता है। वह ऐसा शिक्षक है, जो भौतिक वातावरण को बदलने के साथ-साथ मानव-मन की आन्तरिक कलियों को विकसित करता है। दूरदर्शन पत्रकार एक साथ विकास कार्यकर्त्ता, परिवर्तनकर्त्ता और मनोरंजनकर्त्ता होता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 'दूरदर्शन' एक सशक्त प्रसार माध्यम है लेकिन इसके लिए पत्रकार को बहुत सजग अपने कार्य में सक्षम ही नहीं, अपितु बहुत-सी तकनीकी बातों का जानकार भी होना आवश्यक है। इस जानकारी के अभाव में उसका कुशलतापूर्वक कार्यक्रम प्रस्तुत करना सम्भव नहीं हो पाता। दूरदर्शन के तकनीकी कर्मचारियों का भरपूर सहयोग भी इसमें रहना जरूरी रहता है।


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