भाषा विज्ञान और व्याकरण

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भाषा विज्ञान और व्याकरण भाषा का सैद्धान्तिक अध्ययन करने वाले विद्वानों ने अपने अध्ययन-लेखन में जहाँ-जहाँ भाषा विज्ञान की पीठिका तैयार की वहाँ इसके स्

भाषा विज्ञान और व्याकरण


भाषा का सैद्धान्तिक अध्ययन करने वाले विद्वानों ने अपने अध्ययन-लेखन में जहाँ-जहाँ भाषा विज्ञान की पीठिका तैयार की वहाँ इसके स्वरूप का बोध कराते हुए कई विशिष्ट प्रश्न भी उठाये, जैसे- भाषाविज्ञान विज्ञान है अथवा कला ? भाषाविज्ञान का अन्य विषयों या शास्त्रों से क्या सम्बन्ध है ? भाषाविज्ञान और व्याकरण क्या एक ही हैं या इनमें कुछ भेद हैं, इत्यादि। अन्य विषयों में भाषाविज्ञान का सम्बन्ध बताने में वह सूक्ष्म समस्या नहीं है, जो भाषाविज्ञान और व्याकरण का सम्बन्ध और भेद बताने में। इसका कारण यह है कि अनेक आन्तरिक और बाह्य स्थितियों में ये दोनों सचमुच ही अभिन्न लगते हैं और अब हम किन्हीं कारणों से दोनों को कुछ अलग मान भी लेते हैं तो भी यह देखते हैं कि दोनों एक दूसरे में काफी गहराई तक घुसे हुए हैं। 

भाषा विज्ञान और व्याकरण
प्राचीनकाल में जब केवल व्याकरण का ही अस्तित्व था तो भी किसी-न-किसी रूप में भाषा के मूलभूत सिद्धान्तों का अध्ययन होता ही था। शब्दों की रूप-रचना, अर्थविचार और वाक्यविचार आदि संस्कृत के विशिष्ट व्याकरण-ग्रन्थों में बहुत अच्छी तरह से मिलते हैं। दोनों का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है, इन दोनों का ही किसी अन्य विषय से उतना घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं है, जितना घनिष्ठ सम्बन्ध आपस में हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों का आज इतना विकास हो चुका है कि दोनों के ही कुछ स्वतन्त्र अध्ययन-क्षेत्र भी निश्चित हो गये हैं। इन्हीं परिस्थितियों ने दोनों में कहीं साम्य और कहीं वैषम्य को प्रकट कर दिया है। इसी का उल्लेख दोनों का सम्बन्ध समझने के लिए यहाँ किया जा रहा है - 

भाषाविज्ञान और व्याकरण का साम्य

  1. दोनों भाषा के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
  2. दोनों का प्रधान आधार भाषा का ही चिन्तन है तथा दोनों ही भाषा ज्ञान की सूक्ष्मतम दशाओं तक ले जाते हैं। दोनों में विश्लेषण पर जोर दिया जाता है। 
  3. दोनों का स्वरूप शास्त्रीय है व दोनों में सिद्धान्तों की अवधारणा की गयी है। 
  4. दोनों में महत्त्व और उपयोगिता की समानता है और दोनों का वाङ्मय से सीधा सम्बन्ध है। 

भाषाविज्ञान और व्याकरण का वैषम्य

  1. भाषाविदों ने यह मत व्यक्त किया है कि व्याकरण शास्त्र की परिधि में ही फैलता रहा है, जबकि भाषा विज्ञान ने विज्ञान के क्षेत्र में भी सफलतापूर्वक प्रवेश किया, उदाहरणार्थ ध्वनि-विज्ञान के सिद्धान्तों का भौतिकी से निकटतम सम्पर्क है। 
  2. व्याकरण का क्षेत्र अपेक्षाकृत परिमित है, किन्तु भाषा-विज्ञान का क्षेत्र उसकी तुलना में विस्तृत है। 
  3. भाषाविज्ञान का चिन्तन-क्षेत्र भाषा की उत्पत्ति और विकास पर अधिक केन्द्रित होता है, जबकि व्याकरण का चिन्तन-क्षेत्र भाषा के विकसित रूप के परिष्कार पर अधिक टिका हुआ है। इस तरह यद्यपि ऐतिहासिक विकास में भाषा-विज्ञान पहले है और व्याकरण बाद में। 
  4. भाषाविज्ञान के सिद्धान्त भाषामात्र पर टिके होने के कारण अधिक सार्वभौम हैं, जबकि व्याकरण के सिद्धान्त अलग-अलग भाषाओं के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं। 
  5. व्याकरण रूढ़ि और अनिश्चित मान्यताओं को प्रश्रय देता है, जबकि भाषाविज्ञान में भाषा का गतिशील और नवीनतम शोध चलता है। 
  6. भाषाविज्ञान भाषा के विकास की ओर उन्मुख रहता है और व्याकरण उसके परिष्कार की ओर उन्मुख होता है। व्याकरण में सिद्धान्त-निरूपण ही अधिक होता है, पर भाषाविज्ञान में व्याख्या-विश्लेषण मुख्य रूप से होता है, सिद्धान्त-कथन उसका अनुषंग है।
  7. व्याकरण में शब्दजन्य विचार, वाक्य- विचार आदि मुख्य विवेचना-विषय हैं, पर भाषाविज्ञान में ध्वनि-विचार और अर्थ-विचार आदि मुख्य हैं। 
  8. भाषाविज्ञान के सिद्धान्तों में अपवादों की उतनी सम्भावना नहीं रहती, जबकि व्याकरण में अधिक रहती है। 
  9. भाषावैज्ञानिक चिन्तन भाषा के उद्गम से ही आरम्भ होता है, पर व्याकरणिक चिन्तन उसके प्रौढ़ स्वरूप से। 

उक्त असमानताएँ सम्बन्धों की निकटता से ही अनेक प्रकार से सम्भूत होती हैं। इसी को सूत्र रूप में प्रकट करने के लिए भाषा विज्ञान को व्याकरण घोषित किया गया है और व्याकरण को भाषा विज्ञान का अनुगामी भी कहा गया है।

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