पहला कदम भी न मिले तो अनुभव की राह कैसे चले

SHARE:

पहला कदम भी न मिले तो अनुभव की राह कैसे चले शिक्षा हो या स्वास्थ्य, इंजीनियरिंग हो या पत्रकारिता, बैंकिंग हो या सरकारी सेवा — हर क्षेत्र में यही दुवि

पहला कदम भी न मिले तो अनुभव की राह कैसे चले


शिक्षा हो या स्वास्थ्य, इंजीनियरिंग हो या पत्रकारिता, बैंकिंग हो या सरकारी सेवा — हर क्षेत्र में यही दुविधा सामने आती है। युवाओं के सामने सबसे बड़ी बाधा यही है — अनुभव के बिना अवसर नहीं, और अवसर के बिना अनुभव नहीं।   क्या हम एक नवजात शिशु से यह अपेक्षा कर सकते हैं कि वह जन्म लेते ही 100 मीटर की दौड़ पूरी कर ले?  यह प्रश्न सुनने में भले ही हास्यास्पद लगे, पर हकीकत यही है कि आज हम युवाओं से कुछ ऐसा ही करवा रहे हैं। खासकर जब बात नौकरी, और विशेष रूप से शिक्षण जैसे जिम्मेदार पेशे की आती है।

अनुभव की माँग, पर अवसर की बंदिश

आज लगभग हर क्षेत्र की नौकरी विज्ञापनों में एक पंक्ति सबसे आम है — "केवल अनुभवी उम्मीदवार आवेदन करें" या "2–5 वर्षों का अनुभव अनिवार्य" अब ज़रा सोचिए — जब किसी को काम का अवसर ही नहीं मिलेगा, तो वह अनुभव कहाँ से लाएगा? क्या कोई डॉक्टर बिना मरीज देखे, कोई इंजीनियर बिना प्रोजेक्ट के, कोई शिक्षक बिना पढ़ाए या कोई पत्रकार बिना रिपोर्टिंग किए अनुभवी बन सकता है ? यह स्थिति बिल्कुल ऐसी है जैसे :  "ड्राइविंग तभी सिखाई जाएगी जब आपको पहले से गाड़ी चलाना आता हो।" या  "आपको लाइसेंस तभी मिलेगा जब आपने ट्रैफिक में सफलतापूर्वक गाड़ी चला ली हो।"

जब प्रतिभा पर प्रभाव भारी पड़ता है

पहला कदम भी न मिले तो अनुभव की राह कैसे चले
आज की एक और कड़वी सच्चाई यह है कि नौकरी पाना केवल प्रतिभा और कौशल पर आधारित नहीं रह गया है। बहुत-सी जगहों पर यह देखा जाता है कि - यदि आपके पास सिफारिश है, या किसी प्रभावशाली व्यक्ति की पहुंच है, तो आपके लिए दरवाज़े अपने-आप खुल सकते हैं। और अगर नहीं है, तो भले ही आपके पास गोल्ड मेडल हो, अच्छी कम्युनिकेशन स्किल हो, तकनीकी ज्ञान हो — फिर भी दरवाज़ा शायद ही खुले।  बहुत से काबिल छात्र, जिनके पास स्किल, टैलेंट और जुनून है, सिर्फ इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उनके पास "सिफ़ारिश" नहीं होती। अगर अवसर का दरवाज़ा "प्रभाव" की चाबी से ही खुले, तो "योग्यता" को कोई क्यों सीने से लगाए?

जब आत्मविश्वास पर चोट पहुँचती है

कई बार ऐसा होता है कि एक सिफ़ारिश वाला, अपेक्षाकृत कम योग्य उम्मीदवार चुना जाता है, जबकि एक मेहनती, प्रतिभाशाली और प्रतिबद्ध युवा सिर्फ इसलिए पीछे रह जाता है क्योंकि उसके पास न तो अनुभव है, न ही कोई ‘पहुँच’।   एक युवा के आत्मविश्वास पर गहरा असर डालता है। बहुत से प्रतिभाशाली छात्र — जिनमें कौशल, मेहनत और जज़्बा होता है — केवल इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उनके पास न तो कोई ‘पहुँच’ होती है, और न ही अनुभव जुटाने का कोई मंच। धीरे-धीरे, वे अपनी क्षमता पर संदेह करने लगते हैं, या फिर कोई भी नौकरी पकड़ने को मजबूर हो जाते हैं — भले ही वह उनके हुनर के अनुकूल न हो। यह केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हानि है — जब हम योग्य प्रतिभा को खो देते हैं, सिर्फ इसलिए कि हमने उसे पहला मौका नहीं दिया।

जब इंटरव्यू, एक औपचारिकता बन जाए

कई बार उम्मीदवारों को इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है — वे पूरी तैयारी के साथ, उम्मीद लेकर पहुँचते हैं, घंटों इंतज़ार करते हैं… लेकिन अंत में चुना वही जाता है जो पहले से तय होता है। या तो किसी प्रभावशाली व्यक्ति का संदर्भ लेकर आने वाला, या फिर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे पहले ही "तजुर्बे" का आधार मिल गया है। ऐसे में बाकी सभी उम्मीदवारों के लिए यह केवल अस्वीकृति नहीं, आत्म-सम्मान पर गहरा आघात होता है।अगर चयन पहले से तय है, तो दूसरों को बुलाकर उनका समय, मेहनत और आत्म-सम्मान क्यों व्यर्थ करना?

अनुभव: अधिकार नहीं, अवसर का परिणाम

हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हर विशेषज्ञ — चाहे वह शिक्षक हो, डॉक्टर हो या वैज्ञानिक — कभी एक दिन नौसिखिया ही था। यदि उसे पहला मौका न मिला होता, तो आज वह जिस ऊँचाई पर है, वहाँ कभी न पहुँचता। “हर विशाल वृक्ष, कभी एक नन्हा बीज ही था।”

अवसर दो, अनुभव स्वयं आएगा

यदि हम चाहते हैं कि: देश की प्रतिभा बर्बाद न हो, युवा पीढ़ी हताश होकर पलायन न करे, और योग्य लोग अपने क्षेत्रों में उत्कृष्टता लाएँ, तो हमें पहला मंच, पहला मौका और पहली मंज़िल तक पहुँचने की सीढ़ी देनी ही होगी।   क्योंकि जब तक मंच नहीं मिलेगा, प्रतिभा कैसे बोलेगी? और जब तक पहला कदम नहीं मिलेगा, यात्रा कैसे शुरू होगी? अब वक़्त है कि हम व्यवस्था को बदलें — ताकि अगली पीढ़ी अपनी योग्यता के दम पर अपना पहला कदम उठा सके। अनुभव कोई अधिकार नहीं, वह तो अवसर का परिणाम है — और जब अवसर बराबरी से मिलेगा, तभी प्रतिभा अपनी ऊँचाई तक पहुँच पाएगी।


लेखिका परिचय
महिमा सामंत एक इंजीनियरिंग कॉलेज में रसायन शास्त्र की प्राध्यापिका हैं, जिनकी गहरी रुचि मूल्य-आधारित शिक्षा और छात्र विकास में है। उन्होंने कई समीक्षात्मक शोध-पत्र प्रकाशित किए हैं और  Water resources management (Springer) तथा American Chemical Society के अंतर्गत आने वाले प्रतिष्ठित शोध पत्रिकाओं की समीक्षक भी हैं। उनके लेखन में शिक्षा के अदृश्य भावनात्मक एवं नैतिक पहलुओं में उनकी आस्था स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। उनकी रचना "एक मौन मार्गदर्शक" साहित्य कुंज में प्रकाशित हो चुकी है।

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका