हैं हैं छुईयो ना भर्वती सेमखाल का मकान, एक खुले बागीचे के बीच स्थित था। जंगली और स्वयं रोपे गए पौधों का संसार। मौसम आने पर फूल ही फूल, समय से फल और
हैं हैं छुईयो ना
भर्वती सेमखाल का मकान, एक खुले बागीचे के बीच स्थित था। जंगली और स्वयं रोपे गए पौधों का संसार। मौसम आने पर फूल ही फूल, समय से फल और फिर पतझड। कुछ सदा बहार पौधे वर्ष भर पाती सुई गिराते रहते। बन्दर, गिलहरी, लँगूर उधम मचाते, कोपल तोड़ते, टीन की लाल छत पर कुदते फिर आगे चले जाते। चिड़िया दिन भर चहचहाती, भोर से ले कर सूर्यास्त तक। अगर सात बजे प्रात: दाना नहीं मिलता तो पूरा झुंड घोर शोर मचा देता। दाना खा, पानी के टब में नहा, उड़ कर पेड़ की ऊँची डाल का आनंद लेती। इन की दिनचर्या और गमलों के रख रखाव में समय हाथ से फिसल जाता।
आस पास ऐसे ही कई बागीचे और मकान थे। धीरे धीरे अड़ोस पड़ोस के मकान होटल होम स्टे बन गए। दो दिन को अंजाने पर्यटक आते, गाते, चीखते चिल्लाते, कच्चरा फैला कर चले जाते हैं।
भर्वती बड़ बड़ करती फिर, गमले की देख भाल में लग जाती।
भर्वती को कुछ समय बाद महसूस हुआ कि गमले गिनती में कम हैं। शायद बच्चों से टूट गये होंगे, खड़ में फेंक दिये होंगे। बच्चों से बात करने पर उन्होंने इंकार कर दिया। “अगर टूटेगा तो बता देंगे।”
लगातार गमले कम होने से, भर्वती उदास हो गयी और चिंतित भी।
एक दोपहर लेटे लेटे बचपन की कहानी याद आई। पुरानी, बहुत पुरानी नहीं, सौ वर्ष पुरानी कहानी। माँ से सुनी कहानी।एक अमीर जमींदार था। लोग आदर पूर्वक सेठ जी कहते, पत्नी को सिठानी जी कहते।
जब सेठ जी मलाई मांगते तब सेठानी कह देती “मलाई जमती नहीं।”
सेठ ने दूध वाले से बात करी। उस ने कसम उठा ली कि दूध शुद्ध है। वो हेरा फेरि से दूर है तथा हैरान है कि मलाई जाती कहाँ है?
शक की सुई घर में काम करने वालों पर रूकी। पर और कुछ कभी नहीं खोया, सिर्फ मलाई।
सेठ किसी को दोष नहीं देना चाहते थे, जब तक प्रमाण ना हो। एक साँझ, उन्होंने बात अपने इष्ट मित्र, व्यापारी हर लाल से सांझा करी। “भैये, मलाई गायब हो जाती है। जमती नहीं।”
“चिन्ता मत करो, सेहत मत बिगाड़ लो। ये चमत्कारी चार कठपुतली लो। दूध वाले कमरे में, ऊपर एक एक कोने में टांग दो। ध्यान रहे, जब ये करो कोई देखे ना। मलाई खोर स्वयं आ कर तुम्हें बता देगा। काम हो जाए तो कठ पुतली लौटा देना।”
“ऐसा होगा? क्या चमत्कार है?”
“होगा, विश्वास रखो।”
सेठ ने घर पहुँच, मलाई मांगी।
सेठानी ने कहा “जमी नहीं।”
सेठ भोजन कर, सो गए। सुबह, भोर से पहले, मुह अंधेरे, चारों कठपुतली, दूध वाले कमरे में टांग दी और फिर सो गए।
दोपहर का भोजन कर, भ्रमण को निकल गए।
सांझ लौट कर मलाई मांगी। सेठानी सूखे गले, बरसती आँखों से बोली
“सेठ जी, दूध वाले कमरे में, भूतनी, नहीं चार भूतनी है।”
“क्या कहती हो महारानी? भूतनी, चार भूतनी?”
“जी, मुझे सिठानी को चुपके चुपके मलाई खाना पसंद था। ये बात मैं आप को, सेठ जी को बता नहीं पाती थी। आज जितनी बार मलाई लेने गयी एक आवाज़ आती रही।”
“क्या कह रही हो?”
“कहती है, हैं, हैं छुयो ना।
छुइये तो छु इ ये तो हुये क्या?
छुईयो तो छुईयो, अंगुली जरो पर जरो।
अंगुली जरो पर जरो, मलाई चट्टो पर चट्टो।
मैं बाहर आ गयी।
मन ना माना फिर गयी वो बोली
हैं, हैं छुयो ना।
छुइये तो छु इ ये तो हुये क्या?
छुईयो तो छुईयो, अंगुली जरो पर जरो।
अंगुली जरो पर जरो, मलाई चट्टो पर चट्टो।
मैं बाहर आ गयी।
मन ना माना फिर गयी वो कहती है, हैं, हैं छुयो ना।
छुइये तो छु इ ये तो हु ये क्या?
छुईयो तो छुईयो, अंगुली जरो पर जरो।
अंगुली जरो पर जरो, मलाई चट्टो पर चट्टो।
बहुत डर गयी हूँ। मैं नहीं जा सकती। आप निकाल लो।
सेठ मुस्कराए, “छोड़ो, महारानी, सो जाओ। मलाई कल से मिल कर खायेंगे। दुगना दूध मंगयेंगे। सो जाओ।”
अगली सुबह, भोर से पहले, मुह अंधेरे, चारों कठपुतली, दूध वाले कमरे से उतार दीं और फिर सो गए। दोपहर को हर लाल की अमानत धन्यवाद व आभार सहित लौटा दी।
“हुई ना करामात, कौन चोर था।”
“कोई नहीं, घर की बिल्ली।”
“चलो, चिंता खत्म हुई।
भर्वती ने सोचा ऐसी कठपुतली कहाँ से लाऊँ?
फिर ख्याल आया बोलने वाला सी सी टी वी लगवा लो।
अच्छी रकम खर्च कर सी सी टी वी लगवा लिया है पर गमले कहाँ जा रहे पता ही नहीं चल रहा।
अब संतोष कर बैठी हैं “कोई खुश है फूल देख कर, होने दो खुश। चाय वाले से फेंके कुल्हड ले कर और फूल पाती उगा लून्गी। बगीचा सजा रहेगा।”
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