स्वन विज्ञान का अर्थ स्वरूप और शाखाओं का विवेचन

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स्वन विज्ञान का अर्थ स्वरूप और शाखाओं का विवेचन स्वन का अर्थ होता है - ध्वनि। अतः ध्वनिविज्ञान ही स्वन विज्ञान है। ध्वनिविज्ञान का मूल विषय ध्वनि ही

स्वन विज्ञान का अर्थ स्वरूप और शाखाओं का विवेचन


स्वन का अर्थ होता है - ध्वनि। अतः ध्वनिविज्ञान ही स्वन विज्ञान है। ध्वनिविज्ञान का मूल विषय ध्वनि ही है। ध्वनिविज्ञान के लिए अंग्रेजी में 'Phonetics' तथा 'Phonology' शब्द बहुप्रचलित हैं। वस्तुतः ये दोनों शब्द भी पूर्णत: समानार्थक नहीं है। 'Phonetics' शब्द अधिक व्यापक है। इसकी व्यापक परिधि में विश्व की सभी भाषाओं की ध्वनियों के सम्बन्ध में सामान्य सिद्धान्त समाहित हैं। 'Phonology' शब्द किसी विशिष्ट भाषा की ध्वनि-व्यवस्था के अध्ययन के लिए प्रयुक्त होता है। 'Phonetics' ध्वनिविज्ञान के सैद्धान्तिक पक्ष से सम्बन्धित है, जबकि 'Phonology' ध्वनिविज्ञान के व्यावहारिक पक्ष से सम्बन्धित है ! डॉ. भोलानाथ तिवारी ने 'Phonetics' के लिए ध्वनिविज्ञान या ध्वनिशास्त्र तथा 'Phonology' के लिए ' ध्वनि-प्रक्रिया' या 'ध्वनि-प्रक्रिया-विज्ञान' शब्दों का व्यवहार युक्तिसंगत माना है। डॉ. देवीशंकर द्विवेदी ने 'Phonetics' के लिए 'स्वानिकी' तथा 'Phonology' के लिए 'स्वानिमी' शब्दों का प्रयोग किया है।

स्वन विज्ञान का स्वरूप

स्वन विज्ञान का अर्थ स्वरूप और शाखाओं का विवेचन
मूलत: ध्वनिविज्ञान 'ध्वनि' से सम्बन्धित विज्ञान है। भौतिकी या भौतिकशास्त्र (Physics) में ध्वनि (Sound) के भौतिक रूप पर विचार किया जाता है, किन्तु भाषाविज्ञान के अन्तर्गत ध्वनिविज्ञान में ध्वनि के केवल भौतिक पक्ष पर विचार न करके उसके मानव द्वारा उच्चरित उस पक्ष पर विचार किया जाता है, जिस पर पूरी भाषिक व्यवस्था आधारित है। मेघों के गर्जन, अणुबम के विस्फोट तथा बन्दूक की गोली दागने से उत्पन्न भौतिक ध्वनियों और मानव-मुख से उच्चरित भाषिक ध्वनियों में भौतिक समानता के रहते हुए भी भारी अन्तर है। मानवेतर जीवधारियों- मोर, कोयल, सिंह आदि द्वारा उत्पन्न ध्वनियाँ भी ध्वनिविज्ञान की परिधि में नहीं आतीं। ध्वनिविज्ञान का क्षेत्र मानव-मुख से उच्चरित केवल उन ध्वनियों तक सीमित है, जिनसे भाषा अथवा भाषाओं का विकास हुआ है। मानव-मुख के किन अवयवों से किन-किन ध्वनियों का उद्भव होता है ? उत्पन्न ध्वनियाँ श्रोता तक कैसे पहुँचती हैं ? श्रोता इन ध्वनियों को कैसे ग्रहण करता है ? ध्वनियों के कौन-कौन से भेद हैं? ध्वनियों के वर्गीकरण का क्या आधार है ? ध्वनियों में परिवर्तन किन कारणों से घटित होते हैं? ध्वनि-गुण क्या है? कौन-कौन से प्रमुख ध्वनि-नियम हैं? आदि ध्वनि-सम्बन्धी अनेक प्रश्नों पर ध्वनिविज्ञान के अन्तर्गत विचार किया जाता है।

ध्वनि किसी भी भाषा का भौतिक या स्थूल आधार है और उसी में उसका सूक्ष्म वैचारिक या मानसिक आधार भी निहित रहता है। अत: मानव-भाषा के भौतिक तथा वैचारिक पक्षों से सम्बन्धित होने के कारण ध्वनि भाषिक संरचना का मूलभूत उपादान है। भाषा के मूलाधार ध्वनि के अध्ययन से सम्बन्धित होने के कारण ध्वनिविज्ञान भी भाषाविज्ञान का आधारभूत अथवा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अंग है।

स्वन विज्ञान की शाखाएं

मूलतः ध्वनि तीन अवस्थाओं से गुजरती हैं- ध्वनि का उच्चारण, ध्वनि का संवहन अथवा उसका प्रसारण तथा ध्वनि का श्रवण । दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है किसी भी ध्वनि को तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है तभी वह सार्थक होती है। अतः ध्वनिविज्ञान में ध्वनि का अध्ययन करते समय अनेक भाषा वैज्ञानिक उसे पाँच शाखाओं में विभक्त कर लेते हैं-
 

उच्चारण सम्बन्धी अथवा औच्चारणिक ध्वनिविज्ञान

मनुष्य जब ध्वनि का उच्चारण करता है, तब वह अपने सम्पूर्ण वाग्यंत्र के विभिन्न अवयवों का प्रयोग करता है। इन अवयवों में कुछ अवयव ध्वनि का उच्चारण करते समय चलायमान होते हैं अर्थात् वे ऊपर नीचे, आगे पीछे होकर ध्वनि का उत्पादन करते हैं अथवा उसे प्रभावित करते हैं। ऐसे अवयवों में ओंठ, जीभ का अग्र एवं मध्य भाग आदि आते हैं। इनकी चलायमान स्थिति के आधार पर इन्हें चल अथवा करण अवयव भी कह सकते हैं। इसी प्रकार कुछ अवयव अचल रहते हुए ध्वनि-उत्पादन में अपना योगदान देते हैं। ऐसे अवयवों में दाँत, तालु के विभिन्न भागों आदि को लिया जा सकता है।
 
उच्चारण सम्बन्धी ध्वनि विज्ञान में उच्चारण वाग्यंत्र के सभी अवयवों की क्रियाशीलता, उनकी गतिशीलता या संकुचित होने की अवस्था आदि का अध्ययन किया जाता है। इन समस्त अवयवों को मुख्यतः चार भागों में बाँटा जाता है-
  1. श्वास नलिका, भोजन नलिका और अभिकाकल 
  2. स्वर-यंत्र स्वर- मुख और स्वर तन्त्री 
  3. मुख विवर, नासिका विवर और कौआ 
  4. तालु, जिह्वा, ओष्ठ एवं दाँत

प्रसारण सम्बन्धी अथवा प्रासरणिक ध्वनि विज्ञान

जब कोई वक्ता कुछ कहता है अथवा जब कहीं ध्वनि उत्पन्न होती है, तब वह तरंगों के रूप में परिवर्तित होकर चारों ओर फैल जाती है। जैसा कि ज्ञातव्य है कि भाषा-विज्ञान के साथ-साथ भौतिक शास्त्र भी ध्वनि का अध्ययन करता है। भौतिक विज्ञान में प्रासरणिक ध्वनि-विज्ञान का बहुत ही गहराई से अध्ययन किया जाता है। प्रासरणिक ध्वनि-विज्ञान के नियमों, परिणामों, सिद्धान्तों आदि के ही आधार पर ध्वनि सम्बन्धी अनेक यंत्रों, उच्च आवर्ती वाले रडार आदि उपकरणों को बनाया जाता है। परन्तु भाषा-विज्ञान में ध्वनि-विज्ञान की यह शाखा उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं है।
 

सुनने सम्बन्धी अथवा श्रावणिक ध्वनिविज्ञान

ध्वनि विज्ञान की यह शाखा इस बात का अध्ययन करती है कि हम ध्वनि कैसे सुनते हैं। वस्तुत: यह शाखा भी भाषाविज्ञान की दृष्टि से इतनी उपयोगी नहीं है। इसका उपयोग चिकित्सा शास्त्र में अधिक होता है। वस्तुतः हमारे कान को तीन भागों में बाँटा जाता है, जिसे वाह्य, मध्यवर्ती और अभ्यंतर कर्ण कहते हैं। ध्वनि की तरंगें वाह्य कर्ण की नलिका से प्रवेश करके मध्य कर्ण से गुजरती हुई अभ्यंतर कर्ण की झिल्ली पर जाकर टकराती हैं, तब उसमें कम्पन होता है। यह झिल्ली अनेक तंतुओं के माध्यम से मस्तिष्क से जुड़ी रहती है। जब ध्वनि तरंगें उस झिल्ली पर जाकर कम्पन पैदा करती हैं तब तन्तुओं के द्वारा मस्तिष्क तक संदेश पहुँचता है और इस प्रकार हम ध्वनि को सुन पाने में सक्षम होते हैं। भाषाविज्ञान में ध्वनि विज्ञान की इस शाखा की अधिक उपयोगिता इसलिए नहीं है, क्योंकि श्रवण के आधार पर ध्वनि का अधिक व स्पष्ट वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। इसमें ध्वनि का वर्गीकरण वस्तुनिष्ठ तो हो ही नहीं सकता। इसका वर्गीकरण केवल आत्मनिष्ठ हो सकता है, परन्तु वह वर्गीकरण भी प्रत्येक दशा में उचित सिद्ध नहीं होता। उदाहरण के लिए- यदि श्रोता के दृष्टिकोण से ध्वनि किसी एक व्यक्ति को मधुर लगती है, तो निश्चय ही दूसरे व्यक्ति को भी मधुर लगेगी। इसके अतिरिक्त सभी भाषाओं में श्रोता के दृष्टिकोण से ध्वनि के भेद स्पष्ट करने वाले कुछ ही शब्द हैं जैसे-मधुर ध्वनि, कठोर ध्वनि, भारी ध्वनि, भर्राई ध्वनि आदि ।
 

प्रायोगिक ध्वनि विज्ञान

ध्वनि विज्ञान की इस शाखा में किसी-न-किसी प्रकार के यंत्र की सहायता लेकर ध्वनि का अध्ययन किया जाता है। परन्तु इस सम्बन्ध में डॉ. भोलानाथ तिवारी का कथन बिल्कुल सही है कि यह क्षेत्र भाषाशास्त्रियों के वश का नहीं है, जब तक वे गणित, भौतिकशास्त्र आदि से परिचित न हों। अतः भाषाविज्ञान की दृष्टि से ध्वनि विज्ञान की यह शाखा उपयोगी सिद्ध होने पर अधिक व्यावहारिक नहीं हो पायी है। 

ऐतिहासिक ध्वनि विज्ञान

जिस प्रकार भाषाविज्ञान के अध्ययन की दिशाओं में ऐतिहासिक भाषाविज्ञान की पद्धति अपनायी जाती है, ठीक उसी प्रकार ध्वनि विज्ञान में भी ध्वनि का अध्ययन करते समय ऐतिहासिक ध्वनि विज्ञान की पद्धति को अपनाया जाता है। इसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि ध्वनि का विकास कैसे हुआ, ध्वनि के परिवर्तन के क्या कारण थे। आदि।

इस प्रकार स्वन विज्ञान भाषा की ध्वनियों के वैज्ञानिक अध्ययन का आधार है, जो उच्चारण, ध्वनि तरंगों और श्रवण प्रक्रिया से संबंधित है। इसकी तीन शाखाएँ (उच्चारणात्मक, ध्वनिक और श्रवणात्मक) ध्वनि के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती हैं।

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