हिंदी के क्रिया पद और उनका व्यावहारिक प्रयोग हिंदी में क्रिया पद वाक्य का वह हिस्सा है जो किसी कार्य, स्थिति या भाव को दर्शाता है। क्रिया वाक्य का मूल
हिंदी के क्रिया पद और उनका व्यावहारिक प्रयोग
हिंदी में क्रिया पद वाक्य का वह हिस्सा है जो किसी कार्य, स्थिति या भाव को दर्शाता है। क्रिया वाक्य का मूल तत्व है, क्योंकि यह बताती है कि कर्ता क्या कर रहा है, क्या हुआ, या क्या होगा। क्रिया पद का निर्माण मूल क्रिया और उसके साथ जुड़े सहायक क्रिया या रूपांतरक तत्वों से होता है।
संज्ञा रूपायन के समान ही महत्त्वपूर्ण है- क्रिया रूपायन । क्रिया रूपायन पर सारी व्याकरणिक कोटियों का प्रभाव पड़ता है। लिंग, वचन, पुरुष, कारक, काल, वाच्य का क्रिया के रूपों से सम्बन्ध होता है। 'वह लिखता है' तथा 'वह लिखती है' में लिंग के आधार पर क्रिया-रूप में अन्तर आया है। इसी प्रकार 'वह लिखता है' तथा 'वे लिखते हैं' में वचन ने क्रिया-रूपों को प्रभावित किया है। 'मैं लिखता हूँ' और 'तुम लिखते हो' में पुरुष का क्रिया-रूपों पर स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। 'मोहन ने पुस्तक लिखीं' और 'मोहन ने पुस्तकें लिखीं' में कर्मकारक पुस्तकें' के अनुसार क्रिया का रूप भी बहुवचन में बना है। इस प्रकार कारक भी क्रिया के रूप को प्रभावित करता है। 'वह आता है', 'वह आया', 'वह आयेगा' में वर्तमान, भूत और भविष्य काल के अनुसार क्रिया के विभिन्न रूप निर्मित हुए हैं। इसी प्रकार वाच्य का भी क्रिया के रूप पर प्रभाव पड़ता है। 'मैं पुस्तक लिखता हूँ' कर्तृवाच्य है। इसे कर्मवाच्य में रूपान्तरित करते ही क्रिया का रूप कर्म (पुस्तक) के अनुरूप बनेगा, यथा- "पुस्तक मेरे द्वारा लिखी जाती है।' भाववाच्य में क्रियारूप समान रहता है। उस पर लिंग, वचन, पुरुष का प्रभाव नहीं पड़ता, यथा- 'लड़की से सोया नहीं जाता' 'लड़कियों और लड़कों से सोया नहीं जाता', 'उससे सोया नहीं जाता', 'तुमसे सोया नहीं जाता' आदि।
संस्कृत में क्रिया-रूपों में प्रत्यय संयुक्त रहते हैं, यथा- पठति, पठतः, पठन्ति, किन्तु हिन्दी में धातु के बाद जोड़े गये कृदन्त प्रत्ययों से निर्मित रूपों के साथ सहायक क्रिया का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, 'चलता था', 'सुरेन्द्र लिख रहा है', 'सीता खाना बना रही होगी' आदि ।
'तू आ, तू जा, तू लिख, तू पढ़ आदि आज्ञार्थक वाक्यों में क्रियाएँ अपने मूल रूप में ही रहती हैं अर्थात् उनमें कोई विकार (परिवर्तन) नहीं आता। 'तुम जाओ' 'तुम पढ़ो', 'आप जाइए', 'आप जाएँ', 'मोहन जाए', 'मैं जाऊँ' आदि वाक्यों में क्रिया रूप ओ, इए, एँ, ए, ऊँ प्रत्ययों से निर्मित हुए हैं।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि व्युत्पादन की परिणति रूपायन में होती है। शब्द भाषा की कच्ची सामग्री का काम करते हैं, वाक्यों में जुड़कर वे वाक्यात्मक सम्बन्ध-सूत्र में गुम्फित हो जाते हैं और पूरे वाक्य की व्यवस्था के अनुरूप रूप ग्रहण करके वाक्य के अर्थ की अभिव्यक्ति में सहयोग देते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया के रूपों की निर्मित अर्थ की अपेक्षाओं को ध्यान में रखकर भाषिक या व्याकरणिक व्यवस्था के अनुरूप होती है। रूपों की निर्मित में प्रत्ययों की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होती है।
क्रिया, नामधातु तथा हिन्दी की नामधातुएँ
जगत् में जड़ और चेतन सभी के नाम हैं, ये सभी संज्ञाएँ हैं। जड़ और चेतन की क्रमशः भौतिक और जैविक क्रियाएँ हैं। जैसे- गिरना, टूटना, बिखरना, फटना, चलना, उठाना, दौड़ना आदि। इस प्रकार जगत् संज्ञाओं और उनकी क्रियाओं का संगम है। संज्ञाओं की क्रियाएँ हैं और क्रियाओं की संज्ञाएँ । संज्ञा के बिना क्रिया असम्भव है और क्रिया के बिना संज्ञा निरर्थक और निष्क्रिय।
क्रिया, धातु एवं नाम धातु
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं, यथा- पठ् मूल धातु है। इसी मूल धातु पठ् के पुरुष, वचन और लकार के अनुसार विविध रूप बनते हैं, यथा- पठति, पठतः पठन्ति आदि। हिन्दी में पढ़, लिख, चल, गा, खा, जा आदि मूल धातुएँ हैं, जिनसे पढ़े, पढ़ेगा, लिखेंगे, लिखेंगी, गाया, खायेगी, जाता है आदि विविध रूप बनते हैं।
हिन्दी में संरचना की दृष्टि से क्रियाएँ चार प्रकार की होती हैं -
- प्रेरणार्थक क्रिया- जिन क्रियाओं का क्रिया-व्यापार कर्त्ता स्वयं न करे, वरन् किसी दूसरे को प्रेरणा देकर करवाये, उन्हें प्रेरणार्थक क्रियाएँ कहते हैं, यथा- पढ़वाना, सुनवाना, लिखवाना, बुलवाना, धुलवाना आदि।
- संयुक्त क्रिया- दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनने वाली क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ कहलाती हैं। 'चल चुका 'पढ़ना चाहता हूँ', 'खेलता रहता था', पढ़ सकता है, चलते-चलते पढ़ता है आदि संयुक्त क्रियाओं के उदाहरण हैं। मुख्य क्रिया में जुड़ने वाली क्रिया अपना अर्थ खोकर मुख्य क्रिया में नवीनता या विशेषता उत्पन्न करती है, अत: इसे रंजक क्रिया कहते हैं। हिन्दी में आ, उठ, चल, चाह, चुक, जा, डाल, पड़, सक आदि धातुएँ रंजक रूप में प्रयुक्त होती हैं। इनमें 'सक' शुद्ध रूप में रंजक है, अन्य सभी अपने मूल रूप में भी प्रयुक्त होती हैं।
- कृदन्त क्रिया- हिन्दी की अधिकतर क्रियाएँ कृत प्रत्ययों के योग से बनी हैं, यथा - चल से चल+ता= चलता, पढ़+आ = पढ़ा, पढ़+एगा = पढ़ेगा आदि। मूल धातु में कृत प्रत्ययों के योग से निर्मित क्रियाएँ कृदन्त क्रियाएँ कहलाती हैं। ये वर्तमानकालिक (चलता, पढ़ता आदि) भूतकालिक (पढ़ा, दौड़ा आदि) तथा भविष्यकालिक (पढ़ेगा, गायेगा आदि) होती हैं।
- नामधातु क्रियाएँ- हिन्दी की अधिकतर क्रियाएँ पढ़, लिख, चल आदि धातुओं से निर्मित हैं। जो क्रियाएँ धातुओं से न बनकर संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों से निर्मित होती हैं, उन्हें नामधातु क्रियाएँ कहते हैं। ये धातुओं से न बनकर नामधातुओं से बनती हैं, इसलिए इन्हें 'नामधातु क्रियाएँ' कहना उचित है। उदाहरण के लिए, 'बात' संज्ञा से 'बतियाना' नामधातु बनती है, जिससे 'बतियाता है' बतियाते हैं, बतियाएगा आदि क्रिया-रूप बनते हैं-
नाम धातुएँ चार प्रकार के शब्दों से निर्मित होती हैं-
- संज्ञा शब्दों से निर्मित नामधातुएँ- अधिकतर नामधातुएँ संज्ञा शब्दों से ही निर्मित होती हैं। बात से बतियाना, हाथ से हथियाना, लात से लतियाना, लाठी से लठियाना, लाज से लजाना, चक्कर से चकराना, गाँठ से गाँठना, जूता से जुतियाना, माटी से मटियाना, साज से सजाना, ललकार से ललकारना, फटकार से फटकारना, धिक्कार से धिक्कारना, फुंकार से फुंकारना, हुंकार से हुंकारना, धमकी से धमकाना आदि संज्ञाओं से निर्मित नामधातुएँ हैं, जिनके क्रियाओं के समान ही रूप बनते हैं।
- सर्वनामों से निर्मित नामधातुएँ- सर्वनाम से निर्मित नामधातु का एकमात्र उदाहरण है- 'अपना' सर्वनाम से 'अपनाना' ।
- विशेषणों से निर्मित नाम धातुएँ- विशेषणों से भी कुछ नामधातुएँ बनती हैं। गर्म से गर्माना, दोहरा से दोहराना, मोटा से मुटाना या मुटियाना, साठ से सठियाना, हकला से हकलाना, चिकना से चिकनाना, पिचका से पिचकाना, लम्बा से लम्बाना, चौड़ा से चौड़ाना आदि विशेषण शब्दों से निर्मित नामधातुएँ हैं।
- अनुकरणात्मक शब्दों से निर्मित नामधातुएँ- ध्वनि या दृश्य आदि के अनुकरण पर निर्मित शब्दों से जो नामधातुएँ बनती हैं, उन्हें अनुकरणात्मक शब्दों से निर्मित नामधातुएँ कहते हैं। खटखट से खटखटाना, चमचम से चमचमाना, भिनिभिन से भिनभिनाना, टिमटिम से टिमटिमाना अनुकरणात्मक शब्दों से निर्मित नामधातुओं के उदाहरण हैं।
नामधातु क्रियाओं में अर्थाभिव्यक्ति की अपार क्षमता होती है। संज्ञा और क्रिया के योग से निर्मित होने के कारण इनकी क्षमता बढ़ जाती है। इनमें संज्ञा का बिम्ब क्रिया से जुड़कर नाटकीय रूप ले लेता है। 'मोहन ने सोहन को सबके सामने पहले लतियाया और फिर जम कर जुतियाया' कहते ही पूरा दृश्य साकार हो जाता है। नामधातुएँ लोक-भाषा की जीवनी-शक्ति हैं। आँचलिक कहानियों और उपन्यासों में नामधातु क्रियाओं की प्रभाव-क्षमता देखी जा सकती है।
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