दीदी | दीदी की जीवनी पर आधारित संस्मरण दीदी को बचपन से जानती हूँ.उन का तीन मंजिला मकान भट्टा ग्राम और कोल्हू खेत के मुख्य मार्ग के पास था. सड़क के उस
दीदी | दीदी की जीवनी पर आधारित संस्मरण
दीदी को बचपन से जानती हूँ.उन का तीन मंजिला मकान भट्टा ग्राम और कोल्हू खेत के मुख्य मार्ग के पास था. सड़क के उस ओर भट्टा ग्राम के चालीस पचास कच्चे मकान थे. स्लेट पटाल की छत. चीड के खिड़की दरवाज़े, बहुत छोटे, नीचा, कोठार के साथ पशु घर. भैंस, गाय, बकरी, जैसी जिस की समाई. गोबर मिट्टी से लिपि पुति दीवार. घरों से हल्का सा धुआँ निकलता रहता. लकड़ी के ढेर और ताम्बे के गागर हर घर के सामने रखे रहते. उपले के ढेर, दीवार के साथ रखे रहते. घर के अंदर धुऐ की महक, जी, महक बदबु नही, फैली रहती. तेल की कीप से हल्की रोशनी रहती. मक्का की माला, अरबी, धान और लेहसून रखा रहता. चावल कूटने का कुण्ड और मुसल रखा रहता. दो चार कपड़े कील, दरवाजे पर रहते. ताला शायद ही किसी घर में हो. लोहे की संखल ही बहुत थी, दरवाजा बंद करने को, वो भी इस लिए कि जानवर अंदर ना जाए. बच्चा धोती से खाट के पैर में बांध कर घास, पाती, पानी लेने चले जाते. अगर किसी घर में बुजुर्ग ना हुआ तो बच्चा गली में छोड़ दिया कोई न कोई देख लेगा.
ये एक पहाड़ी गाँव था. सीढ़ी नुमा खेत. गेहूँ और मक्की की खेती. सीढ़ी नुमा खेत. मंडवा, कोदो, मसूर, मिर्च, कद्दू, पहाड़ी ककड़ी या खीरा, सरसों भी ऊगा लेते गाँव वाले.मकान के बीच में पतली सी गली. लेहगा, कमीज, सर पर ढान्डा बंधे, औरतें इधर उधर जाती रहती. कमर के फेंटा. फेंटे में घास काटने की दांति रहती. वक्त बेवक्त, जंगली जानवर से बचा देती. चांदी के गेहने हाथ पैर में. सोने की बाली मुर्की कान में, नाक में फूली और बुलाक. शादी ब्याह में नथ का रिवाज. बड़ी बुजुर्ग की जेब में बीड़ी माचिस रहता.
पुरुष घर से निकलते समय गाँधी या पहाड़ी टोपी, बन्ड़ी, पयजामा पहन कर, एक छाता कमीज के कॉलर में अटका कर पीठ पर लटका लेते. छाता हर मौसम में उपयोगी है. बारिश हो, धूप हो, चढ़ाई हो, उतराई हो। डाल खींच फल तोड़ लो, दोनों कंधे पर अटका हाथ कंधे चौड़े कर लो. हल्का फुल्का सामान कपड़े के अंदर बांध लो. सुबह सुबह दूध बांटने निकलते पुरुष, फिर मुनिशिपल्टी में काम पर जाते. एक दिन में दस बारह मील चल लेते.
१
प्रोफेसर डे, दीदी के पिताजी, “बाबा" कलकता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर के इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र पढाने आ गए. कुछ समय पश्चात उन का विवाह हो गया. पत्नी का परिवार बनारस में रहता था. पत्नी को बहुत कम लिखना पढ़ना आता था. प्रोफेसर डे ने उन को अक्षर ज्ञान दिया. धीरे धीरे वे अंग्रेज़ी अखबार पढने लगी, फिर अंग्रेज़ी पत्रिका 'वुमन एंड होम' उन की पसंददीदा पत्रिका बन गयी. अगाथा क्रिस्टी रचित साहित्य उनके साथ हमेशा रहता.
प्रथम विश्वयुद्ध का असर भारत पर भी दिख रहा था. हजारो की संख्या में भारत से सैनिक ब्रितानी सरकार द्वारा विदेश भेजे जा रहे थे. कलकता ब्रितानी भारत की राजधानी थी. बंगाल के प्रांत में भारतीय पुन:जाग्रण का प्रभाव बहुत था. नई दिल्ली का निर्माण राजधानी के रूप में चल रहा था.शिक्षित और प्रबुध् बंगाली परिवार शिक्षा का प्रसार करने के लिए अलग अलग शहर जा रहे थे. राम कृष्ण मिशन का कार्य भी बढ़ रहा था. स्वामी विवेकानंद के विचार उन के अनुयायी दूर दूर पहुंचा रहे थे.स्वामी जी के एक अनुयायी बर्न से थे. उन्होंने भट्टा ग्राम के समीप अपना आश्रम बना लिया. प्रोफेसर डे, “बाबा" उन के संपर्क मे थे, तथा उन के आग्रह पर भट्टा ग्राम आ गए.
उन्हे एक गैर सरकारी अवसीय मिशन स्कूल में कार्य मिल गया.इस स्कूल में बालकों की शिक्षा व्यवस्था थी तथा कक्षा तीन से पढाई शुरू होती थी.स्कूल भट्टा ग्राम से तीन मील दूर, पहाड़ की चोटी पर था.दीदी और उन के भाई बहन के लिए शिक्षा प्राप्त करना एक विकट समस्या बन गयी. चढ़ाई चढ कर बच्चा थक जाते, बुखार आ जाता.
माँ ने घर पर ही शिक्षा देनी शुरू करी. ग्याराह वर्ष की उमर तक मां से लिखना पढ़ना, जोड़ घटाव, पहाड़े, हिंदी अंग्रेज़ी, बंगाली, पहाड़ी गढ़वाली कुमाउनि भाषा सीखती रही. घर की साफ सफाई, कभी कभार पानी भरना, सिलाई बिनाई कढ़ाई कब सीख गयी, पता ना चला. गाँव में मोमि दीदी, दीदी थी. अपने भाई बहन की दीदी, सब की दीदी. उम्र में बड़े भी दीदी ही कहते थे. वो सब को कुछ ना कुछ सिखाती रहती थी.
प्रोफेसर डे के शीत कालीन अवकाश में परिवार बनारस गया. दीदी की नानी के घर के पास थियोसोफिकल् सोसाइटी का स्कूल था. दीदी को स्कूल वाले बड़ी खुशी से एक महिना पढाने को राजी हो गए. यहाँ प्रयोगात्मक शिक्षा दी जाती थी. सब बच्चों को एक फुट वर्ग जमीन दी गयी. इस जमीन पर कुछ उगाने की स्पर्धा थी.
किसी ने मेथी, किसी ने धनिया, किसी ने गोभी बोई.दीदी ने टमाटर के चार पौधे लगाए. कुछ सप्ताह पश्चात् फूल, फिर टमाटर आ गए. टमाटर चमकीले और सुंदर थे. सब ने बहुत प्रशंसा करी. जीवन भर के लिए पेड़ पौधे से लगाव हो गया.
२
भट्टा गाँव में दीदी का मकान द्वित्य विश्वयुद्ध के दौरान बना था. सीमेंट मिलना नामुमकिन. चूना गारा, मिट्टी व पहाडी पत्थर तथा लकड़ी से बनाऐ दरवाजे, खिड़की, सीढ़ी.“बाबा" के विद्यालय के प्रधानाचार्य, एक ब्रहमचारी संस्था के सदस्य थे तथा धर्मचार्य थे. वो गणित पढाते थे पर शिल्प कला में भी रुचि थी.उन्होंने घर के अंदर ऐसी सीढ़ी बनवाई. सीढ़ी की ऊंचाई ८ इंच, उस के साथ लगाए लकड़ी के जंगले में तीन स्थान पर पकड़ने के स्थान बनाये गए, जिस से घुटने चलता बच्चा, खडा बच्चा और बुजुर्ग सब सहारा ले कर चढ़ उतर सके. ये सीढ़ी सब के लिए उपयोगी रही.
मकान के चारों ओर सुंदर फूल पौधेऔर फल के पेड़ थे. पास ही एक मीठे जल का स्त्रोत था. सब ही इस जल का उपयोग दाल पकाने में करते. बच्चे मजाक मज़ाक, पानी के कुंड से मेंढक के बच्चे पकड़ कर उन को बढ़ता देखा करते. दो टांग, पूँछ गायब, फिर मेंढक गायब हो जाता.पास ही पुदीना उगता रहता, पत्ते कब रोटी भात के साथ चटनी बन कर कितने लोगों की क्षुधा मिटा देता पता नही.
एक नाशपाती की डाल को स्थानीय कैथल पर “बाबा” ने रोपित कर दिया. आश्चर्य, कई वर्षो तक दोनों फल साथ साथ लगते रहे. केले के पेड का बड़ा सा झुंड था, हर शादी ब्याह में एक या चार पौधे ले जाये जाते.
“अठ्ठानी", मलटा या मीठा निम्बू का पेड सब को अपनी फलों से लदी डाली से आमंत्रित करता रहता. हरे पत्तों के बीच से झांकते चमकदार नारंगी फल, कचनार, अखरोट, आडु, पुलम, अनार के पेड भर पूर मात्रा में थे.सब की नज़र फल पर रहती. चौकीदार मतरु और उस का वफादार भोलू जी जान से हीफाजत करते. भोलू नाम का भोलू था, भौ भौंक भौंक कर बंदर, मनुष्य और लंगूर भगा देता. गिलहरी, मैना, तोता, उड़न लोमड़ी पर कोई असर ना होता. वो चोंच से फल गिराते रहते. भोलू पेड पर दो पैर टिका कर भौंकता, फिर थक कर घूम घाम कर पूँछ में सर दबा कर सो जाता. जब मतरु आता तब कान उठा कर एक आँख से देखता फिर तब ही उठता जब दूध रोटी रखी जाती.
एक रात भोलू खूब भौंका. जले चावल की बास आ रही थी. मतरु को लगा चूनाखाला का बाघ आ गया. बाघ गाय या भोलू को ले जायेगा. डरते डरते, दरवाजा थोड़ा सा खोल कर टॉर्च की रोशनी डाली. सामने दो चमकती आँखे. झटक कर दरवाजा बंद करा. आज गया भोलू, मतरु सोच कर खाली कनस्तार पिटने लगा. दस मिनट बाद दरवाजा फिर खोला. भोलू के एक कान से खून बह रहा था. मतरू ने पुराना कपड़ा रुई बांध दिया. बेचारा बच गया. उस रात के बाद भोलू कमरे के अंदर सोने लगा.बाघ आबादी क्षेत्र में आ रहा था. जंगलात वालों ने बड़ी मुश्किल से पकड़ कर लखनऊ चिड़िया घर भेजा.
जब फल होते, बच्चे भी अपना हिस्सा पा ही जाते, कभी अपने हाथ से कभी ‘बाबा’ से.पास में पहाड़ घूमने आने की टोल चौकी थी. पूरी यात्रा दो रुपये में, उस पर प्रति व्यक्ति डेढ़ रुपया टोल बहुत था. कुछ लोग बस से उतर कर पैदल चलते, टोल पार कर बस में फिर चढ जाते. कुछ लोग दीदी के बगीचे में खाना पीना कर के पिकनिक मनाते, दो चार घंटे बाद बस में बैठ जाते.इन्ही में से कुछ परिवार जीवन भर के मित्र बन गए. एक आध छाया में सो जाते, चाय पी कर ही घर जाते.दीदी बात बात में बहुत सीख रही थी.
बालिका विद्यालय की मुख्य अद्यापिका एक बार इस बगीचे का आनंद ले रही थी. दीदी की जिज्ञासा और ज्ञान पिपासा देख कर, उन्होंने ‘बाबा’ के समक्ष एक प्रस्ताव रखा.“बेटी को मेरे पास छोड़ दो. शनिवार को घर आयेगी, सोमवार को बस या घोड़े से भेज दिया किजये. स्कूली शिक्षा आवश्यक है." बात बन गयी. पांचवी में दाखिला मिल गया. दीदी होशियार थी, मेहनती भी. अपनी कक्षा में धाक जम गयी. पांचवी की बोर्ड परीक्षा थी. निरिक्षक श्रीमति रानी टंडन, महान स्वतंत्रता सेनानी महर्षि मनीषी पुरषोत्तम दास टंडन की पुत्र वधु को आना था. ये विद्यालय के लिए अत्यंत गौरव की बात थी. बहुत बड़ा सम्मान था.कुछ बालिका सहमी, डरी, कुछ शांत, कुछ आपस में बात करती अपनी पारी का इंतज़ार कर रही थी.
रानी जी के आते ही सब बालिका खड़ी हो गयी.
बड़े स्नेह से एक एक छात्रा से बात करी.
“क्या बना सकती हो?" दीदी से पूछा.
दस ग्याराह वर्ष की आत्म विश्वास से परिपूर्ण बालिका ने कहा “सब कुछ."
“सब कुछ" नाम पर नज़र डालते हुए रानीजी ने कहा.
“हाँ, सब कुछ."
“रसगुल्ला?"
“हाँ, रसगुल्ला."
बड़े सहज मन से छेना बनाया, चाशनी पकाई. छोटे छोटे हाथ से कटोरी में रख कर, परोस दिये.
रानीजी ने शबसी दी, स्नेह से सिर पर हाथ फेर दिया. खिचड़ी, दाल चावल, आलू की सब्ज़ी, सूजी, दलिया के बीच में रसगुल्ला. “वाह, बिटिया, वाह.”
शिक्षिका और निरीक्षक मिल बांट कर स्वाद लेने लग गाये, दीदी और सहेली परीक्षा में उतिर्ण हो गयी. अंक पूरे मिल गये.
३
दीदी की प्रमुख सहेलियों में सर्वप्रथम थी जया बुई. उन का घर स्कूल के रास्ते में था. जब ये कक्षा आठ में थी तब इन की एक बहन हुई. दीदी बच्ची को देखना चाहती थी पर स्कूल जाते समय, वक़्त ना होता, लौटते समय देर हो जाती थी. रविवार को चढ़ाई कौन चढता? बच्ची का नाम छिपी रख दिया, वो छिपी रहती थी. बुई ने अन्नप्रशन से तीन दिन पहले सब सहेलियों को निमंत्रण दे दिया. दीदी खुशी से झूम उठी. आह नन्ही बच्ची को गोद में खिलायेंगे. माँ से जाने की आज्ञा मांगी तो वो बोली “खाली हाथ जाओगी?"
बात समझ आ गयी. स्कूल के बाद, २ मील पैदल चल कर बाज़ार गयी. लाल सफेद ऊन खरीद लाईं. दो रात में दीदी ने लाल सफेद स्वेटर बिन डाला. एक दम ‘फिट'. छिपी को सामने देख कर, गोद में ले लिया. छोटी सी गुड़िया. छिपी, दीदी को देख मुस्करा दी.
दूसरी सहेली थी प्रभा. सुंदर, लम्बे बाल, दुबली पतली. पढाई में होशियार. उन के दो बड़े भाई फौज में थे, पिता अंग्रेज़ी स्कूल में एकाउंटेंट. प्रभा के मामा भी बिलासबटा से आ गए नौकरी की खोज में. लंबी धोती वाले कुमाउनि पंडित, पूजा पाठ, जजमानी नही, खेती नहीं कर सकते. बदलते समय के अनुसार लड़की, राधी, पढ़ानी है. पढाई के लिए पैसा खर्चा चाहिए. एक मिशन स्कूल के संस्थापक परिवार ने अपनी कोठी के बाहर के दो कमरे दे दिये. फूल पौध में पानी डालो. फल को पशु पक्षी से बचाओ. जब साहेब ना हो तब मेहमान को पानी पिलाओ. धीरे धीरे अंग्रेज़ी चाय बनाना सीख लिया. अगर मेहमान कहे तो पिला दो.
एक रात को भयंकर तूफ़ान आया. राधी और उस के बाबू जी, रात भर मंत्र जोर से बोलते रहे. मन में इच्छा की दूसरा घर ले लेंगे, अगर रात कट गयी, जाँ बच गयी.
सवेरा होने से पेहले छत उड़ गयी. पानी कमरे में भर गया. अब यहाँ रहने का कोई कारण नही था. बारिश थम गयी. हिम्मत कर के साहेब के पास गये.
“साब छत उड़ गयी, दूसरा घर देखते है."
“व्हाट, नु रोफ. अब इधर रहेगा. हम इंग्लैंड जा रहा. आराम से रहो. फल बेचो, कोई काम करो. कहीं मत जाना. इधर रहो." ज़बारदस्त मंत्र का असर. जाते जाते साब कुछ रकम पकड़ा गये. उन के लिए मामूली, ममा के लिए बहुत बड़ी. राधि की इजा और तीन बहन को गाँव से बुला लिया. चाय की दुकान, साथ में जलेबी, चना, नमकीन और सिंघल बेचना शुरू किया. काम चल निकला. “पंडित जी, पंडित जी जो बात आप के हाथ के सिंघल में है वो किसी में नहीं."
पढाई चलती रही. स्वतंत्रता संग्राम अपने अंतिम पड़ाव पर था. भट्टा ग्राम और आस पास सब समानय था. कभी कभी कुछ बच्चे आपस में एक दूसरे को डराते धमाकाते. किसी ने खोखा बाबू से कहा “हम तुझे पानी के नाले में ढकेल दें."
तब से खोखा बाबू को अकेला कहीं नहीं भेजा. बाबा के साथी, ऑल ताऊ जी का पुत्र, सत्त हमेशा साथ रहा.
खोखा बाबू की और गीता की शिक्षा खंडूरी परिवार द्वारा स्थापित घनानंद विद्यालय में चलती रही. सब लड़के बरसात में एक दूसरे व गीता दी की सहायता करते.
कुछ लोग को पंचायत सरकार मृत्यु दंड देती. ये एक क्रूर दंड है. यहाँ इस दंड देने की प्रक्रिया और भी क्रूर थी. सामने वाली पहाडी पर एक प्राचीन नाग मंदिर था. नाग इस क्षेत्र के सर्वप्रमुख देव है. उन के भक्त अपराध करने से डरते हैं. न्याय दिलाना समाज की व्यवस्था के लिए आवश्यक है.मंदिर के पास एक बड़ा ऊंचा बांझ का पेड़ था. उस पर लटका रस्सी का फंदा.
अपराधी को भैसे पर लाया जाता. फंदा अपराधी के गले में डाल दिया जाता. फिर पशु को भगा देते. अपराधी को मृत्यु दंड की सजा मिल जाती. ये दीदी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता. इस कारण वो कभी कयार कुली या नाग मंदिर नहीं गयी.
४
दीदी जोर शोर से पढती रही.
देश स्वतंत्रता का जश्नन मना रहा था.
दीदी की सहेली सकीना अपने परिवार के साथ अमृतसर चली गयी. वहाँ से यात्रा आगे सरहद के उस पार करनी थी. वे अपना प्यारा तोता “मित्वा" दीदी को पालने को दे दिया. दो दिन तक मित्वा शोक में रहा. सिर्फ “सकी, सकी" कहता रहा.
टोल की देखभाल करनेवाले हदिक् वाअली को अंबाला भेज दिया गया. उन की बेगम और चार बच्चों को दीदी घर ले आई. उन को पूरी बात नहीं समझ आई पर कुछ समझ गयी.
चार दिन बाद सरकारी गाड़ी वाअली परिवार को अंबाला ले गयी.
मिठु कभी कभी “सकी सकी" केहता.
सर्दी की शाम को समाचार आया, “बापू" को गोली लगी है. सर्दी की शाम में सूर्य जल्दी ढल जाता है. चारों अोर अंधेरा छा गया. मिठु भी शरीरिक पिंजरा छोड़ स्वतंत्रत हो गया. दीदी की छोटी बहन, गीता बहुत रोई, “हम सकीना से क्या कहैगे? मिठु, मिठु, ‘सकी सकी' बोलो."
वो जीवन भर यही कहती है “जिस दिन बापू को गोली लगी, हम बहुत रोए.”
हाई स्कूल की बोर्ड परीक्षा थी.
अंग्रेज़ी के पेपर में प्रश्न “डीड बसानियो डिजरव पोर्शिया?"
शिक्षिका ने इस का उत्तर “येस" कह कर, उधारण दिये थे.
दीदी सहमत नही थी.
बचपन में नानी ने ये कहानी सुनाई थी. नानी ने बताया था कि बसानियो आलसी और लालची था.
उस ने पोर्शिय को पहले उस के धन फिर सुंदरता के लिए चुना.
“ही सोट अ रिच ऐरेस. हु वास ब्यूटिफ़ाउ टू. "
दीदी हाई स्कूल, कक्षा दस, सेकंड डिविजन, द्वित्य श्रेणि में, अच्छे नंबर से पास हो गयी. बहुत बड़ी बात, भट्टा गाँव के गिने चुने बालकों में पहली हाई स्कूल पास लड़की.
जिस दिन परीक्षा फल निकलना होता, सब की धडकन बढ़ जाती. उत्तर प्रदेश इंटरमीडिटे बोर्ड ईलाहाबाद में था. अगर इल्हाबाद में कोई जान पेह्चान वाला होता तो पता कर के बता देता. समाचार पत्र में कुछ उल्टा सीधा भी छप जाता. दीदी का रिसल्ट उन की बुआ ने टोल घर वाले फोन पर बता दिया. सारे गाँव को खबर हो गयी.
आगे पढ़ने के लिए बनारस, नानी के घर भेज दिया. वो छात्रावास रहने चली गयी. पहले दिन ही भोजपुरी से परिचय हो गया “बचवा भात खाबो?"
कहाँ भट्टा ग्राम, कहाँ बनारस, बसंत कॉलेज में विज्ञान विषय ले कर, कक्षा ग्यारह में प्रवेश ले लिया. गंगा का किनारा, जगह जगह शिवाला, मंदिर मज्जिद, सारनाथ, विंध्यांचल, रिक्शा और बी एच यू. इरादा कर लिया यहीं बी एच यू में पढ़ना है. नाव चलाना, तैरना और मछली पकड़ना सीख लिया.
११ वीं, १२ वीं, कॉलेज, बी ए की शिक्षा बनारस में हुई. एम एस डब्लू लखनऊ विश्वविद्यालय से.
बड़े शहर की बात ही अलग थी. गोष्ठी, नाटक संगीत, वाद विवाद, कवितापाठ हर क्रिया कलाप का आनंद लेती दीदी. दुनिया भर से आये विद्यार्थी.
बनारस में एक लड़की, हीरा हीखदो, जापान से थी. वो शांति की खोज मे थी. उस के कई परिवार जन हिरोशिमा की तबाही में लुप्त हो गये थे. बौद्ध शिक्षा को गहराई से समझना चाहती थी.
वो ना हंसती ना रोती. निर्लिप्त भाव, शून्य आंखों से कुछ देखती रहती. अपना कार्य स्वयं और समय से करती. दीदी उस से मित्रता करना चाहती थी. कोई उचित मौका नहीं मिलता था.
कॉलेज में स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम का आयोजन करना था. बी ए ll की प्रतिनिधि दीदी थी. उन की कक्षा की ओर से आयोजन का जिम्मा उन पर था. उन्हों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अन्य देशों के सहयोग और समर्थन को अपने नाट्य गान का विषय चुना.
इस नाट्य गान में राश बिहारी बोस, जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी का योग दान चित्रित करना था. जापान में प्रवास दृश्य में हीरा को पात्र बनाने के विचार को समर्थन मिला. पहले हीरा ना नुकर करती रही, फिर मान गयी. उस की अभिनय क्षमता के, निर्देशक व दर्शन दोनों कायल हो गए. हीरा अब दीदी से कभी कभी बात करने लगी. हीरा ने हिंदी, पुराबिया, प्राकृत में दक्षता हसिल कर ली. जापान भारत साहित्य, संस्कृति संबंध सुधारने, बढाने में बहुत कार्य करा.
लखनऊ में शिक्षा का माहौल बहुत अलग था. देश के विभिन्न प्रांत और राज्य से विद्यार्थी पढ़ रहे थे. एक से एक दिग्गज. अपनी अपनी यूनिवर्सिटी के टॉपर. सब को गोल्ड मेडल की चाह. बडी बड़ी विदेशी यूनिवर्सिटी के विजिटिंग फकैल्टी. बात सुनो तो बस सुनो, क्या ज्ञान क्या चर्चा, समय न जाने कहाँ भाग जाता. एक के चक्कर में दूसरी क्लास छूट जाती. आॅटनडांस शॉर्ट होने का डर ना होता तो डटे रहते.
सुश्री लौतिका राधकर, औरंगाबाद के पास के गाँव चंद्रेलि से शिक्षा लेने लखनउ आईं थी. दीदी और उन की घनिष्ठता इतनी बढी की जीवन के हर मोड पर साथ रहे. लौतिका जी का विवाह सी एस आई आर के वेज्ञानिक डर. गोमसा कंडे से हुआ. उन के बेटा बेटी भी पढ़ कर विदेश बस गये.
एक प्रोफेसर थे, डॉ मुखर्जी, विषय के महाज्ञानी. विषय समाज शास्त्र. उन की बेटी, सुवर्णा. इन के पूर्वज उच्च कुलीन ब्रहमण. ये गिरजा घर में प्रार्थना करते थे. हरन दशा भी हर रविवार वही आते थे. सुवर्णा ने साथी हरन दशा से विवाह की इच्छा जताई पर डॉ मुखर्जी टस से मस ना हुए. वर्षों बाद सुवर्णा और हरन का विवाह हुआ और ताज के सामने फोटो खिचवाने की इच्छा पूरी हुई.
रायल सीमा क्षेत्र से मेधावी सी. लक्ष्मन भी लखनऊ पढ़ने आये. सांस्कृतिक कार्यक्रम और पुस्तकालय मे दीदी और लक्ष्मन की भेंट हो जाती. दोनों इंटरंशिप- फील्ड वर्क के लिए जाउंसर भवर क्षेत्र गये. अच्छा ताल मेल बैठ गया.
लक्ष्मन के पिता भट्टा गाँव आ कर ‘बाबा’ से आ कर दीदी का हाथ मांग गये. बात पक्की हो गयी. अगले अवकाश में रायल सीमा से बारात भट्टा गाँव आई. दीदी विदा हो कर निज़ाम की नगरी, चार मीनार के शहर, हैदराबाद आ गयी.
पहली बार सास हैदराबाद उन के पास आई. अपनी समझ से दीदी ने दोशा परोसा. सास ने सर पर हाथ फेर कर प्रशंसा करी.दीदी को लगा दोशा उन का दैनिक भोजन है, सास ने समझा बहु का पसंदीदा भोज है. कुछ वर्ष बाद दोनों को समझ आया, दोशा दोनों में से किसी का भी पारंपरिक भोजन नहीं है.
ओस्मानिय विश्विद्यालय में काम मिल गया. यहाँ भी देशी विदेशी छात्र आते जाते थे. सम्मान भी खूब मिलता.परिवार में तीन बच्चे हो गये. एक नया घर स्त्रित १० में बन गया. खूब खिऔने, खूब किताबें.लक्ष्मन को राजनीति में रुचि बढ़ी. वो सुधार वादी विचार धारा का समर्थन करते थे. नई तेलंगानास्थानम पार्टी में सदस्य बन कर, पेहले विधान सभा फिर संसद पहुँच गये.
उन के ज्ञान, कार्य शैली, सौम्य स्वभाव, विनम्रता को देखते हुये उन्हें त्रिनिदाद, टिवगो में राजदूत नियुक्त कर दिया.यहाँ भारतीय मूल के बहुत निवासी थे. ये अपने साथ भारत से लाये संस्कार, भाषा, और संबंध को सहेज कर रखे थे. इन के पूर्वज बंधवा मजदूर थे.
जब इन का जहाज त्रिनिदाद पहुंचा, तब अंग्रेज़ गोवर्नोर जेनरल की पत्नी ने पाया की ये नारियल और गन्ना गुड से काम चला लेते है, तब आदेश हुआ नारियल का पेड काट दो. ये हार मान कर हमारी बात मान लेंगे. इन को धार्मिक स्थल नही बनाना है. वो हार नहीं माने, सफेद पीली, नीली, लाल झंडी लगा कर अपनी पूजा चालू रखी. क्रियोल भाषा के साथ तमिल, पुराबिया, उड़िया को मिला कर बात करने लगे. एक छोटा भारत बसा लिया. कुछ स्वतंत्रता पश्चात् लौटना चाहते थे, पर सरकार की सलाह रही, जहाँ हो वहीं अच्छा काम करो.किया भी, शिक्षा, राजनीति, व्यापार में नाम कमाया.दीदी के कहने पर दिवाली को आगमन दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. बनारस की भोजपुरी, यहाँ के भारत मूल के निवासी से नाता जोड़ गयी. ता उम्र आदान प्रदान चलता रहा ।
५
बच्चे पढ़े, खूब पढ़े. विदेश में काम करने लगे. दीदी रायल सीमा क्षेत्र के गाँव में काम करने लगी. गाँव में बाल शिक्षा, महिला शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, वित शिक्षा, आधुनिक कृषि शिक्षा सब पर काम करना था. नयी नयी परियोजना, नई नीति, नई तकनीक. सीखने को बहुत कुछ था.
श्रम गाँव में श्री प्रधान गाँव की सहायता समिति के मुख्या थे. वो दीदी के ससुराल पक्ष से रिशतेदार थे. इस पद पर रहते हुए, उन्हें अधिकार था कि एक मुश्त पचास हज़ार रुपये सहायता रूप में निकाल सकते थे. उन के छोटे भाई की बेटी की शादी थी. उन की बेटी मीनमा को भी शादी में जाना था. मीनमा जिद कर बैठी कि जब हार होगा तब शादी में समलित होगी. माता पिता ने समझाया की इस समय इतना खर्च संभव नहीं है. पर मीनमा कब माननेवाली थी? उस की जिद थी समिति से पचास हज़ार निकाल कर हार लाओ. बहुत समझाया कि हार के लिए समिति का पैसा नहीं मिलता. पर बेटी ना मानी. मुख्या जी ने अपनी सईकल ली और खेत की ओर चल पड़े. अचानक संतुलन बिगड़ गया. बात बिगड़ गयी. शादी के घर हादसे की खबर पंद्रह दिन बाद दी गयी. मिनमा की जिद की कीमत पिता पर भारी पड़ गयी।
६
गाँव विकास के लिए दीदी ने गाँव गाँव जा कर काम करा. शिक्षा, परिवार नियोजन, दवाई, पारंपरिक खेती, बीज संरक्षण का काम करा. कंप्यूटर शिक्षा भी उपलब्ध कराई गयी.
एक बार सरकारी अफसर निरिक्षण के लिए आये. सब कार्य करता गाँव की महिला के साथ बैठ कर बात चीत कर रहे थे. अफसर नाराज हो कर पता करने लगे कि काम के स्थान पर बात, ये क्या. दीदी ने हंस कर बताया जहाँ गाँव वाले वहाँ हम. पहले विश्वास जीतो फिर कार्य होगा.गाँव से कभी किसी को हैदराबाद काम होता, हब्सिगुडा याद कर, दीदी के पास आ जाता. कई बार लौटते हुए, एक कटहल भी ले जाता. किताब तो न जाने कितनी ले गये, कभी लौटाई नहीं.दस बारह की शिक्षा की जिम्मा लिया. कुछ याद करते कुछ भूल गये.इधर सट्रीट ७ में आठ परिवार बसे थे. उंहोने अपना क्लब बना कर मिलने जुलने का कार्यक्रम बनाया.
हर सप्ताह, गुरुवार को शाम ५ से ९ बजे तक एक परिवार के घर में मिलना होता. सब कोई एक खाद्य पदार्थ या भोज्य वस्तु ले कर आता. कुछ गीत संगीत, कुछ हंसी मजाक, कुछ गिला शिकवा में समय कब कट जाता, पता ना चलता. बच्चे ये समय पास के पुस्तकालय में बिताते. इस समय और साथ की मधुर स्मृति बुझा मन भी हर्षित कर देती.समय के साथ, प्यारा साथ छूट गया. १६ में से ४ ही साथी बच रहे.
७
दीदी का दरवाजा किसी ने खटखटाया. सहायक गोल्मि ने दरवाजा खोल कर आगंतुक का नाम पता करना चाहा.
“कहो, गोमसा लौतिका कंडे का बेटा विनेश है.”
“अरे, विनेश बाहर क्यो हो? अंदर आओ."
चरण की और झुक कर विनेश ने प्रणाम करा.
“मौसी, पांच वर्ष हम यहीं साइबर सिटी में काम करेंगे.”
हम ने आप का साथ वाला मकान ले लिया. ये, मेरा बेटा नंदन. दादी के पैर छुओ.” विनेश ने बालक का परिचय दिया.
नंदन ने आज्ञा का पालन करा.
“पत्नी रूबी को मिलाने आप की सुविधा अनुसार लाऊंगा।”
दीदी की बहु महाराष्ट्र से और लौतिका की बंगाल से. इस लिए रीति रिवाज़ जानने के लिए खूब बात चीत होती रहती है.
“नंदन स्कूल से आ कर, कपड़े बदल कर, खाना खा कर, आराम के पश्चात तुम दादी के पास आ जाना.”
“यस, पा.”
दादी को तंग मत करना. मौसी सनडे को आप हमारे साथ खाना खाना."
नंदन रोज़ पुस्तक ले कर आता. मोबाइल पर गेम खेलता और समय से चला जाता. दीदी की दी कुकी और शरबत पी कर “थैंक्स" कहता. बातें करता रहता. मोबाइल पर मां का नंबर चमकता और वो घर चला जाता.
नंदन को मछली व्यंजन बहुत पसंद था, पर घर में मछली नहीं पकती थी. एक दिन दीदी ने उसे मछली दी. फोन पर मां से पूछा “खा सकते हो पर आज शस्थि है.”
उस दिन तो नहीं पर बाद में नंदन कभी कभी भुनी मछली खा लेता. दीदी को अपनी दादी समझता है. उन का बहुत मान करता है और देख भाल भी. खूब ख्याल भी रखता है.
दीदी के घर का प्ले रूम नंदन को खूब पसंद आता था. दीदी के बच्चों के खिलौने, किताबें रखी हैं. ऐरोड्रोमे सेट, लुडो, कैरोम्, ब्लॉक्स सब पसंद है. कॉमिक्स भी पसंद हैं.
दादी अपनी किताब पढ़ती रहती. अपने पुराने छात्रों से बातें करती रहती. उमर के साथ शरीर में कुछ होता रहता है. बेटे, बहु, बेटी, दामाद सब विदेश में. एक बार नाखून में खून जम गया. डॉक्टर का आग्रह, किसी सगे रिश्तेदार को होना चाहिए, तब इलाज, शल्य चिकित्सा होगी. दीदी ने कहा कि छोटी बात है, इतनी दूर से, इतना खर्च, यात्रा में चिकित्सा से अधिक समय लगेगा. चिकित्सक नहीं मानते. कभी बेटी, कभी बेटा, कभी बहु और इस बार दामाद को आना पड़ा. उन का अंग्रेज़ी उच्चारण हैदराबाद वाली अंग्रेज़ी से बहुत अलग है.
गली में बच्चे क्रिकट् खेल कर खिड़की दरवाजे तोड़ देते. दामाद डॉन्नी को बात समझ नही आई कि कोई कुछ क्यूँ नही कहता.
लम्बे चौड़े डील डौल वाले डॉन्नी ने बाहर आ कर लड़कों को खेलने से मना करा. उन में से एक के पिता ने पुलिस में कार्यरत हैं। उस ने पिता को फोन कर दिया, कोई विदेशी हमारे इलाके में है.
इंस्पेक्टर साब मामला सुलझाने पांच मिनट में आ पहुंचे.
इंस्पेक्टर और डॉन्नी के वार्तालाप का अनुवाद नंदन को करना पड़ा.
“मेरी दादी चल ही बहुत कम पाती है. देखो शीशा चारों ओर पड़ा है. अब अंकल मना कर रहे तब आप को बुला लिया.”
इंस्पेक्टर की समझ में बात आई. लडकों से कहा आप गली नही पार्क में खेला करो. अब यहाँ नहीं खेलो. आप सब ये शीशा लगवाओ. नंदन आप मिस्टर होलम के साथ रहो और उन की बात स्थानीय लोग को समझाओ. तुम समझदार बच्चा हो. नंदन बहुत खुश हुआ कि दादी की परेशानी समाप्त हो गयी.
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दीदी दादी बन बहुत संतुष्ट हैं।
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दीदी आप का आभार।
अपनी जीवन यात्रा सांझा कर, मार्ग दर्शक बन, आप सदा प्रेरणा रहीं।
- मधु मेहरोत्रा
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