भारतवर्ष महान क्यों है राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्रप्रेम स्वतः ही स्वयं के राष्ट्र को श्रेष्ठ व महान मानने के लिये उत्तदायी हैं। प्रत्येक राष्ट्र
भारतवर्ष महान क्यों है
राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्रप्रेम स्वतः ही स्वयं के राष्ट्र को श्रेष्ठ व महान मानने के लिये उत्तदायी हैं। प्रत्येक राष्ट्र का निवासी राष्ट्रप्रेम के कारण स्वयं के राष्ट्र की सर्वश्रेष्ठ, पावन भूमि, महान, आदि विभुतियों से अलंकृत मानता है।
अमेरिका के राष्ट्रभक्त के लिये अमेरिका महान है। वह राष्ट्रभक्त अमेरिका द्वारा किये गये मानवता पर अत्याचार अर्थात जापान पर परमाणु हमला व लोकतंत्र को शस्त्र बनाकर सम्पूर्ण विश्व के कई देशों में किये गये बमबारी, बच्चों व महिलाओं पर किये गये अमानवीय अत्याचारों को नजर अंदाज कर अमेरिका महान से हृदयगत रूप से भरा है।जर्मनी में उपस्थित राष्ट्रवादी का जर्मनी द्वारा किये गये कुकृत्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य तो कर सकता है पस्तु अभिमानपूर्ण होकर जर्मनी 'महान' से भरा हुआ है। ब्रिटेन जिसने सम्पूर्ण विश्व के कई राष्ट्री पर अत्याचार किये, नरसंहार किये उन्हें उपनिवेशवाद' बताकर छोड़ देता है।
प्रश्न यह है कि उपनिवेशवाद, नरसंहार, अत्याचार आदि कुकृत्यों के बाबजूद ये कथाकथित स्वनिर्धारित महान राष्ट्रों में महानता कहाँ है? वास्तव में स्वराष्ट्र के उत्थान हेतु दूसरों का पतन करना ही पश्चिमी सभ्यता, विचारधाराओं का मूल स्तम्भ है।महान व महानता दार्शनिक विषय हैं। कोई शब्द या परिभाषा, इन गूढ रहस्यमयी, दार्शनिक, वैधानिक शब्दो का परिचय नहीं दें सकती।
यहाँ तक कि कोई विद्वान अपनी विद्वता का प्रचार-प्रसार चीख-चीखकर नहीं करता, उस विद्वान की विद्वता का अनुभव कर जन-मानस उस व्यक्तित्व को विद्वान की उपाधि से अलंकृत करता है। उसी प्रकार स्वराष्ट्र को चीख-चीखकर महान बताने वाले राष्ट्रों की महानता का अनुभव दूसरा राष्ट्र ही कर सकता है।उदाहरणत: कोई पाकिस्तानी राष्ट्रभक्तं चीख-चीखकर राष्ट्र को महान बताये अथवा महानता के पुल बनाये, परन्तु हम भारतीय ही अनुभव कर सकते हैं कि पाकिस्तान वास्तव में क्या है? यदि कोई राष्ट्र आर्थिक मापदंडों के आधार पर सैन्य शक्ति आधार पर खुदको महान कहते धनवान व शक्तिशाली हो सकते है।
भारतवर्ष महान क्यों है और कोई क्यों नहीं ?
निसंदेह भारतवर्ष को महान बताने के लिये अनेक बुद्धिजीवी इसे 'सोने की चिड़िया', भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, महात्मा बुद्ध की जन्मभूमि के कारण, कुछ खनिज सम्पदा से परिपूर्ण, अधिक जनसंख्या वाली भूमि आदि तर्कों व तथ्यों का सहारा भी लेते हैं, परन्तु आज अमेरिका धनवान राष्ट्र, येरूशलम ईसा की जन्मभूमि, रूस, चीन, अफ्रीका खनिजों से सम्पन्न, चीन जनसंख्या वाला देश विद्यमान है।
कुछ लोग राष्ट्र को महान सम्राट अशोक, बुद्धिजीवी चाणक्य, आर्यभट्ट, स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असखाफउल्ला खा जैसे राष्ट्र के प्रति समर्पित भारत माता के शार्दूल पुत्रों, व कुछ अहिसामार्गी गाँधी व कुटनीतिक राजनैतिक व्यक्तित्व जवाहर लाल नेहरू आदि का उदाहरण देते हैं।विश्व के प्रत्येक क्षेत्र में सिकंदर पैदा हुये, प्लेटो व पायथागोरस पैदा हुये, स्वतंत्रता सेनानी भी जन्मे व राष्ट्र भूमि में समर्पित हो गये नेल्सन मण्डेला जैसे व्यक्तित्व भी जन्मे। अर्थात भारतवर्ष को केवल सुने सुनाये, पढ़े- पढ़ाये रटे-रटाये तर्कों व तथ्यों के आधार पर महान बताना भूल होगी।हालांकि उपर्युक्त सभी उदाहरण राष्ट्र की महानता के लिये पूर्णतः उत्तरदायी है। परन्तु इन सभी के अतिरिक्त एक मूल कारण भी है जिसके कारण हम भारतवर्ष को महान कहते हैं।
केवल राजनैतिक, आर्थिक, वैधानिक, कूटनीतिक, वैज्ञानिक रूप से आकलन करना पश्चिमी सभ्यता की विचारधारा है इसी कारण जो आज महान है, वह इन मापदण्डों के अनुसार कल महान नहीं रहेगा।यह मापदण्ड उसी प्रकार हैं कि समय बीतने पर एक शेर की तुलना अन्य जानवरो से करें अथवा जंगलराजा की उपाधि किसी अन्य ऐसे जीव को दे दें जोकि आज समयानुकूल सभी रूप से उत्कृष्ट है व उस सिंह को कोई स्थान ही प्राप्त न हुआ हो।भारतवर्ष को महान बनाने का सम्पूर्ण श्रेय संस्कृति के चरणों में समर्पित है। राष्ट्रकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार, "संस्कृति वह है जो हमारे जीवन को अर्थ और उद्देश्य प्रदान करती है।
भारतवर्ष की संस्कृति, विश्व की सभी संस्कृतियों की जननी है। भारतवर्ष की संस्कृति सत्य, न्याय, एकता, त्याग, अभिमान, दर्शन, अध्यात्म, नैतिकता, आदि गुणों को अपने अन्दर समाहित किये हुये है।
भारत की संस्कृति विश्व की सभी संस्कृतियों में श्रेष्ठ है, आदरणीय है, सम्मानीय है, जिनके कारण निम्न हैं
- सहनशीलता और एकता - सहनशीलता का अर्थ चुपचाप पीड़ा सहना मात्र नही है। श्रीकृष्ण सहनशीलता का परिचय देते हुये जरासंध को मृत्यु लोक में पहुँचा देते है। यहाँ एकता का अर्थ अधम से एकता कर उसकी सहायता करना नहीं है यहाँ विभीषण जी ने अधर्मी रावण से विमुख होकर श्रीराम का साथ दिया । गिलहरीं द्वारा पुल निर्माण में सहायता मिलने पर राम ने एकता का अर्थ जाना ।अधिक सहनशीलता दुगर्ति का कारण हो सकती है इसीलिये शत्रु पर नैतिकता से बिना भी युद्ध हुये हैं। विश्व की अन्य किसी संस्कृति में ऐसे प्रमाण नहीं मिलते।
- परम्परा तथा रीति रिवाज - भारत की परम्परायें कोई पीढ़ीदर पाखण्ड नहीं है, न हि रीति रिवाज पाखण्ड हैं। यहाँ शिक्षा गुरु-शिष्य परम्परा के अनुसार, विवाह परम्पराओ के अनुसार हुआ करते हैं। ये परम्परायें कोई एग्रीमेंट नहीं हैं जिन्हें तोड़कर नये विवाह किये जायें, अपितु उत्तरायण से दक्षिणायन में मकर संक्रांति राष्ट्र की वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ परम्पराओं के रूप में संचित है। यहाँ दिनांक सूर्य, चन्द्र की भौगोलिक स्थिति के अनुकूल बनाये जाते हैं। पूर्णिमा व अमावस्या भी गहन - अन्तरिक्ष विज्ञान द्वारा आधुनिक यूरोपीयन समाज में स्वीकृत हैं।
- धार्मिक दृष्टिकोण भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है। विश्व के सभी मुख्यतः धर्म यहां सभी धर्मो के मानने वाले रहते हैं।इस संस्कृति में महात्मा बुद की गुणा शस्त करने हेतु हिन्दू लड़की ने खीर प्रस्तुत की। महावीर स्वामी के सन्यास में उनका धर्म न पूछा।56 ईसा पूर्व में यहूदियों को शरण दी। ईसा के बारह से एक भक्त को ईसा के उपदेश फैलाने की स्वतंत्रता दी।राष्ट्र के विभाजन को जिममेदार मन्दिर विनाशको की संतानों की राष्ट्र के दोनों भुजाये दे डाले, और स्वयं भारतवर्ष उनकी संतानों का पालन पोषण कर रहा है।अध्यात्मिक दृष्टि से भी लोग पूर्णयतः स्वतंत्र थे।यूरोप के कई देश आज भी ईसाई राष्ट्र हैं पस्तु भारत ने सभी की संरक्षण प्रदान किया।
- महिलाओं की स्थिति जिस देश के प्राचीनतम ग्रंथ वेद की स्वयिता महिलायें हों उस समाज में महिलाओं का स्थान सर्वोच्च था।गार्गी - याज्ञवल्क्य संवाद अन्य उदाहरण है। महिलाओं को मतदान देने का अधिकार है राष्ट्र की महिलायें राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री पदवी को अलंकृत कर चुकी है व अपनी सेवायें अलब्ध करा चुकी हैं।जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे राष्ट्र में एक भी महिला उस राष्ट्र की राष्ट्रपति नहीं बनी हैं।भारतवर्ष को महान बताने का कारण त्याग है।विश्व की किसी भी संस्कृति में ऐसे उल्लेख नहीं मिलते जहाँ त्याग विद्यमान हो।
महात्मा बुद्ध का राजमहल त्याग, महावीर स्वामी के राजमहल त्याग, श्रीराम के सिहांसन त्याग से लेकर महान शब्द से सुशोभित कबीरदास, तुलसीदास, मीराबाई का त्याग इत्यादि यहाँ त्याग का अर्थ छोड़ना या खाली करना मात्र नहीं है। (त्याग का अर्थ दार्शनिक है, शायद ही अन्यत्र कहीं त्याग की भावना होगी। न्याय, वर्तमान स्थिति में प्रतिकूल प्राचीन समय में न्याय सभी के लिये समान था, जो सजा किसी शुद्ध आदि को दी जाती थी वही सजा किसी ब्राह्मण अथवा राजपुत्र को दी जाती थी। विश्व में अन्यत्र कहीं शायद ही न्याय इस प्रकार विद्यमान हो चूँकि अन्य सभ्यताओं में तो सुकरात के कानों में गर्म लहि को डाला गया है तो कहीं रंगभेद के आधार पर न्याय असमान था।
शक्तिशाली, शक्ति दूसरों को कष्ट पहुँचाने के लिये नहीं अपितु दूसरो की रक्षा हेतु होती है। भारतीय राजाओं में एक समय अपार शक्ति सामर्थ्य थी परन्तु भारतीयों ने किसी राजा पर आक्रमण नहीं किये बल्कि उन्हें संरक्षण प्रदान किया। विश्व में अन्यत्र कहीं ऐसी स्थिति में उपनिवेशवाद व आक्रमण होते हैं। राष्ट्र पर किये गये आक्रमणकारी व वंशज सदैव आक्रमणकारी उपज थी। भारतीयों से उन्हे जोड़ना पुर्णतः गलत है।अकबर, शाहजहाँ, गोरी, गजनवी आदि का शासन भारतवर्ष पर आक्रमणकारी शासन था।आज भारतवासियों को राष्ट्र में भारत की अपेक्षा india अधिक दिखाई देता है।शायद राष्ट्र की महानता में इन्हे greatness दिखाई पड़े।दोनो शब्द एक दूसरे से अलग हैं एक शब्द हजारों वर्षों के गहन विवेचन व ज्ञान से है व दूसरा भोगवादी विचारधारा से ।इसलिए पश्चिम में सिकंदर ग्रेट तो उचित है परंतु भारत में सिकंदर महान नही।
मैं पवन गोला जो कक्षा १२वी का विज्ञान वर्ग का छात्र हूँ ,बाल्यावस्था से ही भारतीय संस्कृति एवं धर्म का अध्ययन कर रहा हूँ पश्चिमी सभ्यता का एक कटु आलोचक हूँ मेरा उद्देश्य अपने विचारोँ से सोये हुए समाज जो पुनः जीवित करना है और उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़ना है ।
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