ऐसी मूढ़ता या मन की पद का अर्थ व्याख्या | Aisi Mudta Ya Man Ki Vyakhya

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ऐसी मूढ़ता या मन की पद का अर्थ व्याख्या Aisi Mudta Ya Man Ki Vyakhya गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मन की मूढ़ता का इस प्रकार वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे

ऐसी मूढ़ता या मन की पद का अर्थ व्याख्या


सी मूढ़ता या मन की। 
परिहरि राम-भगति सुर सरिता, आस करत ओसकन की। 
धूम समूह निरखि चातक ज्यों, तृषित जानि मति घन की। 
नहिं तहँ सीतलता न बारि, पुनि हानि होति लोचन की । । 
ज्यो गच काँच बिलोक सेन, जड़ छाँह आपने तन की ।। 
टूटत अति आतुर अहार सब, छति बिसार आनन की ।। 
कहँ लौ कहौं कुचाल कृपानिधि, जानत हौ गति जन की ।। 
तुलसीदास प्रभु हरहु दुसह दुःख, करहु लाज निज पन की ।। 

प्रसंग- प्रस्तुत पद में गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मन की मूढ़ता का इस प्रकार वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! आप मेरा असह्य दुःख शीघ्र ही हरण कर लीजिए और मेरे प्राणों की रक्षा कीजिए।
 
व्याख्या - इस मन की मूर्खता यह है कि वह राम की भक्ति-रूपी गंगाजी को छोड़कर ओस के कणों की आशा करता है अर्थात् भगवान् के भजन को छोड़कर संसार के क्षणिक सुखों व ओर दौड़ता-फिरता है। जिस प्रकार प्यासा पपीहा धुएँ के समूह को बादल समझ लेता है, परन्तु उसे वहाँ न तो शीतलता ही मिलती है और न जल की प्राप्ति ही होती है वरन् आँखों की ही हानि होती है। और जैसे मूर्ख बाज शीशे की गच में अपने शरीर की परछाई देखकर और अपने मुख (चोंच) की हानि को भूलकर भोजन के वश बड़ी शीघ्रता से टूटता है, परन्तु वहाँ भोजन कहाँ है और चोंच की भी हानि होती है।
 
ऐसे ही भगवान् को छोड़कर और की उपासना करने में हानि ही है, लाभ कुछ नहीं है। हे कृपा के भण्डार! मैं इस कुचाल का कहाँ तक बखान करूँ। आप तो अपने जनों की दशा जानते ही हैं। हे प्रभु! तुलसीदास का दारुण दुःख दूर कीजिए और ऐसा करके अपनी प्रतिज्ञा की रक्षा कीजिए, क्योंकि आपकी तो यह प्रतिज्ञा ही है कि 'मैं शरणागत की रक्षा करता हूँ।


विशेष- उपरोक्त पंक्तियों में निम्नलिखित विशेषताएं हैं -
  • प्रारम्भिक दो पंक्तियों में भक्ति-भावना के अन्तर्गत आत्म-भर्त्सना की स्थिति है। 
  • रूपक, दृष्टान्त, अनुप्रास, विशेषण, विपर्यय एवं रूपकातिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग है ।
  • अंतिम पंक्ति में भावना की शरण वत्सलता का यश गान है और कवि का चातर्य भी प्रकट हुआ है। 
  • भावसाम्य "परम गंग जल छाड़ि पियासो नभ महँ कूप खनावे।" -सूरदास "दर्पन केरि जो गुफा, सोनहा पैठो धाय । देखत प्रतिमा आपनी, भूक भूक मरि जाय।।” -कबीर 

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