अचानक एक दिन | हिंदी कहानी

SHARE:

अचानक एक दिन अरे! यह किसने इतनी ढिठाई से कमर में हाथ डाल दिया… ऋतु ने पलट कर देखा तो मनु खड़ी मुस्कुरा रही थी।

अचानक एक दिन


रे! यह किसने इतनी ढिठाई से कमर में हाथ डाल दिया… ऋतु  ने पलट कर देखा तो मनु खड़ी मुस्कुरा रही थी।
- ‘तौबा! मनु, तूने तो डरा ही दिया था, अचानक तू यहां कैसे दिखाई दे रही है।‘ 
–‘ यार तेरा हौसला देख रही थी। बहुत दिन बाद दिखाई दी ना, सुना था अकेले ही मस्ती मार रही है…’ ऋतु अपने मस्त अंदाज में बोले जा रही थी और मैं उसे अचंभित सी देख रही थी। वही जींस, शर्ट, बॉय कट बाल.. वही बोलने का लड़कों वाला अंदाज, कॉलेज में तो वह शरारत करने में बहुत मशहूर थी ही, पर अब शादी के बाद भी 10 साल में जरा नहीं बदली है। 
- ‘क्यों मोटी, क्या गृहस्थी को तिलांजलि देकर मस्ती कर रही है..? मैंने मनु से पूछा- ‘क्यों यार, ऐसा तुझे मुझमें क्या दिखाई दिया… जो मुझे आवारा समझ रही है ?’ 
- ‘नहीं रे आवारा नहीं, बस तुझे देख कर ऐसा लग रहा है जैसे तू घर के पचड़ों से दूर, ताजी सी, खिली कली सी, पहले की तरह चहकती, बुलबुल सी, आंखों में वही शरारत भरी है। मुझे तो तू अनछुई कली सी दिख रही है।‘ 
- ‘बस ज्यादा तारीफ मत कर वरना मैं बौरा जाऊंगी। चल किसी रेस्टोरेंट में बैठकर गप्पें मारते हैं… यहां खड़े-खड़े नहीं चलेगा।‘ 
- ‘पहले तू अपना काम कर ले…जिसके लिए तू आई थी।‘ 
- ‘नहीं कुछ खास काम नहीं है, बस बच्चों के लिए कुछ कपड़े और खिलौने लेने थे। दिसंबर में बच्चे छुट्टियों में आएंगे।‘ मनु ने कहा। 
- ‘मनु तेरे कितने बच्चे हैं और कहां पढ़ते हैं?’ मैंने पूछा। 
- ‘दो शेर हैं और नैनीताल में पढ़ते हैं। जब वह आएंगे तो तुझे मिलवाऊँगी। उन्हें देखकर तेरी तबियत खुश हो जाएगी।‘ मनु ने इठलाते हुए कहा । 

-‘ तो पहले बच्चों का सामान खरीद ले फिर सोचेंगे गप्पों के बारे में, लेकिन तू क्या अकेले ही शॉपिंग करती है..? पतिदेव क्या ज्यादा ही व्यस्त रहते हैं..?’
‘हां, सारंग को तो अपना ऑफिस या साइट वर्क बस, बाकी सबसे सन्यास… कहकर मनु ने अपनी बाई आंख दबा दी मुझे हंसी आ गई। उसे जैसे कुछ याद आ गया… तपाक से बोली अरे मैंने तेरे बारे में तो कुछ पूछा ही नहीं, अपने बारे में विस्तार से सब बता।‘ 
-‘नहीं मनु अब देर हो रही है। कल इस पते पर आ जाना, वहीं बैठकर बातें होंगे, अगर मूड बना तो मूवी देखने चलेंगे।‘ 
अचानक एक दिन
-‘तू कितने बजे तक कॉलेज से आ जाती है।‘ 
- ‘बस ज्यादा से ज्यादा एक बज जाता है।’ 
- ‘ठीक है कल 3:00 बजे मिलते हैं। हां, यार सुना है तेरे नाम के डंके बज रहे हैं।‘ 
- ‘किस बात के लिए मैं आश्चर्य से पूछा। 
-‘अरे सुना है तू प्रोफेसर के साथ लेखिका भी बन गई है।‘ 
- ‘सिर्फ सुना ही है या कुछ पढ़ा भी है…?’ 
- ‘अभी पढ़ने का सौभाग्य कहां मिला…’ 
- ‘ठीक है तो कल पढ़ कर बताना। अब चलें..?’ 
अगले दिन ठीक 3:00 बजे मनु, ऋतु के यहां जा धमकी। देखा, किताबों से कई रैक भरी थी। एक तरफ कैनवास पर कोई अधूरी पेंटिंग लगी थी। पास ही रंग और ब्रश भी रखे थे। कमरे के बीच में कालीन बिछा था। जिस पर बैठी ऋतु कुछ पढ़ रही थी। मनु को देखते ही मुस्कुरा कर मनु का हाथ पकड़ कर वहीं बिठा लिया।  
-‘ ज्यादा परेशानी तो नहीं हुई? आसानी से यहां पहुंच गई ना…’ 
- ‘बिल्कुल परेशानी नहीं हुई, बस जरा मोड़ पर पूछा था। 
-‘ अच्छा बता ठंडा लेगी या गरम? 
-‘ देख ऋतु  तू बुरा नहीं मानना… मेरा तो तेरी किताबों को देखकर दम घुट रहा है। कहीं बाहर चलकर बैठेंगे और वही ठंडा गरम भी लेंगे। सब तेरी तरफ से, आज तो मैं तेरी मेहमान हूं ना…’
– ‘चल आई बड़ी मेहमान बनकर.. हां तेरे साथ मैं भी कुछ बाहर का आनंद ले लूंगी वरना रोज ही कॉलेज से घर या घर से कॉलेज तक का रास्ता याद रहता है।‘ 
हम दोनों खुले रेस्तरां में जाकर कौने की टेबल पर जम गए और  वेटर को दो कोल्ड कॉफी का आर्डर दिया। अब मनु उतावली होकर बोली- 
-‘हां बस अब तू शुरू हो जा...10 साल की कहानी एक साथ सुना डाल, मुझे बहुत बेचैनी हो रही है।‘ –‘ क्या सुनाऊँ..? कुछ खास है नहीं सुनाने को, तेरे शिमला चले जाने के बाद जैसे होंठ सिल से गए… तू ही उस ग्रुप में सबसे ज्यादा शरारती थी, जो अपनी हरकतों से हंसाती रहती थी। बाकी मीतू, मीनू, राखी, सुनंदा सभी तो लीचढ़ थी, फिर मुझे तो बचपन से लिखने का शौक था, जो तेरे जाने के बाद और मुखरित हो गया। खाली पीरियड में किसी पेड़ या झुरमुट के नीचे बैठकर शब्दों को जोड़ जोड़ कर कुछ बनाने का प्रयास करती रहती थी। तुझे याद होगा हमारी क्लास में एक तेरे जैसा शरारती लड़का सागर था… वह एक दिन अचानक मेरे पास आकर बोला-
-‘ लगता है सहेली के जाने से अकेले हो गए हो, वैसे हम भी बुरे नहीं हैं, हमें अपना हमराज बना लो कुछ हमारे ऊपर भी लिखो हम भी आपकी क्लासमेट हैं।‘ वह बोलता रहा और मैं घबराहट में कुछ ना बोल सकी। मेरे ना बोलने को उसने मेरी सहमति समझ लिया और जब तब कुछ कुछ बोलने लगा। एक दिन में सफेद सलवार और सफेद कुर्ते में थी और चांदनी के झुरमुट के नीचे बैठी कुछ लिख रही थी कि सागर का स्वर सुनाई पड़ा… कह रहा था- 
- ‘स्वयं को आईने में देखकर पूनम के चांद पर चार पंक्तियां लिख दो ।’ 
मैंने कड़क कर कहा- ‘मिस्टर, धूप निकल रही है और सूरज चढ़ रहा है ऐसे में पूनम की कल्पना तुम्हारे भेजे में कैसे आई..?’ 
उसने हंस कर कहा- ‘ऋतु तुम मेरी आंखों से देखो तुम तो मुझे पूनम के चांद जैसी शीतल और बेला की काली जैसी मासूम नजर आती हो। मैं तो तुम्हें अपनी आंखों और सांसों में बसा चुका हूं। सच, ऋतु तुम्हारे बिना सब कुछ सूना सूना लगता है।‘ 
उसकी बातें सुनकर मुझे हंसी आने लगी… पर मैंने होठों पर पहरा लगा लिया और स्पष्ट स्वर में कहा
- ‘सागर जी, यहां से जाने में ही आपकी भलाई है वरना प्रिंसिपल के सामने आपकी पेशी हो जाएगी जो आपके हित में ठीक नहीं होगा।‘ 
उसने संयंत स्वर में कहा- ‘मैं स्वयं ही कल तुम्हारा शहर और कॉलेज छोड़कर जा रहा हूं। तुम मुझे आवारा समझती हो, इसलिए बता रहा हूं कि मेरा चुनाव इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया है। यही बताने में यहां आया था.. शायद तुम मेरी खुशी में शामिल हो जाओ। लेकिन तुम तो पत्थर की बुत हो। मेरे लिए अब तुम्हारी परिभाषा बदल रही है, मैं तुम्हारी तुलना चांद से, खिलते फूलों से, महकती कलियों से, करता रहा.. यह मेरी भूल थी। तुम तो सिर्फ संगमरमर हो।‘ 
यह कहकर वह चला गया। लेकिन उसके जाने के बाद मुझे लगा कि कहीं अनजाने में मैं भी उससे जुड़ गई थी। उसकी स्मृति अभी भी बनी रहती है। उसके शब्द कानों में गूंजते रहते हैं। 
- ‘फिर कभी उससे मुलाकात नहीं हुई…?’
- ‘नहीं, फिर पढ़ाई के बाद मुझे यहां लेक्चरर की जगह मिल गई और मैं मां के साथ यहां चली आई। 2 साल हुए मां भी नहीं रही। अब तो बिल्कुल अकेली हूं... रंग, कैनवस, डायरी, पैन, किताबें बस यही सब साथी हैं। 
- ‘नहीं यार, अब तो मैं मिल गई हूं फिर से तुझे बेला, चमेली बना दूंगी और तेरे उसे चहेते को भी ढूंढ निकालूंगी… जो तेरा मन ले उड़ा है क्योंकि दुनिया गोल है वह मिलेंगे कहीं ना कहीं। तू उस छलिया की याद को संजोए रखना। अच्छा अब संडे को लंच पर बातें होंगी। तभी तुझे कपिल से मिलवाऊंगी। तू स्वयं आ जाएगी या लेने भेजूं?’  
-‘ नहीं मैं स्वयं आ जाऊंगी।‘ कहकर हम दोनों अपनी अपनी राह पर चल दिए। संडे को ठीक 11:00 बजे मैं वहां पहुंच गई। रास्ते में कोई परेशानी नहीं हुई। रिक्शा वाले ने ठीक उसकी कोठी के सामने ही उतारा था। सामने ही कपिल अग्रवाल की नेम प्लेट लगी थी। गेट खोलते ही बगीचा था फिर बरामदा पार करके अंदर पहुंच गई। मनु रसोई में थी मुझे देखते ही बाहर आ गई और हंस कर स्वागत किया। मैंने पूछा-‘ चलो रसोई में मैं भी मदद करती हूं। वही बातें भी होती रहेंगी।‘ 
– ‘नहीं, सब हो गया। बस रोटी बनानी है, वह तो तभी गरम-गरम रामदीन बना देगा। चल, अंदर बैठकर बादाम काजू काट लेंगे।‘ 
-  ‘अरे ऐसा क्या बनाया है जो बादाम काजू के बिना नहीं चलेगा?’
- ‘छुहारे मखाने की खीर बनाई है। 
- ‘अरे इसकी क्या जरूरत थी… मैं कोई मेहमान हूं। 
- ‘तेरे साथ इनके एक दोस्त भी खाने पर आ रहे हैं। वह आजकल यहां दौरे पर आए हुए हैं। कपिल  ने उन्हें भी खाने पर बुला लिया है। कपिल बता रहे थे कि उन्होंने शादी नहीं की है, सो घर के खाने को तरस जाते हैं।‘
- ‘बीबीजी खाना लगा दिया है और साहब जी से भी कह दिया है।‘ 
- ‘चल भाई अब तुझे वही कपिल से मिलवाऊंगी। हम दोनों जैसे ही डाइनिंग रूम में घुसे वैसे ही वह दोनों भी आ गए। मनु ने हंसते हुए अपने पति से मेरा परिचय कराया तो मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए फिर वह उनके दोस्त की तरफ मुखातिब हुई और अचंभित सी बोली 
- ‘अरे आप तो जाने पहचाने लग रहे हैं।‘ 
- ‘शुक्र ख़ुदा का! कुछ तो जाना पहचाना लगा। मैं तो आप दोनों को पूरा-पूरा पहचान रहा हूं।‘ 
अब तक कपिल चुप थे। 
बोले- ‘क्या चक्कर है भाई, तुम्हारी कहां की जान पहचान निकल आई है? कुछ हमें भी तो बताओ ।’ – ‘यह मिस्टर कभी हमारे क्लास मेट थे और ऋतु के चाहने वाले हुआ करते थे।’ मनु ने कहा। 
- ‘इनके सिवा किसी के नहीं हो पाए हैं।’ 
यह सुनकर मेरा चेहरा खुशी और शर्म से लाल हो गया… जैसे तपते रेगिस्तान में अचानक वर्षा आ गई और हर तरफ जल ही जल भर गया। हम दोनों आंखों ही आंखों में डूब कर मग्न हो गए। अचानक मिलने की खुशी मुझे बहा ले जा रही थी। डोलती नैया को मांझी मिल गया था।


- बृज गोयल
मवाना रोड, मेरठ
मोबाइल नंबर -9412708345

COMMENTS

Leave a Reply

You may also like this -

Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका