भारत और तुर्की : सांस्कृतिक जुड़ाव से आधुनिक कूटनीति तक

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भारत और तुर्की सांस्कृतिक जुड़ाव से आधुनिक कूटनीति तक भारत और तुर्की के बीच संबंधों का इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक एक जटिल और बहुआयामी य

भारत और तुर्की सांस्कृतिक जुड़ाव से आधुनिक कूटनीति तक


भारत और तुर्की के बीच संबंधों का इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक एक जटिल और बहुआयामी यात्रा को दर्शाता है। इन दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनयिक संबंधों की नींव वैदिक युग से पहले की है, जब प्राचीन भारत और अनातोलिया के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता था। मध्ययुग में तुर्की सुल्तानों और भारतीय शासकों के बीच राजनयिक संपर्क स्थापित हुए, और तुर्की भाषा, कला, वास्तुकला और व्यंजनों का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, हिंदुस्तानी और तुर्की भाषाओं में नौ हजार से अधिक शब्द समान हैं, जो इन सांस्कृतिक संबंधों की गहराई को दर्शाता है। रामपुर की रजा लाइब्रेरी में तुर्की भाषा की दुर्लभ पांडुलिपियां इसका जीवंत प्रमाण हैं।

भारत और तुर्की सांस्कृतिक जुड़ाव से आधुनिक कूटनीति तक
आधुनिक काल में भारत और तुर्की के बीच राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुए, जब भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की और तुर्की ने इसे तुरंत मान्यता दी। प्रारंभ में दोनों देशों के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण थे, और भारत ने तुर्की के स्वतंत्रता संग्राम और प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की गणराज्य के गठन में सहयोग दिया। महात्मा गांधी ने तुर्की पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, और 1920 के दशक में भारतीय नेताओं जैसे एमए अंसारी ने तुर्की के लिए चिकित्सा सहायता प्रदान की। हालांकि, शीत युद्ध के दौर में दोनों देशों के संबंधों में ठहराव आया। तुर्की नाटो का हिस्सा बनकर पश्चिमी गठबंधन के साथ जुड़ गया, जबकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई और सोवियत संघ के साथ निकटता बनाए रखी। इस वैचारिक मतभेद ने दोनों देशों को एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।

शीत युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों देशों ने अपने संबंधों को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाए। 1980 के दशक में तुर्की के राष्ट्रपति तुर्गुत ओज़ाल और भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पारस्परिक दौरे इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम थे। इन दौरों ने सैन्य और राजनयिक सहयोग की संभावनाओं को खोला। आर्थिक क्षेत्र में भी प्रगति हुई, और 2019 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 7.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जो 2023-24 में बढ़कर 10.4 बिलियन डॉलर हो गया। भारत तुर्की को पेट्रोलियम, ऑटोमोबाइल पार्ट्स और कपड़ा निर्यात करता है, जबकि तुर्की से सोना, मशीनरी और कृषि उत्पाद आयात करता है। दोनों देशों ने 15 बिलियन डॉलर तक व्यापार बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, चिकित्सा पर्यटन, नवीकरणीय ऊर्जा, फार्मास्यूटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग की अपार संभावनाएं हैं।

हालांकि, भारत और तुर्की के संबंधों में कुछ प्रमुख चुनौतियां भी रही हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है कश्मीर मुद्दे पर तुर्की का पाकिस्तान के प्रति समर्थन। तुर्की ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर विवाद को उठाकर और पाकिस्तान का समर्थन करके भारत के साथ तनाव को बढ़ाया है। विशेष रूप से, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कई अवसरों पर पाकिस्तान को "भाई" के रूप में संबोधित किया और कश्मीर पर भारत-विरोधी रुख अपनाया। इसके अलावा, तुर्की ने पाकिस्तान को आधुनिक हथियारों की आपूर्ति की है, जैसे ड्रोन, जो अजरबैजान-आर्मेनिया और रूस-यूक्रेन युद्धों में प्रभावी साबित हुए हैं। 2024 में तुर्की की संसद में यह स्वीकार किया गया कि उसने भारत को हथियार बेचने पर रोक लगा दी है, जिसने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को और गहरा किया।

भारत की तुर्की के पड़ोसी देशों—जैसे इसराइल, ग्रीस, साइप्रस और आर्मेनिया—के साथ बढ़ती निकटता ने भी तनाव को बढ़ाया है। तुर्की के साथ इन देशों के संबंध खराब हैं, और भारत की इन देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी ने तुर्की को असहज किया है। उदाहरण के लिए, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर पर तुर्की ने आपत्ति जताई, क्योंकि यह उसकी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को चुनौती देता है। इसके बावजूद, दोनों देशों ने कुछ क्षेत्रों में सहयोग बनाए रखा है। 2023 में तुर्की में आए भूकंप के बाद भारत ने "ऑपरेशन दोस्त" के तहत त्वरित राहत और बचाव कार्य किए, जिसमें चिकित्सा आपूर्ति, बचाव दल और प्रशिक्षित कुत्तों की टोलियां भेजी गईं। यह सहायता दोनों देशों के बीच मानवीय संबंधों को मजबूत करने का एक प्रयास था।

सांस्कृतिक स्तर पर, भारत और तुर्की के बीच पर्यटन एक महत्वपूर्ण कड़ी है। हर साल लाखों भारतीय पर्यटक इस्तांबुल, कप्पाडोसिया और अंताल्या जैसे तुर्की के पर्यटन स्थलों पर जाते हैं, जिससे तुर्की की अर्थव्यवस्था में 2,900-3,350 करोड़ रुपये का योगदान होता है। तुर्की के सांस्कृतिक प्रभाव, जैसे सूफी संगीत और ओटोमन वास्तुकला, भारतीय पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। दोनों देश जी20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भी सहयोग करते हैं, और 2023 के जी20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अर्दोआन के बीच द्विपक्षीय बैठक ने आर्थिक संबंधों को बढ़ाने पर जोर दिया।

वर्तमान में भारत और तुर्की के संबंध एक दोराहे पर खड़े हैं। एक ओर, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध, व्यापारिक अवसर और मानवीय सहयोग दोनों देशों को करीब लाते हैं। दूसरी ओर, कश्मीर मुद्दे पर तुर्की का रुख, पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति और भारत के अन्य सहयोगी देशों के साथ तुर्की के तनावपूर्ण संबंध विश्वास की कमी को जन्म देते हैं। भविष्य में दोनों देशों को इन संवेदनशील मुद्दों पर सावधानीपूर्वक कूटनीति अपनानी होगी। यदि तुर्की अपनी नीतियों में संतुलन लाए और भारत के साथ सहयोग को प्राथमिकता दे, तो दोनों देश न केवल आर्थिक बल्कि रणनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी एक मजबूत साझेदारी बना सकते हैं। भारत का विशाल बाजार और तुर्की की भू-राजनीतिक स्थिति इस साझेदारी को वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण बना सकती है।

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