सनातन संस्कृति में उपवास का महत्व

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सनातन संस्कृति में उपवास का महत्व सनातन संस्कृति में उपवास का महत्व गहराई से जुड़ा हुआ है और यह केवल शारीरिक संयम तक सीमित नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक,

सनातन संस्कृति में उपवास का महत्व


नातन संस्कृति में उपवास का महत्व गहराई से जुड़ा हुआ है और यह केवल शारीरिक संयम तक सीमित नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक पहलुओं से भी समृद्ध है। उपवास का अर्थ केवल भोजन से दूर रहना नहीं है, बल्कि यह एक पवित्र अनुशासन है जो मनुष्य को आत्मनियंत्रण, संयम और आत्मशुद्धि की ओर ले जाता है। सनातन परंपरा में उपवास को एक साधना के रूप में मान्यता दी गई है जिससे व्यक्ति का शरीर, मन और आत्मा तीनों शुद्ध होते हैं।

सनातन संस्कृति में उपवास का महत्व
प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में उपवास के विभिन्न प्रकारों और उनके महत्व का वर्णन मिलता है। उपवास को धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और विशेष अवसरों से जोड़ा गया है। जैसे एकादशी, शिवरात्रि, नवरात्रि और कार्तिक मास में उपवास रखने की परंपरा है। इन दिनों में उपवास रखकर व्यक्ति देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करता है। मान्यता है कि उपवास से मन की चंचलता शांत होती है और भक्ति भावना गहरी होती है।  

उपवास का शारीरिक लाभ भी असंख्य है। आयुर्वेद के अनुसार, उपवास से शरीर के विषैले तत्व बाहर निकलते हैं और पाचन तंत्र को आराम मिलता है। नियमित रूप से उपवास रखने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और मन एकाग्र होता है। आधुनिक विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है कि उपवास शरीर के लिए लाभदायक है और इससे अनेक रोगों से बचाव होता है।मनोवैज्ञानिक दृष्टि से उपवास एक प्रकार की मानसिक शक्ति को विकसित करने का साधन है। जब व्यक्ति भूखे रहकर भी धैर्य बनाए रखता है, तो उसका मन विषय-विकारों से ऊपर उठता है। उपवास के दौरान मनुष्य अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना सीखता है, जिससे आत्मबल बढ़ता है। यही कारण है कि साधु-संत और योगी उपवास को आत्मसाधना का एक महत्वपूर्ण अंग मानते हैं।सामाजिक दृष्टिकोण से उपवास का महत्व और भी बढ़ जाता है। उपवास के माध्यम से व्यक्ति समाज में संयम और सादगी का संदेश देता है। जब कोई व्यक्ति उपवास रखता है, तो वह अपने आसपास के लोगों को भी प्रेरणा देता है कि जीवन में अति आवश्यक नहीं है। उपवास से व्यक्ति को दूसरों के प्रति करुणा और सहानुभूति का भाव पैदा होता है, क्योंकि वह भूख की पीड़ा को समझने लगता है। 

सनातन संस्कृति में उपवास को एक पावन कर्म माना गया है जो मनुष्य को भौतिकता से ऊपर उठाकर आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है। यह केवल एक रीति-रिवाज नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है जो संयम, सात्विकता और ईश्वर भक्ति का पाठ सिखाती है। उपवास के माध्यम से व्यक्ति अपने अंदर की नकारात्मकता को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करता है और जीवन को नई दिशा देता है।

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