विश्व कविता दिवस 2025

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विश्व कविता दिवस 2025 आज विश्व कविता दिवस है। मेरा मानना है की जीवन के हर पल... को हर क्षण को... हर छोटी बड़ी घटनाओं को... कम शब्दों में संयोजित करते

विश्व कविता दिवस 2025


ज विश्व कविता दिवस है। मेरा मानना है की जीवन के हर पल... को हर क्षण को... हर छोटी बड़ी घटनाओं को... कम शब्दों में संयोजित करते हुए खूबसूरती के साथ अपनी विषयवस्तु को प्रस्तुत करना एक कविता के माध्यम से ही संभव हो पाता है। हिंदी साहित्य के विकास और समृद्धि में कवियों का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। कविता के माध्यम से हमारे कवियों ने समाज, संस्कृति, और मानवीय मूल्यों का संचार किया है। वे न केवल हिंदी भाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं, बल्कि उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से देश की सांस्कृतिक धरोहर को भी समृद्ध किया है। कवि वह है जो भावों रसपूर्ण अभिव्यक्ति देता है और सामान्य अथवा स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का वर्णन करता है।

हिंदी के प्रसिद्ध कवियों ने अपनी कविताओं और काव्यों के माध्यम से जीवन की विभिन्न पहलुओं, जैसे प्रेम, दर्द, निराशा, स्वतंत्रता, और उम्मीद को उत्कृष्ट तरीके से व्यक्त किया है। उनका काव्य आज भी हमें प्रेरणा देता है और हमारे जीवन को संवारने का मार्गदर्शन करता है। हिंदी साहित्य में हिंदी के प्रसिद्ध कवियों का अमूल्य योगदान है। हिंदी के प्रसिद्ध कवियों  ने अपनी कविताओं, दोहों और ग़ज़लों के माध्यम से जीवन की विभिन्न भावनाओं और स्थितियों को छूने का प्रयास किया है। हिंदी कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया है। उनकी कविताएं हमारी भाषा, संस्कृति, इतिहास, और समाज के विविध पहलुओं को छूने का काम करती हैं। उन्होंने हमारे जीवन, समाज, और देश के बारे में विचारशीलता और समझ बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

वैदिक काल में एक सूक्त क उल्लेख मिलता है...ऋषय: मन्त्रदृष्टार कवय: क्रान्तदर्शिन:अर्थात् ऋषि को मन्त्रदृष्टा और कवि को क्रान्तदर्शी कहा गया है।

और शायद यहि कारण है कि "जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" लोकोक्ति प्रसिद्ध है. आइये भारतवर्ष के कुछ प्रसिद्ध कवियों और साहित्य जगत में उनके योगदान पर दृश्टिपात करते हैं.

कालिदास

कालिदास भारतीय साहित्य के सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध कवियों में से एक हैं। वे संस्कृत कविता और नाटक के क्षेत्र में अपनी उत्कृष्टता के लिए विख्यात हैं। कालिदास का जीवन काल ठीक से निर्धारित नहीं हो पाया है, लेकिन उन्हें गुप्त काल के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहते हुए संबोधित किया जाता है, जो  सन 380 ईस्वी से 415 ईस्वी तक शासन करते थे। कालिदास ने अपनी कविता और नाटकों में संस्कृती, प्रकृति, प्रेम, और धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों को सुंदरता के साथ व्यक्त किया। उनकी प्रमुख रचनाएं 'अभिज्ञानशाकुंतलम', 'मेघदूत', 'रघुवंश', 'कुमारसम्भव', 'रत्नावली', 'विक्रमोर्वशीय' और 'मालविकाग्निमित्र' आदि हैं। कालिदास के काव्य और नाटकों का व्यापक प्रभाव संस्कृत साहित्य के उपर ही नहीं था, बल्कि भारतीय संस्कृति और साहित्य के विकास पर भी उतना ही था। उनकी रचनाएं आज भी विश्वविद्यालयों और पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती हैं।
 

सूरदास

विश्व कविता दिवस 2025
सूरदास एक प्रसिद्ध भक्ति काव्यकार और संत थे, जिन्हें हिंदी साहित्य के महान कवि में से एक माना जाता है। उनका जन्म 15वीं शताब्दी के ग्वालियर जिले में हुआ था। सूरदास भगवान श्रीकृष्ण के प्रेमी और उनके अनुयायी थे। उनकी रचनाएँ प्रायः श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम लीलाओं, उनके विचारों और भक्ति के विषयों पर आधारित हैं। सूरदास ने अपनी रचनाएँ अवधी भाषा में लिखीं थीं, जो की उत्तर भारतीय भाषा है। उनकी प्रसिद्धता का कारण यह था कि उन्होंने अपनी रचनाएँ सार्वजनिक रूप से गायीं थीं, जिससे उनकी कविताएँ लोकप्रिय हुईं और लोगों के द्वारा प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाता रहा है। सूरदास की प्रमुख रचनाएँ 'सूरसागर', 'सूरसारावली', 'सूरसरावली वृत्त' और 'सूरसारावली व्याख्या' हैं। इन रचनाओं में उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल लीलाओं, गोपियों के प्रेम के प्रतीक, भक्ति और वैराग्य के मुद्दों को गहराई से व्यक्त किया है। सूरदास की कविताओं में श्रद्धा, प्रेम और दिव्यता का भाव प्रधान होता है और उनकी रचनाएँ आध्यात्मिकता और भक्ति की प्रशंसा करती हैं। सूरदास के काव्य महाकाव्य हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण धाराओं में से एक माने जाते हैं और उन्होंने हिंदी भक्ति साहित्य को नयी पहचान दी है। उनकी रचनाएँ आज भी लोकप्रिय हैं और लोग उन्हें आदर और सम्मान के साथ पढ़ते हैं।
 

कबीर दास

भारतीय धर्म और साहित्य के महत्वपूर्ण स्तम्भ कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। उन्हें भक्ति और सूफी संप्रदायों द्वारा सम्मानित किया जाता है। उनके दोहे और पद अज्ञातम आम जनता में आज भी लोकप्रिय हैं। कबीर दास ने जाति, धर्म और समाज व्यवस्था के प्रति संवेदनशीलता और समाजसेवा के लिए अपनी वाणी का उपयोग किया। उन्होंने जातिवाद, पाखंड और अंधविश्वास की आलोचना की। हिंदी में इनके दोहे जीवन की सत्यता, नैतिक मूल्यों और ईश्वर की एकता के विषय पर केंद्रित होते हैं। वे सबको धार्मिक सहिष्णुता, ईश्वर की एकता और सच्चे प्रेम की ओर अनुशासित करने के लिए प्रेरित करते थे। उनके शब्दों में एक साधारणता और सीधेपन था जो उन्हें लोगों के बीच लोकप्रिय बनाता था। कबीर दास की वाणी, आज भी उनके दर्शनों और विचारों के प्रति लोगों को आकर्षित करती है।
 

तुलसीदास

तुलसीदास एक प्रमुख संत-कवि और महान् आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे, जिनका जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के राजपुर में हुआ था। वे मुख्य रूप से अपने रामचरितमानस, जिसे 'अवधी' भाषा में लिखा गया, के लिए जाने जाते हैं। रामचरितमानस में वे ने भगवान् राम के जीवन की कथा को सरल और सुंदर भाषा में व्यक्त किया है। तुलसीदास जी ने अपनी कविताओं और दोहों के माध्यम से जनता को धर्म, नैतिकता, और आदर्शों के प्रति जागरूक किया। उनकी रचनाएं आज भी हमारे समाज और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनकी अन्य प्रमुख रचनाएं हैं 'दोहावली', 'कवितावली', 'गीतावली' और 'विनय पत्रिका'। इनकी कविताएं भक्ति, विश्वास, और आत्मा के प्रति समर्पण की भावनाओं को व्यक्त करती हैं। उन्होंने भगवान् राम के चरित्र को मानवता, नैतिकता, और आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक के रूप में पेश किया।


मैथिलीशरण गुप्त

हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक, 3 अगस्त 1886 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जगदीशपुर गाँव में जन्मे  मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि भी कहा जाता है। गुप्त जी ने अपनी रचनाओं में विभिन्न विषयों पर कविताएं लिखीं, जिनमें राष्ट्रीय भावना और स्वाधीनता के प्रतीक रूप में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रशंसा शामिल थी। उनकी रचनाओं का भाषायी और सांस्कृतिक मूल्य सबको प्रभावित करता था। मैथिलीशरण गुप्त की कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:जयशंकर प्रसाद, आधार, सरजनहार, उर्वशी, इन रचनाओं के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।सांगठनिक काव्य, यशोधर, बालि-विलाप, गौरी शंकर, चित्री, इत्यादि। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य को एक नया आयाम दिया और उन्हें एक महान कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।


सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने हिंदी कविता को नई दिशा और आयाम दिया। उनका जन्म 21 फरवरी 1899 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। निराला जी ने हिंदी काव्य जगत में छायावादी अंदोलन के दौरान अपनी अनोखी शैली के साथ पहचान बनाई। उन्होंने हिंदी काव्य को अपने अद्वितीय दर्शन और जीवन अनुभव से अनुष्ठान किया। उनकी रचनाएं अनुपम सौंदर्य और उनके आत्मीय भावनाओं के प्रति गहरी संवेदनशीलता का परिचायक हैं। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास और संस्मरण लिखे। उनकी प्रमुख रचनाएं 'अनामिका', 'पर्वत प्रदेश में पावस', 'गीतिका', 'आरावली' और 'निर्लज्ज' आदि हैं।


सुभद्रा कुमारी चौहान 

सुभद्रा कुमारी चौहान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख कवियत्रियों में से एक थीं। उनका जन्म 16 अगस्त, 1904 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया। उनकी कविताएं आज भी भारतीय युवाओं को प्रेरित करती हैं।

चौहान जी की सबसे प्रसिद्ध कविता "झांसी की रानी" है, जिसमें उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की बहादुरी और स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष को चित्रित किया है। इसके अलावा, उन्होंने "मेरा नाम", "स्वर्णिम स्वतंत्रता सेनानी", "वीरो क कैसा हो बसंत", और "वीरांगना" जैसी कई अन्य कविताएं भी लिखी हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपने साहित्यिक यात्रा में अनेक कविता संग्रह, लघु कथाएं, और बाल साहित्य भी लिखा। उनकी रचनाओं में स्वतंत्रता संग्राम की भावना, मातृत्व, और देशप्रेम की जोरदार झलक दिखाई देती है। उनका योगदान हिंदी साहित्य के इतिहास में स्थायी रूप से अंकित है।
 

हरिवंश राय बच्चन

भारतीय साहित्य के सबसे प्रमुख कवियों में से एक हैं। उनका जन्म 27 नवम्बर, 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले के बाबूपुर गाँव में हुआ था। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सामाजिक, मानवीय और व्यक्तिगत जीवन के प्रति गहरी समझ और सम्वेदना व्यक्त की है। बच्चन जी ने आधुनिक हिंदी कविता को नया आयाम दिया। बच्चन जी की सबसे प्रसिद्ध कृति 'मधुशाला' है, जिसमें उन्होंने जीवन की कठिनाईयों और खुशियों को सुंदरता के साथ व्यक्त किया है। इसके अलावा, उन्होंने 'मधुबाला', 'मधुकलश', 'निशा निमंत्रण', 'सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"' और 'आत्म कथा' जैसी कई अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं।

बच्चन जी की कविताएं अक्सर संघर्ष, प्रेम, उत्साह और निराशा के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती हैं। उनका योगदान हिंदी साहित्य के लिए अमूल्य है और उनकी कविताएं आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं।
 

अमृता प्रीतम

अमृता प्रीतम एक प्रमुख भारतीय कवित्री, कथाकार, और साहित्यिक व्यक्ति थीं। वह 31 अगस्त, 1919 को गुजरानवाला (अब पाकिस्तान में) में जन्मी थीं और 31 अक्टूबर, 2005 को दिल्ली में निधन हो गईं। अमृता प्रीतम को उर्दू और पंजाबी भाषा में लिखने की खास पहचान मिली। अमृता प्रीतम की प्रमुख कृतियों में से कुछ हैं: कोरे कागज, पिंजर, अदालत, डाक्टर देव, बुलावा, बंद दरवाजा, रसीदी टिकट आदि। उनके लेखन को साहित्यिक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया है, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, और पद्म विभूषण शामिल हैं।
 

कुँवर नारायण

एक प्रसिद्ध भारतीय कवि थे, जिन्होंने मुख्य रूप से हिंदी में लिखा। उनका जन्म 9 सितंबर, 1927 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के आयोध्या में हुआ था। नारायण जी ने अपनी कविता के माध्यम से अनेक मानवीय मुद्दों और जीवन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से छूने का प्रयास किया। कुँवर नारायण की प्रमुख कृतियाँ "चाक", "पारती", "आपकी भाषा में", "मेरा कवि मित्र", "आत्मकथा का विचार" आदि हैं। उनकी कविताओं में अक्सर संवेदनाशीलता, आत्म-चिंतन और मानवता के मुद्दों को छूने की कोशिश की जाती है।


अशोक वाजपेयी

एक भारतीय कवि, साहित्यिक, शिक्षाविद्, और सांस्कृतिक कार्यकर्ता हैं। वह 23 जुलाई, 1941 को मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर जिले में जन्मे अशोक वाजपेयी का शिक्षा-प्राप्त कर्मचारी और कवि के रूप में लम्बा करियर रहा है। उन्होंने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपने योगदानों से प्रसिद्धि प्राप्त की है और कई काव्य संग्रह प्रकाशित किए हैं। उनकी कविताओं में प्रेम, विचार, संघर्ष, स्वाभिमान, और राष्ट्रीयता जैसे विषयों पर आकर्षक व्यंग्य और गहराई होती है। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य सृजन सम्मान, पद्मश्री, और काव्याचार्य सम्मान जैसे प्रमुख पुरस्कारों से नवाजा गया है। अशोक वाजपेयी ने भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रमुख संगठनों के साथ कार्य किया है और उनका सांस्कृतिक कार्य देश भर में प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने दिल्ली के संगठन "रघुलाल अनंतमूल सभागार" की स्थापना भी की है, जो कला, साहित्य, और संस्कृति के प्रदर्शनी आदि का आयोजन करता है।

साहित्य जगत में कवियों के योगदान को एक संक्शिप्त संकलन के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना एक अत्यंत ही दुष्कर कार्य है. अनेक मूर्धन्य कवियों का उल्लेख और उनका योगदान निश्चित रूप से छूट सकता है.आप सभी को विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.


- इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश 9425822488

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