तीसरी कसम कहानी का सारांश Teesri Kasam Kahani Phanishwar Nath Renu

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तीसरी कसम कहानी का सारांश Teesri Kasam Kahani Ka Saransh Phanishwar Nath Renu तीसरी कसम फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी "मारे गए गुलफाम" पर आधारित

तीसरी कसम कहानी का सारांश 
Teesri Kasam Kahani Ka Saransh Phanishwar Nath Renu


तीसरी कसम फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी "मारे गए गुलफाम" पर आधारित है, जिसे बाद में राजकपूर और वहीदा रहमान अभिनीत फिल्म में भी पेश किया गया। यह कहानी एक साधारण गाड़ीवान हीरामन और नर्तकी हीराबाई के निस्वार्थ प्रेम की मार्मिक गाथा है। इसकी कहानी साधारण लोगों के जीवन और उनकी भावनाओं को बड़ी ही संवेदनशीलता से चित्रित करती है। फिल्म का नायक हीरामन एक गरीब गाड़ीवान है, जो एक नाचने वाली लड़की हीराबाई से प्रेम करने लगता है। उसका प्रेम निष्काम और निश्छल है, लेकिन समाज के ठेकेदारों और जीवन की कठोर वास्तविकताओं के आगे वह बेबस हो जाता है।

 'तीसरी कसम' कहानी की कथा वर्तमान के एक बिन्दु से शुरू होती है। हीरामन की गाड़ी में हीराबाई बैठी हुई है । वह इस तथ्य से अनजान होकर गाड़ी हाँक रहा है। उसे हीराबाई के होने का भान तो नहीं है, लेकिन उसे एक मधुर उपस्थिति का अहसास अवश्य हो रहा है। उसकी पीठ में गुदगुदी लगती है। कथा इस बिन्दु के बाद सीधे आगे नहीं बढ़ती। हीरामन की स्मृतियाँ इस गुदगुदी से खुल जाती हैं और कथा पीछे की ओर लौट जाती है। हीरामन अपनी गाड़ी से जुड़े हुए पिछले अप्रिय अनुभव याद करने लगता है जब कंट्रोल के जमाने में वह चोरबाजारी का माल लादा करता था और एक बार पकड़े जाने पर गाड़ी छोड़कर अपने बैलों की जोड़ी के साथ उसे भागना पड़ा था तब उसने पहली कसम खायी थी कि 'चोरबाजारी का माल नहीं लादेंगे ।' उसके बाद दूसरी कसम तब खायी जब बाँस लादने के कारण उसे गाड़ी का नुकसान झेलना पड़ा तब उसने सोचा कि 'बांस कभी न लादेंगे' और दूसरी कसम खायी । सर्कस कम्पनी के काम में लगने पर हीरामन बहुत खुश है। पहले बाघ गाड़ी ढोने की वजह से उसे अच्छा मुनाफा हुआ, लेकिन बाघगाड़ी की गाड़ीवानी करते हुए कभी पीठ में ऐसी गुदगुदी नहीं लगी जैसे आज उसे लग रही थी। स्मृतियों की रेखा फिर वर्तमान बिन्दु पर आ जाती है और हीरामन सोचता है - "औरत है या चम्पा का फूल । जब से गाड़ी में बैठी है गाड़ी महक-महक रही है ।"
 
इस कथा के निर्माण में केवल घटनाओं का हाथ नहीं है, घटनायें तो बहुत थोड़ी हैं, मुख्य हाथ है दो विशिष्ट प्रकार के चरित्रों की सह-उपस्थिति तथा परिवेश का । हीरामन को यह बोध होता है कि उसके पास कोई सुन्दर स्त्री बैठी है। यदि हीरामन एक विशेष प्रकार का गाड़ीवान नहीं होता तो शायद कथा इस प्रकार विकसित न होती । उसके मन में इस अनजान सौन्दर्य के प्रति एक विशेष प्रकार का आदरभाव है । वह स्वभाव से बहुत शीलवान और कोमल है। जब सड़क के छोटे से खड्डे में गाड़ी का दाहिना पहिया हिचकोले खाता है और हीराबाई के मुँह से सिसकी की आवाज निकलती है तब हीरामान बैल को दुआली से पीटते हुए कहता है- 'साला! क्या समझता है, बोरे की लदनी है क्या, इस पर हीराबाई कह उठती है - 'अहा मारो मत!' और हीरामन को यह अनुभव होता है कि यह औरत वाणी और हृदय से भी कोमल है और दोनों यह महसूस करते हैं कि दोनों ही एक-दूसरे के प्रति आदरशील या कोमल हैं। यहाँ से कथा को अभिप्रेत दिशा ग्रहण करने में सफलता मिलती है । 

तीसरी कसम कहानी का सारांश  Teesri Kasam Kahani Ka Saransh Phanishwar Nath Renu
मथुरा मोहन नौटंकी कम्पनी में लैला बनने वाली हीराबाई को कौन नहीं जानता पर हीरामन ने सात वर्षों तक लगातार मेलों में लदनी करने पर भी कभी नौटंकी नहीं देखी। जब गाड़ी में हीराबाई के मुख पर चाँदनी पड़ती है तो हीरामन चीखते-चीखते रुक जाता है - 'अरे बाप! ई तो परी है।' यहीं से कथा में दोनों का एक-दूसरे के प्रति लगाव व्यक्त होता है । समान नाम होने के कारण हीराबाई हिरामन को 'मीता' कहकर पुकारती है और हीरामन के गीतों को सुनकर मार्ग में मग्न होकर चलती है। हीरामन भी हीराबाई का परिचय सबसे छुपाता हुआ धीरे-धीरे नियत स्थान को बढ़ता चलता है । कजरी नदी के किनारे तेगछिया के पास आकर हीरामन व हीराबाई ने विश्राम किया । हीरामन के भोलेपन ने हीराबाई को पूरी तरह मोह रखा था। हल्के हास्य के पुट के साथ कथा यहाँ से आगे बढ़ती चलती है। हीराबाई को फारबिसगंज पहुँचने की कोई जल्दी नहीं है और उसे हीरामन पर इतना भरोसा हो गया है कि डर-भय की बात ही नहीं उठती उसके मन में । महुआ घटवारिन की कथा व गीत सुनते हुए समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता । ननकपुर पहुँचते-पहुँचते ही सन्ध्या हो जाती है और सामने फारबिसगंज भी दिखने लगा । तिरपाल से चारों तरफ गाड़ी को घेरकर हीरामन सोचता है कि हीराबाई सुबह रौता कम्पनी के मैनेजर से बात कर भर्ती हो जायेगी। अपने गाँव के लालमोहर, धन्नीराम और पलटदास के साथ वह खाना खाने निकल जाता है। हीरामन जब तक लौटता है हीराबाई को लेने कम्पनी का आदमी आ चुका है और हीरामन को लगा, किसी ने आसमान से धकेलकर धरती पर गिरा दिया। हीराबाई उसे नौटंकी के पास बनवाने की बात कह दच्छिना देकर कम्पनी के आदमी के साथ चली गयी ।
 
अगले दिन हीराबाई ने हीरामन को पाँच पास दिये और हीरामन ने गाँव घर में यह बात एक पंछी भी न जान पाये कि हमने नौटंकी देखी है ऐसा आश्वासन लेकर नौटंकी में जाने का इरादा किया । नौटंकी में हीराबाई के नाचने के दौरान की जाने वाली छींटाकशी से हीरामन के कलेजे में आँच लगी और बात बढ़ते-बढ़ते मारपीट पर आ गयी। हीराबाई के आदमी समझ उन्हें एक रुपये वाले दर्जे में पुन: बैठाकर नौटंकी शुरू हुई। हीरामन को लगता था, हीराबाई शुरू से ही उसी की ओर टकटकी लगाकर देख रही है, गा रही है, नाच रही है। पलटवास हीराबाई को सियासुकुमारी की तरह आदर के भाव से देखता है। हीरामन दिन भर भाड़ा ढोता । शात होते ही नौटंकी का नगाड़ा बजने लगता और हीराबाई की पुकार कानों में मंडराने लगती - भैया मीता... हीरामन ...उस्ताद गुरुजी । पलटदास हर रात नौटंकी शुरू होने से पहले स्टेज पर नमस्कार करता ।

हीरामन मन ही मन परेशान है । हर रात किसी-न-किसी के मुँह से सुनता है वह हीराबाई बाजारू औरत है । कितने लोगों से लड़े वह । लोग तो राजा को भी पीठ पीछे गाली बकते हैं पर वह सोचता है कि हीराबाई की नौटंकी छोड़कर सर्कस कम्पनी में काम करने की सलाह देगा । तभी लालमोहर उसे हीराबाई के स्टेशन पर पहुँचने और उसे ढूँढ़ने का समाचार देता है। हीरामन बैलगाड़ी छोड़ दौड़ता हुआ पहुँचता है तो हीराबाई उसे उसकी थैली जो उसने नौटंकी देखते समय उसके पास रखवाई थी सौंपते हुए जाने की बात कहती है। कोट पतलून पहने बाबू के साथ रेलगाड़ी. पर बैठ जाने से पहले हीराबाई के दिये रुपये को लेने से इन्कार कर हीरामन बाहर खड़ा उसे टकटकी लगाये देखता रहा। हीराबाई ने कहा- 'तुम्हारा जी छोटा हो गया है। क्यों मीता ? महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद लिया है गुरुजी ।" रुंधे गले से हीराबाई यह कहते हुए गाड़ी में बैठकर भी दूर तक हीरामन देखती रहती है। प्लेटफार्म खाली होने के साथ मानो हीरामन की दुनिया ही खाली हो गयी। रेलवे लाइन के बगल से बैलगाड़ी की कच्ची सड़क पर जाते हुए जैसे हीरामन तीसरी कसम खाता है कि 'कम्पनी की औरत की लदनी नहीं करेगा।' और नौटंकी में सुने गीत को याद करता है - 'अजी हाँ, मारे गए गुलफ़ाम ।'
 
इस प्रकार कहानी का अंत बेहद दर्दनाक है। हीरामन अपनी बैलगाड़ी लेकर चला जाता है, लेकिन उसका दिल टूट चुका होता है। हीराबाई भी भीतर ही भीतर घुटती रह जाती है। यह कहानी निस्वार्थ प्रेम, सामाजिक बंधनों और जीवन की कठोर वास्तविकताओं को बहुत ही संवेदनशील तरीके से दर्शाती है।

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