जन्म कुंडली का पंचम भाव : संतान, बुद्धि और रचनात्मकता का दर्पण

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बुद्धि पर पहरा जन्म कुंडली का पंचम भाव बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका कारण यह है कि हमारा ज्योतिष शास्त्र पूर्णतः कर्मफल के सिद्धांत पर ही आधारित

बुद्धि पर पहरा


न्म कुंडली का पंचम भाव बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका कारण यह है कि हमारा ज्योतिष शास्त्र पूर्णतः कर्मफल के सिद्धांत पर ही आधारित है और पंचम भाव पूर्व अर्जित पुण्यों का भाव कहलाता है। प्रत्येक जातक जन्म जन्मांतर की चेतनाओं को वहन करता है। पूर्व जन्मों के पुण्य या पाप ही हमारे चित्त पर अंकित होते हैं और उसी के अनुरूप ही हमारी बुद्धि और विवेक का निर्माण होता है। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि यदि पूर्व जन्म में हमने सत्कर्म किए हों तो ही हमारी बुद्धि सात्विक होती है तथा हमारे अंदर बुद्धिमत्ता होती है। यही कारण है कि पंचम भाव हमारी बौद्धिक क्षमताओं तथा विवेक का भी भाव है। किसी भी जातक की पत्रिका में पंचम भाव तथा पंचमेश का शुभ स्थिति में होना बहुत अच्छा माना जाता है। ऐसी स्थिति में पंचमेश की दशा- अंतर्दशा में पूर्व अर्जित पुण्य जाग्रत होने के कारण जातक को अत्यधिक शुभ परिणामों की प्राप्ति होती है। पंचम भाव व पंचमेश की शुभ स्थिति होने पर ही जातक की बुद्धि तथा विवेक सही दिशा में काम करते हैं। इसके विपरीत यदि पंचम भाव अथवा पंचमेश पीड़ित हो तो यह भाव पूर्व अर्जित पापों के फल देता है ऐसी स्थिति में जातक अपनी बुद्धि का सदुपयोग नहीं कर पाता या उसकी बुद्धि अनुचित दिशा में कार्य करवाने के लिए बाध्य करती है। पंचम भाव से व्यक्ति की मानसिकता का पता चलता है। पंचम भाव यदि अशुभ प्रभाव में हो तो यह स्थिति पत्रिका के लिए अच्छी नहीं मानी जाती क्योंकि इस स्थिति में यह कहा जा सकता है कि जातक ने पूर्व जन्मों में पुण्य कार्य नहीं किए।

लग्न पत्रिका का पंचमेश यदि किसी अन्य भाव के स्वामी के साथ युति, दृष्टि अथवा राशि परिवर्तन करके संबंध बना रहा हो तो उस भाव के भी सुखद परिणाम प्राप्त होते हैं क्योंकि ऐसी स्थिति में पूर्व अर्जित पुण्यों का फल वह भाव भी प्राप्त करता है, जिसके साथ पंचमेश संबंध बना रहा हो। उदाहरण के लिए यदि पंचमेश दशमेश के साथ युति, दृष्टि अथवा राशि परिवर्तन करके संबंध बना रहा हो, तो पंचमेश की दशा-अंतर्दशा में पूर्व अर्जित पुण्यों के जाग्रत होने के कारण जातक को करियर में भी सुखद परिणामों की प्राप्ति होगी। यदि पंचमेश अष्टमेश के साथ युति, दृष्टि अथवा राशि परिवर्तन करके संबंध बना रहा हो तो पंचमेश की दशा- अंतर्दशा में जातक को अष्टम भाव से संबंधित भी अच्छे परिणामों की प्राप्ति होगी, जैसे अचानक ही बिना किसी कोशिशों के धन की प्राप्ति अथवा पैतृक संपत्ति की प्राप्ति अथवा ससुराल पक्ष से लाभ इत्यादि हो सकते है।

पंचम भाव संतान का भी भाव है, इसलिए यदि पंचम भाव शुभ प्रभाव में हो तो पूर्व अर्जित पुण्यों के कारण जातक को श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है। यदि पंचम भाव में कोई धन योग बन रहा हो तो ऐसी स्थिति में पूर्व अर्जित पुण्यों के कारण ही बिना किसी विशेष प्रयास के ही जातक को धन की प्राप्ति होती है।

बुद्धि पर पहरा
पंचम भाव में जो भी ग्रह बैठता है वह अपने अनुसार उस भाव को जाग्रत करता है। पंचम भाव में यदि लग्नेश स्थित हो जाए तो यह स्थिति बहुत अच्छी मानी जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति बहुत अधिक बुद्धिमान होता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में जातक का स्वयं ही अपनी चेतना पर अधिकार होता है। यदि लग्नेश पंचम भाव में स्थित होता है तो पूर्व पुण्यों के प्रताप से जातक के अंदर ऐसी कोई प्रतिभा अवश्य होती है जिसके लिए उसने इस जन्म में कोई प्रयास नहीं किया होता।

यदि द्वितीय पंचम भाव में स्थित हो जाए तो बचपन के संस्कार ही जातक की बुद्धि को नियंत्रित करते हैं, क्योंकि बचपन में प्राप्त संस्कारों को द्वितीय भाव से भी देखा जाता है। यदि जातक के संस्कार अच्छे होंगे तो उसकी बुद्धि भी सात्विक होगी। इसके अतिरिक्त द्वितीय भाव से भोजन व स्वाद भी देखा जाता है, अतः यदि पत्रिका में द्वितीयेश पंचम भाव में स्थित होता है तो जातक को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए क्योंकि ऐसी स्थिति में जातक के द्वारा ग्रहण किया गया भोजन जातक की बुद्धि को नियंत्रित करता है। द्वितीय भाव धन का भी भाव है। अतः यदि द्वितीयेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो जातक की बुद्धि धन से भी नियंत्रित हो सकती है।

यदि तृतीयेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो जातक की हॉबीज (अर्थात् अपने रुचि से किया गया कार्य) ही जातक की बुद्धि को नियंत्रित करता है, इसलिए यदि पत्रिका में ऐसी स्थिति बनती हो तो जातक को अपनी हॉबीज का खास ध्यान रखना चाहिए तथा अच्छी हॉबीज को ही अपनाना चाहिए। तृतीय भाव सोशल मीडिया का भी होता है। यदि अत्यधिक सोशल मीडिया में व्यस्त रहना ही किसी जातक की हॉबी बन जाए तो यह जातक की बुद्धि को अपने अनुसार नियंत्रित करती है। इसलिए ऐसी स्थिति में जातक को चाहिए कि सोशल मीडिया में ज्ञानवर्धक और सुरुचिपूर्ण पोस्ट ही देखें। यदि पढ़ाई ही जातक की हॉबी बन जाए तो इससे अच्छा और कुछ नहीं हो सकता। तृतीय भाव पहल करने का भी भाव है, इसलिए इस स्थिति में जातक सदैव कुछ नया सीखने के लिए भी आतुर रहता है।

यदि चतुर्थेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो जातक की माता तथा जातक के घर का वातावरण ही जातक की बुद्धि को नियंत्रित करता है। यदि पत्रिका में ऐसी स्थिति बनती है तो जातक की बुद्धि के समुचित विकास के लिए जातक को उसकी माता के पर्याप्त स्नेह की आवश्यकता होती है।

यदि पंचमेश पंचम भाव में ही स्थित हो जाए तो ऐसी स्थिति में जातक की बुद्धि उसकी पढ़ाई लिखाई से ही नियंत्रित होती है। इस स्थिति में यदि पंचमेश पंचम भाव में अकेला होता है तो यह स्थिति बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि इस स्थिति में जातक अच्छी पढ़ाई करता है तथा उसकी बुद्धि भी नियंत्रित रहती है।

यदि षष्ठमेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो यह स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती क्योंकि षष्ठम भाव रोग ऋण रिपु का भाव तो है ही, साथ में यह प्रतियोगिता का, संघर्ष का भी भाव है। इसलिए इस स्थिति में जातक की बुद्धि में सदैव एक शत्रुता अथवा प्रतियोगिता का पुट रहता है जो उसे चैन से नहीं रहने देता। यदि षष्ठेश मंगल हो तो दिक्कत और भी बढ़ सकती है। पंचम भाव संतान का भी भाव है अतः यह स्थिति संतान के लिए भी अच्छी नहीं होती। इस स्थिति से उबरने के लिए जातक को चाहिए कि वह स्वार्थहीन सेवाभाव को अपना ले क्योंकि षष्ठम भाव सेवा का भी भाव है। अतः यदि जातक स्वार्थहीन सेवा करना प्रारंभ कर देता है तो उसकी बुद्धि तो सात्विक बनती ही है साथ ही उसकी संतान के लिए भी शुभ परिणाम आने लगते हैं।

यदि सप्तमेश पंचम भाव में स्थित हो जाए जातक का जीवनसाथी ही जातक की बुद्धि को नियंत्रित करता है। पत्रिका में अगर यह स्थिति बनती है तो जातक को अपना जीवन साथी बहुत सोच समझकर चुनना चाहिए।

यदि अष्टमेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो यह स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती क्योंकि अष्टम भाव पीड़ा का भाव है। इसके अतिरिक्त अष्टम भाव गहराई का भी भाव है, इसलिए जातक की बुद्धि में एक पीड़ा तथा गहराई का समावेश हो जाता है। जातक हर छोटी बड़ी बातों को अत्यधिक गहराई से सोचने समझने की कोशिश करता है। यदि अष्टमेश पंचम भाव में स्थित होकर पीड़ित भी हो रहा हो तो यह स्थिति जातक को डिप्रेशन में भी ले जा सकती है। लेकिन यदि अष्टमेश पंचम भाव में स्थित होकर शुभ प्रभाव में आ जाए तो इस स्थिति में जातक के चित्त की गहराई को एक सही दिशा मिल सकती है जो कि उसे आध्यात्मिक क्षेत्र में उत्तम परिणामों की प्राप्ति करवा सकती है। अष्टम भाव ज्योतिष तथा गुप्त विधाओं का भी भाव है अतः अष्टमेश के पंचम भाव में स्थित होने पर उसके बुरे प्रभाव से बचने के लिए जातक को चाहिए कि वह अष्टम भाव के अच्छे गुणों को अपना ले जैसे कि ज्योतिष तथा गुप्त विद्याएँ। ऐसा करने से जातक की संतान के लिए भी शुभ परिणाम की प्राप्ति संभव है।

यदि अष्टमेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो यह स्थिति अच्छी मानी जाती है। इस स्थिति में जातक के पिता अथवा गुरु अथवा जातक के द्वारा प्राप्त किया गया ज्ञान ही जातक की बुद्धि को नियंत्रित करता है। इस स्थिति में आवश्यक है कि जातक अपने गुरु का चुनाव बहुत सोच समझकर करे तथा सात्विक ज्ञान की प्राप्ति करे। यदि नवमेश पंचम पर दृष्टि भी डालता है तब भी यह अच्छा माना जाता है।

यदि दशमेश पंचम भाव में स्थित हो जाता है तो जातक के द्वारा किया गया कर्म ही जातक की बुद्धि को नियंत्रित करता है। इस स्थिति में जातक को चाहिए कि वह वही पढ़ाई करे जो उसके करियर में काम आए। इस स्थिति में यह भी आवश्यक है कि जातक सदैव कुछ न कुछ काम में लगा रहे, अन्यथा खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत सार्थक हो सकती है।

एकादश भाव इच्छा पूर्ति का भाव है। एकादश भाव एक प्रवर्धक भी है जो इच्छाओं को कई गुना अधिक बढ़ा देता है। जब एकादशेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो जातक की बुद्धि में इच्छा पूर्ति करने की जिद सवार रहती है और यह बात तो सर्वविदित है कि इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होती। अतएव जातक को चैन नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त एकादश भाव सामाजिक दायरा और दोस्तों को भी इंगित करता है, इसलिए इस स्थिति में जातक की बुद्धि को उसका सामाजिक दायरा तथा दोस्त भी नियंत्रित करते हैं। अतः जातक को दोस्त व सामाजिक दायरा काफी सोच समझकर चुनना चाहिए।

यदि द्वादशेश पंचम भाव में स्थित हो जाए तो जातक के चित्त में अकेलापन व्याप्त हो सकता है क्योंकि बारहवाँ भाव अलगाव का भाव है। द्वादश भाव व्यय का भी भाव है, इसलिए यह स्थिति जातक की बुद्धि के व्यय को भी दर्शाता है। पंचम भाव प्रेम का भी भाव है इसलिए यदि द्वादशेश पंचम भाव में स्थित होता है तो जातक को अपने प्रेमी अथवा प्रेमिका से विछोह सहना पड़ सकता है। इस स्थिति के बुरे परिणामों से बचने के लिए जातक को अपने मन में दबाकर रखी हुई छोटी-बड़ी अप्रिय बातों को मुक्त करना सीखना चाहिए, क्योंकि बारहवाँ भाव मुक्ति अथवा मोक्ष का भी भाव है। बारहवाँ भाव चैरिटी अथवा दान का भी भाव है। अतः इस स्थिति में जातक को देने की कला सीखना चाहिए। यदि जातक इस भाव की अच्छी बातों को अपनाता है तब वह इस स्थिति के बुरे परिणामों से बच सकता है।

यदि पंचम भाव पर एक से अधिक ग्रह स्थित हो तो जिस ग्रह के अंश अधिक होते हैं उसी का प्रभाव अधिक पड़ता है। सूर्य और चंद्रमा को छोड़कर पंच तारा ग्रहों के पास दो-दो राशियों के स्वामित्व होते हैं। लेकिन जब कोई ग्रह पंचम भाव में स्थित हो तो ऐसी स्थिति में ग्रह अपनी मूल त्रिकोण की राशि का अधिक प्रभाव देते हैं। राहु कुंभ राशि का तथा केतु वृश्चिक राशि का प्रभाव देता है।

पंचम भाव नवम का नवम है। नवम भाव ज्ञान को दर्शाता है। इसलिए पंचम भाव को ज्ञान की उच्चतर स्थिति भी मानी जा सकती है। पंचम भाव केवल विद्या प्राप्ति का भाव नहीं है यह संपूर्ण ज्ञान की प्राप्ति का भी भाव है। तभी तो पंचम भाव आनंद की अनुभूति को इंगित करता है। इसलिए जब पंचम भाव में बैठे किसी शुभ ग्रह अथवा किसी शुभ भाव में बैठे हुए पंचमेश की दशा का आती है तो कई बार जातक आध्यात्मिक रूप से उन्नत होता है, क्योंकि आध्यात्मिक उन्नति ही जातक को सच्चा आनंद दे सकती है।



- डॉ. सुकृति घोष,
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र,शा. के. आर. जी. कॉलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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