नया रास्ता उपन्यास की समीक्षा | सुषमा अग्रवाल

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नया रास्ता उपन्यास की समीक्षा सुषमा अग्रवालमीनू एक मध्यमवर्गीय, साधारण सी दिखने वाली पढ़ने में तेज लड़की है। दिखने में कम सुन्दर होने के कारण मीनू के

नया रास्ता उपन्यास की समीक्षा | सुषमा अग्रवाल


सुषमा अग्रवाल द्वारा लिखित उपन्यास नया रास्ता हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। यह उपन्यास न केवल समकालीन सामाजिक यथार्थ को उजागर करता है, बल्कि नारीवादी दृष्टिकोण से भी गहराई से जुड़ा हुआ है। इसमें स्त्री-जीवन के संघर्ष, उसकी आकांक्षाएँ और समाज में उसकी भूमिका को बहुत ही संवेदनशील तरीके से चित्रित किया गया है। उपन्यास की नायिका एक ऐसी स्त्री है जो पारंपरिक बंधनों को तोड़कर अपने लिए एक नया रास्ता चुनती है और इस प्रक्रिया में वह अनेक चुनौतियों का सामना करती है।

'नया रास्ता' उपन्यास का कथानक रोचक एवं प्रवाहपूर्ण है। मीनू एक मध्यमवर्गीय, साधारण सी दिखने वाली पढ़ने में तेज लड़की है। दिखने में कम सुन्दर होने के कारण मीनू के विवाह में समस्या आ रही थी। उसने एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। लड़के वाले उसे देखकर चले जाते थे किन्तु उसका रिश्ता पक्का नहीं हो पाता था। मेरठ के मायाराम जी और उनका बेटा अमित मीनू को देखने आए तो उन्हें मीनू पसन्द आ गई। किन्तु धन के लालच में मायाराम जी ने अमित का रिश्ता सेठ धनीमल जी की बेटी के साथ तय कर दिया। इससे मीनू और उसके परिवार को गहरी ठेस पहुँची। मीनू ने यह निश्चय किया कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी।
 
नया रास्ता उपन्यास की समीक्षा | सुषमा अग्रवाल
उसने अपने पिता से वकालत की पढ़ाई करने की अनुमति माँगी। । उसका दृढ़ निश्चय देखकर उसके पिता ने उसे वकालत की पढ़ाई करने की अनुमति दे दी। मीनू वकालत के तीनों वर्षों में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। इस बीच उसकी सहेली नीलिमा एवं मीनू की छोटी बहन आशा का विवाह भी हो गया। नीलिमा के पति सुरेन्द्र अमित के मित्र थे, किन्तु नीलिमा को अमित और मीनू के मध्य घटित हुई परिस्थितियों का ज्ञान नहीं था। मीनू अमित से घृणा करती थी। एक बार अनजाने में ही नीलिमा ने अमित के मन की ग्लानि के सम्बन्ध में मीनू को बताया। जिससे मीनू के हृदय में अमित के प्रति कुछ संवेदना जागी। कुछ समय बाद मीनू वकालत करने लगी और एक प्रसिद्ध वकील बनी, किन्तु उसने विवाह नहीं किया। तभी अमित का गम्भीर एक्सीडेंट हो गया और इसकी सूचना नीलिमा के माध्यम से मीनू को मिली। मीनू बहुत दुःखी हो गयी। मीनू वकालत से समय निकालकर अमित को देखने अस्पताल गई।अमित के पिता मायाराम जी को अपनी त्रुटि का अहसास हो गया था। वह दयाराम जी की घर गए और अपने किए के लिए क्षमा माँगते हुए मीनू का हाथ अपने बेटे अमित के लिए माँगा। दयाराम जी ने मीनू से पूछकर रिश्ते के लिए हाँ कर दी। मीनू अब स्वाभिमानी दुल्हन बनी थी।पूरा कथानक रोचकता से भरा हुआ एवं सुसंगठित है। कथानक की दृष्टि से उपन्यास पूर्णतः सफल है।
 
चरित्र-चित्रण की दृष्टि से उपन्यास महत्वपूर्ण है। मीनू इस उपन्यास की केन्द्रीय पात्र है। मीनू दृढ़ इच्छाशक्ति वाली लड़की है। अमित से रिश्ता न हो पाने से वह हताश नहीं होती बल्कि वकालत की पढ़ाई करने का दृढ़निश्चय करती है। दयाराम जी मीनू के पिता हैं, वह सीधे सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं। वह सदैव मीनू के साथ खड़े रहते हैं। मीनू के हर निर्णय का समर्थन करते हैं। मीनू की माँ भी सदैव मीनू के निर्णयों का समर्थन करती है। अमित उपन्यास का नायक है। वह पहली बार में ही मीनू से प्रभावित हो गया था, किन्तु माता-पिता द्वारा धनवान धनीमल की बेटी सरिता के साथ शादी तय करने पर वह अपने मन की बात नहीं कह सका। वह मीनू के प्रति सच्ची सहानुभूति रखता है। मायाराम अमित के पिता और धन के प्रति आकर्षित हैं। इसी कारण वह धनीमल की बेटी से अपने बेटे का रिश्ता पक्का कर देते हैं। इनके अतिरिक्त मीनू की मित्र माया, नीलिमा आदि भी उपन्यास के प्रमुख पात्र हैं। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से उपन्यास पूर्णतः सार्थक है ॐ उपन्यास का देशकाल वातावरण मध्यमवर्गीय परिवार का वातावरण है। मध्यमवर्गीय परिवार की बाध्यताएँ, समस्याएँ एवं नारी जीवन के संघर्ष का वातावरण उपन्यास में दर्शित है। 

उपन्यास में आधुनिक युग की अंग्रेजी मिश्रित भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा सरल एवं बोलचाल की खड़ी बोली हिन्दी है। उपन्यास का उद्देश्य नारी जीवन के संघर्ष को दर्शाते हुए। जीवन के नवीन आयाम को दिखाना है। उपन्यास का शीर्षक 'नया रास्ता' सर्वथा सार्थक है। इसमें कथा नायिका मीनू अपनी परिस्थितियों से निराश नहीं होती है बल्कि जीवन का नवीन मार्ग चुनकर नए व्यक्तित्व के रूप में निखर कर आती है। 

नया रास्ता के माध्यम से लेखिका यह संदेश देती हैं कि स्त्री को अपने जीवन के फैसले स्वयं लेने का हक होना चाहिए। चाहे वह शिक्षा हो, करियर हो या विवाह जैसे निजी मामले, उसे किसी दबाव में नहीं, बल्कि अपनी इच्छा से चुनाव करने की आज़ादी होनी चाहिए। उपन्यास का अंत आशावादी है, जो पाठकों को यह विश्वास दिलाता है कि परिवर्तन संभव है और नए रास्ते हमेशा खुले होते हैं। सुषमा अग्रवाल की यह रचना निश्चित रूप से हिंदी साहित्य में नारीवादी चेतना को मजबूती देने वाली एक सशक्त कृति है।

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