सकारात्मक सोच से सफलता का जादू

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असफलता की चाह आसान है राह असफलता की चाह की बात अजीब अवश्य है किंतु सामान्य सत्य यही है कि सामान्य जन सफलता की बात करते हुए असफलत

असफलता की चाह आसान है राह

                     
सफलता की चाह की बात अजीब अवश्य है किंतु सामान्य सत्य यही है कि सामान्य जन सफलता की बात करते हुए असफलता के लिए काम करते हैं, वे असफलता को ही जीना चाहते हैं। हम स्वस्थ रहना नहीं चाहते, स्वाद चाहते हैं। कितने लोग हैं जो भोजन करते समय स्वाद पर नहीं स्वास्थ पर ध्यान देते हैं? कितने लोग हैं जो परिणाम के सपनों पर समय नष्ट न कर अपने कर्म को पूर्ण समर्पण के साथ करते हैं? हम जिधर देखें, उधर ही सफलता की बात की जाती है। सफलता से जलन व ईर्ष्या देखी जा सकती है। व्यक्ति असफलता की बात करता है। सफलता की कामना करता है किंतु सफलता क्या है? वास्तव में उसे चाहिए क्या? इस पर विचार ही नहीं करता। विचार के बिना कार्य नहीं और कार्य के बिना परिणाम नहीं। कार्य ही तो सफल होकर परिणाम सामने लाता है। कार्य नही ंतो परिणाम नहीं। परिणाम नहीं तो सफलता किसे कहा जा सकता है? अनुपयोगी समय तो परिणाम नहीं दे सकता। विचार के बिना कर्म नहीं हो सकता। अविचारित गतिविधियाँ कर्म की परिभाषा में नहीं आ सकतीं। अनायास जंगल में पेड़ से फल नीचे गिर जाने पर तो सफलता नहीं कही जा सकती। सफल तो सुविचारित कर्म ही हो सकता है। विचार कार्य का पूर्वज है। विचार के बिना कर्म नहीं हो सकता। अतः व्यक्ति को विचार करना चाहिए कि सफलता है क्या? वह चाहता क्या है? उसे अपने समय का उपयोग कैसे करना है? उसे जीवन को कैसे जीना है?
असफलता की चाह आसान है राह
सफलता के लिए काम करने के लिए आवश्यक है कि हम सफलता को समझ लें। वास्तव में सफलता का आशय क्या है? कोई भी उपलब्धि जो भले ही धन के रूप में हो, पद के रूप में हो, संबन्ध के रूप में हो या यश के रूप में हो, सफलता नहीं है। वह एक उपलब्धि मात्र है। आपने कुछ कर्म किए उनका परिणाम है। कुछ समय के कर्म कुछ परिणाम देते हैं। अपनी सोच के आधार पर हम उन्हें सफलता या असफलता के रूप में मान्यता देते हैं। प्रकृति का अकाट्य नियम है-कारण और प्रभाव संबन्ध। यदि कारण उपस्थित है तो उसका प्रभाव तो होगा ही। इसे विज्ञान का कॉज एण्ड इफेक्ट का नियम भी कह सकते हैं। यदि कोई कर्म किया गया है तो उसका परिणाम भी आएगा ही। सफलता कर्म के परिणाम को नहीं कहा जाना चाहिए। यह तो स्वयं ही होने वाला है। सफलता इसमें है कि हमने अपने समय का कितने प्रभावकारी रूप से प्रयोग किया है? हम अपना टाइम पास कर रहे हैं या अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं? यह महत्वपूर्ण है। जीवन की सफलता के लिए जीवन का सदुपयोग करके इसे समाज के लिए प्रभावशील बनाना आवश्यक है। हाँ! जीवन पास तो अपने आप हो जाएगा। जन्म लिया है तो मृत्यु तक जीवित तो रहोगे ही। जन्म से लेकर मृत्यु तक का जो समय हमें मिला है, उसका हमने क्या किया? इस पर सफलता निर्भर है। 
सिर्फ भौतिक उपलब्धियों को सफलता समझने की भूल न करें। भौतिक उपलब्धि आपके जीवन को आसान व सुविधाजनक भले ही बनाती हों किंतु आवश्यक नहीं कि वे आपको आनंद और संतुष्टि भी प्रदान करें। नॉर्मन विन्सेन्ट पील की पुस्तक सकारात्मक सोच की अद्भुत शक्ति में श्री पील ने सफलता को इन शब्दों में परिभाषित किया है, ‘‘सफलता का अर्थ सिर्फ उपलब्धि ही नहीं है। इसके बजाय इसका अर्थ जीवन को प्रभावशाली रूप से जीना है, जो ज्यादा मुश्किल काम है। सफलता का अर्थ है इंसान के रूप में सफल होना, इसका अर्थ है नियंत्रित और व्यवस्थित रहना, इसका अर्थ है संसार के लिए समस्या बनने के बजाय इसका समाधान बनना।’’ इस परिभाषा पर विचार करें और अपने आसपास देखें कितने लोग हैं? जो सफलता पर विचार भी करते हैं। जो अपने जीवन के क्षणों का प्रभावी प्रयोग करने के लिए विवेकपूर्ण ढंग से विचार करते हैं, योजना बनाते हैं और फिर उस पर काम करते हैं। सामान्यजन पैसे के लिए भाग रहा है। नौकरी के लिए दौड़ रहा है। उद्योग और व्यवसाय के लिए अपना रक्त बहा रहा है। दूसरों का रक्त चूस रहा है। लोगों का रक्त बहा रहा है। जीवन के उद्देश्य पर विचार करने के लिए किसी के पास समय नहीं है। अब विचार करने वाली बात है कि जब हम सफलता का अर्थ ही नहीं समझते, तब हम सफलता के लिए काम कैसे कर सकते हैं? दूसरों के भौतिक विकास की चकाचौंध में अपने आपको अंधा बना लेते हैं। अंधे बनकर उनके पीछे दौड़ने लगते हैं।
वास्तविकता यह है कि हम स्वयं ही सफल होना नहीं चाहते। हम अपने जीवन के सदुपयोग और उसकी सफलता के लिए काम तो दूर की बात है, विचार ही नहीं करना चाहते। हम तो अध्ययन में टॉप करना चाहते हैं, नौकरी पाना चाहते हैं, संपत्ति कमाना चाहते हैं, सुंदर लड़की से शादी करना चाहते हैं, लड़की है तो पैसे वाले लड़के से शादी करके ऐस करना चाहती है। हम लघुतम मार्ग से छोटी-छोटी उपलब्धियाँ लूट लेना चाहते हैं। मैं एक बार अपनी कक्षा में विद्यार्थियों के साथ बातचीत कर रहा था। मैंने उनको विषय दिया कि उनके आसपास वास्तविक रूप से ऐसा कोई व्यक्ति हो जो उन्हें प्रेरित करता हो तो उसके बारे में लिखें। उसी कक्षा में मेरे स्टाफ के कर्मचारी का पुत्र भी था। उसने लिखा कि मेरे गाँव में एक लड़का है। वह कभी भी गंभीरता से नहीं पढ़ा। लापरवाही के साथ पढ़ते हुए विभिन्न तरीकों से जैसे-तैसे उसने बारहवीं पास की। ऐसा कोई अवगुण नहीं है, जो उसमें न हो। यह सब होते हुए इस वर्ष उसने नौकरी हासिल कर ली। उसकी सफलता ने प्रेरित किया। विचार करने वाली बात है। यहाँ सफलता की कितनी विकृत परिभाषा है। बिना कर्म के नौकरी हासिल कर लेना ही सफलता मान ली गई है। यह ट्रेंड बन रहा है। लोगों को काम नहीं नौकरी चाहिए। कर्म नहीं परिणाम चाहिए। नौकरी न मिलने पर सरकार को गालियाँ देंगे। अपनी सक्षमता का सही आकलन तो उनके बस की बात नहीं है।
हम अक्सर सकारात्मक सोच की बात तो करते हैं किंतु सकारात्मक सोच को व्यवहार में नहीं ला पाते। सकारात्मक सोच को कामयाब नहीं होने देना चाहते। सकारात्मक सोच को कामयाब करने के लिए हमें उस पर काम करना पड़ेगा और हम काम करने की अपेक्षा काम न करके असफल होकर असफलता के कारण गिनाना अधिक सुविधाजनक समझते हैं। हम अवचेतन मन से यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारी असफलता का सिलसिला बरकरार रहे। हम समय से उठना, समय पर तैयार होना, समय पर मिलने पहुँचना सुनिश्चित न करके यह विचार करते हैं कि यदि यह काम नहीं हो पाया तो असफलता के लिए किस पर जिम्मेदारी डाल सकता हूँ। काम करने की अपेक्षा असफलता की परिस्थिति पैदा करते हुए आत्म-दया के समुद्र में गोते लगाना, ज्यादा आसान काम है, इसलिए हम अपनी असफलता का निर्माण खुद करते हैं। सफलता की अपेक्षा असफलता हमारे लिए अधिक सुविधाजनक है। सफलता मिलने पर लोग हमारी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं। हमारी जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं, हमारे उत्तरदायित्व बढ़ जाते हैं। असफलता की स्थिति में हम दूसरों की सहानुभूति के पात्र बन सकते हैं। अपनी असफलता के लिए बड़ी ही आसानी से अपने भाग्य को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं, परिस्थितियों को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। स्वयं आत्म संतुष्टि हासिल कर सकते हैं। इससे अधिक मैं कर भी क्या सकता था। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि लोगों को सफलता से डर लगता है, वे अपने आपको असफलता के आवरण में लपेट कर खुद को सुरक्षित कर लेना चाहते हैं।
मेरे एक अध्यापक साथी थे। थे लिखना पड़ रहा है क्योंकि अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। उनका स्पष्ट रूप से कहना था कि हमें तनाव तो लेना ही होगा। काम का तनाव लेकर काम को पूर्ण करें या काम न करके काम न हो पाने के कारण खोजने और स्पष्टीकरण देने का तनाव लें। उनका स्पष्ट मत था कि जितना समय काम करने में नहीं लगता, उससे अधिक समय हम असफल होने के कारण खोजने और उसके लिए स्पष्टीकरण देने में लगाते हैं। उनका यह कथन औसत रूप से सत्य है। हम सफलता से डरकर असफलता को स्वीकार कर लेते हैं।
सफलता के लिए आवश्यकता है कि हम सफलता से डरना छोड़ें और जीवन के प्रत्येक क्षण को सफलता के साथ प्रयोग करें। हम जीवन के एक भी क्षण को व्यर्थ न जाने दें। समय का बर्बाद होना ही हमारी सबसे बड़ी असफलता है। इसके लिए सकारात्मक विचारशक्ति को स्वीकार करने की आवश्यकता है। महान अंग्रेज राजनेता डिजराइली के अनुसार ‘अपने मस्तिष्क को महान विचारों से पोषण दो, क्योंकि आप जितना सोचेंगे, उससे आगे कभी नहीं जा पाएँगे।’ सफलता की शुरूआत विचार से होती है। सकारात्मक व्यक्ति कमजोर नहीं होता। वह कठिन से कठिन परिस्थितियों से भागता नहीं, वह विचारपूर्वक कर्म करता है। सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति कायर नहीं बनेगा। उसे खुद पर, जिंदगी पर, मानवता पर और प्रकृति पर भरोसा होता है। सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझता। वह प्रत्येक कार्य को पूर्ण मनोयोग से करता है और सफलता हासिल करता है। प्रत्येक काम को करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। तभी तो कहा गया है, ‘‘दृढ़ और साहसी बनो। डर और निराशा को छोड़ो, क्योंकि तुम कहीं भी रहो, ईश्वर तुम्हारे साथ है।’’ (जोशुआ 1ः9) देखा यह जाता है कि ईश्वर पर विश्वास करने वाले व्यक्ति उस पर विश्वास करके बडे़ से बड़े काम करने में निडर होकर आगे बढ़ जाते हैं। उनमें उच्च श्रेणी का विश्वास देखा जा सकता है। ईश्वर पर विश्वास उनके आत्मविश्वास में परिणत हो जाता है।
नॉर्मन विन्सेन्ट पील की पुस्तक सकारात्मक सोच की अद्भुत शक्ति से साभार एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूँ। ‘डॉ टॉम अपने दम पर कोई काम करना चाहते थे, कोई ऐसा काम, जिसका उनके बचपन की शिक्षा से कोई संबन्ध न हो। उन्हें शहर के कूड़ाघर में मजदूर का काम मिल गया। एक बहुत निपुण और दौलतमंद युवक कूड़ेघर में मजदूर का काम कर रहा था और वह भी अपने जन्म स्थान पर। डॉ टाम यह देखना चाहते थे कि क्या उन्हें परिवार या धन के बजाय, उनके अपने दम पर स्वीकार किया जा सकता है।’ जब व्यक्ति अपने आपको सिद्ध करने के लिए इस प्रकार कोई भी काम करने के लिए तैयार हो जाता है, तब उसे असफलता से डर नहीं लगता। वह परिस्थितियों के सामने नहीं झुकता। उसे कदम-कदम पर प्रेरणा मिलती है। वह जीवन का प्रभावशाली उपयोग कर सकता है। सकारात्मक सोच से सफलता का जादू ऐसे कर्मशील व्यक्तियों के लिए ही है।



- डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी 
प्राचार्य, जवाहर नवोदय विद्यालय, कालेवाला, 
ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद-244601 (उत्तर प्रदेश) चलवार्ता 09996388169

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