कबीर दास का बीजक ग्रंथ की समीक्षा

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कबीर दास का बीजक ग्रंथ की समीक्षा कबीर दास का बीजक एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो उनके दार्शनिक विचारों, आध्यात्मिक अनुभवों और सामाजिक संदेशों को समेटे

कबीर दास का बीजक ग्रंथ की समीक्षा


बीर दास का बीजक एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो उनके दार्शनिक विचारों, आध्यात्मिक अनुभवों और सामाजिक संदेशों को समेटे हुआ है। कबीर दास एक 15वीं सदी के भारतीय संत, कवि और समाज सुधारक थे, जिन्होंने हिंदू और इस्लामिक परंपराओं के बीच एकता का संदेश दिया। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं। बीजक ग्रंथ उनकी प्रमुख रचनाओं में से एक है, जिसमें उनके दोहे, साखी और पद संकलित हैं। यह ग्रंथ उनके आध्यात्मिक और सामाजिक विचारों को समझने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

कबीरपन्थी विद्वानों और साहित्य के अध्येताओं ने कबीर-कृतियों का अलग-अलग संग्रह तैयार किया है। कबीर पन्थियों में उनके 'बीजक' का बड़ा सम्मान है।साहित्य के अध्येता 'बीजक' को कबीर की प्रामाणिक रचना नहीं मानते। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का विचार है कि- "कबीर के व्यक्तित्व में जो घर फूँक मस्त और फक्काड़ाना लापरवाही थी, वह बीजक के पदों में बहुत कम हो गयी है। अतः उसके कबीर कृत होने में सन्देह है।" 'बीजक' के अब तक कई संस्करण प्रकाश में आ चुके हैं, किन्तु उनमें कोई खास अन्तर नहीं दिखाई पड़ता है। सभी संस्करणों में 82 रमैनियां, 115 पद और 353 साखियाँ उपलब्ध है। अतः कबीर की रचनाओं को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। साखी, सबद, रमैनी। इसका विवरण इस प्रकार है -
 

साखी

कबीर दास का बीजक ग्रंथ की समीक्षा
साखी शब्द संस्कृत शब्द साक्षी का तद्भव रूप है, जिसका अर्थ होता है- 'आँखों देखा'। जिसने किसी घटना, दृश्य, व्यापार को अपनी आँखों से देखा हो, उसे साखी कहते हैं। कबीरदास जी ने समाज की विभिन्न विसंगतियों को जिस रूप में देखा उसे अपनी साखियों में प्रस्तुत कर दिया। वे 'आँखों की देखी' में विश्वास करते थे, कागज की लेखी में नहीं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि-"तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखों की देखी।"
 
इस आधार पर कहा जा सकता है कि जिस कविता में स्वानुभूत ज्ञान का वर्णन हो, उसे साखी कहते हैं। कबीर ने साखियों के माध्यम से विविध विषयों पर अभिव्यक्ति की है। यथा - गुरु-महिमा, नाम-स्मरण, ज्ञान, विरह, चेतावनी, माया, कथनी-करनी, पापीनर, सत्संग, कुसंगति, विश्वास, संजीवनि, दया, क्षमा, प्रेम, निन्दा, विनती, बाह्याचार, विरोध आदि । बाबू गुलाब राय ने साखी के विषय में लिखा है- “तत्त्व का साक्ष्य प्राप्त कर लेने के कारण गुरु के साक्षी कहा गया है और उसके उपदेश 'साख्यी' या 'साख्य' कहलाये। साखियाँ किसी भी छन्द में लिखी जा सकती थीं, पर प्रारम्भ से ही दोहा छन्द की प्रधानता रही और आगे चलकर तो वह एक मात्र दोहा छन्द में ही रची जाने लगीं।" साखी का अर्थ है- गवाह, प्रमाण, सबूत या साक्ष्य । कबीर साखी को इसी अर्थ में लेते हुए कहते हैं- 

साखी आँखीं ज्ञान की, समुझि देखि मन माँहि । 
बिन साखी संसार का, झगरा छूटत नाँहि । ।

सबद

गेय पदों को सबद कहा जाता है। यह संस्कृत भाषा के 'शब्द' का तद्भव रूप है। शब्द का एक अर्थ ब्रह्म अथवा परमतत्त्व होता है। जिन पदों में ब्रह्म और उसको प्राप्त करने की साधना का वर्णन हो, उन्हें सबद कहते हैं। ब्रह्म विषयक मान्यताओं का संकलन सबद के अन्तर्गत हुआ है। सबद के अन्तर्गत सभी पद गेयता से सम्पुष्ट हैं। 'बीजक' में संकलित पदों में ज्ञान की प्रधानता देखी जाती है, जबकि कबीर ग्रन्थावली में संकलित पदों में भक्ति की प्रधानता दिखाई पड़ती है। डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी की मान्यता है- "कबीर पन्थियों ने कबीर के पदों को साम्प्रदायिक रूप देने के लिए ही उसमें ज्ञान और आक्रामकता को विशेष महत्त्व दिया है अन्यथा उनकी वास्तविक देन उनकी भक्ति भावना ही थी।" काव्य लेखन की पद (सबद) शैली का प्रचलन कबीर के पूर्ववर्ती नाथ एवं सिद्धों के साहित्य में भी दिखाई पड़ती है।
 

रमैनी

रमैनियों की रचना दोहा-चौपाई शैली में हुई है। सात-सात चौपाइयों के बाद एक दोहा का प्रयोग रमैनी के अन्तर्गत देखा जा सकता है। 'बीजक' में रमैनी का बहुत महत्त्व दिखाया गया है। कबीर ग्रन्थावली में इसे उतना महत्त्व नहीं मिला है। रमैनियों का वर्ण्य-विषय दार्शनिकता से सम्बन्धित है। इसमें जीव-जगत, माया तथा सृष्टि-विषयक चिन्तन की प्रधानता है। 'गुरु ग्रन्थ साहब' में इसी प्रकार की रचनाओं के लिए 'रमैनी' शब्द का प्रयोग मिलता है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि शायद अठारहवीं शताब्दी के पूर्व रमैनी शब्द का प्रचलन नहीं था। इस सन्दर्भ में डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि- “अठारहवीं शताब्दी से रमैनी शब्द अधिक लोकप्रिय हुआ।" इसी प्रकार, कबीर की रमैनियों के बारे में यह भी कहा गया है कि तुलसीदास के 'रामचरित मानस' की लोकप्रियता को देखकर कबीर पन्थियों ने भी उस शैली में रचना की और उसे 'रमैनी' नाम दिया। बाद में पहले से चली आती हुई चौपाइयों को भी 'रमैनी' कहा जाने लगा। "

इस प्रकार 'बीजक' में साखी, सबद, रमैनी तीन प्रकार की रचनाओं का संकलन है। यह कबीरदास जी की प्रसिद्धि का आधार है। कबीर दास का बीजक ग्रंथ उनके आध्यात्मिक और सामाजिक विचारों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह ग्रंथ न केवल भक्ति और आध्यात्मिकता को प्रोत्साहित करता है, बल्कि समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी देता है। कबीर दास की सरल भाषा और गहन दर्शन ने उन्हें भारतीय साहित्य और संत परंपरा में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है। उनकी शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

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