सूखे सुमन से मुरझाया फूल कविता का भावार्थ व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर यह कविता हमें प्रकृति के साथ हमारे जुड़ाव को महसूस कराती है। यह हमें बताती है
सूखे सुमन से मुरझाया फूल कविता का भावार्थ व्याख्या सारांश प्रश्न उत्तर
था कली के रूप शैशव में अहो सूखे सुमन,
मुस्कराता था, खिलाती अंक में तुझको पवन !
खिल गया जब पूर्ण तू-मंजुल सुकोमल पुष्पवर,
लुब्ध मधु के हेतु मँडराते लगे आने भ्रमर !
स्निग्ध किरणें चन्द्र की-तुझको हँसाती थीं सदा,
रात तुझ पर वारती थी मोतियों की सम्पदा !
लोरियाँ गाकर मधुप निद्रा विवश करते तुझे,
यत्न माली का रहा- आनन्द से भरता तुझे।
कर रहा अठखेलियाँ-इतरा सदा उद्यान में,
अन्त का यह दृश्य आया-था कभी क्या ध्यान में।
सो रहा अब तू धरा पर-शुष्क बिखराया हुआ,
गन्ध कोमलता नहीं मुख मंजु मुरझाया हुआ।
प्रसंग- इस प्रतीकात्मक गीत में कवयित्री एक सूखे पुष्प को सम्बोधित करके इस जगत की रीति पर करारा व्यंग्य कर रही है। सुमन दूसरों पर अपना सर्वस्व लुटा देता है, पर उसके सूख जाने पर कोई भी उसके प्रति सहानुभूति नहीं रखता, रूप यौवन क्षीण हो जाने पर सभी आँखें फेर लेते हैं।
भावार्थ - कवियित्री कहती हैं कि हे सूखे हुए फूल ! तू कभी अपने बचपन में कली के रूप में था और हँस रहा था। तुझे हवा अपनी गोद में खिलाती थी। जब तू फूल के रूप में पूरी तरह खिल गया तो लोभी भौरे पराग लेने के लिए तेरे ऊपर मंडराने लगे। चन्द्रमा की भीगी हुई किरणें तुझे सदा हँसाती थीं और रात को तेरे ऊपर ओस रूपी मोती बिखरा देती थीं। भौरे लोरियाँ गा-गाकर तुझे सुलाते थे और माली का यही प्रयत्न रहा कि तू सदा प्रसन्न रहे। तू बगीचे में अभिमान से झूमता हुआ अठखेलियाँ करता रहा। लेकिन यह अन्त का दृश्य तेरे ध्यान में कभी नहीं आया। अर्थात् तूने कभी यह नहीं सोचा कि एक दिन मैं नष्ट हो जाऊँगा। अब तू इस पृथ्वी पर सूख कर बिखरा हुआ सो रहा है। अब तुझमें न गंध है, न कोमलता और तेरा सुन्दर मुख मुरझाया हुआ है।
आज तुझको देखकर चाहक भ्रमर घाता नहीं,
लाल अपना राग तुझपर प्रात बरसाता नहीं।
जिस पवन ने अंक में-ले प्यार था तुझको किया,
तीव्र झोंके से सुला-उसने तुझे भू पर दिया।
कर दिया मधु और सौरभ दान सारा एक दिन,
किन्तु रोता कौन है तेरे लिए दीनी सुमन?
मत व्यथित हो फूल! किसको सुख दिया संसार ने?
स्वार्थमय सबको बनाया-है यहाँ करतार ने।
विश्व में हे फूल! तू-सबके हृदय भाता रहा!
दान कर सर्वस्व फिर भी हाय हर्षाता रहा!
जब न तेरी ही दशा पर दुख हुआ संसार को,
कौन रोयेगा सुमन!हमसे मनुज नि:सार को?
प्रसंग - पूर्ववत् ।।
भावार्थ – कवयित्री कहती हैं कि हे मुरझाए हुए फूल ! आज भौंरा तुझको देखकर तेरे पास नहीं आता और न ही वह प्रातःकाल आकर तुझ पर गीत गाता। जिस हवा ने तुझे गोद में लेकर प्यार किया था, उसी हवा के तेज झोंके ने तुझे तोड़कर जमीन पर सुला दिया। तूने अपनी मधु और सुगन्ध पूरी तरह से दान कर दी, लेकिन हे दानी फूल ! आज कौन तेरे लिए रोता है। अर्थात् तेरे मरने पर आज किसी को कोई दुःख नहीं है।
फिर कवयित्री फूल को धीरज बँधाते हुए कहती हैं कि हे सुमन ! तू दुःखी मत हो, क्योंकि यहाँ संसार ने किसी को भी सुख नहीं दिया है। ईश्वर ने सबको स्वार्थी बनाया है। संसार में हे फूल ! तू सबको अच्छा लगता रहा और तूने अपना सब कुछ दान कर दिया फिर भी मुस्कराता रहा। जब तेरी इस दशा पर संसार को दुःख नहीं हुआ तो फिर हम जैसे निस्सार मनुष्य के लिए कौन रोएगा अर्थात् हमारे लिए तो किसी को भी कोई दुःख नहीं होगा ।
सूखे सुमन से कविता का सारांश मूल भाव
महादेवी वर्मा की अमर रचना 'सूखे सुमन से' एक ऐसा काव्य है जो जीवन के विभिन्न चरणों और अनुभवों को फूलों की कोमल पंखुड़ियों में समेट लेता है। यह कविता न केवल एक साहित्यिक कृति है बल्कि जीवन की गहराइयों में उतरकर हमारे अस्तित्व के सार को उजागर करती है।कविता की शुरुआत एक कच्चे फूल से होती है। यह कच्चा फूल जीवन के शुरुआती पलों, बचपन और किशोरावस्था का प्रतीक है। यह वह समय होता है जब जीवन उम्मीदों से भरा होता है, जब हर पल एक नया फूल खिलने की संभावना लिए होता है। कविता में कच्चे फूल को पवन की कोमल स्पर्श से खिलाते हुए दिखाया गया है, जो जीवन में आने वाले बदलावों का प्रतीक है।
धीरे-धीरे कच्चा फूल खिलकर एक सुंदर फूल बन जाता है। यह खिले हुए फूल युवावस्था का प्रतीक है। जीवन के इस चरण में व्यक्ति अपनी पूरी शक्ति और सौंदर्य के साथ खिल उठता है। यह वह समय होता है जब जीवन के रंग सबसे अधिक चमकीले होते हैं। मधुमक्खियां इस फूल की ओर आकर्षित होती हैं, जो जीवन में आने वाले लोगों और रिश्तों का प्रतीक है।लेकिन जीवन का यह सुंदर पल स्थायी नहीं होता। समय के साथ यह सुंदर फूल मुरझाना शुरू हो जाता है। मुरझाया हुआ फूल बुढ़ापे का प्रतीक है। इस चरण में जीवन की गति धीमी हो जाती है और शरीर में कमजोरी आने लगती है। मधुमक्खियां अब इस फूल से दूर हो जाती हैं, जो जीवन में आने वाले अलगाव और एकांत का प्रतीक है।
अंत में यह फूल पूरी तरह सूख जाता है। सूखा हुआ फूल मृत्यु का प्रतीक है। यह जीवन का अंतिम सत्य है कि हर जन्म को मृत्यु का स्वाद चखना ही होता है। कविता में सूखे हुए फूल को धरती पर पड़ा हुआ दिखाया गया है, जो जीवन की नश्वरता को दर्शाता है।महादेवी वर्मा ने इस कविता के माध्यम से जीवन के चक्र को बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है। उन्होंने बताया है कि जीवन एक फूल की तरह है जो खिलता है, मुरझाता है और अंततः सूख जाता है। यह कविता हमें जीवन के हर पल को जीने और उसका आनंद लेने की सीख देती है। यह हमें यह भी बताती है कि जीवन के सभी चरणों को स्वीकार करना ही जीवन का सच्चा अर्थ है।
'सूखे सुमन से' कविता केवल जीवन के चक्र को ही नहीं दर्शाती बल्कि मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी उजागर करती है। यह कविता हमें प्रकृति के साथ हमारे जुड़ाव को महसूस कराती है। यह हमें बताती है कि हम सभी प्रकृति के एक अंग हैं और प्रकृति के नियमों के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है।यह कविता हमें जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण देती है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम जीवन में क्या चाहते हैं और हम अपने जीवन को किस तरह से जीना चाहते हैं। यह कविता हमें जीवन के मूल्यों को समझने में मदद करती है और हमें एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है।
'सूखे सुमन से' एक ऐसी कविता है जिसे एक बार पढ़ने के बाद हम कभी नहीं भूल पाते। यह कविता हमारे दिलों में हमेशा के लिए बस जाती है।
महादेवी वर्मा का जीवन साहित्यिक परिचय
महादेवी वर्मा को आधुनिक हिंदी साहित्य की अग्रणी कवयित्री माना जाता है। उन्हें 'आधुनिक मीरा' के नाम से भी जाना जाता है। उनकी रचनाओं में प्रकृति, प्रेम, आध्यात्मिकता और सामाजिक चिंताओं का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है।महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने छायावादी युग की कविता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी कविताओं में व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है। उनकी प्रमुख कृतियों में 'यामा', 'रश्मि', 'दीपशिखा' आदि शामिल हैं।
महादेवी वर्मा ने न केवल कविता, बल्कि कहानियाँ, रेखाचित्र और निबंध भी लिखे। उनकी रचनाओं में प्रकृति का सौंदर्य, मानवीय भावनाओं की गहराई और आध्यात्मिक अनुभवों की तीव्रता झलकती है। उनकी कविता में महिलाओं की संवेदनाओं और उनके संघर्षों को भी बड़ी मार्मिकता से व्यक्त किया गया है।महादेवी वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया, जिनमें ज्ञानपीठ पुरस्कार और पद्मभूषण शामिल हैं। उनकी रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और नई पीढ़ी के पाठकों को प्रेरित करती रहेंगी।
सूखे सुमन से कविता के प्रश्न उत्तर
प्रश्न. प्रस्तुत कविता के आधार पर खिले हुए फूल और सूखे हुए फूल की स्थिति का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - इस प्रतीकात्मक गीत में कवयित्री ने एक सूखे पुष्प को सम्बोधित करके इस जगत की रीति पर व्यंग्य किया है। सुमन दूसरों पर अपना सर्वस्व लुटा देता है, पर उसके सूख जाने पर कोई भी उसके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित नहीं करता, रूप-यौवन क्षीण हो जाने पर सभी आँखें फेर लेते हैं। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने फूल की दो स्थितियाँ दिखाई हैं एक तो उसका खिला हुआ यौवन और दूसरी स्थिति में वह मृत अवस्था में सूखा हुआ भूमि पर पड़ा है। एक अवस्था महत्वपूर्ण है और दूसरी अवस्था महत्वहीन है।जब फूल अपने यौवन में कली के रूप में था, फिर विकसित होकर खिला हुआ फूल बना। वह मुस्कराता हुआ मानो संसार में अपनी खुशी प्रकट कर रहा हो। उस समय हवा उसे अपनी गोद में लेकर खिलाती थी और मधु के लोभी भ्रमर आकर उसके ऊपर मंडराते रहते थे। चन्द्रमा की शीतल किरणें उसको सदा हँसाती रहती थीं और रात को वे ही किरणें उस पुष्प के ऊपर ओस रूपी मोती गिरा देती थीं। फूल पर रखी हुई ओस की बूँदें मोती के समान कान्ति वाली लगती हैं। भौरे लोरियाँ गा-गाकर तुझे सुलाते थे। माली का सदा यही प्रयत्न रहा कि फूल हमेशा प्रसन्न रहे। वह फूल अभिमान के साथ बगीचे में अठखेलियाँ करता था। अर्थात् उसे अपने यौवन के सुख में अभिमान आ गया था। उसे सपने में भी अपनी मृत्यु का मान नहीं था ।
अब वह फूल पृथ्वी पर मुरझाया हुआ पड़ा है। न तो उसमें सुगन्ध है न कोमलता है न सुन्दर मुख पर चमक है। उसका सुन्दर मुख मुरझा गया है। आज उस मुरझाए हुए फूल के पास उसे चाहने वाला भौंरा नहीं आता है। वह सुबह आकर अपना गीत भी नहीं सुनाता है। यहाँ तक कि जिस हवा ने उसे अपनी गोद में लेकर झुलाया था और प्यार किया था, उसी के तेज झोंके ने उसे तोड़ कर जमीन पर मृत अवस्था में डाल दिया है। यानी जो पवन उसे प्यार करती थी, उसी ने उसका अन्त कर दिया। उस फूल ने अपना पराग और सुगन्ध पूरी की पूरी संसार को दान कर दी। किन्तु ऐसे दानी फूल के लिए भी किसी को दुःख नहीं है। संसार का यह नियम है जो जब तक काम का है तभी तक याद रखते हैं और काम निकल जाने पर भूल जाते हैं। अर्थात् ईश्वर ने संसार को स्वार्थी बनाया है। उस सूखे हुए फूल से अब किसी को ममता नहीं है। जो फूल एक दिन सबको अच्छा लगता था, वही फूल मुरझाने के बाद किसी को अच्छा नहीं लगता ।
ठीक इसी प्रकार मनुष्य के प्रति भी संसार का लगाव तभी तक है जब तक मनुष्य जीवित है और दूसरों के लिए कार्य कर रहा है। मृत अवस्था में उसे उसके प्रिय भी उससे अलग हो जाते हैं और जल्दी-से-जल्दी उसका अन्तिम संस्कार कर देते हैं।
प्रश्न. इस कविता के माध्यम से कवयित्री ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर- 'सुमन के प्रति' कविता के माध्यम से कवयित्री ने यह संदेश दिया है कि इस जगत की रीति स्वार्थ पर आधारित है। सुमन दूसरों पर अपना सर्वस्व लुटा देता है, पर उसके सूख जाने पर कोई भी उसके प्रति सहानुभूति नहीं रखता। रूप-यौवन क्षीण हो जाने पर सभी आँखें फेर लेते हैं। अतः हमें अपनी जवानी, सुन्दरता और बल पर घमंड नहीं करना चाहिए। एक दिन यह सब कुछ धूल में मिल जाता है। यह संसार स्वार्थी है। जब तक संसार का स्वार्थ किसी से सिद्ध हो रहा है, तब तक उसकी पूछ है। एक बार स्वार्थ निकल गया तो फिर उस प्राणी को कोई नहीं पूछता। हमें अपनी अन्तिम दशा का मान हर समय रहना चाहिए।
जो भौंरा खिले हुए फूल पर मधु के लिए मंडराता रहता था, वह फूल के सूख जाने पर उसके पास नहीं आता। कितना स्वार्थी है वह कि उस फूल को भी भूल गया जिसने जीवन भर उसे मधु और सौरभ का दान किया। कवयित्री ने यह भी संकेत दिया है कि जब फूल जैसे दानी और परोपकारी को संसार भूल जाता है तो फिर मनुष्य जैसे निस्सार प्राणी को संसार क्यों याद रखेगा। पुष्प के माध्यम से बड़े ही रोचक ढंग से संसार का नियम हमारे सामने प्रस्तुत किया है। अपनी सुन्दरता पर, अपने अच्छे स्वास्थ्य पर और अपने यौवन पर इतराना व्यर्थ है। ये सब चीजें नाशवान हैं। फूल को भी अपनी अन्तिम दशा का भान नहीं था। अतः हमें अपने जीवन में अभिमान न करते हुए अच्छे कार्य करें और अपने अन्तिम समय को जरूर याद रखें। इससे कोई गलत कार्य नहीं होगा।
COMMENTS