परिवार की बढ़ती दूरियां पर निबंध

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परिवार की बढ़ती दूरियां पर निबंध परिवार, मानव जीवन का वह आधार है जिस पर हम सब खड़े हैं। यह वह स्थान है जहां हमें प्रेम, सुरक्षा और सम्मान मिलता है।

परिवार की बढ़ती दूरियां पर निबंध


रिवार, मानव जीवन का वह आधार है जिस पर हम सब खड़े हैं। यह वह स्थान है जहां हमें प्रेम, सुरक्षा और सम्मान मिलता है। परंतु आज के समय में परिवार में दूरियां बढ़ती जा रही हैं, जो एक गहरे जख्म की तरह हमारे समाज को घायल कर रही हैं।

पहले के समय में परिवार एक इकाई के रूप में रहता था। सभी सदस्य एक साथ मिलकर काम करते थे, खाना खाते थे और एक दूसरे का ख्याल रखते थे। परंतु आधुनिक जीवनशैली ने इस पारिवारिक बंधन को कमजोर कर दिया है। करियर की महत्वाकांक्षाएं, व्यस्त कार्यसूची और बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने लोगों को इतना व्यस्त कर दिया है कि उनके पास परिवार के लिए समय नहीं बचता।बच्चे भी इस बदलते परिवेश के शिकार हो रहे हैं। माता-पिता की नौकरी और घर के कामों में व्यस्तता के कारण, बच्चे अक्सर अकेले ही रह जाते हैं। उन्हें अपने माता-पिता का ध्यान नहीं मिल पाता है, जिसके कारण वे भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया और वीडियो गेम्स ने भी बच्चों को परिवार से दूर कर दिया है।

परिवार की बढ़ती दूरियां पर निबंध
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर ही उसका विकास संभव है। परिवार उसका प्राथमिक विद्यालय है और समाज में प्रवेश करते ही उसका सर्वांगीण विकास आरंभ होता है। परिवार प्रत्येक मनुष्य के लिए आंतरिक शक्ति के समान है। बँधे हुए संयुक्त परिवार मनुष्य की सुरक्षा कवच का काम करते हैं और यही उसे आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति परिवार में रहकर एक सकारात्मक दृष्टिकोण लेकर जीता है, पर अफसोस - आज भारतीय परिवारों में दूरियाँ बढ़ती हुई देखी जा रही हैं। हालाँकि यह हम सभी अनुभव कर रहे हैं कि जो सान्निध्य, जो अच्छाइयाँ, जो सुरक्षा परिवार में रहकर मनुष्य अनुभव करता था, वह धीरे-धीरे अपनी पकड़ को ढीली कर रहा है।
 
आज हमारे परिवारों में बढ़ती हुई दूरियों के कई कारण हैं-टेलीविजन, एकल परिवार प्रथा, गिरते हुए नैतिक मूल्य, लाभ-हानि की भावना मन में रखना आदि अनेक कारण परिवार के सदस्यों के मध्य दूरी को बढ़ाते जा रहे हैं। हमारा देश सदा से ही अपने गुणों के कारण विदेशों में भी अपनी धाक जमाए हुए है, परंतु धीरे-धीरे नैतिक मूल्यों का ह्रास होता दिख रहा है। टेलीविजन का परिवार के सदस्यों के बीच दूरियाँ बनाने में महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। आज बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपने-अपने धारावाहिक देखने में लगे हुए हैं। बच्चों को अपना डोरेमॉन, युवा को अपनी पसंद का और वृद्ध वर्ग को अपनी रुचि के धारावाहिकों ने जकड़ रखा है। जब तक ये धारावाहिक ज्ञान की वृद्धि करें अथवा मनोरंजन करें तब तक तो बात समझ में आती है, परंतु जब इनमें अत्यधिक समय लगाया जाता है, तब ये नासूर बन जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता धारावाहिक देखते हुए सभी उसी में रमे रहते हैं और परिवार के अन्य सदस्यों से उनका संपर्क (नाता) कम होता जाता है। भोजन के समय भी वे टेलीविजन में ही मस्त रहते हैं। ऐसे में यदि सास-बहू, माँ-बेटा, पति-पत्नी आदि के बीच कोई तनाव या झगड़े की स्थिति आ जाए तो वह अप्रत्याशित नहीं क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक ही है। इसीलिए किसी ने कहा भी है-
 
"अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप। 
अति का भला बरसना, अति की भली न धूप ॥"
 
अर्थात् कोई भी कार्य सीमा से बढ़कर किया जाए, तो उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। इस तरह जिस समय हम अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ बातचीत कर सकते हैं, उसी को हम टेलीविजन देखकर बिता देते हैं जिससे आपसी संपर्क कम होता है और दूरियाँ बढ़ती हैं। आज इस भाग-दौड़ की दुनिया में हमें इस बात पर ज़रूर विचार करना चाहिए कि जब हम बाहर की दुनिया में अपना काम बखूबी निभा सकते हैं तो अपने घर में भी सभी कुछ व्यवस्थित रूप से निभा सकते हैं। आजकल अधि कतर घरों में हम एकल परिवार प्रथा को ही देख रहे हैं। इस पारिवारिक प्रथा ने भी परिवारों के मध्य दूरियों को बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। घर के बच्चों को अपने माँ-बाप और सगे भाई-बहन के अतिरिक्त कोई अन्य सदस्य अतिथि ही लगता है। इसमें बच्चों का भी दोष नहीं, परंतु ऐसा हर परिवार में नहीं है। परिवार के सभी सदस्य माता-पिता, भाई-बहन, दादी-दादा सभी एक ही परिवार के अंग हैं, एक संपूर्ण इकाई के रूप में हैं, परंतु परिस्थितियों व आवश्यकताओं ने हमें अलग-अलग कर दिया है और एक ही परिवार कई भागों में बँटकर एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। 

कुछ गिरते हुए नैतिक मूल्य व हानि-लाभ की भावना आदि ऐसे कारण हैं, जिन्होंने परिवार के लोगों के बीच दूरियों को बढ़ाया है। प्रत्येक सिक्के के दो पहलू हैं। यदि एक ओर कारण अनेक हैं तो निवारण भी अनेक तरीकों से किया जा सकता है और घर की स्त्री की इसमें अहं भूमिका है। हम अपने घर को सुखमय बनाने के लिए परिवार के प्रत्येक सदस्य की भावना को समझें। घर के बुजुर्गों के लिए युवा वर्ग को ही सोचना है, इसलिए कभी-कभी उनके लिए कुछ उपहार लाकर उनके मन को रखना सीखें। यदि घर के प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे की परेशानियों को समझते हुए मिल-बाँटकर काम करें तो सभी साथ बैठकर प्रत्येक स्थिति का आनंद उठा सकते हैं।

परिवार में दूरियां कम करने के लिए हमें कुछ कदम उठाने होंगे। हमें अपने परिवार के लिए समय निकालना होगा। बच्चों के साथ समय बिताना होगा और उनकी बात सुननी होगी। हमें पारिवारिक समारोहों को महत्व देना होगा और एक-दूसरे के साथ समय बिताना होगा। हमें तकनीक का कम से कम उपयोग करना चाहिए और परिवार के साथ अधिक समय बिताना चाहिए।निष्कर्षतः, परिवार में बढ़ती दूरियां एक गंभीर समस्या है। हमें इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा और इसे दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करना होगा। परिवार एक मजबूत इकाई है और जब परिवार मजबूत होता है तो समाज भी मजबूत होता है।

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