जे न मित्र दुख होहिं दुखारी की व्याख्या अर्थ प्रश्न उत्तर

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जे न मित्र दुख होहिं दुखारी की व्याख्या अर्थ प्रश्न उत्तर रामचरित मानस के किष्किंधा काण्ड से अवतरित प्रस्तुत चौपाइयों में महाकवि तुलसीदास ने सच्चे मि

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी की व्याख्या अर्थ प्रश्न उत्तर


जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
जिन्ह कें असि मति सहज न आई। ते सठ कत हठि करत मिताई।।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा। गुन प्रगटे अवगुनन्हि दुरावा।।
देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई।।
बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।।
आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई।।
जा कर चित अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहि भलाई।।
सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी।।

प्रसंग - उपरोक्त चौपाई 'रामचरित मानस' के किष्किंधा काण्ड से अवतरित प्रस्तुत चौपाइयों में महाकवि तुलसीदास ने सच्चे मित्र के लक्षणों की ओर संकेत किया है।
 
व्याख्या - यहाँ भगवान राम सुग्रीव को मित्र के लक्षण बताते हुए कहते हैं कि जो लोग मित्र के दुःख से दुःखी नहीं होते हैं, उन्हें देखने से भी बड़ा पाप लगता है। अपने पर्वत के समान दुःख को धूल के समान और मित्र के धूल के समान दुःख को सुमेरू (बड़े भारी पर्वत) के समान जाने ।
 
जिन्हें स्वभाव से ही ऐसी बुद्धि प्राप्त नहीं है, वे मूर्ख हठ करके क्यों किसी से मित्रता करते हैं ? मित्र का धर्म है कि वह मित्र को बुरे मार्ग से रोककर अच्छे मार्ग पर चलावे। उसके गुण प्रकट करे और अवगुणों को छिपावे।देने-लेने में मन में शंका न रखे। अपने बल के अनुसार सदा हित ही करता रहे। जो सामने तो बना-बनाकर कोमल वचन कहता है और पीठ पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है—हे भाई (इस तरह) जिसका मन साँप की चाल के समान टेड़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है। मूर्ख सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र—ये चारों शूल के समान पीड़ा देने वाले हैं।
 

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी की व्याख्या अर्थ प्रश्न उत्तर
महाकवि तुलसीदास के जन्म और मृत्यु के विषय में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं, अधिकांश विद्वान मानते हैं कि इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में सन् 1623 में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म स्थान सोरों (एटा) मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। बचपन में ही इनके माता-पिता का निधन हो गया था। इसीलिए इनका बचपन बहुत कठिनाइयों में बीता। इनका विवाह रत्नावली के साथ हुआ था। उसी के उपदेश से इन्हें वैराग्य हो गया था।
 
गुरू नरहरिदास इनके गुरू थे, जिन्होंने वेद, पुराण तथा अन्य शास्त्रों का अध्ययन कराया। इनकी मृत्यु सन् 1623 में हुई थी।तुलसी राम के अनन्य भक्त थे। संवत् सन् 1631 में इन्होंने 'रामचरित मानस' की रचना प्रारम्भ की। इसके अतिरिक्त 'दोहावली', 'गीतावली', 'कवितावली', 'विनय पत्रिका', 'जानकी मंगल', 'पार्वती मंगल', 'वैराग्य संदीपनी', 'वरवै रामायण', 'हनुमान बाहुक' आदि इनके प्रमुख ग्रन्थ हैं।
 
तुलसीदास जी की भाषा ब्रज और अवधी दोनों ही हैं । 'रामचरित मानस' इनका सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ है। इसकी गिनती विश्व के प्रमुख ग्रन्थों में की जाती है। इस ग्रंथ में भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन तथा भक्ति का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। इसमें राम का मर्यादा पुरुषोत्तम रूप चित्रित किया गया है। यह ग्रन्थ आज भी जनमानस को आदर्श जीवन के निर्माण की प्रेरणा देता है। तुलसी ने राम के शक्ति, शील तथा सौन्दर्य समन्वित रूप की अवतारणा की है। तुलसीदास को हिन्दी जगत का चन्द्र कहा जाता है। 

प्रश्न उत्तर

प्रश्न. 'सच्ची मित्रता' शीर्षक चौपाइयों के आधार पर सच्चे मित्र के गुणों पर प्रकाश डालिए।
 
उत्तर-तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के किष्किंधाकांड में सच्चे मित्र के कुछ लक्षण बताए हैं। भगवान राम जब सुग्रीव से मिलते हैं तब उनकी मित्रता सुग्रीव से होती है। उस समय वे सुग्रीव को बताते हैं कि जो लोग अपने को मित्र कहते हैं, लेकिन अपने मित्र के दुःख को देखकर दुःखी नहीं होते हैं, उन्हें तो देखने से भी पाप लगता है अर्थात् वे लोग अधम हैं क्योंकि मित्र वही है जो दुःख में सहायता करे। जो अपने पर्वत के समान बड़े दुःख को धूल के समान जाने और अपने मित्र के धूल के समान दुःख को सुपेरु यानी बड़े पर्वत के समान जाने वही सच्चा मित्र है। कहते का तात्पर्य है कि अपने चिन्ता न करके मित्र के दुःख में उसकी सहायता करे। 

जिन लोगों को ऐसा स्वभाव प्राप्त नहीं है, उन्हें दिखावे के लिए मित्रता नहीं करनी चाहिए। मित्र का धर्म तो यह है कि मित्र को बुरे मार्ग से निकाल कर अच्छे मार्ग पर चलाए। सच्चा मित्र अपने मित्र को गलत राह पर चलते हुए नहीं देख सकता। जब तक वह अपने मित्र को सही मार्ग पर नहीं ले आता, तब तक उसे चैन नहीं मिलता। वह मित्र के गुणों को तो सबसे कहता है, और उसके अवगुणों को छिपाता है। यदि कोई मित्र के अवगुण सबके सामने प्रकट करे तो वह सच्चा मित्र नहीं है। धन या किसी वस्तु के लेने- देने में कभी शंका न करे। अपने मित्र पर विश्वास रखें और अपनी शक्ति के अनुसार उसकी सहायता करता रहें। जो व्यक्ति सामने तो मधुर बोलता है, पीठ पीछे बुराई करता है तथा मन में कुटिलता रखता है तथा जिसका मन साँप की चाल के समान टेड़ा है, ऐसे कुमित्र को तो त्यागने में ही भलाई है। वह सच्चा मित्र तो है नहीं। यद्यपि ऐसा व्यक्ति अवश्य बनावटी मित्रता दिखाएगा, लेकिन उससे सावधान रहना चाहिए। कपटी मित्र तो शूल (काँटे) के समान पीड़ा देता है।
 
इस प्रकार निष्कर्षतः सच्चा मित्र वही है जो मित्र की पग-पग पर सहायता करे, उसके दुःख को दूर करने का प्रयत्न करे और उसे सन्मार्ग पर चलाए ।

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