नारंगी नगर नागपुर

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नागपुरवासियों की लगन इतने पर ही नहीं रुकती है। वे एक और जबर्दस्त शौक रखते है। गाड़ी का हॉर्न बजाने का शौक। ये इतने मतवाले है कि साइड लेने या देने के लि

नारंगी नगर नागपुर


देश के मध्य बसा शहर है नागपुर। वैसे तो इसकी शान किसी महानगर से कम नहीं है फिर भी ना जाने क्यों यह ठीक ठाक नगर बनने की जद्दोजहद में उलझा पड़ा है। कहने को तो अपना शहर देश की नाक है। अफसोस मगर कि इन दिनों इस नाक में दम बहुत है। आए दिन चलने वाली सड़क विच्छेदन प्रक्रिया ने नाक को गले तक छील दिया है। संतरों का यह शहर संतरे की फांक की तरह अलग अलग आकार से निखारा जा रहा है। वैसे निखरा और बिखरा केवल प्रक्रियागत अंतर भर है। इस नायाब नगर को ऐतिहासिक और धार्मिक कई तरह की उपलब्धियां उपलब्ध है जो वाकई में काबिले तारीफ है। यहाँ की प्रधान ऋतु है ग्रीष्म ऋतु। ग्रीष्म ऋतु यहाँ बारहों महीने अपना डेरा ड़ाले रहती है। इसके अधिक भौगोलिक परिवेश की बात करे तो आपको गूगल से यह पता चलेगा कि यहाँ तीन समानांतर नदियां है और नौ से बारह के आसपास तालाब और झील है। मुझे भी हुआ तो आश्चर्य ही जब मैंने इतने तालाब और तीन नदियों की जानकारी हासिल की। लगा कि कितना अच्छा होता कि जो गूगल पर है वो सच में भी होता तो! ये और बात है कि पिछले साल यानि 23 सितंबर 2023 की रात लगातार बारिश हुई और शहर का बहुप्रसिद्ध तालाब किन्ही खुफिया कारणो से ओवरफ़्लो हो गया। पानी को कहीं जाने का जब कोई रास्ता नहीं मिला तो वह भी सड़क से होते हुए लोगों के घरों में जा बैठा। इस एक रात की ही बारिश ने नागपुर को 10% के आसपास केदारनाथ त्रासदी का ट्रेलर दिखा दिया। वह तो भला हो एक नाले में तब्दील हो चुकी नदी का जिसने हर बार शहर में भर आए पानी को अपनी गोद में समेट कर शहरवालों की मूर्खता को नजरंदाज किया है। इस एक दाग को धो दे तो बाकी यह शहर भूकंप,बाढ़,ज्वालामुखी सब से बेखबर है। गर्म है लेकिन जला भुना नहीं है।
 
इस शहर को एक नजर देखने के लिए आइए गुजरते है इसकी सड़क से। इस शहर की सड़क पर खुदाई महोत्सव का दिखाई देना आम है। कभी सौंदर्यीकरण के नाम पर तो कभी विकास के लिए,यह शहर आए दिन खुदाई महोत्सव मनाता ही रहता है। खुदाई यहाँ का प्रधान कृत्य है,सड़कों की मरम्मत दुय्यम। खुदाई में नागपुर महानगर पालिका का कोई जवाब नहीं है। यह ऐसा विभाग है जो रावण के दस सिर की तरह इतना सीधा चलता है कि एक सिरे पर कौनसा काम चल रहा है यह दूसरे सिरे को नज़र ही नहीं आता। मेरी दिली तमन्ना है कि किसी दिन यहाँ फेविकोल कंपनी वाले आए और अपना प्रचार वाला विज्ञापन यहाँ की सड़कों पर बनाएँ। वे नहीं आ सकते तो कम से कम अंबुजा सिमेंट वाले ही आ जाए। इनके आने से सिमेंट की मजबूती से बनने वाली सड़कों को डामर की सड़क के गड्ढों से होने वाली तुलना तो नहीं सहनी पड़ेगी। हाँ,यह सच है कि नागपुर की सड़कें सिमेंट की है। शायद ही कोई और नगर होगा जहाँ रास्ता एक और फुटपाथ दो होते हैं। वह भी सड़क के दोनों ओर। यहाँ एक रास्ते के समानांतर फुटपाथ होता है,यह समानांतर फुटपाथ जहां खत्म होता है वहाँ से दूसरा मुख्य फुटपाथ शुरू हो जाता है। ऐसा नजारा सड़क के दोनों ओर दिखाई देता है। नागपुर के रत्न कहे जाने वाले लोग इसे गट्टु की सड़क भी कहते है। महानगर पालिका यहाँ बिल्कुल जमीन से जुड़ा एहसास कराती रहती है। इनका प्रयास पूरा रहता है कि जब तक आपके पैरों के नीचे से जमीन ना निकल जाए तब तक आपको जमीनी हकीकत से रूबरू कराते रहना। हमारी सड़कों पर बारहों महीने गड्ढों की सेल चलती है। कोई कोई मार्ग तो ऐसे हैं जहां हर एक कदम पर एक गड्ढा फ्री मिलता है।
  
सड़कों की बात कर ही रहें हैं तो एक नज़र जरा यहाँ के यातायात पर भी डाल लेते हैं। यहाँ का यातायात या कहें लोगो का वाहन वहन करने का सामर्थ्य बिलकुल ऐसा है जैसा नल से टंकी और टंकी से कुआँ भरने की प्रक्रिया। पहले बात करते है दोपहियाधारी की। नागपुर में बहुतयात में दोपहिया वाहन विद्यमान है। इसे चलाने की कोई निश्चित उम्र होगी ऐसा इसे चलाने वालों को देखकर नहीं लगता। लगभग हर आकार और क्षेत्रफल का व्यक्ति यहाँ दोपहिया चलाते मिल जाता है।
 
नारंगी नगर नागपुर
यदि आप मुझसे कि भला यह कैसे संभव है कि हर उम्र का व्यक्ति वाहन चला लेता है? तो मेरा जवाब होगा-‘जैसा उसका मन करें वह  वैसा चला लेता है।नागपुर की सड़कों पर मनमानी करते वाहन चालक दिखाई देना इतना ही आम है जितना आम के मौसम में आम। वाहन चालक का काम रास्तों पर बढ़ जाता है। आमतौर पर तो रास्तों पर गाड़ी चलाने का नियम होता है,हर वाहन की ‘लेन’ होती है लेकिन हमारे शहर में केवल जगह होती है। दायां-बायां जैसा कोई नियम हम नहीं मानते।यहाँ बाएँ जाने वाले का रास्ता दाएँ जाने वाला या सीधा जाने वाला भी रोकता है। मजाल है लेकिन कि हमारे बाएँ में कोई दायाँ चल लें। ऐसा हो तो हम वहीं सड़क पर बहसबाजी द्वारा मसला हल कर ही लेते हैं। हम इतने बेहतरीन नागरिक है कि यातायात के झगड़े हम करते भी खुद है और सुलझाते भी खुद ही है। हमारा यातायात विभाग चालान बनाता है। इस काम में वह इतना कुशल और दक्ष है कि विक्रम रोवर को भी ‘चालान नहीं काटेंगे लौट आओ’ का प्रलोभन दे देता है। हमारे यहाँ ट्रैफिक कंट्रोल का काम कम और ट्रैफिक चालान का काम ज्यादा निष्ठा से किया जाता है। अब यह कहना भी गलत ही माना जाएगा कि कंट्रोल नहीं है इसलिए चालान है।
 
नागपुरवासियों की लगन इतने पर ही नहीं रुकती है। वे एक और जबर्दस्त शौक रखते है। गाड़ी का हॉर्न बजाने का शौक। ये इतने मतवाले है कि साइड लेने या देने के लिए भी बजाय इंडिकेटर का संकेत देने के, हॉर्न को प्राधान्य देते है। इस चक्कर में मुसीबत उसके गले पड़ती है जो बेचारा सच में रास्ता मांगने के लिए हॉर्न बजा रहा होता है।  नागपुरवासी चालक हॉर्नप्रधान होते हैं।
 
कुछ और भी चिन्ह है जिसका  नागपुरी अपनी निशानी के तौर पर जतन करना पसंद करते हैं। नागपुरी संस्कार पता बताने की प्रक्रिया में विशेष सिद्ध होते है। नागपुरी व्यक्ति से पता पूछते समय यह ध्यान देना जरूरी है कि वह जिस शब्दावली का प्रयोग कर रहा है उसका मूल अर्थ वह कतई नहीं है जो होना चाहिए। मसलन, आपको पता समझाते हुए वह कहे कि ‘आपको जहां जाना हैं वहाँ से थोड़ी दूरी पर एक पेड़ गिरेगा’ तो आपको समझना है कि रास्ते में पेड़ है। नागपुरी लोग ऐसे ही पता बताते है। यहाँ हस्ताक्षर भी की नहीं जाती। मारी जाती है। उदाहरण के लिए कहा जाए तो,साइन करिए नहीं साइन मारिए बोलकर यहाँ लोग अपना दिल हल्का करते हैं।

नागपुर में बिना काम के भी व्यस्त रहने का ट्रेंड है। हो भी क्यों ना! यह गोंड राजा बख़्त बुलंद शाह की बसाई हुई नगरी है। समय के साथ साथ ऐतिहासिक परिवर्तन होते गए और यह भोसले साम्राज्य से होते हुए मराठा साम्राज्य में शामिल हो गया। उन्नीसवी सदी की ब्रिटिश हुकूमत ने इसे मध्य प्रांत के साथ बेरार की राजधानी बना दिया। भारत आजाद हुआ और राज्य पुनर्रचना के आधार पर इसे महाराष्ट्र में शामिल किया गया। इस जलेबी की तरह चलने वाली प्रक्रिया का परिणाम यह हुआ कि नागपुरी लोग भाषाई आग्रह जैसी बातों को ज्यादा दिल नहीं देते। सामने वाला हिन्दी बोले तो हिन्दी,मराठी कहे तो मराठी। भाषाई जलेबी का रस इसी में छना है। कुछ विशिष्ट शब्द तो ऐसे हैं जो सिर्फ यहीं पाए जाते हैं। जैसे –माहौल, एक नंबर, अपुन लोग,भाई लोग, बस क्या..........। इतना ही नहीं तो यहाँ नमस्कार और नमस्ते दो प्रकार की अभिवादन शैली से स्वागत करते लोगों का मिलना आम है।
 
अजब गज़ब नागपूर वाले जिस तरह 48 से 50 डिग्री तापमान में भी चाय का लुत्फ उठाते है वह अद्भुत है। भरी दोपहरी में ये आपको नुक्कड़ की चाय की दुकान [जिसे यहाँ टपरी कहते हैं] पर मिल जाएंगे। एक दो और ऐसे तरल और ठोस पदार्थ है जो सिर्फ नागपुर की सरजमी पर ही पाए जाते हैं। नागपुर में हर तरह के बड़े छोटे होटल और रेस्टोरेन्ट होने के बावजूद तर्री पोहा और समोसा तर्री नामक खाद्य पदार्थ का नागपुरियों के दिल पर एक छत्र राज है। नागपुर जिल्हा कार्यालय के मुख्य द्वार पर ही बिकती है कढ़ी पाटोडी,शायद ही कोई नागपुरी ऐसा हो जिसकी जिव्हा ने इस कढ़ी पटोडी का स्वाद ना चखा हो। यहाँ तीखा पसंद करने वालों को एक ही नाम लेना होता है और उनकी पसंद का तीखा हाजिर, वह नाम है ‘सावजी’। ‘सावजी’ वैसे तो मांसाहारी भोजन के लिए विख्यात है लेकिन नागपुरवासियों के शाकाहार प्रेम को देखते हुए सावजी भोजन शाकाहार में भी मिलता है। तिवारी जी की चाट हो या डॉली की चाय सब पर नागपुरी नशा चढ़ा मिलता है।
 
बात नशे की हो और नागपुरी खर्रे का जिक्र ना हो तो भला क्या बात हो! जैसे गुण में गुणगान वैसे ही अवगुण भी महान। नागपुर में अधिकांश नहीं तो आधे के आसपास ऐसे है जो इस खर्रे की बीमारी के मरीज है। यह एक प्रकार की प्लास्टिक की पुड़िया में बंधा हुआ तंबाखू और सुपारी आदि का संयुक्त मिश्रण है जिसे खाते समय व्यक्ति प्लास्टिक मुक्त अभियान जैसी सतही बातों से ऊपर उठ जाता है। इस खर्रे को मुंह में पूरी तरह एडजस्ट कर लेने के बाद कोई गुंजाइश नहीं बचती की खाने वाला कुछ कहने लायक रहे। इसी लिए थोड़ी थोड़ी दूरी पर पीकदान करते लोग दिखाई देना भी आम है।
   
नागपुर के लोग राजनीति से नहीं,दिल से धार्मिक है। धार्मिक और कट्टर धार्मिक के बीच क्या अंतर होता है यह यहाँ के लोगों को देखकर जाना जा सकता है। ये आस्था और श्रद्धा पर यकीन रखने वाले लोग हैं। नागपुर में धार्मिक स्थलों में प्रसिद्ध है गणेश टेकड़ी मंदिर,साईं मंदिर,कोराडी माता मंदिर,पोद्दारेश्वर राम मंदिर और बहुत से इसी तरह के पूजन स्थल। दरगाह,मस्जिद और चर्च भी।दीक्षा भूमि और ड्रेगन टेंपल भी है और है गुरुद्वारा भी। नागपुर के कुछ एक प्रसिद्ध पर्व भी है जिनकी रौनक सिर्फ नागपुर नगरी में देखी जा सकती है। इस क्रम में सबसे पहले है ‘मारबत’ और बड़ग्या। यह किसानो के त्योहार ‘पोला’ के दौरान मनाया जाता है। मारबत और बड़ग्या दरअसल दो पुतले है जिनके बारे में यह सामाजिक मान्यता है कि ये शहर ही नहीं तो देश की भी सारी नकारात्मक्ता को अपने साथ लेकर जाते है। मारबत स्त्रीलिंग प्रतीक है और बड़ग्या पुर्लिंग। पोला पर्व के दूसरे दिन,जिसे छोटा पोला भी कहते है यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन इन दोनों पुतलो पर तमाम तरह के जनजागृति के संदेश लिखे रहते हैं। मान्यता है कि हर अला बला को यह पुतले लील लेते हैं। इन्हे नगर के मध्य घूमाकर अंत में अग्नि के सुपुर्द कर दिया जाता है। इस विश्वास के साथ की इन्ही के साथ सारी विकृतियाँ और समस्याएँ भी अब समाप्त हो जाएंगी। शहरवासियों की इन परम्पराओं पर आस्था कुछ कुछ साहित्य की व्यंग्य पर की आस्था की तरह ही है। नागपुर की खासियत यह है कि यहाँ के धार्मिक आयोजन कभी राजनैतिक नहीं होते।

ऐसे कई भव्य आयोजन है जो नागपुर नगरी में आयोजित होते रहते हैं। एक भव्य सरकारी आयोजन भी तो है इस शहर की झोली में,विधानसभा का शीतकालीन अधिवेशन। फेहरिस्त बहुत लंबी है। बिलकुल यहाँ लगने वाले छोटे छोटे ट्राफिक जाम में अटकी,हॉर्न का शोर करती गाड़ियों की लंबी लंबी कतार की तरह। नागपुर में पुल गिरते नहीं है,गिराए जाते हैं। एक तोड़ा जाता है और फिर से दूसरा बनाया जाता है। कुछ समय बाद उसे भी तोड़ कर सड़क बना दी जाती है। नागपुरवासी विकास के इस मुरब्बे को अचार की तरह चाटते रहते हैं। उफ मगर करते नहीं। सड़कों के गड्ढों को तो जादुई शक्ति है कि वे पुरुषों को भी प्रसव वेदना से गुजरने का मौका देते हैं।
 
वैसे तो यहाँ रोजगार के बहुत अवसर नहीं है फिर भी अभियांत्रिकी महाविद्यालय का मकडजाल फैला है। नागपुर का विश्वविद्यालय एक दो नहीं पूरे चार जिल्हों की शिक्षा व्यवस्था का दायित्व संभालता है। मुझे गर्व है कि मेरे प्रिय साहित्यकार में से अग्रिम हरिशंकर परसाई इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थी रहें हैं। नागपुर विश्वविद्यालय ने गोंडवाना विश्वविद्यालय को स्वतंत्र रूप दिया। पहले यह नागपुर विश्वविद्यालय का ही कार्यक्षेत्र था। यही नहीं,हाल ही में भारत के दस बेहतरीन टेक्निकल इंस्टीट्यूट में शामिल ‘लक्ष्मीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी’ को भी नागपुर विश्वविद्यालय ने स्वतंत्र विश्वविद्यालय का स्वरूप दिया है। नागपुर वैचारिक भ्रमकेन्द्र से कम नहीं  है। यहाँ मेट्रो भी चलती है और मैक्सी [बैटरी ऑटो] भी। सीमेंट की सड़कें,सीमेंट के उड्डान पुल और उन पर से गुजरती मेट्रो। अंतर्राष्ट्रीय हो चुका हल्दीराम यहाँ पर लोकल है। भाषा का देसज और अभिजात्य दोनों रूप यहाँ देखे सुने जा सकते हैं।

बात साहित्य की करें तो प्रगतिशील हिन्दी साहित्य का पहला अधिवेशन, जिसकी अध्यक्षता आदर्शवादी विचार सम्राट प्रेमचंद जी ने की थी वह भी इसी नागपुर की सरजमी पर आयोजित हुआ था। बात इतने पर ही नहीं रुकती तो प्रगतिशील हिन्दी साहित्य के पुरोधा सुप्रसिद्ध साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध इसी नागपुर में कई वर्ष रहे। हिन्दी साहित्य की लंबी कविताओं में शामिल ‘अंधेरे में’ शीर्षक कविता का प्रधान चरित्र नागपुर के विविध स्थानों के बिंब जीता दिखाई देता है। मुक्तिबोध पहले ही नागपुर में सर्वहारा वर्ग देख गए थे। व्यंग्य पुरोधा परसाई जी नागपुर विश्वविद्यालय से स्नातक हुए। नागपुर कि शानोशौकत के लिए नाम कम नहीं है लेकिन फिर बात वही आ जाती है कि यह संतरा नगरी है तो कायदे दे खट्टा और मीठा रस तो बना ही रहेगा। खान पान में भी और कान में भी।'


- डॉ. आभा संजीव सिंह, वर्धमान नगर, नागपुर, महाराष्ट्र, (भारत)

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