नन्हों कहानी की तात्विक समीक्षा | शिवप्रसाद सिंह

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नन्हों कहानी की तात्विक समीक्षा शिवप्रसाद सिंह शिवप्रसाद सिंह की कहानी नन्हों एक ऐसी रचना है जो भारतीय ग्रामीण जीवन की जटिलताओं और एक महिला के मनोव

नन्हों कहानी की तात्विक समीक्षा | शिवप्रसाद सिंह


शिवप्रसाद सिंह की कहानी नन्हों एक ऐसी रचना है जो भारतीय ग्रामीण जीवन की जटिलताओं और एक महिला के मनोविज्ञान को गहराई से उजागर करती है। यह कहानी एक युवा नन्हों के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने जीवन के अचानक बदले हुए हालातों से जूझ रही होती है।

आचार्यों अथवा समीक्षकों ने कहानी के निम्नलिखित तत्त्व स्वीकार किये हैं- 
  • कथानक अथवा कथावस्तु,
  • पात्र तथा चरित्र चित्रण, 
  • संवाद अथवा कथोपकथन, 
  • भाषा शैली, 
  • देशकाल और वातावरण तथा 
  • उद्देश्य । 

कुछ विचारक कहानी का सातवाँ तत्त्व शीर्षक भी स्वीकार करते हैं। इन्हीं तत्त्वों के आधार पर शिवप्रसाद सिंह की प्रसिद्ध कहानी 'नन्हों' की समीक्षा प्रस्तुत है। इस कहानी को राजेन्द्र यादव ने अपने संकलन 'एक दुनिया समानान्तर' में सम्मिलित किया है। इसी से इस कहानी की श्रेष्ठता का अनुमान किया जा सकता है।
 

कथानक अथवा कथावस्तु

इस कहानी की कथावस्तु देहाती वातावरण, निर्धनता, दहेज प्रथा तथा अनमेल विवाह से सम्बन्धित है। नन्हों का विवाह गाँव की शेष लड़कियों के समान हुआ। बाजे बजे, हल्दी चढ़ी, सिन्दूर लगा, भोज हुआ, हँसी हुई, नन्हों रोयी । अन्य लड़कियों के विवाह में और नन्हों के विवाह में एक अन्तर था। प्रायः लड़कियों के विवाह अपने पिता के घर होते हैं, पर नन्हों का विवाह उसके पति के घर पर हुआ। कन्या के जो पिता निर्धन होते हैं, दहेज नहीं दे सकते और बारात का स्वागत-सत्कार नहीं कर सकते, वे अपनी पुत्री का डोला दे देते हैं। नन्हों के पिता ने भी उसका डोला दे दिया था। नन्हों बिना विवाह के ही अपनी ससुराल आयी थी।
 
नन्हों कहानी की तात्विक समीक्षा | शिवप्रसाद सिंह
वर पक्ष ने डोला इसलिये लेना स्वीकार किया कि उसे छल करना था। नन्हों का विवाह तो मिसरी लाल से हुआ, पर नन्हों के पिता को वर के रूप में राम सुभग को दिखाया गया जो मिसरी लाल का ममेरा भाई था। मिसरी लाल एक पैर से पैदाइशी लंगड़ा था। उसका दायाँ पैर जवानी में भी बच्चों की बाँह की तरह ही मुलायम और पतला था। मिसरी लाल डंडा टेककर फुदकता हुआ चलता था। मिसरी लाल का काला चेहरा उभरती हुई हड्डियों के कारण कुरूप लगता था। मिसरी लाल की किराने की दुकान उसके घर में ही थी। उस पर खाने-पीने का सामान बिकता था। राम सुभग प्राय: मिसरी लाल के ही घर रहता था और बाजार से सौदा लाने में उसकी सहायता करता था। मिसरी लाल का अपना कोई परिवारी नहीं था।
 
मिसरी लाल से विवाह होते समय उसके लंगड़े होने का पता नन्हों को चल गया था। विवाह के फेरों के समय वह अपने लम्बे घूँघट में आँसू बहा रही थी, पर उन्हें किसी ने देखा नहीं।राम सुभग समझता था कि नन्हों उसे पसन्द करेगी, उससे प्यार-मोहब्बत की बात करेगी, पर नन्हों ने राम सुभग को कोई महत्त्व नहीं दिया। राम सुभग ने दूल्हे के रूप में अपनी दिखनौती होने की बात कही, उसे नन्हों चुपचाप सुनती रही।
 
नन्हों ने राम सुभग को कोई महत्त्व नहीं दिया तो राम सुभग ने पहल करने की सोची। उसने एक दिन अकेली बैठी नन्हों से पानी माँगा और पानी देने आयी नन्हों की बाँह पकड़ ली। नन्हों ने झटके से अपनी बाँह छुड़ाई और सॉपिन की तरह फुसकारती हुई बोली-"शरम नहीं आती तुम्हें।" राम सुभग उसी दिन अपने गाँव चला गया। मिसरी लाल एक दिन सौदा खरीदने बाजार गया। लौटते समय उसे लू लग गयी। नन्हों ने बहुत उपाय किये, पर मिसरी लाल मर गया। अकेली नन्हों अब सहुआइन बन गयी और अपने घर के साथ-साथ दुकान भी सँभालने लगी।
 
एक बार राम सुभग उसके घर था और रात में नन्हों गाँव में रैदास की गद्दी देखने और भजन सुनने चली गयी थी। लौटकर घर आयी तो राम सुभग ने उसे रात में अकेली जाने पर डाँटा। नन्हों ने इसका ऐसा उत्तर दिया कि राम सुभग अपने गाँव चला गया और नन्हों के पास नहीं आया। एक दिन डाकिये ने राम सुभग का पत्र नन्हों को दिया जो कलकत्ते से आया था। उस पत्र में राम सुभग ने अपने आने की बात लिखी थी।राम सुभग नन्हों के घर आया। उसने नन्हों से अपने अपराध के लिये क्षमा माँगी। नन्हों ने कहा कि तुमने कोई अपराध नहीं किया। यह तो मेरे भाग्य का लिखा था। राम सुभग नन्हों के घर कई दिन रहा, पर नन्हों ने कोई बात नहीं की। जब राम सुभग चलने लगा तो नन्हों ने उसका वह रूमाल लौटा दिया, जिसमें राम सुभग की माता द्वारा दिये गये मुँह दिखायी के रुपये बँधे थे। राम सुभग चला गया और नन्हों रोती रही। 

पात्र तथा चरित्र चित्रण

साहित्य की कोई भी विधा हो, पात्र ही उसके कथानक को साकार बनाते हैं। पात्रों के साथ उनका चरित्र जुड़ा रहता है। इस कहानी में स्पष्ट रूप से तीन पात्र हैं-नन्हों, राम सुभग और मिसरी लाल। वैसे नन्हों के पिता, डाकिया और गीत गाने वाली भाटिन भी पात्र हैं, पर इनका विशेष महत्त्व नहीं है। इनमें भी नन्हों के पिता प्रमुख हैं। कहानी के प्रमुख पात्रों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है- 
  • नन्हों के पिता - ये निर्धन पिता हैं। इनके पास इतना धन नहीं है कि अच्छे घर में अच्छे वर से अपनी बेटी का विवाह करें। कहने को सारा दोष नन्हों की ससुराल वालों पर मढ़ा गया कि उन्होंने दिखाया स्वस्थ लड़का और नन्हों का विवाह विकलांग से कर दिया। वास्तव में नन्हों के साथ ऐसा धोखा होने की बात उसके पिता को मालूम थी पर वे विवश थे। 
  • मिसरी लाल-यह विकलांग और कुरूप है। जन्म से विकलांग और डंडे के सहारे फुदक-फुदक कर चलने वाला पात्र है तथा इसके घर में माता, पिता तथा भाई-बहन कोई नहीं है। वह घर का खाना-पीता है। घरेलू सामान की दुकान करता है। मिसरी लाल विवाह का सुख अधिक दिन तक नहीं भोग पाया। नन्हों से तिरस्कृत होकर राम सुभग के अपने घर चले जाने पर जेठ के महीने में बाजार से सौदा खरीदने मिसरी लाल को स्वयं जाना पड़ा। बाजार से लौटते समय उसे लू लग गयी और उसकी मृत्यु हो गयी। 
  • राम सुभग-यह मिसरी लाल का ममेरा भाई है। घर में काम करना पड़ता है इसलिए अधिकतर मिसरी लाल के पास रहता है। उसे कामचोर कह सकते हैं। वैसे वह बाज़ार से मिसरी लाल की दुकान के लिये सौदा लाता है और उसका खाना भी बना देता है। नन्हों के पिता को वर के रूप में राम सुभग को ही दिखाया गया। इस आधार पर यह नन्हों पर अपना अधिकार समझता है। उसने बहुत प्रयत्न किया कि नन्हों उसे अपना समझे। जब नन्हों ने उसके प्रति आकर्षण का कोई संकेत नहीं दिया तो एक दिन उसने नन्हों से पानी माँगा और गिलास के साथ ही नन्हों का हाथ पकड़ लिया। नन्हों ने उसे ऐसा फटकारा कि वह मिसरी लाल के घर से अपने घर चला गया और वहाँ से कलकत्ता चला गया। पाँच वर्ष बाद उसने नन्हों को पत्र लिखा और मिलने आया। वह समझता था कि विधवा नन्हों उसे अपना लेगी, पर नन्हों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह निराश होकर अपने घर चला गया। वह स्वभाव का कामुक और चरित्रहीन जान पड़ता है। 
  • नन्हों-यह पत्नीहीन दरिद्र पिता की पुत्री है। पिता ने इसका विवाह न करके डोला दिया है। मिसरी लाल से विवाह करके वह दु:खी है, पर स्वस्थ सुन्दर देवर राम सुभग की ओर आकर्षित नहीं होती है। राम सुभग द्वारा उसकी बाँह पकड़ने पर उसने जो प्रतिक्रिया व्यक्त की, उससे उसके सच्चरित्र तथा साहसी होने का प्रमाण मिलता है। कमारी अर्थात् घर का काम करने वाली ने जब नन्हों को राम सुभग से विवाह करने का परामर्श दिया तो नन्हों ने उसे चुप रहने को कहा। पति मिसरी लाल की के बाद भी नन्हों ने अपना घर सँभाला, दुकान सँभाली और अपना चरित्र सँभाला। उसकी बिरादरी में दूसरा विवाह वर्जित नहीं था, पर उसने दूसरे विवाह की बात तक न सुनी। कहानी का नाम इसी के नाम पर रखा गया है, इस आधार पर यह कहानी की नायिका सिद्ध होती है।
 

संवाद अथवा कथोपकथन

इस कहानी में संवाद बहुत कम हैं। केवल एक संवाद कमारी के प्रति हुआ है, शेष सभी राम सुभग देवर के प्रति हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि पति मिसरी लाल के प्रति इसके एक भी संवाद को प्रस्तुत नहीं किया गया है। कहानी के सभी पात्र अशिक्षित एवं ग्रामीण हैं इसलिये संवाद भी शहरी एवं पढ़े-लिखे के समान नहीं हैं, वैसे इतना लम्बा संवाद कोई नहीं है जो कथानक की गति में बाधा उपस्थित करें। राम सुभग के साथ हुआ नन्हों का एक संवाद उदाहरण के रूप में प्रस्तुत है- 
'भौजी !' वह (राम सुभग) पास की चारपाई पर बैठ गया। “एक गिलास पानी पिला दो। बड़ी प्यास लगी है।" 
'कहाँ गये थे इतनी धूप में ?" नन्हों उठी और आँगन के कोने में चबूतरे पर रखी गगरी से पानी लेकर आयी। 
जाने क्या हो गया था उस दिन राम सुभग को कि उसने गिलास के साथ ही नन्हों की बाँह पकड़ ली। एक झटके के साथ बाँह छुड़ायी और साँप की तरह ऐंठकर सुभग के हाथों से छूट गयी। गिलास झन्न की आवाज के साथ जमींन पर गिर पड़ा। " 
सरम नहीं आती तुम्हें, बड़े मर्द थे तो सबके सामने बाँह पकड़ी होती। " 

भाषा शैली

इस कहानी की भाषा सरल और सुबोध है। सभी पात्र अनपढ़ पंक्तियाँ हैं, इस कारण भी भाषा सरल है। उदाहरण के रूप में भाषा की कुछ प्रस्तुत हैं-"दो महीने बीत गये। राम सुभग का कोई समाचार न मिला। मिसरी लाल कभी उसकी चर्चा भी करता तो नन्हों को चुप देख, एक दो बातें चलाकर मौन हो जाता। दुकान के लिये सारी जरूरी चीजें राम सुभग ही खरीद कर लाता था। उसके न होने से मिसरी लाल को बहुत तकलीफ होती।" पूरी कहानी की शैली वर्णनात्मक है।
 

देश, काल और वातावरण

इस कहानी का देश अर्थात् स्थान कोई भी गाँव हो सकता है। काल अर्थात् समय का भी स्पष्ट पता नहीं चलता। कलकत्ते में नौकरी करने जाने का चलन अंग्रेजी राज में भी था। यह चलन अब तक बना हुआ है। जहाँ तक वातावरण की बात है, इस ओर लेखक ने विशेष ध्यान नहीं दिया है, पर यह कहानी वातावरण से शून्य भी नहीं है। नन्हों तथा मिसरी लाल के विवाह का वातावरण पूरी तरह साकार हो उठा है- 

“डोला आया, उसी दिन हल्दी-तेल की सारी रस्में बतौर टोटके के पूरी हो गयीं और उसी रात को बाजे-गाजे के बीच नन्हों की शादी मिसरी लाल से हो गयी। बाजों की आवाजें पूर्ववत् थीं, भाटिनों के मंगल गीतों में राम और सीता के ब्याह की वही पवित्रता गूँज रही थी, पर नन्हों अपने हाथ भर के घूँघट के नीचे आँसुओं को छुपाने की कितनी कोशिश कर रही थी, इसे किसी ने नहीं देखा।"
 
लेखक ने चैत के महीने में मिसरी लाल के घर का वातावरण भी बड़ी सफलता के साथ प्रस्तुत किया है-"चैती हवा में गर्मी बढ़ गयी थी। उसमें केवल नीम की सुवासित मंजरियों की गंध ही नहीं, एक नयी हरकत भी आ गयी थी. उसकी लपट में सूखी पत्तियाँ, सूखे फूल तथा पकी फसलों की टूटी बालियाँ हैं। उड़कर आँगन में बिखर जातीं। दोपहर में खाना खाकर मिसरी लाल दालान में सो जाता और राम सुभग बाजार गया होता या कहीं घूमने नन्हों अपने घर में अकेली बैठी सूखे पत्तों का फड़फड़ाना देखती रहती। उसके आँगन के पास भी खण्डहर में नीम का पेड़ था, ऐसे दिनों में जब नीम हरी निबोरियों से लद जाता, वह ढेर-सी निबोरियाँ तोड़कर घर ले आती और उन्हें तोड़-तोड़कर उसके ताजे दूध से गालों पर तरह-तरह की तसवीरें बनाती....शीशे में ठीक लेपन की पुतरी मालूम होती । रामलीला में देखा था। राम और सीता बनने वाले लड़कों के गालों पर ऐसी ही तसवीरें बनती थीं।"
 

उद्देश्य

सभी कार्यों का कोई-न-कोई उद्देश्य होता है। साहित्य की रचना भी कार्य है। साहित्यकार किसी-न-किसी उद्देश्य को लेकर अपनी रचना करने में प्रवृत्त होता है। बिना उद्देश्य के कुछ करना विक्षिप्त के प्रलाप के अतिरिक्त कुछ नहीं होता । साहित्यकार जैसा प्रबुद्ध, सुशिक्षित तथा बुद्धिजीवी प्राणी बिना किसी उद्देश्य के कुछ करेगा, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता। शिवप्रसाद सिंह जी जैसे उच्च शिक्षित तथा उच्च पदस्थ व्यक्ति ने इस कहानी की रचना जिस उद्देश्य से की है, वह स्पष्ट है। 'नन्हों' कहानी की रचना नारी की विवशता को रेखांकित करने के उद्देश्य से की गयी है। नन्हीं इतनी शिक्षित है कि चिट्ठी पढ़ लेती है। उसके पिता की निर्धनता ने उसे एक लंगड़े विकलांग से बाँध दिया। पिता भी पुत्री को बोझ समझता है तथा किसी भी प्रकार उसे उतारने को उद्यत रहता है। नन्हों के पिताजी को मालूम था कि बारात न लाकर नन्हों का डोला माँगना उसके साथ धोखा करना है, पर उन्होंने ऐसा होने दिया। समाज ने भी पुरुष का ही पक्ष लिया, नन्हों के साथ होने वाले अत्याचार का विरोध किसी ने नहीं किया। कथाकार शिवप्रसाद सिंह ने नन्हों के रूप में एक साहसी ग्रामीण युवती को इस कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है। वह अपने देवर राम सुभग के अनुचित प्रस्ताव को अस्वीकार करके साहस का परिचय देती है तथा उसे डाँटती है कि उसे कुछ करते और कहते नहीं बनता। कमारी अर्थात् घर का काम करने वाली ने जब नन्हों को राम सुभग से विवाह करने का परामर्श दिया तो नन्हों ने उसे बुरी तरह डाँटकर चुप करा दिया। कहानीकार का उद्देश्य एक प्रकार की दबंग देहाती लड़की को प्रस्तुत करने का है।
 

शीर्षक

कहानी का शीर्षक 'नन्हों' सर्वथा उचित है। इस कहानी की नायिका नन्हों ही सर्वश्रेष्ठ पात्र है। मिसरी लाल और राम सुभग दोनों में नायक बनने की सामर्थ नहीं है।
 
इस प्रकार अत्यधिक विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि शिवप्रसाद सिंह की कहानी नन्हों में कहानी के समस्त तत्त्वों का निर्वाह हुआ है। इस आधार पर नन्हों को पूर्ण कहानी कहा जा सकता है। नन्हों कहानी शिवप्रसाद सिंह की एक उत्कृष्ट रचना है जो भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कहानी हमें समाज में महिलाओं की स्थिति और उनके संघर्षों के बारे में सोचने पर मजबूर करती है।

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