भीमराव आम्बेडकर के बारे में बहुत अधिक भ्रांति फैलाई गई

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आम्बेडकर ने जीवन में दलित सुधार हेतु बहुत कार्य किए उनकी शिक्षा शुरु हुई सात सितम्बर उन्नीस सौ में प्रथम अंग्रेजी माध्यम से उक्त दिन महाराष्ट्र प्रां

कौन कहता डॉ भीमराव आम्बेडकर को सवर्णों ने सम्मान नहीं दिए ?


भीमराव आम्बेडकर के बारे में बहुत अधिक भ्रांति फैलाई गई 
कि उन्हें द्विज जातियों ने उपेक्षित की,सहानुभूति नहीं दिखाई 
सच में उन्हें उच्च शिक्षा गायकवाड़ व साहू महाराज ने दिलाई  
उनके पुरखे अंग्रेजों के सैनिक और वे वायसराय के श्रममंत्री थे 
महार रेजिमेंट व महाराष्ट्र प्रांत उनकी जाति के नाम महार से! 

भिवा आम्बडवेकर चौदह अप्रैल अठारह सौ एकानबे में जन्मे 
सूबेदार रामजी सकपाल और भीमाबाई के चौदहवें पुत्र रुप में
जिनका नाम ब्राह्मण गुरु ने भीमराव आम्बेडकर कर दिए थे 
अपनी ब्राह्मण उपाधि ‘आम्बेडकर’ स्नेह भाव से प्रदान करके 
आगे गाँधी ने भी गैरहिन्दू दम्पती को हिन्दू बनाए उपाधि दे! 
 
कौन कहता डॉ भीमराव आम्बेडकर को सवर्णों ने सम्मान नहीं दिए ?

ये उपाधि दान फिरोज खाँ घैंडी व इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरु को
एक सुगंध तेल-बनिए मोहनदास गाँधी द्वारा दिए उपाधि जैसे 
एक ब्राह्मण द्वारा अपनी जातिगत उपाधि दान महादान होते 
आज भी बिहार में मैथिल ‘झा’ उपाधि कानकुब्ज को नहीं देते 
जातिगत द्वेष हिन्दुओं के चार वर्ण की उपजातियों में भी होते!

कौन कहता भीमराव आम्बेडकर को सवर्णों ने सम्मान ना दिए?
बड़ौदा के राजपूत राजा की छात्रवृति से भीमराव विदेश में पढ़े
ये हकीकत है भीमराव आम्बेडकर दलित थे, पर छले नहीं गए 
साहूजी महाराज ने समय-समय पर दान देकर उपकार किए थे 
आम्बेडकर के पूर्वज व पिता अंग्रेजों के सैनिक और सूबेदार थे!

सच है कि आम्बेडकर छात्रवृत्ति ले गाँधी नेहरु से अधिक पढ़े थे 
आम्बेडकर के समकालीन प्रतिस्पर्धी कांग्रेसी नेता उनसे चिढ़े थे 
आम्बेडकर की उपेक्षा सामाजिक नहीं, राजनीतिक स्थिति से थी 
सामाजिक स्तर पर गाँधी नेहरु की बापू चाचा उपाधि चर्चित थी
जबकि आम्बेडकर की उपाधि ‘बाबासाहेब’ सर्वाधिक उत्कृष्ट थी! 

सनातन हिन्दू समाज में बापू और काका के पिता ‘बाबा’ कहलाते 
‘बाबा’ पितामह के अलावे हिन्दू धर्म के ब्राह्मण पंडे को कहे जाते 
आम्बेडकर को प्रथमतः बाबासाहेब जिसने कहा सोच के कहा होगा  
अगर उन्हें सिर्फ ‘बाबा’ कहा जाता तो तप त्याग संस्कार झलकता 
मगर वे अंग्रेजीदां साहब थे सूट-बूट के सिवा पहने नहीं धोती कुर्ता! 

अक्सर कहा जाता बाबासाहेब को भारत रत्न समय पर नहीं मिला 
तो ‘राष्ट्रपिता’ ‘देशरत्न’ उपाधिधारियों को ‘भारत रत्न’ कहाँ मिला? 
कहाँ बनिए या कायस्थों ने इन दोनों को भारत रत्न दिलाना चाहा? 
आम्बेडकर कबीरपंथी समाज के कुलरत्न थे नव कबीर हो सकते थे 
मनुस्मृति जला गए आम्बेडकरस्मृति जलाने की बात खुद कहते थे! 

क्या मनुस्मृति मनु की या भृगु की या किसी एक काल की रचना थी?
क्या मनुस्मृति के अधिक श्लोक चरित्र निर्माण के नहीं,सारे शूद्र विरोधी? 
क्या विश्व में कोई ऐसा धर्म पंथ ग्रंथ है जिसमें विष नहीं सिर्फ अमृत है?
क्या ऐसे अवतार तीर्थंकर बुद्ध नबी हैं जिसमें सिर्फ प्रिय,अप्रिय नहीं है? 
क्या हिन्दू धर्म त्याग जिस बौद्ध पंथ को ग्रहण किए,उसमें सब संत हैं?

ऐसा प्रतीत होता है कि आम्बेडकर थे महत्वाकांक्षी और पलायनवादी भी
हिन्दुओं में सुधार का विचार छोड़के उलटी धारा बहा लाए बुद्ध पंथ की
क्या आम्बेडकर को नहीं ज्ञात कि वर्तमान हिन्दू धर्म है बौद्ध महायानी 
हिन्दू सुधर रहे सुनके बौद्ध मत के सिद्ध नाथ कबीर नानक की वाणी 
इतनी जल्दी क्या थी बुद्ध के महायान हीनयान छोड़ नवयान बनाने की! 

आखिर आम्बेडकर के नवयान बौद्ध ने दिया क्या नवदलितवाद के सिवा? 
जय बुद्धाय से बना जय भीम जय मीम जय फिलिस्तीन एक नारा बेहूदा
जिसकी उम्मीद भीमराव को भी नहीं थी,उनके अनुयाई की जिद हिन्दू निंदा  
नवयानी विरोधी है हिन्दुत्व के  चार स्तंभ जैन बौद्ध हिन्दू सिख एकता की 
नवयानी बुद्ध के पूर्वज राम सीता पर कीचड़ उछालते,बन गए पेरियारवादी! 

भीमराव ने हिन्दू में जातिवाद के कारण उन्नीस सौ पैंतीस में निर्णय लिए 
हिन्दू धर्म त्यागने की कहके ‘हिन्दू जन्मा हूँ मगर मरूँगा नहीं हिन्दू रहके’
और वे मृत्यु पूर्व चौदह अक्तूबर उन्नीस सौ छप्पन में हिन्दू से बौद्ध हुए 
केवल इकावन दिन बाद छह दिसंबर उन्नीस सौ छप्पन में निर्वाण पा गए 
जाते-जाते भीमराव ने बुद्ध के ‘ऐसो धम्म सनंतनो’ को हिन्दू से तोड़ गए! 

आम्बेडकर इसलिए भी पलायनवादी थे कि वे हिन्दुओं की बुराई के खिलाफ 
तार्किक लड़ाई लड़ना छोड़ हिन्दू धर्म छोड़ गए और करने लगे दलित विलाप 
जबकि उन्हें हिन्दू रहके करना था छोटी जातियों के संस्कृतिकरण का प्रयास 
मनुस्मृति जलाना ठीक नहीं, क्योंकि मनुस्मृति में भी चरित्र निर्माण की बात 
उन्हें लोगों में विकसित करनी थी समझ जो सुधारती विदेशी मजहबी किताब! 

जितनी नीतिहीनता है मनुस्मृति में उससे अधिक अनीति मजहबी किताब में 
विदेशी मत में धर्मांतरित जन की घरवापसी कराते जो धर्म छोड़े थे दबाव में 
भीमराव को गुरु गोविंद सिंह सा देश धर्म हित में देखना चाहिए था ख्वाब में 
उन्होंने सोचा होगा कुछ वैसा किन्तु असमय निर्वाण से झलका नहीं प्रभाव में 
अब नवयानी बौद्ध भगवान बुद्ध की शिक्षानुसार बदलाव कर लें स्वभाव में!

इतना तय है कि आम्बेडकर ने जीवन में दलित सुधार हेतु बहुत कार्य किए 
उनकी शिक्षा शुरु हुई सात सितम्बर उन्नीस सौ में प्रथम अंग्रेजी माध्यम से
उक्त दिन महाराष्ट्र प्रांत में हर वर्ष विद्यार्थी दिवस के नाम से मनाए जाते 
वे स्वतंत्र भारत के कानून मंत्री थे, संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष बने  
भाजपा समर्थित गैरकांग्रेसी सरकार ने नवाजा भारतरत्न वे आधुनिक मनु थे!


- विनय कुमार विनायक

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